समरकंद, उज्बेकिस्तान: शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की राष्ट्राध्यक्षों के प्रमुखों की बैठक के एजेंडे में अफगानिस्तान की सबसे अधिक चर्चा होने के बावजूद, काबुल में तालिबान नेतृत्व को कुछ सदस्य देशों के विरोध के कारण सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
पिछले एक साल में उज्बेकिस्तान की अध्यक्षता में चीन के नेतृत्व वाले एससीओ ने तालिबान से निपटने के तरीकों पर कई बार विचार-विमर्श किया है. तालिबान जिसने अगस्त, 2021 में अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया था. हालांकि, जब मुख्य शिखर सम्मेलन की मेजबानी उज्बेकिस्तान कर रहा है तो, यह निर्णय लिया गया कि तालिबान के किसी भी प्रतिनिधि को आमंत्रित नहीं किया जाएगा.
उज्बेकिस्तान के समरकंद में गुरुवार से शुरू हो रहे एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले तालिबान को आमंत्रित करने या न करने का मामला कई महीनों से चर्चा में था. राजनयिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि कुछ देश चाहते थे कि तालिबान को इस साल महत्वपूर्ण एससीओ शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया जाए, जबकि अन्य ने तालिबान को लेकर अपने विचारों को बदलने से इनकार कर दिया.
भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान एससीओ के पूर्ण सदस्य हैं. चार देशों – अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया – को ऑब्जर्वर का दर्जा प्राप्त है, और छह देशों – अजरबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका – को डायलॉग पार्टनर का दर्जा मिला हुआ है. इस शिखर सम्मेलन में ईरान पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुआ है.
सूत्रों के अनुसार, बहुपक्षीय संगठन होने के कारण एससीओ तालिबान को आमंत्रित करने के किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका. इसका मुख्य कारण तालिबान की वैधता और अंतरराष्ट्रीय मान्यता का मुद्दा था, जिसे लेकर सदस्य देशों के बीच एक हिचकिचाहट थी.
इसके अलावा कुछ सदस्य देशों ने यह भी मुद्दा उठाया कि शिखर सम्मेलन राष्ट्र प्रमुखों का है. इसका मतलब है कि तालिबान सरकार के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को आमंत्रित करना होगा, जो कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित हैं.
उज्बेकिस्तान के एससीओ के राष्ट्रीय समन्वयक रहमतुल्ला नुरिंबेटोव ने बुधवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘पिछले साल हुई घटनाओं के कारण इस साल के शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान से कोई भी उपस्थित नहीं होगा … एससीओ, एक बहुपक्षीय संगठन के रूप में अफगानिस्तान के साथ सीधे संबंधों का समर्थन नहीं करता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि देश निजी तौर पर (तालिबान के साथ) संबंध नहीं रख सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘अफगानिस्तान (बैठक में) का मौजूद न होने का मतलब यह नहीं है कि उनके मुद्दों को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी. देश अफगानिस्तान पर अपनी स्थिति का विस्तार से वर्णन करेंगे और उन सभी मुद्दों पर चर्चा की जाएगी जिन पर पिछले साल चर्चा हुई थी.’
दिलचस्प बात यह है कि एससीओ शिखर सम्मेलन से कुछ ही दिन पहले उज़्बेक राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव ने एक OpEd में लिखा था कि अफगानिस्तान ‘बड़े एससीओ संगठन का अभिन्न अंग’ है.
उन्होंने लिखा, ‘अफगान के लोगों को अब पहले से कहीं ज्यादा अच्छे पड़ोसियों और उनके समर्थन की जरूरत है. यह हमारा नैतिक दायित्व है कि हम मदद के लिए हाथ बढ़ाएं. देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर, क्षेत्रीय और वैश्विक विकास प्रक्रियाओं में इसके एकीकरण को बढ़ावा देकर, उन्हें वर्षों से चले आ रहे संकट से उबरने के प्रभावी तरीके प्रदान करें.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अफ़ग़ानिस्तान जिसने सदियों से वैश्विक और क्षेत्रीय शक्तियों के ऐतिहासिक टकराव में एक बफर की भूमिका निभाई है, उसे मध्य और दक्षिण एशिया को जोड़ने के एक नए शांतिपूर्ण मिशन पर प्रयास करना चाहिए.’
