scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशमुस्लिमों से जुड़ी दकियानूसी इमेज को तोड़ने में जुटी हैं इनफ्लूएंसर बाजिज़, 'हिंदू और मुस्लिम, दोनों करते हैं ट्रोल'

मुस्लिमों से जुड़ी दकियानूसी इमेज को तोड़ने में जुटी हैं इनफ्लूएंसर बाजिज़, ‘हिंदू और मुस्लिम, दोनों करते हैं ट्रोल’

भारत में ऐसे इंस्टाग्राम इंफ्लूएंसर कैसे बनें जिससे आप कमजोर और पीड़ित न दिखें? उत्तर प्रदेश की 'दि बाजिज़' शाजमा और सोहा यह काम बाखूबी कर रही हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: भारत में ऐसे इंस्टाग्राम इंफ्लूएंसर कैसे बनें जिससे आप कमजोर और पीड़ित न दिखें? उत्तर प्रदेश की ‘दि बाजिज़’ शाजमा और सोहा यह काम बाखूबी कर रही हैं. वो रील के जरिए अपनी पहचान बना रही हैं और मुसलमानों से जुड़ी एक दकयानूसी छवि को तोड़ने की कोशिश कर रही हैं, जिसमें उर्दू बोलना, गजलें, बिरयानी, ईद की सेवइयां, शेरवानी और आंखों में सुरमा लगाना शामिल है. बाजिज़ सांस्कृतिक बयानबाजी के जरिए एक नजरिया बदल रही हैं.

इन दोनों बहनों, शाजमा (31) और सोहा (28) के लिए तंज़, व्यंग्य और हास्य नाटक एक ‘औजार’ और समाज एक ‘टूटी हुई मूर्ती’ जैसा बन गया है.

शाजमा कहती हैं, ‘हम अपने समुदाय के अंदर और बाहर मुस्लिम महिलाओं से जुड़ी रूढ़िवादी सोच को तोड़ना चाहते हैं. मुस्लिम परिवारों को हमारा कंटेंट देखना चाहिए.’

एक बहुत ही लोकप्रिय रील में टीवी एक्टर शिरीन सेवानी उर्दू बोलने की कोशिश करती हैं जिस तरह से फिल्मों में किया जाता है. रील में सेवानी को एक मुस्लिम परिवार में जाते देखा जा सकता है जहां उनके लिए एक हिजाबी लड़की दरवाजा खोलती है और उनका ‘हाय’ कह कर स्वागत करती है लेकिन शिरीन उसे देख कर काफी एक्साइटेड हो जाती है और कहती हैं, ‘वो क्या कहते हो तुम लोग…हां, याद आया…अस्सलामु अलैकुम चाची जान.’ जब वो घर से जाती हैं तो बॉलीवुड स्टाइल में उच्च दर्जे की उर्दू बोलना शुरू कर देती हैं जैसे – खुदा हाफिज आंटी जान, सलाम वालेकुम, शब्बा खैर आंटी जान, अल्लाह आपका मकबरा बनवाए, आपकी सल्तनत जिंदाबाद, जिल्ल-ए-इलाही जिंदाबाद, खुदा हाफिज आंटी जान…’

शाजमा ने दिप्रिंट से कहा, ‘अपने शुरुआती दिनों में, हमने स्टीरियोटाइप को तोड़ने के बारे में कभी नहीं सोचा था लेकिन यह खुद-ब-खुद हो गया. हमने उस दौरान वीडियो में सिर्फ हमारे रहन-सहन और रीति-रिवाजों के बारे में बातें की थी.’

दि बाजिज़ इंस्टाग्राम पर खूब पॉपुलर हो गईं हैं. उनके फॉलोअर्स उन्हें हर किरदार में या तो स्वीकार करते हैं या फिर ट्रोल. दि बाजिज़ ने अपने फॉलोअर को फुलटाइम इंटरटेनमेंट देने के लिए अपनी नौकरियां तक छोड़ दी हैं और फुल टाइम अपना अकाउंट संभाल रही हैं.

शाजमा पेशे से सोफ्टवेयर इंजिनीयर हैं और सोहा जर्नालिस्ट. उनका सोशल मीडिया हैंडल अब चौबीसों घंटे की चुनौती बन गया है- उन्हें लाखों फॉलोअर्स और एंडोर्समेंट के लिए लगातार काम करते रहना होता है.

