हैदराबाद: साल 2018 में के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) भाजपा विरोधी, कांग्रेस विरोधी मोर्चे के प्रबल समर्थक थे. इसके चार साल बाद, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के प्रमुख अब अपनी ‘राष्ट्रीय पार्टी’ बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिसके बारे में उन्होंने पहली बार इस साल अप्रैल में अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी के 21 वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान उल्लेख किया था.
पिछले दिनों, 11 सितंबर को, केसीआर ने इस बात की घोषणा की कि वह ‘जल्द ही’ एक राष्ट्रीय पार्टी का शुरुआत करेंगे. उनके कार्यालय से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया था, ‘बहुत जल्द, एक राष्ट्रीय पार्टी का गठन और उसकी नीतियों का निर्माण होगा.’
हालांकि, केसीआर के सहयोगी अभी अंधेरे में हैं क्योंकि उन्होंने अपनी योजना की किसी रूपरेखा के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी है, एक क्षेत्रीय मंच से राष्ट्रीय ताकत के रूप में उभरने के लिए कैसे आगे बढ़ना है, इस बारे में किसी ठोस विवरण की तो बात ही छोड़ दें.
बहुत सारे सवालों का अभी तक कोई जवाब नहीं है: क्या यह एक नई पार्टी होगी जो 2024 के आम चुनाव में विभिन्न राज्यों में चुनाव लड़ेगी? क्या यह तेलंगाना में टीआरएस और अन्य राज्यों में भारतीय राष्ट्र समिति (बीआरएस) वाले नाम की होगी? अन्य क्षेत्रीय दल अपने ही मजबूत गढ़ों में केसीआर की इस ‘राष्ट्रीय पार्टी’ के साथ गठबंधन क्यों करेंगे?
अपनी ओर से, तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने देश भर में विपक्षी नेताओं तक अपनी पहुंच बनाने का काम जारी रखा है, और उनकी सबसे हालिया मुलाकात गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकरसिंह वाघेला के साथ पिछले सप्ताह हुई बैठक है.
टीआरएस के जिन नेताओं से दिप्रिंट ने बात की, वे भी महसूस कर रहे थे कि आगे क्या करने की योजना है, इस बात पर स्पष्टता की कमी है; और उनका कहना था कि इस मामले में पार्टी को अभी तक साथ लिया गया है.
केसीआर के एक करीबी सहयोगी ने दिप्रिंट को बताया, ‘केसीआर अभी भी स्पष्ट नहीं है. जैसे-जैसे चीजें स्पष्ट होंगी, केसीआर राष्ट्रीय भूमिका पर ध्यान देने के साथ एक नई पार्टी शुरू करेंगे. शायद तब टीआरएस बीआरएस का हिस्सा बन जाएगी.’
पूर्व टीआरएस सांसद बी. विनोद ने कहा कि अगले कुछ महीनों में बीआरएस को चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत कराने की योजना है, और यह 2024 तक चुनाव लड़ने की स्थिति में भी होगी. विनोद, जो फिलहाल तेलंगाना राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष हैं, के अनुसार, ‘अन्य राज्यों में किन्हीं अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन बनाने की कोई योजना नहीं है, लेकिन बीआरएस उनके साथ संभावित रूप से ‘सीटों के बंटवारे’ पर विचार कर सकती है.’
विनोद ने कहा, ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29 किसी भी पार्टी को पंजीकृत होने की अनुमति देती है, और हम बीआरएस को भी पंजीकृत करवा सकते हैं. अगर यह विचार अमल में आता है, तो हमारी योजना हमारे क्षितिज का विस्तार करने और अपना नाम टीआरएस से बीआरएस के रूप में बदलने की है. लेकिन हमें अभी भी इस बारे में पार्टी विधायिका की बैठक करने और सभी को इस योजना के पक्ष में शामिल करना बाकी है. अभी तक इसे पूरी पार्टी से मंजूरी नहीं मिली है.’
उन्होंने कहा, ‘हमने अभी तक किसी प्रकार के गठबंधन के बारे में नहीं सोचा है. हमारा विचार टीआरएस को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करना है, और फिर हम चुनाव के समय के हालात के आधार पर अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ अन्य राज्यों में कुछ सीटों का बंटवारा कर सकते हैं.’
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टीआरएस को अभी लंबा रास्ता तय करना है
टीआरएस को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने हेतु तीन संभावित रास्ते हैं. एक तरीका यह होगा कि वह आम चुनावों और राज्य के चुनावों में चार से अधिक राज्यों में वैध मतों का कम से कम 6 प्रतिशत प्राप्त करे, और कम से कम चार लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करे. एक अन्य संभावित मार्ग चार राज्यों में एक राज्य स्तरीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करना होगा. इसी तरह, अगर पार्टी कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों से लोकसभा में 2 प्रतिशत (ग्यारह) सीटें जीतती है तो भी उसके लिए वह दर्जा सुनिश्चित किया जा सकता है.
इसकी उपस्थिति के तेलंगाना तक सीमित होने के कारण, टीआरएस को राष्ट्रीय पार्टी बनने की अपनी ख्वाहिश पूरी करने से पहले एक लम्बा सफर करना बाकी है.
