पटना: पटना से करीब 96 किलोमीटर दूर स्थित मोकामा में अगर चुनाव हों तो यह कोई मामूली मुकाबला नहीं रहता. भूमिहारों (उच्च जाति के जमींदार) के दबदबे वाला यह इलाका 3 नवंबर को बिहार विधानसभा के लिए अपना प्रतिनिधि चुनने जा रहा है लेकिन यह उपचुनाव परोक्ष रूप से दो डॉन के बीच जोर-आजमाइश का जरिया बन गया है. और चुनाव मैदान में उनकी पत्नियां आमने-सामने हैं. एक और बाहुबली की मौजूदगी सियासी पारा बढ़ाने के लिए काफी है. हालांकि, उन्होंने इनमें से एक उम्मीदवार के समर्थन में प्रचार का मोर्चा संभाल रखा है.
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की उम्मीदवार नीलम देवी छोटे सरकार के नाम से ख्यात खतरनाक डॉन से नेता बने अनंत सिंह की पत्नी हैं. वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने नलिनी रंजन शर्मा उर्फ ललन सिंह की पत्नी सोनम देवी को मैदान में उतारा है.
पिछले करीब एक दशक से अनंत सिंह के गढ़ रहे मोकामा में एक और बाहुबली सूरजभान सिंह और उनकी पत्नी वीणा देवी ने भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार का मोर्चा संभाल रखा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अच्छे काम के नाम पर वोट मांग रहे हैं.
मोकाम में उपचुनाव की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि अनंत सिंह को जुलाई में हथियार रखने के एक मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद उन्हें विधायक पद के अयोग्य घोषित कर दिया गया था. राज्य की एक अन्य विधानसभा सीट गोपालगंज में भी उसी दिन उपचुनाव होगा और दोनों के नतीजे 6 नवंबर को आएंगे.
बिहार में पप्पू यादव, आनंद मोहन, प्रभुनाथ सिंह और दिवंगत मोहम्मद शहाबुद्दीन सहित तमाम राजनेताओं का लंबा-चौड़ा आपराधिक रिकॉर्ड रहा है, लेकिन मोकामा तो जातीय हिंसा और डकैतों का इलाका होने के कारण काफी ज्यादा कुख्यात रहा है.
बाहुबली कैसे बने ‘सरकार’
माना जाता है कि मोकामा के अराजकता भरे इतिहास के पीछे कुछ तो इसकी भौगोलिक स्थिति का हाथ है और बाकी दबंग किस्म के कुछ लोगों को मिलने वाला राजनीतिक संरक्षण जिम्मेदार है, जो उस दौर में बूथ आदि लूटने के लिए उनका इस्तेमाल करते थे जब चुनाव मतपत्रों के जरिये कराए जाते थे.
गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित मोकामा का एक बड़ा हिस्सा ताल क्षेत्र में आता है जो लंबे समय तक दुर्गम बना रहा. जनता दल (यूनाइटेड) के एक विधायक ने बताया, ‘1980 में कांग्रेस के श्याम सिंह धीरज ने यहां से चुनाव लड़ा था. उस समय अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह और दुलारचंद यादव जैसे गुंडों का इस्तेमाल बूथ लूटने के लिए किया गया था.’
उन्होंने बताया, ‘1990 तक ये सब विधायक उम्मीदवार बने और दिवंगत दिलीप सिंह तो धीरज को हराकर जनता दल के टिकट पर विधायक भी बन गए. वह 2000 के राज्य विधानसभा चुनावों तक विधायक रहे जिसमें सूरजभान ने उन्हें हराया जो बतौर निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे थे. 2005 के बाद से मोकामा में विधायक अनंत सिंह का शासन चलता रहा है.