वो भले ही मुस्लिम इंफ्लूएंसर हों लेकिन उनके ‘तंज़ निशाना’ समाज का हर एक तबका है. कई बार यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि आखिर वो किस पर निशाना साध रही हैं. अभी कई युवा मुस्लिम महिलाओं की ढेर सारी उम्मीदें बाजिज़ पर बनी हुई है. शाजमा ने अपनी एक रील में दिखाया है कि मां और बेटी लिपस्टिक लगाने को लेकर बहस कर रही हैं. मां शादी से पहले बेटी को लिपस्टिक हटाने के लिए कहती है. वहीं, उसकी शादी के बाद उसे गहरी चटक लाल रंग की लिपस्टिक लगाने के लिए फोर्स करती है. एक और रील में सेवानी शाजमा से पूछती हैं कि वो खाने में क्या लेकर आई हैं? जिसके जवाब में शाजमा कहती हैं, ‘टिंडे की सब्जी.’ लेकिन इसके बाद उन्हें सेवानी जो कहती हैं वो बहुत हैरानी भरा नहीं होता है, ‘तुम लोग कहां वो टिंडे-विंडे खाते होंगे यार…तुम तो वो खाते हो न…कबाब, टिक्का, बिरयानी…’

वीडियो बनाते हुए शाजमा और सोहा | | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: ‘हम सब बेरोजगार हो जाएंगे,’ फ्लैग कोड में बदलाव का कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्ता संघ करता रहेगा विरोध


‘हिंदू और मुस्लिम, दोनों ही हमें टारगेट करते हैं’

आक्रोश से भरे समाज में हास्य दोधारी तलवार बन गया है. बाजिज़ को हिंदुओं, मुसलमानों और यहां तक ​​​​कि रामपुर के लोगों से भी आलोचना का सामना करना पड़ता है, जहां से वो ताल्लुक रखती हैं और अपनी वीडियो में उनकी शैली की नकल करती हैं. रामपुरी बोली, इसे खड़ीबोली के नाम से भी जाना जाता है. यह एक पश्चिमी हिंदी भाषा की किस्म है जो खासतौर से उत्तर-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बोली जाती है. यह पुरानी दिल्ली के लोगों की भाषा से भी मेल खाती है. चांदनी चौक, जामा मस्जिद और चावड़ी बाजार की गलियों में मुस्लिम संस्कृति इस बोलचाल में सिमटी हुई है. इसीलिए बाजिज़ की रील से कई तबके जुड़ाव महसूस करते हैं.

हालांकि, बाजिज़ की कामयाबी ही उनकी कमजोरी बन गई है जिसमें उन्हें जेंडर और धर्म के आधार पर ऑनलाइन ट्रॉलिंग और शोषण का सामना करना पड़ता है. शाजमा कहती हैं, ‘दोनों समुदाय के लोग, हिंदू और मुस्लिम, हमें निशाना बनाते हैं. मुसलमान कहते हैं कि हम इस्लाम के खिलाफ जा रहे हैं.’ सोशल मीडिया पर हिंदू यूजर उनके हिजाब या बुर्का को अपना निशाना बनाते हैं. मुस्लिम यूजर को इस बात पर ऐतराज होता है कि उनके कपड़े रिवीलिंग क्यों हैं? एक यूजर ने उनके फोटो पोस्ट पर कमेंट किया, ‘आपको हिजाब के साथ वेस्टर्न ड्रेस नहीं पहननी चाहिए.’

सोशल मीडिया के अपने शुरुआती दौर में बाजिज़ अपना सिर नहीं ढका करती थीं जब उन्हें इंस्टाग्राम पर ज्यादा अटेंशन मिलने लगी तो उन्होंने हिजाब पहनना शुरू कर दिया. बाजिज़ अपने शब्दों पर जोर देकर कहती हैं ‘यह दबाव से नहीं बल्कि चॉइस से किया गया था. उनका मानना है कि यह उनकी पहचान से जुड़ा हुआ है.

इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर, जिसमें शाजमा की ड्रस से उनके घुटनें नजर आ रहे थे, यह उनके लिए नफरत का शिकार बनने की वजह बना. एक मुस्लिम महिला ने उन्हें मैसेज लिखकर कहा कि उन्हें इस तरह के कपड़े नहीं पहनने चाहिए क्योंकि वह मुस्लिम है. शाजमा अपना अनुभव साझा करते हुए कहती हैं, ‘कुछ मुसलमान अलग तरह की पब्लिक शेमिंग करते हैं. वे कहते हैं कि हम इस्लाम के खिलाफ काम कर रहे हैं और हम बेशर्म हैं.’ एक अन्य यूजर ने भी उन्हें इस्लाम में सजा मिलने की बात कही. उसने कहा, ‘तुम दोनों बहनें सबसे पहले जहन्नुम (नरक) में जाने वाली औरतें होंगी क्योंकि तुम दोनों इस्लाम के खिलाफ जाकर वीडियो बना रही हो.’

गुस्से से भरी आवाज में शाजमा कहती हैं कि ‘हम यहां इस्लाम फैलाने के लिए नहीं हैं. हम किसी को उपदेश नहीं दे रहे हैं. मेरे सोशल मीडिया पोस्ट से हमारे निजी जीवन को मत आंकिए.’

सोहा कहती हैं, ‘समस्या यह है कि हमारे किरदार ज्यादातर मुसलमान होते हैं लेकिन हर जगह लोग एक जैसे ही होते हैं. इसलिए, हम किसी एक समुदाय को टारगेट नहीं कर रहे हैं. हम समाज में मौजूद आम समस्याओं को सिर्फ उजागर कर रहे हैं.’

राज कुंद्रा से प्रेरित होकर पिछले साल करवा चौथ पर बाजियों ने एक इंस्टाग्राम स्टोरी बनाई थी. वीडियो में एक महिला को को चलनी से अपने पति की जगह खाने की चीजें नजर आतीं हैं. इसकी वजह से भी शाजमा और सोहा की काफी ट्रॉलिंग की गई. शाजमा पूछती हैं, ‘अगर राज कुंद्रा ऐसा करते हैं तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होती है लेकिन अगर हम ऐसा कहते हैं तो हमें देशद्रोही कहा जाता है. क्या यह सिर्फ इसलिए कि हम मुसलमान हैं?’ क्रूरता भयानक होती है. ईद-उल-अजहा पर बाजिज़ ने कुर्बानी पर एक वीडियो बनाया. उन्होंने कैप्शन में जिन जानवरों के इमोजी का इस्तेमाल किया, उनमें से एक गाय का प्रतिनिधित्व करती थी. नफरत और धमकियों के कारण उन्हें उसे तुरंत हटाना पड़ा.

कुछ लोगों ने बाजिज़ पर भाषा की नकल करने के लिए रामपुर का मजाक उड़ाने का आरोप लगाया. आलोचना इस आधार पर होती है कि यह बड़े पैमाने पर ‘पिछड़े’ मुसलमानों द्वारा बोली जाती है और महानगरीय क्षेत्रों में गतिमान मुसलमानों के लिए एक ‘शर्मिंदगी’ है जो उस संस्कृति से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि इससे इलीट मुसलमानों को ‘शर्म’ आती है, लेकिन हकीकत में वो छुपते-छुपाते इसमें भी शामिल होते हैं. शाजमा का कहना है, ‘कई लोगों ने हमें जाहिल (अनपढ़) कहा. क्या हमें इससे शर्म आती है? नहीं, यह हमारी भाषा है…हमारी बोली है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए.’

उनके जेंडर को भी कई बार उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है और उनके परिवार में भी पूर्वाग्रह का शिकार हैं. सोहा के मुताबिक उनके कुछ रिश्तेदार उन्हें कहते हैं कि ‘अच्छे घर की महिलाएं ये सब नहीं करतीं.’

शुरुआत के दिनों में, बाजिज़ अपनी वीडियो के पीछे के कारण को समझाने और सफाई देने की कोशिश करती थीं. सोहा आगे कहती हैं, ‘हम बहुत परेशान होते थे लेकिन अब हमने सीख लिया है कि इन लोगों को कैसे संभालना है. अब, ट्रोलर्स हमारे वीडियो के किरदार होते हैं. वे हमें और क्लिप बनाने के लिए कंटेंट देते हैं.’ बाजिज़ के लिए उनका आलोचक भी एक अवसर बन गया है.

शाजमा और सोहा अपने परिवार के समर्थन के कारण नफरत की लहर को झेल पाती हैं. दि बाजिज़ की मां सीमा खान का कहना है, ‘मेरी बेटियां समाज की सच्चाई बता रही हैं.’ वो रूढ़िवाद को मजबूत करने के लिए फिल्म जगत को जिम्मेदार मानती हैं.

The Bajis with their mother, Seema | Manisha Mondal/ThePrint
दि बाजिज़ अपनी मां सीमा के साथ | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

कई बार बाजिज़ को बेहद नाजुक पलों का भी सामना करना पड़ता है.

उनकी करीबी दोस्त कार्तिकी के मुताबिक, बाजिज़ खुद को सेंसर करती हैं. उन्होंने गुस्साई ऑनलाइन भीड़ की वजह से बहुत से इनफ्लीएंसर्स को खुद को सीमित करते देखा है. अब, वे अपने कंटेंट के साथ ज्यादा सावधानी बरतने की कोशिश करते हैं ताकि वे किसी विवाद में न पड़ें. वे ‘विवादित विषयों’ से भी दूर रहते हैं.

सोहा कहती हैं, ‘हमने कई कंटेंट क्रिएटर्स को देखा है जिन्होंने खुद को खुलकर व्यक्त करना बंद कर दिया है. उन्हें देखकर हम भी असुरक्षित महसूस करते हैं. वह बिना किसी डर के कंटेंट बनाने की स्वतंत्रता की इच्छा जाहिर करतीं हैं.


यह भी पढ़ें: SC से छत्तीसगढ़ के ‘फर्जी एनकाउंटर’ की जांच अपील खारिज होने पर हिमांशु कुमार ने कहा- जुर्माना नहीं, जेल भरेंगे


लॉकडाउन में वायरल हुईं

शाजमा और सोहा को अचानक से प्रसिद्धि मिली है.

2020 में, लॉकडाउन के दौरान, सीमा खान को यूट्यूब पर कुश कपिला और डॉली सिंह की बेहेन्सप्लेनिंग दिखाई दी. उन्होंने देखा कि उनका कंटेंट भी कुछ-कुछ वैसा ही है जैसा कि उनकी बेटियां रामपुरी-शैली की घर में नकल करती हैं. उन्होंने अपनी बेटियों से लॉकडाउन के दौरान वीडियो बनाने को कहा. और बाजिज़ ने मुस्लिम महिलाओं पर ठेठ रामपुरी शैली में आपस में बात करते हुए एक छोटी सी वीडियो बनाई. जिसमें सोहा अपनी कई बीमारियों के बारे में शिकायत करते हुए ओर शाजमा अपनी छह बेटियों की शादी करने की जिम्मेदारी को लेकर बात करते नजर आती हैं. सीमा ने इसे व्हाट्सएप पर शेयर किया और कुछ ही दिनों में यह वायरल हो गया.

सीमा बताती हैं ‘लोगों ने इस तरह के और वीडियो की मांग की, लेकिन सिर्फ लॉकडाउन के कारण.’ अपनी सफलता से उत्साहित शाजमा और सोहा ने फेसबुक पर ‘दि बाजीज़’ के नाम से और वीडियो डालना शुरू कर दिया. अपने पहले महीने में, उन्हें 50,000 बार देखा गया, लेकिन तीन महीने से भी कम समय में, इसकी संख्या बढ़कर 1,10,000 से ज्यादा हो गई. हालांकि, शाजमा और सोहा को सोशल मीडिया का इस्तेमाल शुरू किए तीन साल से भी कम समय हुआ है – पहले फेसबुक पर और फिर इंस्टाग्राम पर -लेकिन उनके 2,30,000 से ज्यादा फैन्स हैं. उनकी रील्स को अक्सर लाखों में व्यूज मिलते हैं. बाजिज़ ने ‘क्लीन’ और ‘रिलेटेबल’ कंटेंट के साथ समाज को आईना दिखाने का काम शुरू किया है.

सोशल मीडिया पर मुसलमान

पिछले कुछ सालों में, ज्यादा से ज्यादा मुसलमानों ने सोशल मीडिया पर सक्रिय भागीदार दिखाई है. कई लोग अपने समुदायों से जुड़ी रूढ़ियों को तोड़ने और नफरत से निपटने के लिए मजबूर महसूस करते हैं. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के एक सर्वे में पाया गया कि भारत में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा मुस्लिम समुदाय सोशल मीडिया के इस्तेमाल के मामले में उच्च जातियों के बाद दूसरे स्थान पर है.

