लंदन, नौ नवंबर (भाषा) उच्च न्यायालय ने हीरा कारोबारी नीरव मोदी की मानसिक सेहत के आधार पर प्रर्त्यपण के खिलाफ अपील बुधवार को खारिज कर दी। लंदन के उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि नीरव के आत्महत्या करने का जोखिम ऐसा नहीं है कि उसे धोखाधड़ी और धनशोधन के आरोपों का सामना करने के लिए भारत प्रत्यर्पित करना अनुचित और दमनकारी होगा।
न्यायाधीश जेरेमी स्टुअर्ट-स्मिथ और न्यायाधीश रॉबर्ट जे ने अपने फैसले में कहा कि जिला न्यायाधीश सैम गूजी की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत का पिछले साल प्रत्यर्पण के पक्ष में दिया गया आदेश सही था। न्यायाधीश जेरेमी स्टुअर्ट-स्मिथ और न्यायाधीश रॉबर्ट जे ने इस साल की शुरुआत में रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस में नीरव की अपीलों पर सुनवाई की अध्यक्षता की थी।
उच्च न्यायालय में अपील पर सुनवाई की अनुमति दो आधार पर दी गयी थी-यूरोपीय मानवाधिकार समझौते (ईसीएचआर) के अनुच्छेद 3 के तहत और मानसिक सेहत से ही संबंधित प्रत्यर्पण अधिनियम 2003 की धारा 91 के तहत।
भगोड़े हीरा कारोबारी (51) के पास ब्रिटेन और यूरोप की अदालतों में आगे अपील दाखिल करने का विकल्प है और भारत में मुकदमे के लिए उसे वापस लाने की प्रक्रिया बहुत तेज होने की संभावना नहीं लगती।
न्यायाधीशों ने व्यवस्था में कहा, ‘‘इन सभी पहलुओं को साथ में लाकर और संतुलन बनाते हुए धारा 91 के माध्यम से उठाये गये प्रश्न पर एक समग्र मूल्यांकन करने वाले फैसले पर पहुंचने के लिए हम इस बात से बिल्कुल संतुष्ट नहीं हैं कि नीरव मोदी की मानसिक स्थिति और आत्महत्या करने का जोखिम इस तरह का है कि उसका प्रत्यर्पण करना अनुचित या दमनकारी होगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह हो सकता है कि अपील का मुख्य लाभ और व्यापक आश्वासन प्राप्त करना रहा हो, जिसे हमने इस निर्णय के दौरान पहचाना है, जो नीरव मोदी के लाभ की स्थिति को स्पष्ट करते हैं और जिला न्यायाधीश के निर्णय का समर्थन करते हैं।’’
फैसले में इस बात को भी स्वीकार किया गया है कि भारत सरकार अपने आश्वासनों को उचित गंभीरता से लेगी। इस तथ्य से भी यह बात पुष्ट होती है कि यह नामचीन मामला है इसलिए 51 वर्षीय नीरव को हर समय कड़ी सुरक्षा मिलनी चाहिए जो मार्च 2019 में अपनी गिरफ्तारी के बाद से दक्षिण-पश्चिम लंदन में वैंड्सवर्थ जेल में बंद है।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘भारत सरकार इस बात को निश्चित रूप से मानेगी कि उसके आश्वासनों को पूरा नहीं कर पाने पर उस परस्पर विश्वास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है जो प्रत्यर्पण की व्यवस्था का आधार बना है जिसमें भारत और ब्रिटेन पक्ष हैं।’’
ब्रिटेन की तत्कालीन गृह मंत्री प्रीति पटेल ने पिछले साल अप्रैल में न्यायाधीश गूजी की व्यवस्था के आधार पर नीरव के प्रत्यर्पण का आदेश दिया था और तब से मामले में अपीलों की प्रक्रिया चल रही थी।
उसने कहा, ‘‘भारत सरकार ने जो आश्वासन दिये हैं, उनके आधार पर हम स्वीकार करते हैं कि नीरव मोदी की चिकित्सकीय देखभाल तथा प्रबंधन के लिए उचित चिकित्सा प्रावधान और उचित योजना होगी।’’
फैसले में विशेषज्ञ गवाह के बयान के आधार पर कहा गया है कि नीरव मोदी ने अभी तक मानसिक रोग का कोई लक्षण प्रदर्शित नहीं किया है। इसमें कहा गया कि उसने खुदकुशी के विचार को जताया है लेकिन कभी आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की और ना ही ऐसा करने की कोई योजना का खुलासा किया।
फैसले में यह भी माना गया है कि मुंबई की जिस आर्थर रोड जेल की बैरक 12 में प्रत्यर्पण के बाद हीरा कारोबारी को रखा जाना है उसमें सुरक्षा उपाय किये गये हैं जिससे सुनिश्चित होगा कि आत्महत्या की कोशिश के जोखिम को कम करने के लिए प्रभावी तरीके से सतत निगरानी हो।
अपील हार जाने के बाद नीरव सार्वजनिक महत्व के कानून के बिंदु पर उच्चतम न्यायालय जा सकता है। वह उच्च न्यायालय के फैसले के 14 दिन के भीतर उसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में आवेदन कर सकता है।
हालांकि उच्चतम न्यायालय में अपील तभी की जा सकती है जब उच्च न्यायालय ने प्रमाणित किया हो कि मामला आम जनता के महत्व से जुड़े कानून के बिंदु वाला है।
अंतत: ब्रिटेन की अदालतों में सारे विकल्पों के समाप्त होने के बाद हीरा कारोबारी अब भी ईसीएचआर के तथाकथित नियम 39 के तहत आदेश की मांग कर सकता है। इस तरह पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) कर्ज घोटाले के मामले में करीब दो अरब डॉलर की धोखाधड़ी करने तथा काले धन को सफेद बनाने के आरोपों का सामना करने के लिए और मुंबई की आर्थर रोड जेल में रखने के लिए उसे भारत वापस लाने की प्रक्रिया में अभी थोड़ा समय लग सकता है।
नीरव मोदी के वकीलों ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील की किसी तरह की योजना पर अभी कोई टिप्पणी नहीं की है।
भाषा वैभव पवनेश
पवनेश
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