नई दिल्ली: पश्चिमी अंटार्कटिका में स्थित थ्वाइट्स ग्लेशियर ‘अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है’, ऐसा उन वैज्ञानिकों का कहना है, जिन्होंने इस ग्लेशियर के अग्रणी सिरे (सामने वाले सिरे) के एक अहम क्षेत्र की हाई-रिज़ॉल्यूशन मैपिंग यह समझने के लिए की है कि यह कितनी तेजी से पीछे हट (या सिकुड़) रहा है.
बर्फ की यह विशालकाय धारा पहले से ही तेजी से पीछे हटने वाले चरण में है, जिससे इस बारे में बड़े पैमाने पर चिंता पैदा हो गई है कि यह कितनी तेजी से अपनी बर्फ को समुद्र में छोड़ सकता है.
एक अनुमान के मुताबिक थ्वाइट्स के सिकुड़ने से समुद्र तल का स्तर 3 से 10 फीट तक बढ़ सकता है.
दक्षिण फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने उन भूगर्भीय संरचनाओं की पहचान की जो विज्ञान जगत के लिए एकदम नई हैं. ये थ्वाइट्स के भविष्य के बारे में भी अहम जानकारी प्रदान करते हैं.
टीम ने 160 से अधिक समानांतर मेड़ों (रिजेज) का दस्तावेजीकरण किया, जो ग्लेशियर के अग्रणी सिरे के पीछे हटने और दैनिक लहरों के साथ ऊपर और नीचे की ओर उग आई हैं. टीम का कहना है कि अगले कुछ वर्षों में थ्वाइट्स में कई बड़े बदलाव होने की संभावना है. अधिक पढ़ने के लिए यहां क्लिक करे.
यह भी पढ़ें: हेडर्स के मामले में न्यूरोलॉजिस्ट्स एकमत, माना कि इससे फुटबॉल खिलाड़ियों को लंबे समय में होता है नुकसान
चिकित्सा प्रक्रियाओं की कायापलट कर सकता है यह नया गणितीय समीकरण
वैज्ञानिकों ने एक नया गणितीय समीकरण विकसित किया है जो यह बताता है कि सूक्ष्म कण कैसे संचरण करते हैं और यह आने वाले भविष्य में चिकित्स्कीय प्रक्रियाओं, प्राकृतिक गैस को निकाले जाने और प्लास्टिक पैकेजिंग के उत्पादन जैसे कार्यों की कायापलट कर सकता है.
ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस नए समीकरण को अभूतपूर्व बताया जा रहा है. यह पहली बार पारगम्य सामग्री के माध्यम से कणों की विसरित गति (डिफ्फुसीव मूवमेंट) का वर्णन करता है.
यह विश्व के अग्रणी भौतिकविदों, अल्बर्ट आइंस्टीन और मैरियन वॉन स्मोलुचोव्स्की, द्वारा पहला किसरण समीकरण प्राप्त करने के लगभग एक सदी बाद आया है और सूक्ष्म कणों एवं प्राकृतिक जीवों से लेकर मानव निर्मित उपकरणों तक की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए गति का प्रतिनिधित्व करने में महत्वपूर्ण प्रगति दर्शाता है.
अब तक, जैविक ऊतकों, पॉलिमर, विभिन्न चट्टानों और स्पंज जैसे पोरस मटेरियल (छोटे छेदों वाला पदार्थों) के माध्यम से कणों के गुजरने की गति को देखने वाले वैज्ञानिकों को इसके लिए अनुमानों या अपूर्ण परिप्रेक्ष्य पर निर्भर रहना पड़ता था.
इस नए समीकरण का स्वास्थ्य, ऊर्जा और खाद्य उद्योग सहित विभिन्न प्रकार के समायोजन में प्रयोग हो सकता है. अधिक पढ़ने के लिए यहां क्लिक करे.
यह भी पढ़ें: शो रद्द होने पर VHP को लेकर कुणाल कामरा ने कहा- कहीं तुम गोडसे को भगवान तो नहीं मानते?
जर्मनी में पाई गई नई डायनासोर प्रजाति
जर्मनी में वैज्ञानिकों ने शाकाहारी डायनासोर की एक नई प्रजाति की खोज की है जो लगभग 203 से 211 मिलियन वर्ष पहले इस क्षेत्र में रहता था और जिसे अब स्वाबियन एल्ब के नाम से जाना जाता है.
टूइबिंगोसौरस मैएरफ्रिट्ज़ोरूम नाम की यह नई प्रजाति, लंबी गर्दन वाले उन डायनासोर के साथ समानताएं प्रदर्शित करती है, जिन्हें सौरोपोड्स के रूप में जाना जाता है. इसकी पहचान तब की गई जब टुबिंगन विश्वविद्यालय में जीवाश्म विज्ञानियों द्वारा पहले से ही ज्ञात एक डायनासोर प्रजाति की हड्डियों की फिर से जांच की गई.
