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Friday, 22 November, 2024
होमदेशअमेरिकी अध्ययन के मुताबिक- मोदी सरकार की पाइप जल योजना 1.36 लाख बच्चों की मौत को रोक सकती है

अमेरिकी अध्ययन के मुताबिक- मोदी सरकार की पाइप जल योजना 1.36 लाख बच्चों की मौत को रोक सकती है

अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर के सह लेखन वाले अध्ययन में कहा गया कि यह तभी संभव है जब जल जीवन मिशन के माध्यम से दिया जाने वाला पानी प्रदूषित न हो. माइक्रोब्स ऐसी मौतों के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार होते है.

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नई दिल्ली: अध्ययन के मुताबिक, जल जीवन मिशन (जेजेएम) के तहत हर ग्रामीण घर में पीने के पानी की आपूर्ति करने के केंद्र सरकार के प्रयासों से भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के लगभग 1.36 लाख बच्चों की मौत को रोका जा सकता है. नोबेल पुरस्कार विजेता माइकल क्रेमर इस स्टडी के सह-लेखक हैं.

‘पोटेंशियल रिडक्शन इन चाइल्ड मोर्टेलिटी थ्रू एक्सपैंडिंग एक्सेस टू सेफ ड्रिंकिंग वाटर इन इंडिया’ नामक रिपोर्ट को ‘दि डवलपमेंट इनोवेशन लैब‘ ने जारी किया है. शिकागो यूनिवर्सिटी के साथ जुड़ी इस लैब का उद्देश्य निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लाखों लोगों को लाभान्वित करने की क्षमता वाले इनोवेशन पर काम करना है.

शिकागो विश्वविद्यालय में अमेरिकी डवलपमेंट इकोनॉमिस्ट माइकल क्रेमर इस अध्ययन के सह-लेखक हैं, जिन्हें 2019 में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार मिला था. रिपोर्ट कहती है कि इसके लिए जरूरी होगा कि जेजेएम के माध्यम से दिए जाने वाले पानी में माइक्रोबियल कॉन्टेमिनेशन न हो.

रिपोर्ट कहती है कि डायरिया ऐसी तीसरी आम बीमारी है जिसकी वजह से भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु सबसे ज्यादा होती है.’

अध्ययन में कहा गया है, ‘वॉटर ट्रीटमेंट डायरिया जैसी बीमारियों और बच्चों की मृत्यु दर को कम करने का एक किफायती तरीका है. क्रेमर एट अल (2022) द्वारा किए गए 15 रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल्स के हालिया मेटा-विश्लेषण से पता चलता है कि वॉटर ट्रीटमेंट या कहें कि साफ पानी पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में अपेक्षित कमी लाने वाले चार कारणों में से एक है.’ यह मेटा-विश्लेषण यह भी बताता है कि बाल मृत्यु दर को कम करने के लिए वॉटर ट्रीटमेंट सबसे किफायती प्रभावी तरीकों में से एक है.’

शोधकर्ताओं ने स्वीकार किया कि उनकी गणना ‘रूढ़िवादी’ है, क्योंकि वह मानते हैं कि ‘साफ पानी तक पहुंच बनाने वाले घरों की तुलना में साफ पानी न मिलने वाले घरों में बाल मृत्यु दर 25 फीसदी ज्यादा है.’

अध्ययन में कहा गया है, ‘अगर साफ पानी तक पहुंच बनाने वाले घरों को बेहतर पोषण या बेहतर चिकित्सा देखभाल मिले, तो इन लोगों के बीच मृत्यु दर का ये अंतर और बड़ा हो सकता है.’

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 के अनुसार, भारत की बाल मृत्यु दर – प्रति 1,000 जीवित जन्म लेने वाले बच्चों के ठीक जन्म लेने और 5 वर्ष की उम्र के बीच मृत्यु की संभावना- 41.9 थी.

मिशन की वेबसाइट के मुताबिक, 2019 में शुरू किया गया जल जीवन मिशन का लक्ष्य 2024 तक हर घर में नल कनेक्शन के जरिए प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 55 लीटर पानी की आपूर्ति करना है. इसका उद्देश्य ग्रामीण समुदायों के जीवन स्तर में सुधार करना है.

