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Friday, 22 November, 2024
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UPI डिजिटल इकोनॉमी को नया अर्थ दे रहा है लेकिन सरकारी दबाव इनोवेशन को खत्म कर सकता है

सरकार को डिजिटल इकोनॉमी को एक सूत्र में बांधने वाले संगठनों के प्रति तटस्थ रहना चाहिए और विजेता का चुनाव बाजार पर छोड़ देना चाहिए.

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भारत डिजिटल इकोनॉमी के कुछ हिस्सों के बाजार ढांचे को नया अर्थ देकर अपना रास्ता बना रहा है. भारत ने जो रास्ता चुना है उसका एक महत्वपूर्ण पहलू है पहले से मौजूद सिस्टम्स और उनके आधार पर विकसित हो सकने वाले एप्लिकेशंस के बीच नया इंटरफेस तैयार करना, ताकि उन सिस्टम्स तक सबकी पहुंच बन सके. अभी तक, सबसे महत्वाकांक्षी प्रयास भुगतान, वित्तीय सूचना, और ई-कॉमर्स के क्षेत्रों में किए गए हैं.

भुगतान क्षेत्र को खोलने के लिए, यूनाइटेड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) को 2016 में विकसित और लॉन्च किया गया था. यूपीआई भुगतान के लिए कस्टमर इंटरफेस को उससे जुड़े बैंक खाते से अलग करने की इजाजत देता है, ताकि बैंक खाते में थर्ड- पार्टी एप्लिकेशंन के जरिए लेन- देन किया जा सके. किसी बैंक खाते में रखे पैसे की हिफाजत और उसी खाते से भुगतान करने की प्रक्रिया को अलग-अलग करना एक बड़ा इनोवेशन था जिसकी वजह से यूपीआई तेजी से आगे बढ़ा. इसने खास जरूरतों को पूरा करने वाले एप्लिकेशन बनाने वालों को आगे बढ़ने में मदद की जो पेमेंट सर्विस देने पर फोकस रखते हैं.

वित्तीय सूचना के क्षेत्र को खोलने के लिए, एकाउंट एग्रीगेटर (एए) फ्रेमवर्क को शुरू किया गया है. एकाउंट एग्रीगेटर्स किसी यूजर की वित्तीय सूचनाओं को, उसकी सहमति के बाद एक जगह पर ला सकते हैं. अगर यूजर चाहे तो इन सूचनाओं को किसी दूसरी वित्तीय फर्म के साथ साझा किया जा सकता है जिससे यूजर कोई सेवा लेना चाहता हो. ये सूचनाएं कंज्यूमर को कर्ज और दूसरे वित्तीय उत्पादों को बेचने के लिए उपयोगी हो सकती हैं जहां कंपनियां थोड़ा जोखिम उठाती हैं. ये वेल्थ मैनेजमेंट और एडवाइजरी सर्विसेज के लिए भी काम की हो सकती हैं.

हाल ही में, ई-कॉमर्स की पहुंच बढ़ाने के लिए, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी) को विकसित किया जा रहा है. यह एक ओपन- सोर्स नेटवर्क है जिसमें अलग- अलग खरीदार, विक्रेता, लॉजिस्टिक्स कंपनियां, पेमेंट प्रोवाइडर्स, और अन्य लोग हिस्सा ले सकते हैं. यहां तक कि दूसरे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म भी इस नेटवर्क से जुड़ सकते हैं. इस नेटवर्क को डेटा पोर्टेबिलिटी की जरूरत होती है ताकि अलग- अलग प्लेटफॉर्म के सारे भागीदार एक- दूसरे के साथ लेन- देन कर सकें.


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‘इनोवेशन’ पर नियंत्रण

इनमें से हर पहल का मकसद अपने- अपने सेक्टरों के लिए बाजार के ढांचे को नए सिरे से तैयार करना है. यूपीआई, एए, और ओएनडीसी जैसी पहल दिखाती हैं कि हमें कुछ विशिष्ट कामों को पूरा करने के लिए पहले से मौजूद भुगतान के पारंपरिक तरीकों से संतुष्ट होने की जरूरत नहीं है. ये काम अलग- अलग तरीकों से भी हो सकते हैं जिनमें से कुछ पहले से मौजूद तरीकों से बेहतर भी हैं. मिसाल के लिए, यूपीआई ने दिखाया है कि पेमेंट सिस्टम को खाताधारक के एकाउंट पर निर्भर बनाने से बेहतर है कि उसे अलग रखा जाए.

हालांकि ये सभी आशा जगाने वाली पहल हैं, लेकिन चीजें बिगड़ भी सकती हैं. विचार का सबसे बड़ा मुद्दा शायद ये है कि किस तरह राज्य की ताकत का इस्तेमाल इन सभी इनोवेशंस को बढ़ावा देने के लिए हो रहा है और क्या इससे विकृतियां पैदा हो सकती हैं जो बाद में नई समस्याओं को जन्म दें.

यूपीआई को लीजिए. अपने आप में, यह एक सराहनीय इनोवेशन है जिसने भुगतान करने के अनुभव को बेहतर किया है. लेकिन, सरकार ने दबाव डालकर यूपीआई ट्रांजैक्शंस के लिए ग्राहकों या व्यापारियों से किसी भी तरह की फीस वसूलने पर रोक लगा रखी है. सरकार ने 50 करोड़ रुपए से ज्यादा सालाना बिक्री वाले सभी कारोबारियों के लिए यूपीआई पेमेंट स्वीकार करना अनिवार्य बना दिया है, जिसे ना मानने पर हर दिन इनकम टैक्स के ज्वॉइंट कमिश्नर को जुर्माना लगाने का अधिकार है. 2019 में पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम्स एक्ट में एक संशोधन के जरिए ऐसा किया गया था. और दबाव वाले इस नियम के पीछे की वजह भी कभी नहीं बताई गई. इन कदमों के पहले भी यूपीआई की ग्रोथ काफी अच्छी थी. साथ ही, ब्राजील में ऐसे ही सिस्टम, पिक्स, का अनुभव बताता है कि इस दबाव की जरूरत नहीं है. दबाने- धमकाने वाले ऐसे उपायों के इस्तेमाल के बगैर भी पिक्स ने यूपीआई से बेहतर ग्रोथ दिखाई है.

