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Friday, 22 November, 2024
होमदेशदिवाली नजदीक आते ही, देश में हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस ने ‘वोकिज्म के खतरे’ के खिलाफ आगाह किया

दिवाली नजदीक आते ही, देश में हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस ने ‘वोकिज्म के खतरे’ के खिलाफ आगाह किया

पिछले कुछ हफ्तों में हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने किस तरह से समाचारों और सामयिक मुद्दों को कवर किया और उन पर टिप्पणी की, इसका दिप्रिंट पर राउंड-अप.

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नई दिल्ली: दीपावली नजदीक आने के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पत्रिका ने अपने पाठकों को ‘वोकिज्म (अति जागरूकता) के खतरे’ को लेकर चेतावनी दी और उन्हें ‘बौद्धिक रूप से उपनिवेशवादी मानसिकता’ से सावधान रहने के लिए कहा.

अपने हाल के संपादकीय में आरएसएस के ‘मुखपत्र’ ने दावा किया कि सामाजिक और नस्लीय भेदभाव के खिलाफ ‘आतिजागरूकता’ के रूप में जो शुरू हुआ वह ‘कैंसिल कल्चर के जरिए नकारात्मकता, विभाजन और अस्वीकृति को बढ़ावा देने के लिए एक और आंदोलन’ में बदल गया है.

संपादकीय में लिखा है, ‘दीपावली का सनातन धर्म से कोई लेना-देना नहीं है’ से लेकर ‘कैसे यह एक ब्राह्मणवादी और पितृसत्तात्मक उत्सव है’ तक, मशहूर हस्तियां और बुद्धिजीवी लुभावनी बातों और आधे-अधूरे ज्ञान के जरिए एक भयावह एजेंडे के साथ हमें तमाम तरह की कहानियां सुनाते हैं. जल्द ही आप पढ़ेंगे ‘लड्डू सेहत के लिए अच्छा नहीं है, भारत में दूध और दूध उत्पाद मिलावटी हैं और घी में बना हुआ कुछ भी सेहत के लिहाज से ठीक नहीं है.’

संपादकीय ने अपने पाठकों से कहा ‘इस तरह के अति जागरूक करने वाले आंदोलनों से अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खोने’ की बजाय ‘अपनी सांस्कृतिक विरासत और इससे जुड़े खान-पान के मूल्यों के प्रति जागरूक होना’ जरूरी है.

स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने ‘ऑर्गेनाइजर’ में अपने ओपिनियन में लिखा कि हिंदू त्यौहारों के लिए बाजारों पर बहुराष्ट्रीय निगमों (एमएनसी) ने कब्जा कर लिया है.

महाजन ने लिखा, ‘जनता को त्यौहार के समय स्थानीय निर्माताओं के उत्पादों जैसे पारंपरिक मिठाइयां, स्थानीय दर्जी के हाथों से सिले कपड़े और घरेलू उद्योगों के उत्पादों को खरीदने का विकल्प चुनना चाहिए.’

‘स्वदेशी और खासकर स्थानीय उद्योग एवं कारीगरों द्वारा तैयार किए गए सामानों को खरीदकर हम भारत में रोजगार और आय सृजन को बढ़ावा दे सकते हैं और देश की अमूल्य विदेशी मुद्रा को विदेश जाने से रोक सकते हैं.’

आरएसएस सहयोगी ‘स्वदेशी जागरण मंच’ पहले भी देश में बने समान को बढ़ावा देने और बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आलोचना करता रहा है.

इसके अलावा दक्षिणपंथी प्रेस ने अपने संपादकीय और ऑपिनियन में कर्नाटक हिजाब विवाद के साथ-साथ इस मसले पर भी लिखा कि ‘क्या धर्म परिवर्तन कर चुकी अनुसूचित जातियों के लोगों को आरक्षण का लाभ मिलते रहना चाहिए.’


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मोदी और उनका ‘हिंदुत्व प्रतीकवाद’

‘नया इंडिया’ में अपने कॉलम में दक्षिणपंथी लेखक-पत्रकार हरि शंकर व्यास ने सिर्फ ‘प्रतीकात्मकता’ के लिए उज्जैन मंदिर गलियारे का उद्घाटन करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अक्टूबर को ‘श्री महाकाल कॉरिडोर’ के पहले चरण का उद्घाटन किया था.