पांच साल के लिए 2019 से शुरू हुई इस ‘नल से जल’ योजना के लिए निर्धारित 3.6 लाख करोड़ रुपये का खर्च राज्य और केंद्र समान रूप से साझा करेंगे. केंद्र शासित प्रदेशों के लिए केंद्र सरकार सौ प्रतिशत धन मुहैया कराएगी.

अब तक, गोवा, तेलंगाना, हरियाणा, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, पुडुचेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप ने घरों में 100 प्रतिशत नल कनेक्शन देने का लक्ष्य हासिल कर लिया है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, तीन साल पहले जब मिशन शुरू किया गया था, तब 19.22 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से सिर्फ 3.23 करोड़ (17 प्रतिशत) के पास नल के पानी के कनेक्शन थे. मंत्रालय का लक्ष्य बाकी के 16 करोड़ (83 प्रतिशत) परिवारों को 2024 तक इस योजना का लाभ पहुंचाना हैं.


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सुरक्षित और किफायती पाइप्ड-वाटर

अध्ययन के लिए लेखकों ने ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज- एक वैश्विक शोध कार्यक्रम जो सैकड़ों बीमारियों, चोटों और जोखिम कारकों से सेहत को होने वाले नुकसान का आकलन करता है – और डब्ल्यूएचओ / यूनिसेफ के वॉटर सप्लाई, सैनिटेशन और हाइजीन के ज्वाइंट मॉनिटरिंग प्रोग्राम के डेटा का इस्तेमाल किया है.

अध्ययन के सह लेखकों में आकांक्षा सालेटोर, विटोल्ड विसेक और आर्थर बेकर का नाम भी शामिल है. उनका कहना है कि भारत में डायरिया की बीमारियों और बाल मृत्यु दर को कम करने के लिए पाइप से पानी उपलब्ध कराना एक महत्वपूर्ण कदम है. अध्ययन में कहा गया है, लेकिन इसके साथ यह महत्वपूर्ण है कि पानी दूषित न हो.

अध्ययन के मुताबिक, ‘उन मामलों में जहां एक प्रमुख जगह पर पानी का ट्रीटमेंट किया जाता है, पाइपों में ज्यादा दबाव संदूषण का कारण बन सकता है. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में 2019 के एक अध्ययन में पाइप के पानी में ई. कोलाई संदूषण की उच्च दर (37 प्रतिशत) पाई गई थी.

ई. कोलाई एक बैक्टीरिया है जो सामान्य रूप से स्वस्थ लोगों की आंतों में पाया जाता है. अकसर लोग दूषित भोजन या पानी की वजह से बैक्टीरिया के कुछ स्ट्रेंस के संपर्क में आ जाते हैं, जिसके कारण पेट में गंभीर ऐंठन, खूनी दस्त और उल्टी हो सकती है.

जबकि भूगर्भीय संदूषक – यानी, भूजल में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तत्वों की उच्च सांद्रता – जैसे कि आर्सेनिक, फ्लोराइड और नाइट्रेट ‘भारत के कुछ क्षेत्रों के पानी में अच्छी खासी मात्रा में पाए जाते हैं’. यह सबसे घातक कंटामिनेशन माइक्रोबियल है.

शोधकर्ताओं ने वॉटर ट्रीटमेंट के जरिए बाल मृत्यु दर में कमी के बारे में अपने पहले के शोध के अनुमानों का इस्तेमाल किया और अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए उन आकड़ों को भारतीय संदर्भ में समायोजित किया.

अध्ययन यह भी बताता है कि सुरक्षित और साफ पानी के साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक कैसे पहुंचा जाए. रिपोर्ट में कहा गया है ‘हम मंत्रालय (जल शक्ति) के साथ काम करने की उम्मीद करते हैं और पानी की गुणवत्ता के उपचार जैसे कि रीक्लोरिनेशन के संभावित समाधानों का परीक्षण करके इस प्रयास में सहायता कर सकते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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