नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अर्थशास्त्रियों के एक अध्ययन से पता चलता है कि कोविड के समय लगाए गए प्रतिबंधों ने उद्योग और सेवाओं की उच्च हिस्सेदारी वाले राज्यों की आर्थिक गतिविधियों को कृषि और खनन पर अधिक भरोसा करने वाले राज्यों की तुलना में काफी ज्यादा नुकसान पहुंचाया है.
आरबीआई के मासिक बुलेटिन में पिछले शुक्रवार को प्रकाशित ‘इम्पैक्ट ऑफ कोविड -19 ऑन इकोनॉमिक एक्टिविटी अक्रॉस इंडियन स्टेट्स’ शीर्षक वाले पेपर को बैंक के आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग के सुधांशु गोयल, आकाश कोवुरी और रमेश गोलेत ने लिखा था. उन्होंने बताया कि आवाजाही पर रोक लगाने वाली नीतियां – यहां लॉकडाउन- कृषि गतिविधियों को उतना बाधित नहीं कर पाईं, जितना उन्होंने औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों को किया था.
महामारी के दो सालों में 18 राज्यों पर महामारी के ‘डिफरेंशियल इम्पैक्ट’ के बारे में अध्ययन के निष्कर्षों ने आवाजाही से प्रभावित संकट के समय में राज्य की आर्थिक संरचना के आधार पर अपनी नीतियों को तैयार करने और उन्हें लागू करने वाले राज्यों के महत्व को रेखांकित किया है.
संक्षेप में लेखकों ने संकेत दिया कि वन-साइज-फिट्स-ऑल यानी सभी के लिए एक जैसी नीतियां देश की आर्थिक सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकती हैं.
लेखकों ने लिखा, ‘राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बेहतर जानकारी और समन्वित नीतिगत निर्णयों से इस तरह के बड़े संकट के दौरान आर्थिक गतिविधियों को कम से कम नुकसान पहुंचेगा.’ उन्होंने कहा कि इससे रिकवरी भी तेज होगी.
‘आर्थिक गतिविधि’ को कैसे मापा गया?
राज्यों के ‘विविध आर्थिक प्रक्षेपवक्र’ को मापने के लिए लेखकों ने माल और सेवा कर (जीएसटी), बिजली उत्पादन, रोजगार दर, निर्यात, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम की मांग और पीएम जन धन योजना के तहत खातों में जमा सहित आर्थिक गतिविधियों के विभिन्न संकेतकों को शामिल करते हुए एक इंडेक्स तैयार किया था.
लेखकों ने अलग-अलग संदर्भों के अध्ययन के लिए 18 राज्यों में दो साल – मार्च 2020 से फरवरी 2022 तक– हुई गतिविधियों का इस्तेमाल किया, जिनका डेटा पूरी तरह से उपलब्ध था और जिनकी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 93 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
लेखकों के मुताबिक, इस सूचकांक का सकारात्मक रहना औसत से अधिक आर्थिक गतिविधियों को दर्शाता है और सूचकांक का नकारात्मक होना इसके उलट है.
आर्थिक गतिविधि सूचकांक बताता है कि अप्रैल-मई 2020 में लगा पहला और सबसे सख्त लॉकडाउन, भारत की आर्थिक गतिविधियों के लिए सबसे मुश्किल समय था.
अप्रैल 2020 में 18 राज्यों के लिए औसत आर्थिक गतिविधि सूचकांक स्कोर -2.1 था और उस साल दिसंबर तक यह नकारात्मक रहा.
जब मई 2021 में देश में महामारी की दूसरी लहर आई, तो 18 राज्यों का औसत सकारात्मक था – लगभग – 0.005. हालांकि इस समय में बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात और ओडिशा को छोड़कर अधिकांश राज्यों का औसत नकारात्मक था.
जनवरी-फरवरी 2022 में जब तक ओमिक्रॉन वेरिएंट आया, तब तक आर्थिक गतिविधि सूचकांक सभी राज्यों के लिए सकारात्मक बना रहा. इसका मतलब था कि वे इस प्रभाव का सामना करने में सक्षम थे, हालांकि सफलता की दर सबके लिए अलग-अलग थी.
