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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतगुजरात में गरबा को लेकर रुकावटें आती रही हैं पर इसका ऐसे ‘बर्बाद’ हो जाना उम्मीद से परे था

गुजरात में गरबा को लेकर रुकावटें आती रही हैं पर इसका ऐसे ‘बर्बाद’ हो जाना उम्मीद से परे था

विहिप और बजरंग दल पहले भी गरबा पंडालों में मुस्लिमों के प्रवेश के खिलाफ फरमान जारी करते रहे हैं. लेकिन इस वर्ष इस सबमें पुलिस और राजनीति के शामिल हो जाने से पहले तक जमीनी स्तर पर चीजें ज्यादा नहीं बदली थीं.

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सांप्रदायिक संघर्ष, हिंसा, विवाद, राजनीति, मारपीट और ध्वस्तीकरण अभियान—इस साल गुजरात में नवरात्रि का त्योहार किसी जंग के मैदान से कम नहीं था. गरबा के यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल होने के कुछ ही हफ्तों बाद भक्ति से जुड़ा ये नृत्य तमाम तरह के फरमानों और बाधाओं से जूझता नजर आया. गुजरात के ‘खेलैयाओं (डांसर)’ के पास गरबा पर झूमने के लिए राम मंदिर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के वादों तक, तमाम तरह की नई धुनें थीं. जाहिर है, कोई भी कहेगा कि आखिरकार गुजरात में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं. पिछले साल हिंदू समूहों की तरफ से दर्ज कराई गई शिकायतों के आधार पर करीब एक महीना जेल में बिताने वाले कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी भी एक गरबा कार्यक्रम में नृत्य करते नजर आए.

लेकिन इस बार नवरात्रि उत्सव के दौरान असंतोष का हिंसा में तब्दील हो जाना और विजिलेंट समूहों की तरफ से खुलेआम धमकियां देना काफी अप्रत्याशित रहा. बात सिर्फ यहीं पर खत्म नहीं हुई. नवरात्रि के आखिरी दिन सादी वर्दीधारी कुछ पुलिसकर्मियों द्वारा गरबा कार्यक्रम में पथराव के आरोपी मुस्लिम युवकों के पीटे जाने का वीडियो भी सामने आया है. उंधेला गांव में चौक पर बिजली के खंभे से बांधकर इन युवकों को बुरी तरह पीटने की घटना कहीं न कहीं गुजरात की वाइब्रेंट नवरात्रि पर भारी पड़ी है.

…और इसीलिए गुजरात का गरबा आयोजन दिप्रिंट का न्यूजमेकर ऑफ द वीक है.


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पूर्व में धमकियां और अब हिंसा

अहमदाबाद से करीब 46 किलोमीटर दूर खेड़ा में अभी भी एक असहज शांति का माहौल बना हुआ है. जिले में लगातार दो दिन सांप्रदायिक झड़प की दो घटनाएं हुईं, एक कथित तौर पर 1 अक्टूबर को बी.के. पटेल आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज में और दूसरी उंधेला में. वहीं, वडोदरा, आणंद और पोरबंदर में भी गरबा आयोजनों के दौरान हिंसा की सूचना मिली. और फिर, विजिलेंट ग्रुप के सदस्य तो थे ही. अहमदाबाद में बजरंग दल सदस्यों द्वारा गरबा पंडाल में प्रवेश की कोशिश करने वाले मुस्लिम युवकों की पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ था.

लेकिन क्या यह गुजरात में पहली बार हुआ? क्या पिछले कुछ सालों से ऐसे फरमान, हिंसा और धमकियां त्योहार का हिस्सा नहीं रही हैं?

2014 के बाद से ही विहिप और/या बजरंग दल के सदस्य लगभग हर साल ही फरमान जारी करते रहे हैं—’मुसलमानों को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए’, ‘आईडी कार्ड की जांच करे’, ‘मुस्लिम गायकों और कलाकारों पर प्रतिबंध लगाओ’, आदि आदि. लेकिन जमीनी स्तर पर ज्यादा कुछ नहीं बदला. हां, छिटपुट घटनाएं जरूर हुईं. मुश्किलें खड़ी करने वाले तो अपनी हरकतों से बाज नहीं आए. लेकिन यह सब तमाम समुदायों को उस उत्सव का हिस्सा बनने से नहीं रोक पाया जिस पर गुजरात गर्व करता है. तो फिर इस साल क्या बदल गया?

