नई दिल्ली: दिल्ली परिवहन निगम (डेल्ही ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन-डीटीसी) को इस साल जनवरी में पहली इलेक्ट्रिक बस मिली. जो कि पिछले एक दशक में बसों की फ्लीट में पहली और एकमात्र बढ़ोत्तरी थी. अब, डीटीसी साल 2025 तक अपने पूरे फ्लीट का लगभग 80 प्रतिशत बिजली वाले बसों के साथ तैयार करने की अपनी महत्वाकांक्षी योजना को अंजाम देने के लिए पूरी तरह तैयार है.
डीटीसी के आयुक्त आशीष कुंद्रा ने इसे ‘सबसे महत्वाकांक्षी एजेंडा’ बताते हुए कहा कि वर्तमान में दिल्ली की सड़कों पर दौड़ रहीं सार्वजनिक बसों की कुल संख्या 7,150 है, जिसमें से डीटीसी के तहत चलने वाली (3,910) बसें और निजी क्लस्टर (3,240) बसें दोनों ही शामिल हैं. वर्तमान में, दिल्ली को कम-से-कम 11,000 बसों की आवश्यकता है, जिनमें से 5,500 आदर्श रूप से डीटीसी के स्वामित्व में होनी चाहिए.
कुंद्रा ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान बसों के फ्लीट में आई कमी के परिणामस्वरूप दिल्ली के बड़े हिस्से, जो आकार और जनसंख्या दोनों में विस्तृत हो रहे हैं, इनके कवरेज से वंचित हो रहे हैं. दिल्ली सरकार की योजना अब केवल सीएनजी/डीजल संस्करणों वाले बसों के बजाय ई-बसों की खरीद करने और साथ ही मौजूदा फ्लीट के 80 प्रतिशत को साल 2025 तक पहले की रणनीति के अनुसार चरणबद्ध तरीके से सेवा से बाहर करने की है.
कुंद्रा ने साल 2030 तक 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन गतिशीलता (ई-वेहिकल मोबिलिटी) प्राप्त करने की केंद्र की आकांक्षा का जिक्र करते हुए कहा, ‘अगर सब कुछ योजना [दिल्ली में 2025 तक 10,000 से अधिक बसों के फ्लीट में 8,000 ई-बसों को शामिल करना] के अनुसार होता है, तो एक पूर्ण विद्युतीकरण [अभियान] संभव हो सकता है.’
ई-मोबिलिटी (गतिशीलता) के जिस पैमाने का लक्ष्य दिल्ली के सामने है उसके बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि फिलहाल चीन का शेनझेन एकमात्र ऐसा शहर है, जिसके पास 16,000 से अधिक ई-बसों का बेड़ा है.
कुंद्रा ने कहा कि दिल्ली में अभी 250 ई-बसें हैं और ई-बसों के पहले बैच के लिए हस्ताक्षरित अनुबंध के अनुसार जल्द ही यह संख्या 300 हो जाएगी. अगले साल दिसंबर तक 1,500 और ऐसी बसें आने की उम्मीद है. उन्होंने कहा, ‘हमने कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज लिमिटेड (सीईएसएल) के माध्यम से लगभग 4,000 बसों के लिए निविदाएं भी जारी की हुई हैं. हम ‘ड्राई लीज’ पर 2,000 और बसों के लिए टेंडर निकालने की भी योजना बना रहे हैं. यह सब यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है कि साल 2025 तक दिल्ली में बसों के कुल फ्लीट का 80 प्रतिशत हिस्सा बिजली से चलने वाला हो जाए.’
थोक में खरीद के लिए संयुक्त निविदा
बिजली मंत्रालय के तहत आने वाले एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी, सीईएसएल. को कई शहरों के लिए ई-बसों की खरीद के लिए संयुक्त निविदा जारी करने का काम सौंपा गया है. थोक खरीद से इनकी लागत सस्ती हो जाती है.
सीईएसएल के माध्यम से जारी निविदाएं ‘सहकारी संघवाद’ का एक अनूठा स्वरूप है. इस पहल के लिए मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद, अहमदाबाद, चेन्नई, कोलकाता, सूरत और पुणे सहित कई शहर एक साथ आए हैं और उन्होंने अपनी खरीद की शक्ति केंद्र को सौंप दी है.
एक तरफ जहां डीटीसी द्वारा स्वयं खरीदी गई 300 ई-बसों को चलाने की प्रति किमी लागत 67 रुपये प्रति किमी थी, वहीँ सीईएसएल के तहत संयुक्त निविदा का विकल्प चुने जाने पर यह घटकर 47 रुपये प्रति किमी हो गई. डब्ल्यूआरआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली के सीईएसएल ग्रैंड चैलेंज टेंडर के तहत निविदा दर में 39.8 फीसदी की कमी आई है.
