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Sunday, 24 November, 2024
होमदेशUN के लिए चुनी गई भारतीय महिला पर होगी दुनिया के रेडियो स्पेक्ट्रम विवाद सुलझाने की जिम्मेदारी

UN के लिए चुनी गई भारतीय महिला पर होगी दुनिया के रेडियो स्पेक्ट्रम विवाद सुलझाने की जिम्मेदारी

दूरसंचार अधिकारी रेवती मन्नपल्ली अपने गांव की पहली इंजीनियर थीं. अब उन्हें इंटरनेशनल टेलीकॉम यूनियन के रेडियो रेग्युलेशन बोर्ड का हिस्सा बनाया गया है.

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नई दिल्ली: पहली बार किसी भारतीय महिला ने संयुक्त राष्ट्र से जुड़े एक तकनीकी निकाय का हिस्सा बनने में सफलता हासिल की है, जिन्हें अब संयुक्त राष्ट्र सदस्यों के बीच रेडियो स्पेक्ट्रम पर असहमतियों को दूर करने की जिम्मेदारी निभानी होगी. दूरसंचार विभाग की एक अधिकारी रेवती मनेपल्ली ने इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (आईटीयू) के रेडियो रेग्युलेशन बोर्ड (आरआरबी) में बतौर सदस्य एक सीट पाने के लिए एशिया एवं आस्ट्रेलिया क्षेत्र में अधिक वोट हासिल किए.

आईटीयू संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जो रेडियो स्पेक्ट्रम सहित सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों से जुड़े तमाम मामले देखती है. दुनिया तेजी से डिजिटल हो रही है और विभिन्न देशों के बीच अंतरिक्ष में अधिक से अधिक उपग्रह भेजने की होड़ हैं, इस सीमित संसाधन की अहमियत बहुत ज्यादा बढ़ गई है.

भारत इससे पहले 1998 से 2014 तक आरआरबी में एक प्रतिनिधि था.

मतदान करने वाले संयुक्त राष्ट्र के 180 सदस्यों में से 139 का वोट हासिल करने वाली रेवती ने कहा कि वह 29 सितंबर को घोषित परिणामों से ‘बेहद खुश’ हैं. उन्होंने अगस्त में दिप्रिंट से बातचीत में कहा भी था, ‘हमें अन्य देशों का समर्थन हासिल है. मुझे अपनी संभावनाओं पर पूरा भरोसा है. यह केवल उम्मीदवार के पेशेवर अनुभव से जुड़ा नहीं है, बल्कि देश की छवि भी मायने रखती है.’

रोमानिया में हुए मतदान में उनका मुकाबला चार अन्य देशों चीन, सऊदी अरब, इराक और इंडोनेशिया के उम्मीदवारों के साथ था.

आरआरबी पांच क्षेत्रों में बंटा हुआ है, जिसमें रीजन ए (अमेरिका), रीजन बी (पश्चिमी यूरोप), रीजन सी (पूर्वी यूरोप और उत्तरी एशिया), रीजन डी (अफ्रीका) और रीजन ई (एशिया और ऑस्ट्रेलिया) शामिल हैं.

हर रीजन में सीटों की एक विशिष्ट संख्या आवंटित होती है और रीजन ई—जिसमें भारत एक हिस्सा है—में तीन सीटें हैं. यही वजह है कि रेवती को रीजन ई में शीर्ष तीन उम्मीदवारों में शामिल होने के लिए पर्याप्त वोट हासिल करने थे.

आरआरबी की सदस्य के तौर पर वह अधिक समावेशिता को बढ़ावा देना चाहती है—यह एक ऐसा संदेश है जो प्रतिष्ठित अंतरिक्ष दौड़ में मान्यता और प्रभाव हासिल करने के लिए जोर लगा रहे विकासशील देशों को काफी लुभाता है.


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आईटीयू, आरआरबी क्यों महत्वपूर्ण हैं

अगरे सीधे शब्दों में कहा जाए तो आईटीयू देशों को ग्लोबल रेडियो स्पेक्ट्रम और सेटेलाइट ऑर्बिट का आवंटन करता है, जबकि आवंटन को लेकर किसी असहमति को दूर करना आरआरबी का काम है. इसमें दो-राय नहीं हैं कि देशों के बीच ये विवाद काफी जटिल होते हैं और भू-राजनीतिक समीकरणों को काफी ज्यादा प्रभावित करने वाले भी साबित हो सकते हैं.

