नई दिल्ली: मार्च 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव परिणाम. भाजपा ने लगभग 25 साल बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. जीत एकतरफा थी. इस चमत्कारी जीत की खुशबू और भीनी हो गई जब 41 महिला विधायकों ने विधानसभा की चौखट पर कदम रखें. 403 सीटों की यूपी विधानसभा सीट में यह आंकड़ा काफी कम है, लगभग 10 प्रतिशत. लेकिन उत्तर प्रदेश के इतिहास में सबसे ज्यादा है. इस परिणाम से एक उम्मीद जगी कि शायद महिलाओं के शोषण के खिलाफ उठने वाली आवाजें तेज होंगी. पुरुषवादी संकीर्ण सोच के विरुद्ध चल रहे संघर्षों के खिलाफ लड़ाई और तेज होगी.
लेकिन आज लगभग दो साल बीतने के बाद. जब हम अपनी उन उम्मीदों के बारे में सोचते हैं, तो महिलाओं के अधिकार की लड़ाई राजनीतिक भेंट चढ़ते दिखाई दे रही है. सत्ता पक्ष की ही एक महिला विधायक अपने अमर्यादित और विवादित कारनामों के कारण सुर्खियों में है. नाम है साधना सिंह. बीते शनिवार उन्होंने यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती पर अशोभनीय टिप्पणी करते हुए किन्नर से भी बदतर बता दिया. उनके इस बयान से सूबे की राजनीति गरमाई है. लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब साधना सिंह ने विवादित बयान दिए हो.
कौन है साधना सिंह
साधना सिंह चंदौली जिले का प्रवेश द्वार माना जाने वाले मुगलसराय विधानसभा सीट से भाजपा की विधायक हैं. साधना ने साल 2000 में जिला पंचायत सदस्य के रूप में राजनीति की शुरुआत की थी. व्यापार मंडल से जुड़ी विधायक साधना सिंह के जीवन का टर्निंग प्वाइंट आया साल 2010 में, जब उन्होंने स्थानीय व्यापारियों के हक में आवाज उठाई. इस संघर्ष में उन्हें जेल भी जाना पड़ा. लेकिन हवालात से निकलने के बाद वो स्थानीय स्तर पर काफी लोकप्रिय हो गईं. मुगलसराय सीट से 2012 में बीएसपी के बब्बन सिंह जीते थे. उन्होंने सांसद रामकिशुन के भाई और एसपी उम्मीदवार बाबूलाल को हराया था. 2017 के बाबूलाल एसपी-कांग्रेस गठबंधन से मैदान में थे. वहीं बीएसपी से टिकट कटने के बाद बब्बन प्रगतिशील मानव समाज पार्टी से चुनाव लड़ बीएसपी को जवाब देने की कोशिश में जुटे थे. उधर भाजपा ने व्यापारी तबके के साथ सवर्ण वोटरों को साधने की कोशिश में महिला उम्मीदवार के रूप में साधना सिंह को मैदान में उतारा था. उन्होंने पार्टी की उम्मीदों को कायम रखते हुए समाजवादी पार्टी के बाबूलाल को 13,243 वोटों से हरा कर चुनाव जीत लिया.
विवादों के साथ चोली दामन का साथ
विधायक बनने के छह महीने बाद ही साधना सिंह ने अपने कार्यकर्ताओं के साथ मुगलसराय रेलवे कॉलोनी का निरीक्षण किया. इसी दौरान रेलवे के स्थानीय यूरोपियन कॉलोनी में गंदगी देख उन्होंने मौके से ही फोन कर डीआरएम को बुलाया. लेकिन डीआरएम मौके पर नहीं पहुंचे. इससे विधायक साधना सिंह भड़क गईं और कूड़ा लेकर डीआरएम कार्यालय पहुंच गईं. वहां पहुंचते ही उन्होंने सबसे पहले डीआरएम फोन करने के बाद भी नहीं पहुंचने का कारण पूछा. इससे पहले डीआरएम अपनी बात पूरी करते कि विधायक के कुछ समर्थक उनसे कहासुनी करने लगे. मामले को तूल पकड़ता देख आरपीएफ और जीआरपी के जवानों को बीच बचाव में आना पड़ा.
इस घटना के कुछ महीने बाद यानी जून 2018 में वे एकबार फिर से विवादो में फंस गईं. सपन डे हत्याकांड के मुख्य आरोपी के साथ साधना सिंह की तस्वीर वायरल हो गई, जिसे लेकर विधायक ने एक स्वतंत्र पत्रकार को फ़ोन कर, उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे डाली. मामला तूल पकड़ता देख ,साधना ने प्रेस वार्ता कर डाली. उसमें उन्होंने कहा, ‘शुरू में मैंने स्वतंत्र पत्रकार को फर्जी पत्रकार समझकर बहुत कुछ बोल दिया लेकिन असल बात ज्ञान होने के बाद मैंने उन्हें फ़ोन कर माफ़ी मांग ली.’
फिर आया सितंबर 2018. इस बार विधायिका के निशाने पर थे,प्रदेश के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयप्रकाश निषाद. विधायिका साधना सिंह की नाराजगी का कारण चंदौली जिले के जिला पंचायत राज अधिकारी कार्यालय का एक सफाई कर्मी सत्येन्द्र था. उनके मुताबिक वह सफाईकर्मी ही डीपीआरओ कार्यालय चला रहा था. इतना ही नहीं सफाईकर्मियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग भी उसी सफाईकर्मी के हस्तक्षेप से होता था. मामले का संज्ञान में आते ही विधायक ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से की. विधायक का आरोप था कि मुख्यमंत्री ने मामले में जांच का आदेश दिया था. बावजूद इसके जांच के आदेश को विभाग द्वारा दबा दिया गया. इसी बात पर वह नाराज थीं. और उन्होंने अपनी नाराजगी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयप्रकाश निषाद पर उतारी और
चंदौली जिले में एक समीक्षा बैठक के दौरान आमना सामना होने पर विधायक साधना सिंह यूपी सरकार में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयप्रकाश निषाद पर भड़कते हुए कह दीं, ‘प्रभारी मंत्री जी, आज के बाद आपकी बैठक में नहीं आऊंगी.’
अगर चंदौली जिले के स्थानीय पत्रकारों की माने तो उन्हें भाजपा से टिकट पाने के लिए भी कई तरह की दिक्कतें झेलनी पड़ी थी. भाजपा के अंदर का एक खेमा उनको टिकट दिए जाने के पक्ष में नहीं था. भाजपा जो कि कथित तौर पर एक पुरुषवादी सोच वाली पार्टी मानी जाती है. वहां उस सोच का डटकर सामना करने के बाद, मायावाती (एक महिला) पर की गई साधना सिंह की अशोभनीय टिप्पणी निराश करती है.