इस साल जुलाई में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सभी सरकारी बैंकों को एकाउंट एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म पर आने का निर्देश दिया. यह निर्देश एक बार लागू होने के बाद, सभी सरकारी बैंकों के ग्राहकों की सभी बैंकिंग जानकारियां, उनकी सहमति के बाद, सिस्टम के किसी भी दूसरी वित्तीय फर्म के लिए उपलब्ध रहेंगी. इससे पता चलता है कि सरकार वित्तीय सूचनाओं तक पहुंच आसान बनाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल कर रही है. भले ही ये फायदेमंद लग सकता है, लेकिन दबाव और सरकारी निर्देश की जरूरत को बताया जाना चाहिए. सिर्फ उसी स्थिति में दबाव को सही ठहराया जा सकता है, जब मकसद प्रतिस्पर्धा को बचाए रखने की सार्वजनिक नीति हो. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में प्रतिस्पर्धा की चिंताओं की वजह से ओपन बैंकिंग को शुरू किया गया था, और इसलिए इसे केवल सबसे बड़े बैंकों और उनके व्यक्तिगत खाताधारकों और छोटे एंटरप्राइज ग्राहकों पर लागू किया गया. जब इसे छोटे बैंकों पर भी लागू किया जाता है, लोगों को आश्चर्य होता है कि सरकार कौन सी नीतियों का पालन कर रही है, और क्या ये कदम ज्यादा उत्साहित होकर लिया जा रहा है. वरना, इसे बाजार के काम में गैर- जरूरी दखल के तौर पर देखा जा सकता है.

इनोवेशन और एकाधिकार

एक और मुद्दा जिस पर विचार करना चाहिए, वो है किसी सेक्टर में सिर्फ एक संगठन के हाथ में सिस्टम में इनोवेशन करने के अधिकार और उसका परिणाम.

यूपीआई का मालिकाना और इसे चलाने का हक नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) के पास है, जो इंटरफेस में भागीदारी के नियम तय करता है. एनपीसीआई एक रिटेल पेमेंट्स ऑर्गेनाइजेशन के रूप में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के साथ रजिस्टर्ड है, और इसकी मिल्कियत बैंकों और पेमेंट सर्विस प्रोवाइडरों के पास है. दिलचस्प ये है कि आरबीआई ने रिटेल पेमेंट्स ऑर्गेनाइजेशन के तौर पर किसी और संगठन को अधिकृत नहीं किया है, हालांकि कुछ समय पहले एक ऐसे संगठन का प्रस्ताव आया था जो इस सेक्टर के सभी खिलाड़ियों की निगरानी करे. इस मामले में, वैसे भी चार्जिंग फीस पर प्रतिबंध ने यूपीआई जैसा कोई दूसरा प्रोडक्ट पेश करने की व्यावसायिक संभावना को कमजोर कर दिया है.

ओएनडीसी को एक गैर- लाभकारी कंपनी विकसित कर रही है, जिसके शुरुआती प्रोमोटर हैं क्वॉलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया और प्रोटियन ई-गव टेक्नोलॉजीज लिमिटेड. नरेंद्र मोदी सरकार के वरिष्ठ नेताओं के बयानों से लगता है कि सरकार आगे बढ़कर इस पहल का समर्थन कर रही है. यहां भी इस बात पर विचार करना जरूरी है कि किस तरह एक- दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने वाले संस्थानों को मानक विकसित करने और इनोवेशंस के लिए सामने लाया जा सकता है.

सरकार को जनहित पर ध्यान देना चाहिए, जो इन सेवाओं के बेहतर प्रदर्शन में निहित है. सरकार को इन सेवाओं को देने वाले संगठनों और उनके द्वारा लागू किए गए तौर- तरीकों के प्रति तटस्थ रहना चाहिए, और बाजार को विजेता चुनने देना चाहिए. अगर इनोवेशन पर किसी का एकाधिकार होता है, तो देर- सबेर इससे इनोवेशन की रफ्तार को नुकसान पहुंच सकता है. अगर सरकारी दबाव किसी खास इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल होता है, तब हो सकता है कि दूसरे इनोवेटिव सॉल्यूशन सामने नहीं आएं.

चूंकि भारत इन पहलों के माध्यम से इन बाजारों को नए सिरे से तैयार कर रहा है, यह और भी जरूरी हो जाता है कि ऐसी पहल केवल कामयाब समाधान के रूप में सामने ना आएं, बल्कि ऐसे संस्थागत और नीतिगत डिजाइनों के तौर पर भी आएं जिन्हें दूसरे लोग दुहरा सकें.

यह लेख प्रौद्योगिकी की भू-राजनीति की पड़ताल करने वाली सीरीज का हिस्सा है, जो कार्नेगी इंडिया के सातवें ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट की थीम है. विदेश मंत्रालय के साथ संयुक्त मेजबानी में ये समिट 29 नवंबर से 1 दिसंबर तक होगी. प्रिंट इसमें डिजिटल सहयोगी है. रजिस्टर करने के लिए यहां क्लिक करें. सभी लेख यहां पढ़ें.

(सुयश राय कार्नेगी इंडिया में डिप्टी डायरेक्टर और फेलो हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)

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