व्यास ने लिखा, ‘पहले देश के प्रधानमंत्री उद्योगों की नींव रखा करते थे और सरकार के खर्चे पर मंदिरों के जीर्णोद्धार का विरोध करते थे. लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री पहले प्रधानमंत्री के कार्यकाल में बने उद्योगों को निजी हाथों में बेच रहे हैं और मंदिरों के जीर्णोद्धार कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं.’

उन्होंने तिलक और रुद्राक्ष के हार के साथ मोदी के ‘हिंदू’ रूप की भी आलोचना की.

व्यास ने अपने संपादकीय में लिखा, ‘अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के प्रधानमंत्री और हिंदुओं के पसंदीदा नेता भी थे. उन्होंने हिंदुत्व की राजनीति भी की थी. भारत के (पूर्व) उप प्रधानमंत्री एलके आडवाणी भी एक हिंदू हृदय सम्राट थे.’

उन्होंने कहा, ‘इससे बहुत पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय या श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी राष्ट्रवाद का झंडा फहराया और हिंदुओं के हितों के बारे में बात की.’

वह लिखते हैं, ‘लेकिन इनमें से किसी भी नेता ने अपने हिंदुत्व को नहीं दर्शाया.’

वह सवाल करते हैं, ‘उनके चेहरे याद हैं आपको. क्या किसी के मन में उनकी ऐसी कोई तस्वीर है, जिसमें उन्होंने तिलक लगाया हो? गंगा में डुबकी लगा रहे हों? लोटे में पानी लेकर मंदिर में पूजा कर रहे हों या मंदिर के गर्भगृह में मल्टी कैमरा सेटअप लगाकर महादेव की पूजा की हो?’

‘अंबेडकर ने बदला लेने के लिए बौद्ध धर्म नहीं अपनाया’

दक्षिणपंथी प्रेस ने अपने संपादकीय में 7 अक्टूबर को दिल्ली में एक सामूहिक धार्मांतरण कार्यक्रम को लेकर हुए विवाद के बाद बीआर अम्बेडकर पर भी काफी कुछ लिखा.

अंबेडकर भवन में सैकड़ों लोगों के बौद्ध धर्म अपनाने का एक वीडियो वायरल होने के बाद भड़का विवाद आखिरकार दिल्ली के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम के इस्तीफे की ओर ले गया.

आरएसएस की हिंदी पत्रिका पांचजन्य ने अपने एक ओपिनियन में दावा किया कि अंबेडकर ने हिंदू समाज की एकता की वकालत की और कहा कि उनका बौद्ध धर्म में जाना, बदला लेने के लिए नहीं था.

पत्रिका में लिखा गया, ‘हिंदुत्व को त्याग दिया और उनके दुश्मन बन गए’ जैसे धार्मिक दर्शन को स्वीकारने में उनकी कोई भूमिका नहीं थी.’ ओपिनियन में आगे लिखा है, ‘धर्म परिवर्तन से राष्ट्रीयता का रूपांतरण न हो जाए, इसे लेकर बाबा साहेब बहुत सावधान थे. आंबेडकर का मानना था कि हिंदुत्व शांति, मित्रता और न्याय के जरिए सार्वभौमिक शांति का संदेश देता है. जबकि बौद्ध धर्म ज्ञान, शील और करुणा के माध्यम से सार्वभौमिक मित्रता का संदेश देता है.’

इसमें यह भी कहा गया कि आंबेडकर ने ‘धर्मनिरपेक्षता के मुखौटे’ को खारिज कर दिया था.

पांचजन्य ने लिखा, ‘जिहादी मानसिकता और धार्मिक कट्टरवाद पूरी मानव जाति और दुनिया के लिए खतरा हैं. लगभग 75 साल पहले व्यक्त किए गए बाबा साहेब के ये विचार पूरी मानव जाति के लिए उपयोगी हैं.’

इसने दक्षिणपंथी लेखक सबरीश पी.ए. का आरएसएस के संस्थापक के.बी. हेडगेवार और महात्मा गांधी के बीच हुई बैठक को लेकर लिखे गए एक लेख को भी प्रकाशित किया था. अपने लेख में सबरीश ने दावा किया कि बैठक को भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रवचन से ‘दूर रखा’ गया था.