टीआरएस एमएलसी पल्ला राजेश्वर रेड्डी के अनुसार, बीआरएस पहले पड़ोसी राज्यों, जैसे कि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक, में 2024 का चुनाव लड़ने की तरफ ध्यान देगी
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें उम्मीद है कि अगले महीने की शुरुआत में हमारे विधायक दल की बैठक होगी और इसमें बीआरएस के विचार पर भी चर्चा होगी. अगर सभी सहमत होते हैं तो एक महीने के भीतर ही एक राष्ट्रीय पार्टी का गठन हो सकता है. पार्टी समान विचारधारा वाले लोगों, जैसे कि किसान संगठनों, पूर्व नौकरशाहों आदि, का एक संघ होगी. हम इसे लेकर कानूनी चर्चा भी कर रहे हैं. एक बार इसे अंतिम रूप देने के बाद, आगे की चर्चा के लिए आम सभा की एक बैठक भी होगी.’
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, हालांकि टीआरएस कार्यकर्ता केसीआर द्वारा राष्ट्रीय भूमिका ग्रहण करने का समर्थन कर रहे हैं, मगर उनके मन में तेलंगाना राज्य के आंदोलन के साथ सत्ता में आई टीआरएस – अगर यह बीआरएस में विलय हो जाती है तो – के भविष्य के बारे में भी कई सवाल हैं.
टीआरएस एमएलसी टी. भानुप्रसाद राव ने दिप्रिंट को बताया, ‘एक बात बहुत साफ है. हम किसी तरह के गठबंधन के बारे में नहीं सोच रहे हैं, बल्कि केवल अपनी राष्ट्रीय पार्टी पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. अगर कोई इसमें शामिल होना चाहता है तो हम उसका स्वागत करेंगे. यह इस बारे में नहीं है कि अगला प्रधानमंत्री कौन बनने जा रहा है. उसका फैसला तो हम बाद में करेंगे. हमारा विचार हमारी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का है.’
इस बीच, वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक नागेश्वर राव का तर्क है कि क्षेत्रीय दलों के साथ सीटों का बंटवारा व्यावहारिक विकल्प नहीं है.
एक वीडियो में, नागेश्वर राव ने कहा, ‘यहां भ्रमित करने वाली जो बात है वह यह है की अगर केसीआर कर्नाटक में अपनी पार्टी के साथ प्रवेश करते हैं, तो जनता दल (सेक्युलर) के नेता एच.डी. कुमारस्वामी इसके लिए क्यों सहमत होंगे? क्या केसीआर की पार्टी कुमारस्वामी की पार्टी को टक्कर नहीं देगी? जब केसीआर बिहार गए थे तो वहां के उप-मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव एवं मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) नेता नीतीश कुमार ने उन्हें काफी अच्छी और सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी. तो, अगर केसीआर बिहार में चुनाव लड़ते हैं, तो क्या वे उन्हें अपनी सीटें देना ठीक समझेंगे? अगर वे ऐसा करते भी हैं, तो क्या वे तेलंगाना में ऐसी ही उम्मीद नहीं करेंगे? क्या केसीआर जद (यू) या राजद को यहां कुछ सीटें देंगे?’
राष्ट्रीय स्तर पर कोई भूमिका निभाने की केसीआर की महत्वाकांक्षा पिछले चार वर्षों से जानी पहचानी है. इस बारे में उनकी पहली मुलाकात मार्च 2018 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ हुई थी, जहां उन्होंने घोषणा की थी कि एक ‘फेडरल फ्रंट’ बनने जा रहा है.
इन वर्षों में, टीआरएस प्रमुख ने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, जद (एस) के संरक्षक एच डी देवेगौड़ा, झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तथ राजद प्रमुख लालू प्रसाद के साथ भी मुलाकातें की हैं.
इस साल मई में, केसीआर ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, और उनके पंजाब समकक्ष भगवंत मान से चंडीगढ़ में मुलाकात की थी, जहां उन्होंने उन किसानों के परिवारों को चेक सौंपे थे, जिन्होंने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवाई थी.
हालांकि, जैसा कि नागेश्वर राव ने कहा, ‘ये दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ लड़ने और इस हेतु दूसरों का समर्थन करने के लिए तैयार रहती हैं, मगर तभी तक जब तक उनकी अपनी राजनीतिक संभावनाओं को चोट न पहुंचे. लेकिन, एक बार जब उन्हें एहसास हो जाता है कि उनकी अपनी (चुनावी) संभावनाओं को चोट लग रही है, तो वे (दूसरों का) समर्थन नहीं करेंगे. उदाहरण के लिए, कांग्रेस और आप दोनों ही भाजपा विरोधी हैं, लेकिन क्या वे एक साथ आ रहीं हैं? यही हाल तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का भी है. कांग्रेस और केसीआर दोनों ही भाजपा का विरोध करते हैं, लेकिन क्या वे एक साथ काम कर रहे हैं?’
इस राजनीतिक विश्लेषक ने अपने वीडियो में कहा, ‘केसीआर का बीआरएस अभी अपने आप में बड़ा सवाल है. और इनमें से कितने नेता या दल अंत तक केसीआर का समर्थन करेंगे, बशर्ते वह गठबंधन के लिए प्रयास करें, यह भी एक सवाल है; खासकर यह देखते हुए कि इनमें से कुछ नेताओं ने अतीत में भाजपा के समर्थन की कोशिश भी की थी.‘
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