कोलकाता: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बुधवार को सुनाये अपने एक फैसले में पश्चिम बंगाल सरकार की बहुप्रतीक्षित योजना ‘दुआरे राशन’ या ‘आपके दरवाजे पर राशन’ को अवैध घोषित कर दिया.
अदालत ने महसूस किया कि सरकार ने राशन डीलरों को लोगों के घरों तक राशन पहुंचाने के लिए कहकर अपने प्रत्यायोजन (कर्तव्यों की व्याख्या) की सीमा के परे काम किया है. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध रॉय और न्यायमूर्ति चित्तरंजन दास की खंडपीठ ने कहा: ‘राज्य सरकार ने उचित मूल्य की दुकान के डीलरों को लाभार्थियों को उनके दरवाजे पर राशन वितरित करने के लिए बाध्य करके प्रत्यायोजन की सीमा का उल्लंघन किया है और इसके लिए उसे ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ के तहत कोई अधिकार प्राप्त नहीं है.’
उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) का रुख करने वाले राशन डीलरों के एक वर्ग ने दावा किया था कि खाद्यान्न की ‘होम डिलीवरी’ के लिए बनाई गई यह योजना लागू करने लायक नहीं है. इसी साल जून में, न्यायमूर्ति कृष्ण राव की कलकत्ता उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने यह कहते हुए उनकी वह याचिका खारिज कर दी थी कि इस योजना में कुछ भी ‘अवैध’ नहीं है.
इसके बाद डीलरों ने एक खंडपीठ का रुख किया, जिसने बुधवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पसंदीदा परियोजना पर रोक लगा दी.
माननीय न्यायाधीशों ने यह भी कहा: ‘यदि केंद्र की विधायिका यानी संसद अपने विवेक के तहत लाभार्थियों को खाद्यान्न की ‘डोर स्टेप डिलीवरी’ (घर-घर पहुंचाए जाने) के उद्देश्य से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम में संशोधन करती है या फिर राज्य सरकार को ऐसी कोई शक्ति प्रदान करती है, तभी राज्य के द्वारा ऐसी कोई योजना बनाई जा सकती है और तभी इस सामर्थ्यकारी (इनेबलिंग) अधिनियम के अनुरूप कहा जा सकता है. इसी अनुरूप, हम यह मानते हैं कि राज्य सरकार ने ‘दुआरे राशन योजना’ बनाने के साथ इस सामर्थ्यकारी अधिनियम के तहत निर्धारित प्रत्यायोजन की सीमा को पार कर लिया है.’
हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद भाजपा सांसद दिलीप घोष ने दावा किया कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार ने इस योजना के साथ ‘लोगों की भलाई पर राजनीति करने’ का दृष्टिकोण अपनाया है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा: ‘ग्रामीण इलाकों में बहुत से लोग अपने-अपने घरों को बंद कर खेतों में काम करने चले जाते हैं. उनकी ओर से डोरस्टेप डिलीवरी कौन लेगा? फिर वह अतिरिक्त राशन टीएमसी नेताओं के घर पहुंच जाएगा. टीएमसी सरकार लोगों की भलाई के नाम पर राजनीति करने में व्यस्त है.’
बता दें कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के सिलसिले में किये गए अपने चुनावी वादे के रूप में ‘दुआरे राशन’ योजना की घोषणा की थी और लगातार तीसरी बार पद संभालने के बाद उन्होंने इस परियोजना को लागू कर दिया था.
राज्य सरकार ने 13 सितंबर 2021 को इस बारे में अधिसूचना जारी की थी और नवंबर 2021 में स्वयं ममता बनर्जी ने इस योजना को हरी झंडी दिखाई थी. ममता ने कहा था, ‘इस योजना से दस करोड़ लोग लाभान्वित होंगे. मैं सभी राशन डीलरों से इसे सफल बनाने का आग्रह करती हूं.’
टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने फैसले से इस निराशा दिखाते हुए कहा, ‘ममता बनर्जी गरीबों की मदद करना चाहती थीं. कलकत्ता उच्च न्यायालय ने आज जो कुछ भी कहा है, मैं उससे सहमत नहीं हूं. माननीय न्यायालय को स्वयं को व्यक्त करने का अधिकार है, लेकिन इस योजना की घोषणा सबसे पहले दिल्ली सरकार ने की थी.’
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