उदाहरण के तौर पर, जनवरी में अपनी 88वीं बैठक में आरआरबी ने कहा कि वह बीजिंग के इस अनुरोध को स्वीकार नहीं कर सकता है कि बोर्ड चीनी उपग्रह नेटवर्क को आवंटित फ्रीक्वेंसी को मान्यता दे.

बोर्ड अध्यक्ष ने यहां तक कहा कि वास्तव में उनके इस्तेमाल के बिना हीदो चीनी उपग्रहों का उपयोग ‘स्पेक्ट्रम वेयरहाउसिंग’ के लिए किया गया. ‘स्पेक्ट्रम वेयरहाउसिंग’ शब्द का मतलब है कि कोई इस्तेमाल किए बिना स्पेक्ट्रम जमा कर रहा है और दूसरों को इसके इस्तेमाल से रोक रहा है.

चीन ‘विकासशील देशों’ के बीच आईटीयू का सबसे बड़ा वित्तीय योगदानकर्ता भी है—भारत का योगदान चीन की तुलना में आधा है.

यह भी उल्लेख किया गया कि चीन और यूके के बीच घातक इंटरफेस से जुड़े मुद्दे को हल करने के आरआरबी के प्रयास सफल रहे हैं, चीन ने इंटरफेस पर निगरानी बढ़ाने की बात कही है, जिसकी वजह से यूके की प्रसारण सेवाओं में गिरावट आ सकती थी.

उसी बैठक में, बोर्ड ने अपने इनसैट-केए68ई उपग्रह नेटवर्क को आवंटित फ्रीक्वेंसी के उपयोग के लिए और अधिक समय देने के लिए भारत के अनुरोध को ठुकरा दिया था.

‘अपने गांव की पहली इंजीनियर’

करीने से संवरे बाल, पारंपरिक ढंग से बंधी साड़ी, और कोई मेकअप नहीं, पिछले 26 सालों से भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (आईआईएस) अधिकारी के तौर पर सेवारत रेवती कुछ इसी अंदाज में भारतीय दूरसंचार विभाग (डीओटी) के मुख्यालय संचार भवन में अपने दफ्तर में बैठती हैं.

डीओटी के वायरलेस प्लानिंग एंड कोऑर्डिनेशन (डब्ल्यूपीसी) विंग में वरिष्ठ डिप्टी वायरलेस एडवाइजर के तौर पर वह स्पेक्ट्रम उपयोग से जुड़े नियम तैयार करती है, इसके अलावा इसका उपयोग करने वाली संस्थाओं के बीच सिग्नल इंटरफेस के मुद्दों को निपटाती हैं.

उन्होंने अगस्त में दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में कहा था, ‘उपग्रहों और अंतरिक्ष क्षेत्र ने मुझे हमेशा आकर्षित किया है.’

अंतरिक्ष से संबंधित मामलों में रेवती की रुचि तब शुरू हुई जब वह आंध्र प्रदेश के एक गांव कोंडापुरम में अपना बचपन बिता रही थीं, जो इसरो के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लगभग 200 किलोमीटर दूर है. एक बच्ची के तौर पर रेवती को सेटेलाइट ले जाए जाते और उन्हें रॉकेट के जरिये प्रक्षेपित करते देखना याद है.

उस समय की लैंगिक रूढ़िवादिता का जिक्र करते हुए उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘लोग मेरे पिता को बेटियों को बहुत ज्यादा न पढ़ाने की सलाह देते थे. उनका मानना था कि बेटियों का शिक्षित होना एक बड़ी समस्या है क्योंकि फिर बेटी से ज्यादा पढ़ा-लिखा लड़का पाने के लिए उन्हें एक मोटा दहेज देना होगा. बेशक, मेरे पिता ने ऐसी सभी सलाहों को नजरअंदाज़ कर दिया.’

उन्होंने अपने गांव में गणित में बेहद कुशाग्र लड़की होने का ही लोहा नहीं मनवाया बल्कि कोंडापुरम की पहली इंजीनियर भी बनी और स्पेक्ट्रम आवंटन जैसे बेहद जटिल क्षेत्र में सरकार में वरिष्ठ नेतृत्व की स्थिति में रहने वाली कुछ चुनींदा महिलाओं में से एक रही हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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