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Friday, 22 November, 2024
होमदेशकरोड़ों रुपये के घोटाला मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन एजेंसियों के टॉप अधिकारियों को किया तलब

करोड़ों रुपये के घोटाला मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन एजेंसियों के टॉप अधिकारियों को किया तलब

कोर्ट एक रियल एस्टेट कंपनी सन शाइन सिटी ग्रुप ऑफ कंपनीज के निवेशकों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिस पर कथित तौर पर 350 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी का आरोप है।

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नई दिल्ली: लखनऊ की एक रियल एस्टेट कंपनी द्वारा कथित रूप से करोड़ों रुपये के घोटाले का पता लगाने में विफल रहने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) और उत्तर प्रदेश पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्लू) के तीन शीर्ष अधिकारियों को तलब किया है.

दिप्रिंट को मिले आदेश की कॉपी के मुताबिक ईडी और एसएफआईओ के निदेशक व यूपी पुलिस के ईओडब्ल्यू के महानिदेशक को 4 नवंबर को उच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया गया है.

17 अक्टूबर के अपने आदेश में चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर की एक बेंच ने जिक्र किया था कि जाहिर है एसएफआईओ या ईडी द्वारा पैसे का पता लगाने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए हैं, जो कि सन शाइन सिटी ग्रुप ऑफ कंपनीज द्वारा विभिन्न बैंक खातों में जमा किए गए थे, इस तथ्य के बावजूद कि खातों को सीज़ कर दिया गया था.

हाईकोर्ट सन शाइन सिटी ग्रुप ऑफ कंपनीज के निवेशकों द्वारा दायर याचिका के एक बैच की सुनवाई कर रहा है जो कथित घोटाले की निष्पक्ष पुलिस जांच की मांग कर रहे हैं. फर्म ने कथित तौर पर अपने निवेशकों को 350 करोड़ से अधिक का चूना लगाया था.

राज्य की आर्थिक अपराध शाखा के खिलाफ शिकायत करने वाली कंपनी द्वारा दायर एक क्रॉस-केस भी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित इस बैच का हिस्सा है. ये मामले इलाहाबाद हाईकोर्ट के पास एक साल से अधिक समय से लंबित हैं.

शीर्ष अधिकारियों को तलब करने का आदेश जारी करने से पहले अदालत ने अपने समक्ष पेश की गई स्टेटस रिपोर्ट का अध्ययन किया. आदेश के मुताबिक यह दर्शाता है कि न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि अन्य राज्यों में भी कंपनी और उनके निवेशकों द्वारा की गई कथित धोखाधड़ी पर एजेंसियों को दी गई जानकारी के संबंध में कुछ भी नहीं किया गया है.

उच्च न्यायालय के आदेश में उल्लिखित रिपोर्ट से पता चलता है कि एजेंसियों को दिए गए विवरण उनकी जांच का हिस्सा नहीं थे और न ही याचिकाकर्ताओं द्वारा पहले की सुनवाई के दौरान प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों पर कोई कार्रवाई की गई थी.

17 अक्टूबर का आदेश पहली बार नहीं है जब उच्च न्यायालय ने कथित घोटाले की जांच करने वाली जांच एजेंसियों की भूमिका पर प्रतिकूल टिप्पणी की है जिसमें कंपनी, उसके प्रमोटरों और निदेशकों के खिलाफ 450 प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं.


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कैसे सामने आया मामला

मामले की जांच 2019-2020 के बीच शुरू हुई जब कंपनी पर पैसे की हेराफेरी का आरोप लगाने वाले 1647 निवेशकों के इशारे पर कई शहरों में 284 प्राथमिकिया दर्ज की गईं. गंभीर आरोपों के बावजूद जांच पूरी होने में देरी होने के कारण निवेशकों ने 2021 में उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया. जनवरी 2021 में अदालत ने पुलिस की निष्क्रियता पर ध्यान दिया और उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को तलब किया था.

एडवोकेट सुनील कुमार, जो याचिकाकर्ताओं के वकील हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि 18 निवेशकों ने शुरू में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था लेकिन समय के साथ-साथ याचिकाकर्ताओं की संख्या में बढ़कर 300 हो गई है. कुमार के मुताबिक मामला पहले राज्य पुलिस की अपराध शाखा को सौंपा गया, फिर ईओडब्ल्यू को.

कुमार ने कहा कि हालांकि राज्य पुलिस ने 56 गिरफ्तारियां की हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों को निचली अदालतों ने जमानत दे दी है. ये गिरफ्तारी ज्यादातर उच्च न्यायालय मामले की निगरानी शुरू करने के बाद ही की गई थी. कुमार ने आगे कहा कि निचली अदालतों ने आरोपियों को इस आधार पर जमानत पर रिहा कर दिया कि वे मुख्य साजिशकर्ता नहीं थे और उन्होंने साजिश में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई.

इसके अलावा निचली अदालत ने यह भी देखा कि कथित सरगना जो कंपनी का मुख्य प्रबंध निदेशक है वह अभी भी फरार है और दुबई में है. इस बात को उच्च न्यायालय ने भी 23 मार्च 2021 को एक सुनवाई के दौरान भी कहा था. उसी आदेश में अदालत ने उचित जांच करने और गिरफ्तारी करने में पुलिस प्रशासन की पूरी विफलता पर टिप्पणी की थी.

उसके बाद जून 2021 में अदालत ने जांच की प्रगति पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि जांच को ‘तार्किक निष्कर्ष’ पर नहीं ले जाया गया. उसके बाद अक्टूबर 2021 में कोर्ट ने जानना चाहा कि दुबई में रहने वाले कथित सरगना की अब तक पुलिस कस्टडी में क्यों नहीं भेजा गया.

हालांकि उसके करीबी सहयोगी आसिफ नसीम को गिरफ्तार कर लिया गया था और फिलहाल वह जेल में हैं लेकिन फिर भी एजेंसियां मनी ट्रायल के लिए संघर्ष कर रही हैं.

दिप्रिंट को मिले अदालत के आदेश के मुताबिक नसीम को हिरासत में रहते हुए भी कंपनी की तरफ से सेल डीड्स को रजिस्टर करने अधिकार दिया गया था. हालांकि नसीम के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने कहा कि उनके मुवक्किल को ऐसा करने के लिए जेल अधीक्षक की अनुमति थी लेकिन बाद में अदालत के समक्ष दायर हलफनामे में उसने इससे इनकार कर दिया.

दिप्रिंट से बात करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता नकवी ने कहा कि मेरे मुवक्किल के खिलाफ बहुत सारी एफआईआर हैं और इस प्रक्रिया में 125 बैंक खाते संलग्न किए गए हैं. हमने अदालत के सामने इसे प्रस्तुत किया है और हम इस मामले के निपटारे के लिए तैयार हैं. हमारे खाते में पर्याप्त पैसा है. अदालत ने अभी हमारी याचिका पर आदेश पारित नहीं किया है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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