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Sunday, 3 November, 2024
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नरेंद्र भाई मुझे राजनीति में लाए, हमारा लक्ष्य हरियाणा में बहुमत लाना है: भाजपा की टॉप पैनलिस्ट सुधा यादव

भाजपा संसदीय बोर्ड में शामिल एकमात्र महिला सदस्य सुधा यादव का कहना है कि उनकी पार्टी अगले हरियाणा विधानसभा चुनावों में बहुमत पाने के लिए प्रयास करेगी और जजपा के साथ गठबंधन 'समय और समीकरण' पर निर्भर करेगा.

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नई दिल्ली: भाजपा संसदीय बोर्ड की सदस्य डॉ सुधा यादव का कहना है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि क्या वह तीसरी बार भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे? दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) के साथ भाजपा के गठबंधन के भविष्य के बारे में भी यह कहते हुए बातें कीं कि यह ‘समय और समीकरण’ पर निर्भर करेगा.

महेंद्रगढ़ से पूर्व सांसद रहीं सुधा यादव ने कहा, ‘एमएल खट्टर हमारे वर्तमान मुख्यमंत्री हैं, उन्होंने पारदर्शी शासन दिया है और सरकारी नौकरियों में व्याप्त भ्रष्टाचार में कमी लाई है, लेकिन अगले विधानसभा चुनाव के संदर्भ में उनके बारे में बात करना जल्दबाजी होगी.’

हरियाणा के रेवाड़ी की रहने वालीं डॉ सुधा यादव को इस साल अगस्त में भाजपा के सभी शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था – 11 सदस्यीय संसदीय बोर्ड – में शामिल किया गया था. वे इस समिति में शामिल एकमात्र महिला हैं, जैसा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज के मामले में भी था.

उन्होंने कहा, ‘कोई नहीं जानता कि पार्टी के किस सदस्य को क्या जिम्मेदारी मिलेगी लेकिन पार्टी के कई कार्यकर्ताओं को काम करते हुए विभिन्न जिम्मेदारियां मिलती हैं, इसलिए मुझ पर विश्वास दिखाने के लिए मैं पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व की आभारी हूं.’

यादव ने यह भी कहा कि भाजपा ने हमेशा से महिला नेताओं को प्राथमिकता दी है और हालांकि (राज्यपालों की) नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, मगर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान अधिक संख्या में महिला राज्यपालों ने पदभार ग्रहण किया है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री इस मुद्दे को लेकर संवेदनशील हैं.

हरियाणा में भाजपा-जजपा गठबंधन पर, उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी अपने सहयोगियों को कभी पीछे नहीं छोड़ती है, लेकिन 2024 के विधानसभा चुनावों में वह अपने दम पर बहुमत के लिए प्रयास करेगी. यादव ने कहा, ‘हमें पार्टी को मजबूत करने, उसकी पहुंच बढ़ाने और उन निर्वाचन क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करने की जरूरत है जहां हम पिछली बार अच्छा नहीं कर सके थे.’

साल 2019 में हुए पिछले चुनाव में 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा (40 सीटों के साथ) की आधे से कम की संख्या होने के कारण, इसने हरियाणा में सरकार बनाने के लिए जजपा (10 सीटों के साथ) के साथ चुनाव-बाद गठबंधन किया था.


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विपक्ष कहां खड़ा है,भाजपा की आंतरिक राजनीति

जहां तक हरियाणा में विपक्ष की स्थिति का सवाल है, यादव ने कहा कि ‘कांग्रेस ने पिछली बार अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन अभी तक, वे यह भी तय नहीं कर सकते हैं कि उनका [राज्य इकाई का ] अध्यक्ष कौन होगा. यहां तक कि राजस्थान में भी, जहां उनके पास पूर्ण बहुमत है, वे अपने आंतरिक मतभेदों को छिपा नहीं पा रहे.‘

डॉ यादव ने कहा, ‘चौटाला परिवार [इंडियन नेशनल लोक दल] के पास केवल एक विधायक है, और इसलिए, उन्हें आगे चलकर जीतते हुए देखना मुश्किल है. अगर हम तीसरे मोर्चे के बारे में बात करते हैं, तो मुझे यह बहुत दिलचस्प लगा कि ओम प्रकाश चौटाला, जिनकी पार्टी ने हमेशा कांग्रेस विरोधी राजनीति की है, को भूपेंद्र सिंह हुड्डा से बात करने के लिए कहा गया है.‘

आम आदमी पार्टी (आप) के राज्य की राजनीति में कदम रखने के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा कि ‘हरियाणा के मतदाता होशियार और व्यावहारिक है और आप द्वारा किए गए मुफ्त उपहारों के वादों से प्रभावित नहीं होंगे.’

सुधा यादव ने पिछले साल दक्षिण हरियाणा में आयोजित एक रैली के दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री और पांच बार के सांसद राव इंद्रजीत सिंह द्वारा लिए गए ‘पानीपत की लड़ाई’ वाले आह्वान पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की. सिंह, जो अहिरवाल क्षेत्र के एक प्रमुख नेता और साल 2014 तक कांग्रेस के साथ थे, ने कहा था कि वह एक ‘जन नेता’ हैं, न कि कोई ‘पैराशूट नेता’ – उनकी इस टिप्पणी को उस समय नए- नए केंद्रीय मंत्री बने भूपेंद्र यादव द्वारा अहिरवाल क्षेत्र में निकाली गई ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ के संदर्भ में देखा गया था.