2004 के लोकसभा चुनावों में जदयू प्रमुख नीतीश कुमार अपने निर्वाचन क्षेत्र बाढ़ से मैदान में उतरे तो मदद के लिए अनंत सिंह से संपर्क साधा, क्योंकि मोकामा बाढ़ लोकसभा क्षेत्र के तहत ही आता है. उस समय तो न केवल नीतीश की हाथ जोड़कर बाहुबली नेता का अभिवादन करने वाली तस्वीर अखबारों में सुर्खियों में रही बल्कि जदयू प्रमुख को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में चांदी के सिक्कों से भी तौला गया.
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रॉबिन हुड जैसी छवि वाला डॉन
अनंत सिंह ने अपने ही अंदाज में ‘न्याय’ करने के तरीके को लेकर खासकर गरीबों के बीच रॉबिन हुड जैसी छवि बना रखी है. सत्ता से नजदीकी, पहले जदयू और फिर राजद के साथ, का फायदा उठाकर अनंत सिंह ने अकूत धन-संपत्ति भी अर्जित की है. 2020 का चुनावी हलफनामा बताता है कि आधिकारिक तौर पर उनके पास 67 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है.
हलफनामे के मुताबिक, जेल में बंद इस दबंग नेता के खिलाफ हत्या के सात, हत्या के प्रयास और रंगदारी सहित 38 आपराधिक मामले दर्ज हैं.
इस सबने नीतीश और राजद प्रमुख लालू प्रसाद जैसे नेताओं को अनंत सिंह को आगे बढ़ाने से कभी नहीं रोका, जबकि एक समय वे उन्हें ‘गुंडा’ कहा करते थे. 6 फुट लंबे इस बाहुबली को काला चश्मा पहनकर अक्सर ही मूंछों पर ताव देते हुए अपनी फोटो खिंचवाना काफी पसंद रहा है.
वह 2005 से मोकामा से जीतते आ रहे हैं और यह इलाका अब उनका गढ़ बन चुका है. नीतीश के साथ उनकी नजदीकी 2015 में तब खत्म हो गई जब चार बार के विधायक को एक युवक की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया. उन्होंने उस वर्ष भी निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
पांच साल बाद, उन्होंने राजद के टिकट पर जीत हासिल की और उनके एक करीबी कार्तिकेय सिंह ने अगस्त में कानून मंत्री के रूप में शपथ ली, जब नीतीश ने एक बार फिर लालू के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई. हालांकि राजद के मंत्री ने अपहरण के एक मामले में अपनी कथित संलिप्तता को लेकर उठे विवाद के बाद पद से इस्तीफा दे दिया.
सूरजभान सिंह
मोकामा में जन्मे सूरजभान सिंह 1980 के दशक में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह की नजरों में आने से पहले तक छोटे-मोटे आपराधिक कृत्यों में शामिल थे. सूरजभान राजद के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के आरोपी हैं, जिन्हें 1998 में पटना के एक अस्पताल में मार दिया गया था.
2000 तक सूरजभान का नाम बिहार और उत्तर प्रदेश में हत्या, अपहरण और जबरन वसूली जैसे 26 आपराधिक मामलों में सामने आ चुका था. उसी समय उनकी जिंदगी में एक बड़ा मौका आया जब उन्होंने मोकामा से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा और कभी अपने गुरु रहे दिलीप सिंह उर्फ बड़े सरकार को हरा दिया. यहीं से अनंत सिंह के साथ उनकी प्रतिद्वंद्विता की शुरुआत हुई.
लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के टिकट पर बलिया से चुनाव जीतकर 2004 में सांसद बने. और सांसद बनने के बाद सूरजभान ने अपना रुख कंट्रक्शन बिजनेस की ओर कर लिया. लेकिन कहा जाता है कि उन्होंने अपनी बंदूक की ताकत कम नहीं होने दी.
डॉन से बाहुबली बने सूरजभान को 2008 में उस समय झटका लगा, जब 1992 में एक वकील और तीन अन्य लोगों की हत्या के मामले में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. अभी जमानत पर चल रहे सूरजभान के चुनाव लड़ने पर रोक है.
