नई दिल्ली: आईपीएस अधिकारियों के संबंध में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए आरक्षित कोटे (सेंट्रल डेपुटेशन रिज़र्व- सीडीआर) के उपयोग की स्थिति के बारे में 27 अक्टूबर की आई एक रिपोर्ट से पता चलता है कि सीडीआर में योगदान करने वाले राज्यों में बीजेपी शासित राज्य सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में से हैं.
सीडीआर इस बात को निर्धारित करता है कि राज्य के कितने अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर केंद्र सरकार के पास भेजा जा सकता है.
मोदी सरकार ने सदन के पटल सहित कई मौकों पर राज्य सरकारों द्वारा ‘केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त संख्या में अधिकारियों को प्रायोजित नहीं करने’ के बारे में उल्लेख किया है.
तदनुसार केंद्र सरकार ने अखिल भारतीय सेवा अधिनियम में एक संशोधन का प्रस्ताव दिया था, जिसमें कहा गया था कि वह अधिकारी जिसे केंद्र प्रतिनियुक्ति पर बुलाना चाहता है, संबंधित राज्य सरकार के असहमत होने पर भी संबंधित कैडर से ‘रिलीवड’ (प्रभार मुक्त) होगा.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा केंद्र सरकार के समक्ष अपना विरोध दर्ज कराये जाने के बाद इस प्रस्ताव पर तगड़ा विवाद खड़ा हो गया था.
कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने 10 फरवरी को राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया था, ‘राज्य सरकारें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त संख्या में अधिकारियों को प्रायोजित नहीं कर रही हैं. उपरोक्त मुद्दे को हल करने के लिए, अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 की धारा 3 में निहित प्रावधानों के संदर्भ में आईएएस (कैडर) नियम, 1954 के नियम 6(1) में संशोधन करने के प्रस्ताव पर राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों से टिप्पणियां मांगी गई हैं.’
कौन-कौन से राज्य कोटा पूरा करने में विफल रहे हैं?
दिप्रिंट द्वारा देखी गई रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश सीडीआर के उपयोग के मामले में सबसे कम संख्या वाले राज्य है. दिलचस्प बात यह है कि इन चार राज्यों में से दो पर भाजपा का शासन है.
अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 में साफ़ तौर पर कहा गया है कि राज्य के वरिष्ठ स्तर के सेवा पदों (ड्यूटी पोस्ट्स) का 40 प्रतिशत सीडीआर के तहत होगा. आईपीएस कैडर में वरिष्ठ सेवा पद पुलिस अधीक्षक और उससे ऊपर के रैंक के वरिष्ठ अधिकारियों के पद होते हैं.
इसी रिजर्व में शामिल अधिकारी केंद्रीय पुलिस संगठनों को चलाने के लिए केंद्र सरकार के तहत आने वाली एजेंसियों और विभागों में विभिन्न पदों पर तैनात होते हैं.
सीडीआर के मामले में पश्चिम बंगाल का योगदान सबसे खराब है. इस राज्य में में 347 आईपीएस अधिकारियों की स्वीकृत शक्ति है, जिनमें से 292 अधिकारी राज्य में तैनात हैं और वरिष्ठ सेवा पद वाले अधिकारियों की संख्या 188 है.
सीडीआर नियम की मांग के अनुसार, पश्चिम बंगाल सरकार को 75 अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर भेजने की जरूरत है, लेकिन फिलहाल उसने इनमें से केवल 11 को ही भेज रखा है. इस तरह से इस राज्य ने सीडीआर के लिए आवश्यक 40 प्रतिशत में से केवल 14.67 प्रतिशत ही भरा है.
इस बारे में और जानने के लिए दिप्रिंट ने बंगाल के गृह सचिव बीपी गोपालिका से संपर्क किया, जिन्होंने कहा कि वह केवल एक साल से ही इस पद पर कार्यरत हैं और टिप्पणी करने से पहले उन्हें आंकड़ों की पड़ताल करनी होगी. उनकी प्रतिक्रिया मिलने के बाद खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.
बंगाल के बाद हरियाणा, जो एक भाजपा शासित राज्य है, का स्थान है, जिसने सीडीआर में सिर्फ 16.13 प्रतिशत का योगदान दिया है. इस राज्य में 79 अधिकारी वरिष्ठ सेवा पद पर हैं और 31 की आवश्यक सीडीआर संख्या के खिलाफ इसने सिर्फ पांच अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजा है.
तेलंगाना इस सूची में तीसरे स्थान पर है. यहां वरिष्ठ सेवा पद पर तैनात 75 अधिकारियों के साथ आवश्यक 30 अधिकारियों की सीडीआर संख्या की बजाये सिर्फ छह अधिकारी (20 प्रतिशत) प्रतिनियुक्ति पर हैं.
चौथे स्थान पर शामिल यूपी में आईपीएस अधिकारियों का सबसे बड़ा राज्य कैडर (541) है, और यहां देश भर में सबसे अधिक में वरिष्ठ सेवा पदों (293) वाले आईपीएस अधिकारी हैं, लेकिन इसने सबसे कम अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर भेजा है.
राज्य के पास 541 आईपीएस अधिकारियों की स्वीकृत शक्ति है, जिनमें से 447 फिलहाल पद पर हैं.
सीडीआर नियम के मुताबिक, यूपी को केंद्र के पास कम से कम 117 अधिकारियों को भेजने की जरूरत है, लेकिन यूपी कैडर से फिलहाल सिर्फ 35 अधिकारी ही प्रतिनियुक्ति पर हैं. इस तरह से भाजपा शासित इस राज्य का सीडीआर में योगदान 29.91 प्रतिशत है.
दिप्रिंट ने उत्तर प्रदेश के गृह सचिव संजय प्रसाद से भी उनके टिप्पणी के लिए संपर्क किया है और उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.
विपक्ष शासित राज्य दे रहे हैं सीडीआर में बेहतर योगदान
गैर-भाजपा दलों द्वारा शासित राज्यों ने आवश्यक केंद्रीय आरक्षित प्रतिशत (सेंट्रल रिज़र्व परसेंटेज) से अधिक का योगदान दिया है.
71 प्रतिशत के योगदान, जो आवश्यक योगदान से लगभग दोगुना है, के साथ झारखंड इस सूची में सबसे ऊपर है. इसके बाद तमिलनाडु (55 प्रतिशत), केरल (54 प्रतिशत), ओडिशा (52 प्रतिशत), राजस्थान (49.92 प्रतिशत) और बिहार (48 प्रतिशत) का स्थान है.
दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और एक पुलिस और कानून प्रवर्तन थिंक-टैंक – इंडिया पुलिस फाउंडेशन (आईपीएफ) – के अध्यक्ष, एन. रामचंद्रन, ने कहा, ‘सीडीआर के मामले में संख्या की कमी सत्तारूढ़ पार्टी या विपक्ष शासित राज्य के बारे में नहीं है. यह केंद्र-राज्य संबंधों, संस्कृति और अधिकारियों की व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के बारे में अधिक है. भले ही ऐसे कुछ राज्य हैं जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अधिकारियों को भेजने के विचार के खिलाफ हैं, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे मामले भी हैं जहां अधिकारी व्यक्तिगत तौर पर केंद्र की सेवा में जाने के लिए तैयार नहीं हैं. कुछ अफसर तो अपने कंफर्ट जोन (सहजता के दायरे) से बाहर आने से भी डरते हैं.‘
केंद्रीय पुलिस संगठनों में मौजूदा रिक्तियां
केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) के पास उपलब्ध ‘प्रस्ताव सूची (ऑफर लिस्ट)’ में उन आईपीएस अधिकारियों के नाम दर्ज हैं, जिन्हें उनके राज्य ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर काम करने की अनुमति दे दी है.
एमएचए में कार्यरत एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘ जैसा कि पिछले दस महीनों में देखा गया है, किसी भी एक समय में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए इस ‘ऑफर लिस्ट’ में 15 से अधिक अधिकारियों के नाम शामिल नहीं होते हैं.’
3 अक्टूबर को अपडेट की गई ‘ऑफ़र लिस्ट’ के अनुसार, फिलहाल केवल 12 आईपीएस अधिकारी उपलब्ध हैं.
ऊपर उद्धृत वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि केंद्रीय संगठनों में वरिष्ठ पदों के लिए रिक्तियां स्पष्ट दिख रही हैं.
केंद्रीय बलों और केंद्रीय पुलिस संगठनों में रिक्त पदों की सूचना, जिसे 3 अक्टूबर को एमएचए वेबसाइट पर अपडेट किया गया था, के अनुसार केंद्र में स्वीकृत 139 पदों के मुकाबले महानिरीक्षक (आईजी) स्तर के 29 पद खाली हैं. उप महानिरीक्षक (डीआईजी) और पुलिस अधीक्षक (एसपी) के पद पर सबसे अधिक रिक्तियां हैं. केंद्र के पास डीआईजी स्तर के 253 स्वीकृत पदों में से 94 पद खाली पड़े हैं, जबकि एसपी स्तर के 214 स्वीकृत पदों में से 127 पद रिक्त हैं.
दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, एमएचए के एक वरिष्ठ सूत्र ने कहा, ‘ये आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि सरकार कैडर नियम में संशोधन क्यों करना चाहती है. यह प्रस्ताव जनवरी में लाया गया था. एक बार इस संशोधन के लागू हो जाने के बाद राज्य सरकारें अधिकारियों को रोक नहीं सकेंगीं और केंद्र उन्हें प्रतिनियुक्ति पर ला सकेगा. सरकार को प्रस्तावित संशोधन पर एक दर्जन से अधिक राज्यों की तरफ से से सुझाव और आपत्तियां मिली हैं. लेकिन सरकार को ठीक से चलाने के लिए वह जल्द ही इस संशोधन को लागू करेगी.‘
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