सोशल मीडिया पर हिजाब पहनने वाली महिलाएं लगातार कई तरह का कंटेंट बना रही हैं और इस मामले में उनकी भागीदारी में भी बढ़ोतरी हुई है. वो मेकअप और फैशन टिप्स देने से लेकर स्टंट तक कर रही हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक छात्र सलोनी गौर ने हिजाबी नजमा अप्पी नाम के बेहद लोकप्रिय किरदार को निभाया था , जो दिल्ली के प्रदूषण के स्तर से लेकर नागरिकता (संशोधन) अधिनियम तक के विषयों पर बात करती थी.

बाजिज़ क्या पहनना पसंद करती हैं यह एक सोच-समझकर लिया गया फैसला है. सोहा कहती हैं, ‘मोडेस्ट कपड़े पहनना और उसमें कंटेंट बनाना हमें भीड़ से अलग खड़े होने में मदद करता है. यहां तक ​​कि इवेंट्स में भी, को-क्रिएटर्स हमारे हिजाब के साथ कंटेंट क्रिएटर्स की दुनिया का हिस्सा बनने की सराहना करते हैं.’


यह भी पढ़ें: उर्दू प्रेस ने SC द्वारा नुपुर शर्मा की निंदा को भारतीय मुसलमानों की मानसिक स्थिति की झलक बताया


पीआर, बॉलीवुड, अमेज़ॉन और कंटेंट क्रिएशन

सोहा और शाजमा कंटेंट क्रिएशन को एक प्रोफेशन के तौर देखती हैं. अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल को मैनेज करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ना एक व्यावसायिक निर्णय था. वे कहती हैं कि वो अब ज्यादा पैसा कमाती हैं.

बाजीज ने अमेज़ॉन, अनअकैडमी और मामाअर्थ जैसे ब्रांड्स का पीआर किया है. बॉलीवुड भी अक्सर उनके दरवाजे पर दस्तक देता है. उन्हें लाल सिंह चड्ढा (2022) और शमशेरा (2022) जैसी फिल्मों के लिए पीआर करने के लिए चुना गया था.

इंस्टाग्राम मार्केटिंग एकस्पर्ट प्रत्यूषा मूलचंदानी के बताती हैं, जिन ब्रांड्स को बाजिज़ के साथ काम करना उचित लगता है, वे खासतौर से ओटीटी प्लेटफॉर्म, स्किनकेयर, मेकअप ब्रांड्स और प्रोडक्शन हाउस हैं जो अपनी फिल्मों का प्रचार करना चाहते हैं. वो कहती हैं, ‘एनटरटेंमेंट के रूप में, उन्हें महिलाओं की एक बड़ी तादाद फॉलो करती है हैं, जो उनके और ब्रांड्स के लिए बेस्ट है.’

GroupM INCA की इंडिया इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग रिपोर्ट ने इस उद्योग के 2021 के अंत तक 900 करोड़ रुपए की रकम तक पहुंचने का अनुमान लगाया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग के 25 प्रतिशत के कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (सीएजीआर) की बढ़त से साल 2025 तक 2,200 करोड़ का उद्योग बनने की उम्मीद है.

बाजिज़ सोशल मीडिया के लचीली संरचना से अवगत हैं, लेकिन उनका कहना है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कंटेंट  कंटेंट क्रिएशन के मामले में लोकतंत्रिक हैं. यहां हमेशा सब कुछ अच्छा नहीं होता है, इस ‘धूप और छांव’ की स्थिति में बाजिज़ दूसरे प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए तैयार हैं.

सोही कहती हैं, ‘हमें अक्सर ज्यादा ग्लैमरस और फैशन-फॉरवर्ड बनने के लिए कहा जाता है. ‘इस वजह से कई बार ब्रांड हमें काम नहीं देते. कुछ कंपनियों ने कहा है कि हमारा कंटेंट ‘जेन जी’ नहीं है.’

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘मारना ही है तो मुझे, बच्चों और खालिद को एक ही बार में मार दो’- ‘राजनीतिक कैदियों’ के परिवारों को क्या झेलना पड़ता है


share & View comments