उंधेला गांव के सरपंच इंद्रवदन पटेल कहते हैं, ‘घर अंगने दुश्मन गरबा रामवा आवे तो पन स्वागत करिए, लड़ाई आने झगड़ो गरबा मान न हो, ऐ चे आपू गुजरात (अगर कोई दुश्मन हमारे आंगन में गरबा करने आता है, तो हम उसका स्वागत करते हैं. लड़ाई और दुश्मनी गरबा में भुला दी जाती है, यही हमारा गुजरात है).’ उनके मुताबिक, गांव में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कटुता चरम पर रही है लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि नवरात्रि ‘बर्बाद’ हो जाएगी. पटेल ने आरोप लगाया, ‘हम पर पत्थर फेंके गए, हम पर हमले के लिए लाठियां और हॉकी स्टिक इस्तेमाल की गईं.’ सरपंच ने कहा कि यद्यपि उपद्रवियों को ‘सजा तो मिलनी चाहिए थी.’ लेकिन सार्वजनिक रूप से आरोपियों को पीटने वाली पुलिसिया कार्रवाई ‘कुछ ज्यादा ही’ हो गई थी. पुलिसकर्मियों ने एक के बाद एक मुस्लिम युवकों को खंभे से बांधकर पीटा था और इस दौरान बड़ी संख्या में ग्रामीण वहां खड़े होकर यह सब देख रहे थे.

दोनों घटनाओं—3 अक्टूबर को गरबा आयोजन में कथित व्यवधान और एक दिन बाद पुलिस की बर्बर कार्रवाई—का असर उंधेला की तंग गलियों में अगले कुछ दिनों तक स्पष्ट नजर आना ही था. गांव के प्राथमिक स्कूल में 6 अक्टूबर को बच्चों की उपस्थिति शून्य रही. ग्रामीणों का दावा है कि मुस्लिम युवक—जिनमें पीटे गए लोग भी शामिल हैं—गांव से भाग गए हैं, और अभी इस मामले में जांच जारी है, लेकिन उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है जिन्होंने सार्वजनिक रूप से मुस्लिम युवकों को पीटा था.


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मध्य प्रदेश, गुजरात में एक राजनीतिक हथियार

उधर, पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में भी पुलिस अधिकारियों ने इंदौर में मुस्लिम युवकों के खिलाफ कार्रवाई की और बजरंग दल के इशारे पर उन्हें गरबा आयोजन स्थलों से गिरफ्तार किया गया. राज्य में कुछ जगहों पर कथित तौर पर मुस्लिमों को गरबा पंडालों में पहुंचने से रोकने के लिए पहचान पत्रों की जांच भी की गई.

कुल मिलाकर, गरबा गुजरात और मध्य प्रदेश दोनों ही राज्यों में एक राजनीतिक हथियार बन गया है.

मध्य प्रदेश सरकार ने गरबा आयोजकों को निर्देश दिया कि पंडालों के अंदर प्रवेश करने वाले लोगों के आईडी कार्ड की जांच करें. वहीं राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मुस्लिम युवकों पर ‘अपनी पहचान छिपाने’ का आरोप लगाया और साथ ही कहा कि ‘किसी अन्य धर्म के लोगों’ को ‘मां दुर्गा की पूजा करनी है’ तो अलग से गरबा कार्यक्रम आयोजित करें.

गुजरात में विपक्षी दल कांग्रेस ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं और पीटे जाने की घटना में शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी कर रही है. यही नहीं पार्टी विधानसभा चुनाव—जिसकी तिथियां इसी माह घोषित हो सकती हैं—से पहले इस तरह की घटना को एक राजनीतिक साजिश भी बता रही है. इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं था कि चुनाव नजदीक होने के मद्देनजर राजनीतिक दलों ने नवरात्रि के मौके को अपने संदेश भेजने के लिए भुनाने की कोशिश की. यह सब राजनीतिक दलों की तरफ से जारी गीतों तक ही सीमित नहीं था. आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा और पंजाब के सीएम भगवंत मान राजकोट में एक कार्यक्रम में भी शामिल हुए. वहीं आप नेता और मुख्यमंत्री केजरीवाल कोडलधाम गरबा कार्यक्रम में शामिल हुए, और मोदी अंबाजी मंदिर पहुंचे और गब्बर तीर्थ में महाआरती में भी शामिल हुए.

राजनीति और हिंसा के बीच गुजरात में नवरात्रि उत्सव कोविड-19 महामारी के दो साल बाद मना था. तमाम गांवों में मुसलमान अभी भी ‘गरबा मंडली’ का हिस्सा हैं. इसमें सभी समुदायों के गायकों और नर्तकों ने हिस्सा भी लिया. पुराने शहर अहमदाबाद में ‘पोल’ में हर कोई चाहे किसी भी जाति या धर्म का हो, ‘शेरी गरबा’ में मौजूद था. नवरात्रि की नौ रातों के दौरान सबसे अधिक सुना जाने वाला वाक्य ‘अए हालो’ (आओ, खेले.. ‘गरबा’) ही होता है लेकिन अब समय आ गया है कि गुजरात के लोग, अधिकारी, प्रवर्तन एजेंसियों और राजनेता इस नृत्य का नाम खराब करने वालों के लिए एक ही वाक्य इस्तेमाल करे—’ए रोको’

(व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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