मध्य एशिया के भीतर उज्बेकिस्तान के अलावा, तुर्कमेनिस्तान और किर्गिस्तान ने तालिबान के साथ संपर्क बनाए रखा है. जबकि कजाकिस्तान और ताजिकिस्तान ने खुले तौर पर तालिबान का समर्थन नहीं किया है. नूर-सुल्तान ने काबुल के साथ व्यापार संबंधों की मांग की है, लेकिन ताजिकिस्तान के साथ अफगानिस्तान से मादक पदार्थों की तस्करी के मुद्दे के कारण संबंधों में खटास आ गई.
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‘तालिबान को अलग-थलग नहीं करने की उज़्बेक नीति’
सूत्रों ने जानकारी दी कि एससीओ शिखर सम्मेलन, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भाग ले रहें हैं, दो दिवसीय सम्मेलन है. इस दौरान अफगानिस्तान की मुख्य एजेंडा में से एक के रूप में चर्चा की जाएगी, यहां तक कि उस युद्धग्रस्त देश की मौजूदा स्थिति का आउटकम डॉक्युमेंट में प्रमुख रूप से उल्लेख किया जाएगा.
भारत, जो तालिबान में रुचि दिखा रहा है, ने पहली बार भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान अफगानिस्तान संकट पर चर्चा की थी. यह सम्मेलन जनवरी 2022 में हुआ था.
उज्बेकिस्तान में भारत के राजदूत मनीष प्रभात ने दिप्रिंट को बताया, ‘पूरे मध्य एशिया के अलावा, द्विपक्षीय रूप से भी भारत उज्बेकिस्तान के साथ अफगानिस्तान के मुद्दे पर चर्चा कर रहा है. उज्बेकिस्तान अफगानिस्तान के साथ एक भूमि सीमा साझा करता है. इसलिए अफगानिस्तान में जो होता है, वह सीधे मध्य एशिया पर प्रभाव डालता है. हम जानते हैं कि अफगानिस्तान के अपने पड़ोसी देश ताजिकिस्तान के साथ जटिल संबंध हैं. अफगानिस्तान में उज्बेकिस्तान ने तालिबान के साथ कामकाजी संबंध रखने की भूमिका निभाने की कोशिश की है.’
प्रभात ने यह भी कहा कि जहां तक अफगानों के लिए मानवीय सहायता का संबंध है, उज्बेकों की नीति ‘तालिबान को अलग-थलग न करने की कोशिश करना और काम करने के अवसर देना, उनके साथ जुड़ना’ है. और साथ ही ‘एक समावेशी सरकार बनाने और महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बनाए रखने में तालिबान के साथ जुड़ना’ भी है.
उज्बेकिस्तान की एससीओ की अध्यक्षता इस महीने खत्म हो रही है. अपनी अध्यक्षता के दौरान जुलाई में उज्बेकिस्तान ने अफगानिस्तान पर एक महत्वपूर्ण सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें तालिबान को आमंत्रित किया गया था. कई देशों ने इस बैठक में भाग लिया था और इस बात की पुष्टि की गई थी कि अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाएगा.
तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने गुरुवार को अफगानिस्तान पर राष्ट्रपति मिर्जियोयेव के रुख को ‘दोस्ताना और सहानुभूतिपूर्ण’ बताया.
د افغانستان په اړه د ازبیکستان د محترم ولسمشر ښاغلي شوکت میرضايوف موقف ګیرۍ دوستانه او دلسوزانه ده.
اسلامي امارت د ازبیکستان له دغه موقف څخه ستاینه کوي او د دواوړ وروڼو هېوادونو د ښه با اعتماده، ارام او با ثباته راتلونکي نښه یې بولي. ان شاءالله— Zabihullah (..ذبـــــیح الله م ) (@Zabehulah_M33) September 14, 2022
मुजाहिद ने कहा, ‘अफगानिस्तान का इस्लामी अमीरात उज्बेकिस्तान के भाईचारे के इस रुख की प्रशंसा करता है और इसे दोनों देशों के लिए एक विश्वसनीय, शांत और स्थिर भविष्य मानता है.’
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