नई दिल्ली: बिलकिस बानो मामला इस हफ्ते एक बार फिर उर्दू अखबारों में सुर्खियों में रहा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 11 दोषियों को मिली छूट को चुनौती देने वाली एक याचिका पर जवाब को लेकर गुजरात सरकार की खिंचाई कर दी थी.
18 अक्टूबर को, सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के बिलकिस बानो गैंगरेप केस में दोषी 11 लोगों की समय से पहले रिहाई को लेकर गुजरात सरकार के जवाब को ‘उथला’ करार दिया. साथ ही कहा कि प्रतिक्रिया देते समय ‘दिमाग का कतई इस्तेमाल’ नहीं किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने यह रुख तब अपनाया जब गुजरात सरकार की तरफ से अदालत को बताया गया कि 11 दोषियों की रिहाई को मंजूरी केंद्र सरकार ने दी है.
अगले दिन सियासत में प्रकाशित एक संपादकीय में आरोप लगाया गया कि केंद्र और गुजरात दोनों जगह सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए लोगों को ‘सांप्रदायिक आधार पर बांटने’ की कोशिश कर रही है.
इस हफ्ते उर्दू अखबारों ने जिन अन्य खबरों को प्राथमिकता दी, उनमें कांग्रेस के नए अध्यक्ष की नियुक्ति, समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर दायर याचिका पर अदालती कार्यवाही, भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत और दिल्ली आबकारी ‘घोटाले’ में आए उतार-चढ़ाव शामिल हैं.
दिप्रिंट यहां अपने राउंडअप में उन प्रमुख घटनाओं के बारे में जानकारी दे रहा है जिन्हें इस सप्ताह उर्दू प्रेस ने कवर किया.
बिलकिस बानो केस
सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो केस से जुड़े घटनाक्रम ने उर्दू प्रेस का ध्यान सबसे ज्यादा आकृष्ट किया. इंकबाल ने 19 अक्टूबर को पहले पेज पर लिखा कि दोषियों की रिहाई केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की आपत्तियों के बावजूद हुई है. खबर के साथ ही लगे एक इनसेट में अखबार ने केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी का यह बयान भी छापा कि ‘कुछ भी गलत नहीं हुआ.’
जोशी ने कहा था, ‘रिहाई कानून के मुताबिक हुई. केंद्रीय मंत्री 11 दोषियों की जल्द रिहाई के गुजरात सरकार के फैसले का बचाव कर रहे थे.
उसी दिन सियासत ने अपने पहले पन्ने पर कांग्रेस के इस आरोप को प्रमुखता से छापा कि 11 दोषियों को इसलिए रिहा किया गया क्योंकि यह सत्तारूढ़ दल को ‘राजनीतिक लाभ पहुंचाने वाला कदम’ था. अखबार ने सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही पर अपनी रिपोर्ट में कहा कि दोषियों को मिली छूट को चुनौती देने वाली याचिका पर गुजरात सरकार की प्रतिक्रिया ‘उथली’ थी.
रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने भी इसी तरह की एक रिपोर्ट अपने पहले पेज पर छापी, जिसमें कहा गया कि अदालत ने राज्य सरकार के जवाब पर नाराजगी जाहिर की और अब अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी.
20 अक्टूबर को इंकलाब ने अपने पहले पन्ने पर प्रकाशित खबर में बताया कि अंतत: अगस्त में रिहा होने से पहले ही ये दोषी 1,000 दिन जेल से बाहर बिता चुके थे.
सियासत ने 19 अक्टूबर के संपादकीय में लिखा कि यह तो जगजाहिर ही है कि भाजपा ‘हर मुद्दे का राजनीतिक और चुनावी फायदा उठाने’ की कोशिश करती है और यही माना जा रहा है कि जल्द रिहाई के पीछे असली उद्देश्य इस मुद्दे का ‘लाभ उठाना’ ही है.
इसी लेख में आगे लिखा गया कि गुजरात में चुनाव नजदीक हैं और ऐसे में भाजपा ‘सांप्रदायिक विभाजन’ बढ़ाना चाहती है.
गुजरात में भारतीय जनता पार्टी 1995 से लगातार सत्ता में है.
इंकलाब ने 21 अक्टूबर के ‘गलत फैसला, गलत संदर्भ’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय में लिखा है कि यह मामला तमाम अहम सवाल खड़े करता है और ‘जवाब के नाम पर सामने आती है सिर्फ चुप्पी.’
संपादकीय में आगे यह भी कहा गया कि चूंकि शीर्ष अदालत में अभी भी दलीलें चल रही हैं, इसलिए यह उम्मीद बरकरार है कि अदालत गुजरात सरकार से अपना फैसला पलटने को कहेगी.
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खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष निर्वाचित
कांग्रेस को आखिरकार तीन साल के अंतराल बाद इस हफ्ते मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष मिल गया और यह खबर उर्दू अखबारों में काफी छाई रही.
18 अक्टूबर को इंकलाब ने निवर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की एक तस्वीर छापी, जिसमें वह एक दिन पहले अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में वोट डालती नजर आ रही हैं. साथ में छपी रिपोर्ट में बताया गया कि दोनों उम्मीदवारों—खड़गे और उनके प्रतिद्वंद्वी तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर—के भाग्य का फैसला अब मतपेटियों में बंद हो चुका है.
उसी दिन, सियासत ने अपने पहले पन्ने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की कर्नाटक के बेल्लारी जिले के एक शिविर में वोट डालने की तस्वीर छापी, जो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के क्रम में वहां थे. साथ ही प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया कि 96 प्रतिशत वोट डाले गए हैं.