ये जीवाश्म, जो टुबिंगन के पेलियोन्टोलॉजिकल संग्रह का हिस्सा हैं, पहले प्लेटोसॉरिडे के अवशेष के रूप में वर्णित किये गए थे.
अधिकांश जीवाश्म स्वाबियन एल्ब के किनारे स्थित ट्रोसिंगेन के पास एक खदान से मिलते हैं, जहां 19वीं शताब्दी के बाद से पाए जाने वाले कई डायनासोर की हड्डियों को अक्सर प्लेटोसॉरस के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
जब इन वैज्ञानिकों 1922 में ट्रॉसिंगेन में खोजे गए एक कंकाल, जिसमें मुख्य रूप से शरीर का पिछला हिस्सा शामिल था, का फिर से विश्लेषण किया तो उन्होंने यह साबित कर दिया कि इनमें से कई हड्डियां किसी आम प्लेटोसॉरस के समान नहीं थीं.
उदाहरण के लिए, अन्य पहले से प्राप्त विशेषताओं के बीच इस आंशिक कंकाल ने जुड़े हुए सेक्रल वेर्टेब्रे के साथ अधिक चौड़े और अधिक दृढ़ता से निर्मित कूल्हों के साथ-साथ असामान्य रूप से बड़ी और मजबूत लंबी हड्डियों की उपस्थिति प्रदर्शित की. इन दोनों विशेषताओं में चार पैरों पर हरकत किये जाने के प्रमाण निहित हैं.
सभी शारीरिक विशेषताओं की गहन तुलना के बाद वैज्ञानिकों ने ट्रोसिंगेन से मिले इस आंशिक कंकाल को डायनासोर प्रजाति के जीवन वृक्ष में फिर से वर्गीकृत किया और इस तरह साबित किया कि उन्होंने पहले से अज्ञात एक नई प्रजाति और जीनस (वंश) की खोज की है.
इस अध्ययन को वर्टेब्रेट जूलॉजी पत्रिका में प्रकाशित किया गया था. अधिक पढ़ने के लिए यहां क्लिक करे.
यह भी पढ़ें: सारे मसाले, बेहिसाब स्पेशल इफेक्ट, आधा दर्जन सुपरस्टार लेकिन ‘ब्रह्मास्त्र’ में स्टोरी कहां है
सोलर ऑर्बिटर ने दी कोरोनल मास इजेक्शन के बारे में एक नई अंतर्दृष्टि
हाल ही में सूर्य से एक बड़ा कोरोनल मास इजेक्शन शुक्र की दिशा में दागा गया और यह ईएसए-नासा सोलर ऑर्बिटर से भी टकराया, जिससे पता चलता है कि सौर तूफान अंतरिक्ष के वातावरण को बदल देता है.
ऑर्बिटर द्वारा वापस भेजे गए डेटा से पता चलता है कि अंतरिक्ष के मौसम और आकाशीय पिंडों एवं अंतरिक्ष यान पर इसके प्रभावों की निगरानी करना क्यों महत्वपूर्ण है.
कोरोनल मास इजेक्शन सूर्य के कोरोना से प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र के बड़े पैमाने पर निकलने की घटना को कहा जाता है
वैसे इस अंतरिक्ष यान पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि इस सौर वेधशाला को सूर्य से निकलने वाले प्रचंड आवेग का सामना करने और इसे मापने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
कोरोनल मास इजेक्शन ने शुक्र से उसके गैसों वाला वातावरण को छीन लिया है और यही एक कारण है कि इस ग्रह को जीवन के लिए अनुपयुक्त माना जाता है.
सोलर ऑर्बिटर सूर्य पर करीब से नजर डालने और उसके रहस्यमयी ध्रुवों को देखने के अपने दशक भर के मिशन का एक चौथाई हिस्सा पूरा कर चुका है.
इसकी कक्षा को शुक्र के साथ निकटता के साथ चुना गया था, जिसका अर्थ है कि यह अपनी कक्षा को बदलने या इसमें झुकने के लिए शुक्र के गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करने हेतु अपनी कक्षा के हरेक कुछ चक्करों में इस ग्रह के आसपास के क्षेत्र में लौटता है.
सोलर ऑर्बिटर द्वारा सौर तूफान का सामना किये जाने के बाद वापस भेजा गया डेटा यह दिखाता है कि एक बड़े कोरोनल मास इजेक्शन के इसके ऊपर से गुजर जाने से बाद इसका (शुक्र ग्रह का) स्थानीय वातावरण कैसे बदल गया है. अधिक पढ़ने के लिए यहां क्लिक करे.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘हीरे तो सस्ती चीज हैं’, इमरान खान तो सबसे ताकतवर संस्था का वर्चस्व तोड़ने का इरादा रखते हैं