कुंद्रा ने बताया कि केंद्र की फेम II योजना के तहत, ई-बस खरीदने वाले राज्यों को 1.5 से 2 करोड़ रुपये की लागत वाली बस पर लगभग 45 लाख रुपये – जो पूंजीगत लागत का 5 प्रतिशत होती है – की सब्सिडी मिलती है. फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (एफएमई-फेम) योजना का उद्देश्य डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के उपयोग को कम करना है.
अत्याधुनिक बसें
दिल्ली की पूरी तरह से इलेक्ट्रिक लो-फ्लोर बसों को टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल और किफायती सार्वजनिक परिवहन के लिए अत्याधुनिक तकनीक की पेशकश करने वाली माना जाता है और ये एसी, रैंप सुविधाओं और पैनिक बटन जैसी सुविधाओं के साथ आतीं हैं. यह 35 यात्रियों के लिए बैठने की जगह प्रदान करती है और इसके द्वारा अपने 10 वर्षों के अपने उपयोग काल में 0.33 मिलियन टन पीएम 2.5 और पीएम 10 कार्बन डाइऑक्साइड में कटौती करने का अनुमान है.
डीटीसी के अनुसार, इसकी टिकट की कीमत अन्य एसी बसों के समान ही है, जो 10 रुपये से लेकर 25 रुपये तक है. डीटीसी की नॉन-एसी बसें 5 रुपये से 15 रुपये के बीच का किराया लिया जाता है.
इससे पहले दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने इन नई बसों को शामिल किये जाने को उन लोगों के लिए एक ‘माकूल जवाब’ करार दिया था, जो इस तरह की अफवाहें फैला रहे थे कि डीटीसी बंद हो जाएगी. राज्य सरकार सार्वजनिक परिवहन के अपने फ्लीट का 100 प्रतिशत विद्युतीकरण का लक्ष्य भी रख रही है. यह एक ऐसा बिंदु जिसकी गहलोत ने विभिन्न अवसरों पर वकालत की है और इसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दूरदृष्टि (विजन) बताया है.
किस हद तक तैयार है दिल्ली प्रशासन?
इससे पहले यह बताया गया था कि दिल्ली सरकार ने इन बसों के आगामी फ्लीट को समायोजित करने के लिए अपने सभी 62 बस डिपो का विद्युतीकरण शुरू कर दिया है. फ़िलहाल मुंधेला कलां, रोहिणी सेक्टर 37 और राजघाट जैसे कुछ बस डिपो हैं जो ई-बसों नकी पार्किंग और उन्हें चार्ज करने की सुविधा से सुसज्जित हैं.
अगले वर्ष तक कुल मिलकर 12 डिपो को विद्युतीकरण के लिए प्राथमिकता दी गई है. इनमें रोहिणी II, मायापुरी, नेहरू प्लेस, सुभाष प्लेस, बांदा बहादुर मार्ग (जिसका इस साल विद्युतीकरण किया जाना है), हसनपुर, सुखदेव विहार, वजीरपुर, कालकाजी, नरैना और सावड़ा घेवरा शामिल हैं.
सीईएसएल के इलेक्ट्रिक मोबिलिटी सलाहकार कल्याण रेड्डी ने कहा, ‘सिर्फ दिल्ली के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए बसों के फ्लीट के आधुनिकीकरण – यानि कि 10 साल से अधिक पुरानी बसों को बदलना – की आवश्यकता है. इसलिए, उन्हें डीजल से चलने वाली बसों से बदलने के बजाय, सभी एसटीयू [स्टेट ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग्स – राज्य परिवहन उपकर्मों] को इलेक्ट्रिक फ्लीट (विद्यतीकृत बड़े) की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.’
भारत में अधिकांश इलेक्ट्रिक बसें सकल लागत अनुबंध (ग्रॉस कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट-जीसीसी), जो एक प्रकार की सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप-पीपीपी) होती है, के माध्यम से खरीदी जाती हैं. इसके तहत सार्वजनिक प्राधिकरण मूल उपकरण निर्माताओं (ओरिजिनल इक्विपमेंट मनुफक्चरर्स – ओईएम) को प्रति किलोमीटर के आधार पर भुगतान करते हैं और उनके कामकाज की निगरानी करते हैं, जबकि ओईएम कंपनी सभी तरह की संचालन और रखरखाव संबधी लागत वहन करती है.
दिल्ली में सभी ई-बसें 12 साल के जीसीसी मॉडल पर चल रही हैं. हालांकि सरकारी अधिकारियों का कहना है कि ई-बसों की दक्षता और शेल्फ लाइफ (उपयोग की आयु) पर टिप्पणी करना अभी जल्दबाजी होगी, महार सतत गतिशीलता (सस्टेनेबल मोबिलिटी) के विशेषज्ञों और ओईएम का दावा है कि परिचालन लागत के मामले में ये बसें अन्य बसों की तुलना में ‘बिल्कुल’ सस्ती हैं.