इस साल फरवरी में औसत स्कोर 0.8 था. कर्नाटक (1.49), बिहार (1.29), ओडिशा (1.28), राजस्थान (1.16), उत्तर प्रदेश (1.09), झारखंड (0.9) हरियाणा (0.89) और गुजरात (0.83) राष्ट्रीय औसत से ऊपर बने रहे. इस समय सूचकांक में सबसे कम स्कोर करने वाले राज्य असम (0.26), केरल (0.34) और तमिलनाडु (0.43) थे.
आंकड़े दर्शाते हैं कि लंबे समय तक लगे प्रतिबंधों ने कुछ राज्यों की आर्थिक गतिविधियों को दूसरों की तुलना में ज्यादा प्रभावित किया था. हालांकि कुछ राज्यों ने निरंतर प्रतिबंधों के बावजूद तेजी से वापसी की. वहीं दूसरे राज्यों को अपने पैर जमाने में काफी समय लग गया.
कोविड ने राज्यों को अलग-अलग तरह से क्यों प्रभावित किया?
यह समझने के लिए कि कोविड -19 प्रतिबंधों का प्रभाव राज्यों पर अलग-अलग कैसे रहा, लेखकों ने उस समय किस तरह की आर्थिक गतिविधियां चल रहीं थी, उसको आवाजाही से जोड़कर देखने का प्रयास किया.
इसके लिए उन्होंने दो चीजों का हिसाब लगाया.
उसमें से एक थी, उस दौरान होने वाली आवाजाही यानी कितने लोग घरों से बाहर निकल रहे थे. इसके लिए उन्होंने Google की कम्युनिटी मोबिलिटी रिपोर्ट के डेटा का इस्तेमाल किया था. कम्युनिटी मोबिलिटी रिपोर्ट अलग-अलग जगहों पर मसलन स्टोर, पार्क, कार्यस्थल, आदि में लोगों की आवाजाही को चार्ट बनाकर रिपोर्ट तैयार करती है. दूसरा थी, राज्य को होने वाली आय में विभिन्न क्षेत्रों का योगदान.
विश्लेषण से पता चला कि आवाजाही ने कृषि गतिविधियों को ज्यादा प्रभावित नहीं किया था. इसका मतलब यह है कि आवाजाही पर लगी रोक से कृषि गतिविधियों को प्रभावित करने की संभावना कम है. अखबार ने कहा कि कृषि क्षेत्र के भीतर, वानिकी और लॉगिंग में शामिल लोगों पर प्रभाव सबसे कम था.
रिपोर्ट के अनुसार, आवाजाही और औद्योगिक गतिविधियों के बीच संबंध काफी गहरा था. जिसका अर्थ है कि आवाजाही पर लगाए गए ज्यादा प्रतिबंध, आर्थिक गतिविधियों को कम कर देते हैं. इसने उन राज्यों पर सबसे ज्यादा असर डाला, जिनकी मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों में हिस्सेदारी काफी ज्यादा है.
पेपर के मुताबिक, खनन और उत्खनन की हिस्सेदारी पर भी आवाजाही पर लगी रोक का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा. और इसलिए प्रतिबंध लगाने की नीति ने इस तरह की इंडस्ट्री पर ज्यादा असर नहीं डाला.
सेवा क्षेत्र के मामले में आंकड़े बताते हैं कि आवाजाही पर लगे प्रतिबंध का असर उन राज्यों पर सबसे ज्यादा पड़ा, जो लोगों के संपर्क में आकर दी जाने वाली सेवाओं पर काफी निर्भर थे, जैसे व्यापार, होटल और ट्रांसपोर्ट.
लेखकों के अनुसार, भारत में अगली बार आपातकाल के उस समय में, जब आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया जाना हो, तो इन निष्कर्षों का इस्तेमाल अपनाए जाने वाले उपायों में किया जा सकता है.
लेखकों ने लिखा, ‘उप-क्षेत्रीय स्तर और आर्थिक संरचना पर इस तरह के बारीक विश्लेषण राष्ट्रीय नीति बनाते समय अपने आर्थिक ढांचे के आधार पर राज्यों द्वारा एक अलग नीति प्रतिक्रिया की जरूरत और महत्व पर जोर देते हैं.’ उन्होंने कहा, यह ‘आर्थिक विकास के पहिये’ को ‘बड़े आर्थिक रुकावटों के बाद तेजी से ठीक होने’ में मदद करेगा.
यह विश्लेषण अर्थशास्त्रियों के निजी विचारों का प्रतिनिधित्व करता है और इसे आरबीआई के आधिकारिक बयान के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए.
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