वहीं, सहारा ने जयराम रमेश, अशोक गहलोत और डी.के. शिवकुमार जैसे अन्य वरिष्ठ नेताओं के वोट डालने के दौरान की तस्वीरें प्रकाशित कीं.
20 अक्टूबर को तीनों अखबारों ने खड़गे के अध्यक्ष निर्वाचित होने की खबर को उनकी तस्वीर के साथ पहले पन्ने पर छापा. इंकलाब और सहारा ने उस दिन इसी खबर को लीड के तौर पर छापा.
सहारा ने इसी के साथ इनसेट में पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के इस बयान को छापा कि नया अध्यक्ष पार्टी में उनकी भूमिका तय करेगा.
सियासत ने अपने पहले पन्ने पर यह खबर प्रमुखता से छापी कि नतीजे घोषित होने के तुरंत बाद सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने खड़गे के आवास पर पहुंचकर उन्हें बधाई दी.
21 अक्टूबर को इंकलाब ने अपने पहले पन्ने पर इस खबर को तरजीह दी कि कांग्रेस ने थरूर की आलोचना की है, जो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सिर्फ छठी बार हुए चुनाव में खड़गे के प्रतिद्वंद्वी थे और जिन्होंने मतदान में अनियमितताओं का आरोप लगाया है.
20 अक्टूबर को एक संपादकीय में सियासत ने लिखा कि अब जबकि खड़गे अध्यक्ष निर्वाचित हो चुके हैं, उनके सामने लोगों को फिर कांग्रेस के साथ जोड़ने की एक कड़ी चुनौती है. संपादकीय में आगे लिखा गया है कि यद्यपि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ जैसे आयोजन इस दिशा में कुछ सफलता दिला सकते हैं लेकिन आने वाले दिनों में और भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है.
इस बीच, चुनाव को लेकर शोर-शराबे के बीच ‘भारत जोड़ो यात्रा’ भी पहले पन्ने पर लगातार सुर्खियां बटोरती रही.
19 अक्टूबर को सियासत ने एक रिपोर्ट में बताया कि राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सवालों का जवाब देते हुए कहा है कि 40 दिनों में 1,000 किमी चलने के बावजूद उनके पैरों में छाले नहीं पड़े क्योंकि वह हमेशा अपनी फिटनेस का बहुत ख्याल रखते हैं. राहुल की पार्टी नेताओं के साथ बातचीत की एक फोटो के साथ प्रकाशित स्टोरी में अखबार ने बताया कि उन्होंने यह भी कहा कि वह सनस्क्रीन इस्तेमाल नहीं करते हैं.
मनीष सिसोदिया और ‘आबकारी घोटाला’
17 अक्टूबर को सियासत ने अपने पहले पेज खबर दी कि कथित आबकारी नीति घोटाले को लेकर दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को सीबीआई के समक्ष पेश होना है.
अगले दिन इंकलाब ने अपने पहले पेज पर खबर दी कि सीबीआई ने जब सिसोदिया से पूछताछ की तब उनकी आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता विरोध में सड़कों पर उतर आए. रिपोर्ट के साथ प्रकाशित तस्वीरों में पुलिस कर्मियों को प्रदर्शनकारियों को घसीटते दिखाया गया.
इस बीच, अखबार ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का यह आरोप भी प्रमुखता से छापा कि सिसोदिया को गिरफ्तार करने की तैयारी है, इसलिए वह विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने गुजरात नहीं जाएंगे.
निर्मला सीतारमण और भारत की अर्थव्यवस्था
उर्दू अखबारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की खराब होती हालत पर खबरें प्रकाशित कीं और साथ ही संपादकीय में डॉलर की मजबूती को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ से दिए गए बयान की आलोचना भी की.
17 अक्टूबर को इंकलाब ने अपने पहले पन्ने पर सीतारमण का यह बयान प्रमुखता से छापा कि ‘रुपया कमजोर नहीं हो रहा है’ बल्कि ‘डॉलर मजबूत हो रहा है.’
रोजनामा सहारा ने 18 अक्टूबर को अपने संपादकीय में लिखा कि सीतारमण अपनी जगह सही थीं. संपादकीय में इसके लिए बतौर उदाहरण तुर्की का हवाला दिया गया जहां जारी आर्थिक और ऋण संकट ने लीरा को रसातल में पहुंचा दिया है.
संपादकीय में कहा गया कि रुपया गिरना चिंता का विषय है, लेकिन इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात तो यह है कि रूस-यूक्रेन के बीच जारी जंग से आगे हालात और खराब ही होंगे.
21 अक्टूबर को सियासत ने अपने संपादकीय में लिखा कि देश में बेरोजगारी की दर लगातार ऊंची बनी हुई है और मोदी सरकार के आठ वर्षों के कार्यकाल के दौरान रोजगार के अवसर बढ़ने से ज्यादा नौकरियों में कटौती हुई है.
संपादकीय में बताया गया कि कई सरकारी विभाग वस्तुतः बंद हो चुके हैं और सरकारी भर्तियों खत्म कर दी गई हैं.
समान नागरिक संहिता को लेकर याचिका
19 अक्टूबर को इंकलाब ने अपने पहले पन्ने पर बताया कि केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग संबंधी एक याचिका का विरोध किया है. भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की तरफ से दायर की गई याचिका के जवाब में केंद्र ने कहा है कि याचिका विचार योग्य नहीं है और इसलिए इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए.
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