एक अधिकारी, जो दिल्ली के इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) सेल में काम करते हैं, ने कहा, ‘यह अन्य बसों के रखरखाव की तुलना में सस्ता पड़ता है. यह बहुत ही किफायती भी है क्योंकि इसे निजी ऑपरेटर चला रहे हैं और इन्हें संचालित करने और वे लोगों को रोजगार देने के तरीकों का पता लगाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. रखरखाव की लागत काफी कम हो जाती है. दिल्ली इस मॉडल को अपनाने वाले पहले राज्यों में से एक था.’
पवन मुलुकुटला, प्रोग्राम डायरेक्टर, क्लीन मोबिलिटी एंड एनर्जी टेक, डब्ल्यूआरआई इंडिया ने कहा कि जब ई-बसों की बात आती है तो परिवहन निगमों के लिए इसके कई फायदे हैं.
उन्होंने कहा, ‘जब आप बस के पूरे जीवन काल को ध्यान में रखते हैं, तो ई-बसों की लागत कम होने लगती है. क्योंकि जब आप उन्हें किराए पर दे रहे होते हैं, तो आप उन्हें स्वयं संचालित नहीं कर रहे होते हैं. आम तौर पर ये आपको एक ड्राइवर के साथ ही मिलती हैं. बिजली की लागत भी कम है. फिर इन बसों के लिए [सब्सिडी के बाद] एक विशेष कीमत होती है, और सरकार योजना बना रही है कि इनके लिए बिजली अक्षय ऊर्जा से प्राप्त की जाएगी. इसलिए, यह दक्षता और उत्सर्जन को कम करने के मामले में चलाने के लिए और भी बेहतर हो जाता है.’
क्या ई-बसों के लिए तैयार है दिल्ली?
रेड्डी ने बताया कि एसटीयू की भूमिका अपस्ट्रीम इंफ्रास्ट्रक्चर (ऊपरी स्तर का बुनियादी ढांचा) प्रदान करना है और ट्रांसफॉर्मर से चार्जिंग स्टेशन तक बिजली की लाइन लेना और ई-बसों के आने वाले फ्लीट को समायोजित करने के लिए स्टेशन को विकसित करना ऑपरेटर के जिम्मे का काम है
मुलुकुटला ने कहा, ‘बुनियादी ढांचे की तैयारी एक महत्वपूर्ण कारक है. इसके लिए सभी डिपो को तैयार रहना होगा, क्योंकि इलेक्ट्रिक बसों के रखरखाव के लिए दूसरी चीजों के साथ-साथ हाई-वोल्टेज इलेक्ट्रिक लाइन के कनेक्शन और ट्रांसफॉर्मर यूनिट चार्जिंग को स्थापित करने की आवश्यकता होती है. ई-बसों को रात भर, और कभी-कभी दिन के समय में भी, बाहर से चार्ज करना पड़ता है.’
उन्होंने बताया कि चार्जिंग सुविधाओं के साथ लैस पांच डिपो औसत रूप से लगभग 150 से 200 बसों की जरूरतों पूरा कर सकते हैं और 8,000 बसों के लिए आदर्श रूप से ऐसे लगभग 30-40 डिपो की आवश्यकता होगी. संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय शहर ई-बसों के लिए प्लग-इन चार्जिंग को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि यह दुनिया भर में सुस्थापित प्रणाली है. हालांकि, प्रमुख भारतीय शहरों में ई-बस के लिए दैनिक परिचालन के किलोमीटर अधिक होते है, जिन्हें भारी बैटरी से पूरा करना पड़ता था.
इस चार्जिंग विधि का नुकसान यह है कि 0 से 100 प्रतिशत तक चार्ज करने के लिए आवश्यक समय धीमी चार्जिंग के साथ लगभग 6-8 घंटे और फास्ट चार्जिंग के मामले में 2-3 घंटे होती है. अन्य नुकसानों में कम वहन क्षमता भी शामिल है. इसके अलावा, अकेले रात भर चार्ज किया जाना पर्याप्त नहीं होता है जिसके कारण इन्हें दिन के समय में भी चार्ज करने की आवश्यकता होती है.
एक और चुनौती खरीद में हो रही देरी है, जैसा कि दिल्ली में देखा गया, जहां अनुबंध पर हस्ताक्षर करने और डिलीवरी के बीच कुछ महीनों का अंतर था. राष्ट्रीय राजधानी में सड़कों पर ई-बसों को तैनात करने में कुल मिलाकर 10 महीने लग गए, जबकि विशेषज्ञों के अनुसार इस समय को छह महीने से कम होना चाहिए.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः