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Saturday, 16 November, 2024
होमदेशबिलकिस एकजुटता पदयात्रा निकालने से पहले ही मेगसायसाय पुरस्कार विजेता संदीप पांडे समेत 4 हिरासत में

बिलकिस एकजुटता पदयात्रा निकालने से पहले ही मेगसायसाय पुरस्कार विजेता संदीप पांडे समेत 4 हिरासत में

रैमन मैगसायसाय पुरस्कार विजेता संदीप पांडे और अन्य कार्यकर्ता ‘हिंदू-मुस्लिम एकता समिति’ के बैनर तले सोमवार को ‘बिल्कीस बानो से माफी मांगो’ पैदल मार्च शुरू करने वाले थे. मार्च चार अक्टूबर को खत्म होना था.

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नई दिल्ली: हम बिलकिस बानो के साथ हैं, ऐसा कहकर समाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे सोमवार को पैदल मार्च निकालने का एलान किया था लेकिन उससे पहले ही पुलिस ने उन्हें तथा तीन अन्य को हिरासत में ले लिया है.

गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान बिलकीन बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों को रिहा किए जाने के खिलाफ और बानो के साथ एकजुटता दिखाने के लिए इस पदयात्रा का आह्वान किया गया था.

रैमन मैगसायसाय पुरस्कार विजेता संदीप पांडे और अन्य कार्यकर्ता ‘हिंदू-मुस्लिम एकता समिति’ के बैनर तले पड़ोसी दाहोद जिले के उनके पैतृक गांव रंधीकपुर से सोमवार को ‘बिल्कीस बानो से माफी मांगो’ पैदल मार्च शुरू करने वाले थे. मार्च चार अक्टूबर को खत्म होना था.

‘बी-संभाग’ थाने के एक अधिकारी ने कहा, ‘संदीप पांडे और तीन अन्य लोगों को रविवार देर रात करीब साढ़े 10 बजे गोधारा (पंचमहल जिले में) से हिरासत में लिया गया.’

‘हिंदू-मुस्लिम एकता समिति’ ने एक बयान में पुलिस की इस कार्रवाई की निंदा की. समिति ने बयान में कहा कि गुजरात सरकार के इस साल 15 अगस्त को अपनी ‘क्षमा नीति’ के तहत मामले के 11 दोषियों को रिहा करने के बाद, पदयात्रा बिल्कीस बानो से माफी मांगने के लिए आयोजित की जा रही थी.

समिति ने बयान में कहा, ‘हम जो कुछ भी हुआ उसके लिए बिल्कीस से माफी मांगना चाहते थे और हमारी कामना है कि इस तरह के जघन्य कृत्य गुजरात में दोबारा न हों.’

गोधरा कांड के बाद भड़के गुजरात दंगों के समय बिल्कीस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं. दंगों के दौरान तीन मार्च 2002 को उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनकी तीन वर्ष की बेटी सहित उनके परिवार के सात लोग मारे गए थे.

मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपी गई थी और उच्चतम न्यायालय ने मुकदमे को महाराष्ट्र की एक अदालत में स्थानांतरित कर दिया था.

मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इस सजा को बाद में बंबई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा था.

गुजरात सरकार की ‘क्षमा नीति’ के तहत इस साल 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से 11 दोषियों की रिहाई ने जघन्य मामलों में इस तरह की राहत के मुद्दे पर बहस छेड़ दी है. रिहाई के समय दोषी जेल में 15 साल से अधिक समय काट चुके थे.


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बिलकिस का दोषी ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले के एक दोषी ने उन याचिकाकर्ताओं के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया है, जिन्होंने प्रकरण में उसे और 10 अन्य दोषियों को दी गई माफी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है तथा कहा कि मामले में ये लोग ‘पूरी तरह अजनबी’ हैं.

हाल में गुजरात सरकार द्वारा सजा में छूट दिये जाने पर रिहा किए गए राधेश्याम ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि याचिकाकर्ताओं में से कोई भी मामले से संबंधित नहीं है और वे या तो राजनीतिक कार्यकर्ता हैं या ‘तीसरे पक्ष-अजनबी’ हैं.

याचिका की विचारणीयता पर सवाल उठाते हुए उसने कहा कि अगर ऐसी याचिकाओं पर अदालत विचार करती है, तो यह आम जनता में शामिल किसी भी व्यक्ति के लिए ‘किसी भी आपराधिक मामले में किसी भी अदालत के सामने कूदने’ के लिए एक खुला निमंत्रण होगा.

उसने कहा कि उसकी रिहाई पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका में याचिकाकर्ता नंबर-1 माकपा नेता सुभाषिनी अली खुद के एक पूर्व सांसद और ऑल इंडिया वुमेंस एसोसिएशन की उपाध्यक्ष होने का दावा करती हैं.

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता नंबर-2 रेवती खुद के एक स्वतंत्र पत्रकार होने का दावा करती हैं, जबकि याचिकाकर्ता नंबर-3 रूपरेखा वर्मा लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति होने का दावा करती हैं.

हलफनामे में कहा गया है, ‘बड़े सम्मान और विनम्रता के साथ, उत्तर देने वाला प्रतिवादी यह प्रस्तुत करता है कि यदि इस तरह के तीसरे पक्ष की याचिकाओं को इस अदालत द्वारा स्वीकार किया जाता है, तो यह न केवल कानून की स्थापित स्थिति को अस्थिर करेगा, बल्कि इससे ऐसे मामलों की बाढ़ आ जाएगी और यह जनता के किसी भी सदस्य को किसी भी न्यायालय के समक्ष किसी भी आपराधिक मामले में कूदने के लिए खुला निमंत्रण देगा.’

राधेश्याम ने अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ​​के माध्यम से दायर अपने हलफनामे में कहा कि शीर्ष अदालत ने पहले के मामलों में स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी आपराधिक मामले में पूरी तरह से अजनबी व्यक्ति को किसी निर्णय की शुद्धता पर सवाल उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

उसने कहा कि ‘जनता दल बनाम एचएस चौधरी’ मामले में 1992 के फैसले के बाद से, एक विचार, जिसे 2013 में ‘सुब्रमण्यम स्वामी बनाम राजू’ मामले में दोहराया गया था, शीर्ष अदालत ने लगातार स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अभियोजन से पूरी तरह से अनजान किसी व्यक्ति का आपराधिक मामलों में ‘‘कोई अधिकारक्षेत्र’’ नहीं है और न ही उसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करने का कोई अधिकार है.

गुजरात सरकार की क्षमा नीति के तहत इस साल 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से 11 दोषियों की रिहाई ने जघन्य मामलों में इस तरह की राहत के मुद्दे पर बहस छेड़ दी है. दोषी जेल में 15 साल से अधिक समय काट चुके थे.

दोषियों को दी गई माफी को चुनौती देने वाली याचिका पर शीर्ष अदालत ने 25 अगस्त को केंद्र और गुजरात सरकार से जवाब मांगा था.

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी दोषियों को मिली सजा में छूट को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक अलग याचिका दायर की है.

गोधरा में ट्रेन जलाए जाने की घटना के बाद भड़के गुजरात दंगों के समय बिलकिस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं. दंगों के दौरान उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनकी तीन वर्ष की बेटी सहित उनके परिवार के सात लोग मारे गए थे.

मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपी गई थी और उच्चतम न्यायालय ने मुकदमे को महाराष्ट्र की एक अदालत में स्थानांतरित कर दिया था.

मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इस सजा को बाद में बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने भी बरकरार रखा था.

भाषा के इनपुट्स के साथ


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