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Thursday, 14 November, 2024
होमदेशहिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट के जजों का बंटा फैसला, बड़ी बेंच द्वारा सुनवाई के लिए CJI के पास भेजा

हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट के जजों का बंटा फैसला, बड़ी बेंच द्वारा सुनवाई के लिए CJI के पास भेजा

यह फैसला कर्नाटक हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई के बाद आया है, जिसमें मुस्लिम लड़कियों द्वारा प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों की कक्षाओं में हिजाब पहनने का अधिकार मांगने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने गुरुवार को कक्षाओं में हिजाब पहनने के अधिकार से संबंधित कर्नाटक सरकार के आदेश की संवैधानिक वैधता पर एक विभाजित निर्णय सुनाया.

यह निर्णय कर्नाटक हाई कोर्ट के 15 मार्च के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई के बाद आया है. अपने इस फैसले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने कुछ मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर याचिकाओं के एक को समूह खारिज कर दिया गया था, जिनमें उन्होंने 5 फरवरी को जारी किये गए राज्य सरकार के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसने उन्हें प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में हिजाब पहनने से एक तरह से प्रतिबंधित कर दिया था. इन छात्राओं ने जोर देकर कहा था कि कक्षाओं के अंदर हिजाब पहनना उनका अधिकार है.

दो न्यायाधीशों की पीठ में से एक, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता, ने सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया,जबकि न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने उन्हें मंजूर कर लिया था.

न्यायमूर्ति गुप्ता ने 11 प्रश्नों की एक प्रश्नावली तैयार की थी और कहा कि उन्होंने सभी आधारों पर इन याचिकाओं को खारिज कर दिया है. हालांकि, न्यायमूर्ति धूलिया ने उनसे भिन्न मत जाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया है और उन्होंने टिप्पणी की कि यह सवाल कि क्या हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा (एसेंशियल रिलीजियस प्रैक्टिस या ईआरपी) है या नहीं, इस मुद्दे को तय करने के लिए महत्वपूर्ण नहीं है.

दोनों न्यायाधीशों ने कहा, ‘पीठ द्वारा व्यक्त की गई अलग-अलग राय के मद्देनजर, इस मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के समक्ष रखा जाता है ताकि इसे एक बड़ी पीठ को भेजा जा सके.’

शीर्ष अदालत ने 10 दिनों तक चली मैराथन सुनवाई के बाद 22 सितंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पीठ में शामिल के न्यायाधीशों में से एक, न्यायमूर्ति गुप्ता, 16 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं.

इससे पहले, 15 मार्च को, कर्नाटक हाई कोर्ट ने माना था कि हिजाब पहनना इस्लाम में एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और किसी धर्म को मानने या उसका पलने करने की स्वतंत्रता – जो संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत एक मौलिक अधिकार है – उचित प्रतिबंध के अधीन है. राज्य के आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के बाद इस फैसले से प्रभावित छात्राओं ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

अपने इस फैसले के साथ, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के उस आदेश को भी बरकरार रखा था, जिसके तहत सरकारी कॉलेजों में यूनिफार्म (गणवेश) निर्धारित की जाती है. अदालत के अनुसार, संविधान के तहत कॉलेज द्वारा अपने यूनिफार्म को लागू करने हेतु मानदंड निर्धारित करने की अनुमति है.

हालांकि, आवश्यक धार्मिक प्रथा के इर्द-गिर्द दी गईं दलीलें ही हाई कोर्ट की कार्यवाही पर हावी रहीं, वहीं सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने वैकल्पिक तर्क भी पेश किये. शीर्ष अदालत के समक्ष उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए), जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है, के तहत अपने अधिकारों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया.

इसके अलावा, उन्होंने तह भी दलील दी कि हिजाब पहनने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त ‘अंतरात्मा के अधिकार’ द्वारा संरक्षित है. इसलिए उनका कहना था कि यह एक व्यक्तिगत अधिकार है और इसी वजह से हाई कोर्ट की ओर से इस पर ईआरपी वाले परीक्षण को लागू करना गलत था.

मुस्लिम संस्था, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की और पवित्र ‘कुरान’ के आयतों की गलत व्याख्या करने के लिए इस फैसले की आलोचना की थी. इसके अनुसार, हिजाब पहनने की प्रथा पर इस्लामिक धार्मिक विद्वानों में आम सहमति है. इसमें यह भी कहा गया था कि यह एक अनिवार्य प्रथा है और इसका पालन न करने को गुनाह माना जाएगा और जो इसका पालन नहीं करता वह गुनाहगार बन जाता है.

इसकी तुलना उन सिख प्रथाओं के साथ की गई थी जिनके तहत सिख पुरुषों के लिए पगड़ी पहनना अनिवार्य है. आगे यह तर्क भी दिया गया था कि इस तरह का प्रतिबंध उन्हें (याचिकाकर्ताओं को) उनके शिक्षा के अधिकार से भी वंचित करता है क्योंकि जो छात्राएं हिजाब पहनना जारी रखती हैं, उन्हें उनकी परीक्षाएं देने से मना कर दिया जाता है.

हालांकि, राज्य सरकार ने इस प्रतिबंध को उचित ठहराते हुए कहा था कि यह धार्मिक रूप से तटस्थ और इस समय के लिए आवश्यक है. राज्य ने अदालत को बताया था कि उसका आदेश धर्म के आधार पर तटस्थ है और किसी एक छात्र की तुलना में दूसरे के साथ विभेद नहीं करता है. अदालत को इस बात की भी जानकारी दी गई थी कि इस पूरे विवाद को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) ने सोशल मीडिया के जरिए भड़काया था.


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