लेख में हेडगेवार और गांधी के बीच हुई बातचीत का एक अंश भी दिया गया है.

सबरीश ने लिखा, ‘गांधी ने कहा, ‘आपका संगठन सराहनीय है. मैं इस तथ्य से अवगत हूं कि आप कई सालों तक कांग्रेस के कार्यकर्ता रहे हैं. आपने कांग्रेस जैसे लोकप्रिय संगठन के तत्वावधान में ऐसा स्वयंसेवक कैडर क्यों नहीं बनाया.’

लेख में हेडगेवार को जवाब देते हुए उद्धृत किया गया, ‘यह सच है कि मैंने कांग्रेस में काम किया है. 1920 के कांग्रेस अधिवेशन के दौरान जब मेरे मित्र डॉ. परांजपे (आरएसएस के 1930 से 1931 तक कार्यवाहक प्रमुख लक्ष्मण वासुदेव परांजपे) स्वयंसेवक दल के अध्यक्ष थे, मैं भी पार्टी का सचिव था. इसके बाद हम दोनों ने कांग्रेस के भीतर ऐसा स्वयंसेवक आधार बनाने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुए. इसलिए मैंने यह स्वतंत्र संगठन शुरू किया है.’

धर्मांतरण कर चुके लोगों के लिए आरक्षण नहीं: विहिप

धर्मांतरित लोगों को ‘अनुसूचित जाति’ का दर्जा देने का विरोध करते हुए विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने कहा कि चूंकि अब्राहमिक धर्म में किसी भी तरह के जातिगत भेदभाव के न होने का दावा किया गया है, इसलिए उन्हें मानने वालों को सर्वोच्च न्यायालय आरक्षण नहीं दे सकता है.

केंद्र सरकार द्वारा इस मुद्दे की जांच के लिए एक आयोग नियुक्त करने से एक दिन पहले अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक प्रेस नोट में विहिप ने कहा कि वह इस विषय पर एक परामर्श प्रक्रिया में भाग लेने के लिए तैयार है.

विहिप ने कहा, ‘1950 में संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश जारी किया गया था. उसमें साफ तौर पर बताया गया था कि सिर्फ हिंदू अनुसूचित जातियों को ही आरक्षण की सुविधा मिलेगी.’ विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने एक नोट में लिखा है, ‘इसके बावजूद ईसाई मिशनरी और इस्लामिक संगठन धर्मांतरित अनुसूचित लोगों को यह सुविधा देने के लिए अपनी तर्कहीन मांगों के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. हम (उन्हें) एससी के संवैधानिक अधिकारों को छीनने की अनुमति नहीं देंगे.’

हिजाब विवाद

हिजाब पर चल रही बहस पर ‘वन इंडिया’ के एक ओपिनियन में भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज ने ईरान के इस्लामवादियों की तुलना भारतीय वामपंथियों से की.

पुंज ने लिखा, ‘आज भारत में ‘वाम-उदारवादी’ गिरोह और कठोर ईरानी शासक एक ही जैसी सोच रखते हैं. दोनों महिलाओं को नीचा दिखाने के लिए आस्था का आह्वान कर रहे हैं. यह गिरोह जो अब भारतीय महिलाओं के लिए कर रहा है, ईरानी शासन ने 1979-80 में ईरानी महिलाओं के साथ भी ऐसा ही किया था. महिलाओं को वापस गुलामी की ओर धकेलने के लिए वाम उदारवादियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तौर-तरीके और तर्क घिनौने माने जाते हैं.’

कर्नाटक हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बंटा हुआ फैसला ऐसे समय में आया है जब ईरान से हिजाब के विरोध को लेकर फैली अशांति की व्यापक खबरें आ रही हैं.

उन्होंने दावा किया कि भारत में चल रहे हिजाब विवाद का किसी महिला की ‘पसंद’ के अधिकार या हिजाब के इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा होने से कोई लेना-देना नहीं है.

दिल्ली में रहने वाले स्तंभकार लिखते हैं, ‘यह ‘वाम-उदारवादी’ गिरोह की भाजपा को बदनाम करने की एक चाल है, ईरान में अप्रत्याशित घटनाओं के बाद भारत की वैश्विक छवि- जिसका समय दुर्भाग्य से गिरोह के लिए बहुत गलत साबित हुआ- को नुकसान पहुंचा रहा है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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