यादव ने दिप्रिंट से कहा, ‘पार्टी ने उन्हें [सिंह को] सांसद बनाया, यहां तक कि उनकी पसंद के विधायकों को टिकट दिया और फिर मंत्री भी बनाया. इसलिए, मुझे नहीं लगता कि इसमें बगावत के कोई संकेत हैं, लेकिन यह सच है कि जो राजनेता कांग्रेस से आते हैं, उनकी कार्यशैली अलग होती है.’

सुधा यादव पहली बार साल 1999 में महेंद्रगढ़ सीट से सिंह – जो उस समय कांग्रेस के साथ थे – को हराकर संसद के लिए चुनी गईं थीं. लेकिन सिंह ने 2004 और 2009 के संसदीय चुनावों में क्रमश: महेंद्रगढ़ और गुरुग्राम (पहले गुड़गांव) लोकसभा सीटों से यादव को हराकर अपनी वापसी की थी.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और राज्य के गृह मंत्री अनिल विज के बीच के कथित झगड़े पर, यादव ने कहा कि लोग तालमेल का केवल एक ही पहलू देखते हैं, और अक्सर दोनों नेताओं के बीच की दोस्ती को नजरअंदाज कर देते हैं. उन्होंने कहा, ‘अनिल विज एक स्पष्टवादी व्यक्ति हैं और अपने मन की बात कहते हैं, लेकिन वह पिछले आठ वर्षों में कभी भी पार्टी के खिलाफ नहीं गए और यह उनका ट्रैक रिकॉर्ड (पिछला इतिहास) रहा है.’

विज ने पिछले साल दिसंबर में दावा किया था कि उन्होंने तब एक मंत्री के रूप में इस्तीफा देने की पेशकश की थी जब उन्हें पता चला था कि शहरी स्थानीय निकाय विभाग एक नए नए शामिल किए गए मंत्री को सौंपा गया है और कथित तौर पर उन्हें यह बताया गया था कि उन्हें गृह विभाग से हटाया जा सकता है.


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‘नरेंद्र भाई ने मुझे राजनीति में आने के लिए मनाया’

आईआईटी रुड़की से रसायन विज्ञान में पीएचडी करने वालीं सुधा यादव के लिए शिक्षाविद बनना एक स्वाभाविक पसंद थी. उन्होंने कहा, ‘लेकिन मेरे पति, जो बीएसएफ [सीमा सुरक्षा बल] में एक डिप्टी कमांडेंट थे, के कारगिल युद्ध में शहीद होने के बाद मेरी ज़िंदगी बदल गई. मेरे जीवन में आया यह बदलाव मुझे समाज सेवा की दिशा में ले गया और उसके बाद मैंने राजनीति में प्रवेश किया.’

वे याद करते हुए कहती हैं कि कैसे साल 1999 में हरियाणा के भाजपा प्रभारी रहे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें राजनीति में उतरने के लिए राजी किया था.

वे बताती हैं, ‘नरेंद्र भाई तब हरियाणा के प्रभारी थे और अटल जी की सरकार एक वोट के कारण गिर गई थी. दोबारा आम चुनाव होने थे. स्वाभाविक रूप से, हर सीट महत्वपूर्ण थी और इसलिए योजना चल रही थी. महेंद्रगढ़ लोकसभा [पूर्व मुख्यमंत्री] राव बीरेंद्र के परिवार के पास थी और उस सीट पर उनका ही दबदबा था. यह महसूस किया गया कि वहां से एक नया चेहरा लाया जाना चाहिए. यह इलाका आर्मी-बेल्ट (सेना में शामिल लोगों का इलाका) है और कारगिल युद्ध में सबसे ज्यादा शहीद उसी इलाके से थे, इसलिए एक नए चेहरे की जरूरत थी और मैं खुशनसीब थी कि भाजपा ने मुझे चुना.’

वे आगे कहती हैं, ‘तीन-चार दौर की बातचीत के बाद, नरेंद्र भाई ने मुझे आश्वस्त कर दिया कि मुझे राजनीति में आना चाहिए और अपना जीवन राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर देना चाहिए. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और कहा कि चूंकि मेरी पृष्ठभूमि रक्षा क्षेत्र से थी, इसलिए मेरे पास चुनाव लड़ने के कोई साधन नहीं थे. उन्होंने [11 रुपये के साथ] पहली राशि दान की और लोगों से दान की अपील की. एक घंटे के अंदर ही साढ़े सात लाख रुपये जमा हो गए और मैं वह चुनाव लड़ सकी.’

यादव ने यह भी बताया कि कैसे वह साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भी पार्टी के टिकट की उम्मीद कर रही थीं, लेकिन पार्टी ने उनके बजाय राव इंद्रजीत सिंह को मैदान में उतारा.

उन्होंने कहा, ‘स्वाभाविक रूप से, मुझे टिकट मिलने की उम्मीद थी लेकिन पार्टी में बदलाव हो रहा था . उस समय नए लोग जुड़ रहे थे और उन राजनीतिक समीकरणों के बीच मुझे टिकट नहीं मिल सका. फिर भी मैं पार्टी के लिए काम करती रही.’

महेंद्रगढ़ से लोकसभा सांसद के रूप में अपने कार्यकाल के बाद, यादव ने हरियाणा भाजपा के प्रवक्ता, पार्टी के ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) मोर्चा के राष्ट्रीय प्रभारी और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य के रूप में भी काम किया है.

भविष्य की उनकी योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर यादव ने कहा कि वह चुनाव लड़ने के बारे में नहीं सोचती हैं और वह इस बात पर ध्यान देंगी कि उनकी पार्टी उनसे क्या करने को कहती है. उन्होंने कहा, ‘मैं पिछले 23 सालों से वही सब कर रहीं हूं जो भाजपा मुझसे करवाना चाहती है. पार्टी जो भी फैसला करेगी, मैं उस पर आगे बढ़ूंगी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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