उनकी पत्नी वीणा देवी 2014 में लोजपा के टिकट पर मुंगेर लोकसभा सीट से जीती थीं. पांच साल बाद उनके भाई चंदन सिंह ने नवादा में जीत हासिल की.
‘एक अन्य ललन’
सूरजभान के करीबी माने जाने वाले नलिनी रंजन शर्मा उर्फ ललन सिंह का 2005 से ही अनंत सिंह के साथ छत्तीस का आंकड़ा चलता आ रहा है, जब वह मोकामा में बेहद मामूली अंतर से उनसे हार गए थे. ललन ने लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था.
ललन और उनकी पत्नी सोनम देवी ने 2010 और 2015 में लोजपा के टिकट पर यहां चुनाव लड़ा और अनंत सिंह के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरे.
ललन सिंह पर हत्या और हत्या के प्रयास से लेकर अपहरण और जबरन वसूली तक के 30 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं.
लंबे समय तक लोजपा के साथ रहने के बाद ललन इसी महीने पहले जदयू और फिर भाजपा में शामिल हुए. और भाजपा ने मोकामा में उनकी पत्नी सोनम देवी को अपना उम्मीदवार बना दिया. ललन ने अपनी पत्नी को टिकट मिलने पर पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा था, ‘भाजपा से टिकट मिलना गर्व की बात है.’’
ललन सिंह और अनंत सिंह की पृष्ठभूमि एक जैसी ही होने को लेकर आपसी बातचीत में भाजपा नेता इसी कहावत को दोहराते नजर आते हैं, ‘लोहा ही लोहे को काटता है.’
1990 के दशक में अराजकता का दौर
1990 के दशक में जब राजनीतिक दलों की तरफ से आपराधिक छवि वाले नेताओं को टिकट देने में तेजी आई तो बिहार के तीन क्षेत्रीय दलों की तरफ से इसे बेतुके तर्कों के साथ जायज ठहराया जाने लगा.
1990 के दशक में ही एक बार जब राजद संस्थापक लालू यादव से जब पूछा गया कि वे आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को टिकट क्यों दे रहे हैं, तो उनका जवाब था, ‘तो क्या हुआ? ऋषि वाल्मीकि भी तो डकैत रहे थे.’ 2005 में अनंत सिंह को टिकट देने वाले नीतीश कुमार तो एक कदम और आगे बढ़ गए. मीडिया के इस सवाल कि उन्होंने दागी उम्मीदवार को कैसे उतारा, कोई सीधा जवाब न देते हुए उन्होंने यही कहा, ‘इस हमाम में सब नंगे हैं.’
वहीं, दिवंगत लोजपा नेता रामविलास पासवान तो यहां तक दावा करते थे कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को चुनाव मैदान में उतारकर वह उन्हें सुधरने का मौका देकर समाज पर अहसास कर रहे हैं.
जदयू के एक स्थानीय नेता ने कहा, ‘1990 से 2005 तक मोकामा में 149 हत्याएं हुईं और पीड़ितों के रिश्तेदारों की तरफ से सिर्फ 13 प्राथमिकी ही दर्ज कराई गईं. बाकी पुलिस केस थे. बहुत कम लोग ऐसे थे जिन्होंने पुलिस के पास जाने की हिम्मत की.’
उन्होंने कहा कि 2005 के बाद से हत्याओं में तो कमी आई है लेकिन बाहुबलियों का आतंक अब भी कायम है.
जदयू नेता ने कहा, ‘1990 के बाद से सड़क और ट्रेन कनेक्टिविटी में काफी सुधार आया है और बिजली आपूर्ति भी बढ़ी है. लेकिन किसी बाहरी की मोकामा आने और यहां निवेश करने की हिम्मत नहीं पड़ी. कारोबारी समुदाय अब भी जबरन वसूली और दहशत के साये में जीता है.’
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