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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशआर्म्स केस में जेल जाने के 10 साल बाद अभिषेक वर्मा दिल्ली के बड़े व्यवसायी के रूप में फिर आया सामने

आर्म्स केस में जेल जाने के 10 साल बाद अभिषेक वर्मा दिल्ली के बड़े व्यवसायी के रूप में फिर आया सामने

उसके खिलाफ दर्ज 7 मुक़दमों में से 3 में वर्मा बरी हो गया, और 4 अभी चल रहे हैं. उसका दावा है कि सभी मामले ‘राजनीति से प्रेरित’ थे, और अब वो ख़ुद को एक कारोबारी के रूप में फिर से ब्राण्ड करने की कोशिश कर रहा है.

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नई दिल्ली: एक रॉल्स रॉयस फ्रेम में दाख़िल होती है, ऑटोमेटिक हथियार लिए हुए तीन वर्दीधारी पुलिस अधिकारी इसमें बैठे व्यक्ति की सुरक्षा में तैनात हैं. सोशल मीडिया पर आप गैट्सबी जैसे इस व्यक्ति के ऐसे बहुत से वीडियो देख सकते हैं, लग्ज़री घड़ियों का दिखावा करते, महंगे सिगार पीते, और महंगी-चमकदार पार्टियों की मेज़बानी करके बेली डांसर्स के ज़रिए मेहमानों का मनोरंजन करते हुए.

अभिषेक वर्मा, जिसे कभी ‘लॉर्ड ऑफ वॉर’ के नाम से जाना-जाने लगा था और उसकी पत्नी- रोमानिया की पूर्व मॉडल एंका वर्मा, अपनी विलासितापूर्ण जीवन शैली को छिपाकर नहीं रखते, भले ही उनके ऊपर ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के उल्लंघन, और मनी लॉण्डरिंग जैसे आरोप लगे हों.

दस साल पहले ब्लैकलिस्ट किए हुए स्विस डिफेंस सप्लायर रेनमेटल एयर डिफेंस से मिले भुगतान को इधर-उधर करने के सनसनीख़ेज़ आरोपों में गिरफ्तार होने के बाद, वर्मा अब ख़ुद की एक व्यवसायी के तौर पर फिर से ब्राण्डिंग करने की कोशिश कर रहा है. और उसकी योजनाओं के केंद्र में है ओलियालिया नाम की एक कंपनी, जिसकी रुचि तंबाकू और कोला से लेकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे तक में है.

उसके खिलाफ दर्ज सात मामलों में से तीन मामलों में वर्मा को बरी किया जा चुका है और बाक़ी चार में अभी मुक़दमा चल रहा है. इनमें सातों मुकदमों में से पांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने और दो प्रवर्त्तन निदेशालय (ईडी) ने दर्ज किया था.

ये दावा करते हुए कि उसके खिलाफ सभी मामले ‘झूठे’ हैं, वर्मा ने दिप्रिंट से कहा कि ‘राजनीति से प्रेरित’ ये मुक़दमे कांग्रेस में उसके कुछ राजनीतिक विरोधियों की ओर से दायर कराए गए थे.

उसकी मां वीणा वर्मा तीन बार की पूर्व राज्यसभा सांसद हैं, जबकि उसके पिता कवि श्रीकांत वर्मा एक कांग्रेस नेता थे, जो मध्य प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य भी रहे थे.


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अंधेरा अतीत

केंद्रीय एजेंसियों से वर्मा का वास्ता 1999 में पड़ना शुरू हुआ, जब ईडी ने उस पर विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेरा) के अंतर्गत मुक़दमा क़ायम किया. वर्मा पर आरोप था कि उसने बैंक ऑफ इंडिया के एक खाते का इस्तेमाल करते हुए, 1991 से 1992 के बीच ऐसे व्यक्तियों के साथ विदेशी मुद्दा की ख़रीद फरोख़्त का काम किया जो अधिकृत डीलर नहीं थे. इस केस में अभी भी मुक़दमा चल रहा है.

अक्तूबर 2005 में, चार साल तक चली सौदेबाज़ी के बाद, भारत ने फ्रांसीसी कंपनी थेल्स से छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियां ख़रीदने के लिए, हथियारों की ख़रीद के अपने एक सबसे बड़े क़रार पर दस्तख़त किए. 2006 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने संसद के भीतर वर्मा पर आरोप लगाया कि इस सौदे में दलाल के तौर पर उसने थेल्स कंपनी से 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर की रिश्वत वसूल की थी. वर्मा ने तब आरोपों से इनकार किया था और बीजेपी नेता एलके आडवाणी के खिलाफ एक मानहानि का मुक़दमा दायर किया था.

2009 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, कि वो वर्मा और पनडुब्बी सौदे के बीच कोई संबंध स्थापित नहीं कर पाई है. ईडी भी, जो समझती थी कि वर्मा ने लिक्टेंस्टाइन में अपने खाते रखे हुए हैं, उन तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो सकी.

2006 में, नौसेना वार रूम लीक मामला दर्ज किया गया, जिसमें नौसेना वार रूम और भारतीय वायुसेना मुख्यालय से कथित तौर पर 7,000 पन्नों की संवेदनशील जानकारी लीक हुई थी. वर्मा को उसी साल इस मामले में गिरफ्तार कर लिया गया और दो साल जेल में बिताने के बाद उसे ज़मानत मिली. इस केस में अभी भी मुक़दमा लंबित है.

2012 में वर्मा पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक और मुक़दमा दर्ज किया गया- जो अभी भी चल रहा है- जिसमें उस पर तत्कालीन गृह राज्यमंत्री (एमओएस) अजय माकन के फर्ज़ी लैटरहेड पर, प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखने का आरोप लगाया गया था, जिसमें बिज़नेस वीज़ा नियमों को आसान करने का अनुरोध किया गया था.

जून 2012 में वर्मा को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और उस पर आरोप था कि उसने कथित रूप से रेनमेटल एयर डिफेंस से 5,30,000 अमेरिकी डॉलर्स लिए थे, जिसके एवज़ में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) घोटाले के बाद भारत सरकार की ओर से स्विस कंपनी के खिलाफ शुरू की गई ब्लैकलिस्टिंग कार्रवाई को रुकवाने का आश्वासन दिया था. 2017 में उसे इस केस में बरी कर दिया गया. उसी साल उसे 2012 में ईडी द्वारा दर्ज किए गए मनी लॉण्डरिंग मामले में भी बरी कर दिया गया.

कथित तौर पर रक्षा मंत्रालय के कुछ गोपनीय दस्तावेज़ अपने कब्ज़े में रखने के आरोप में, वर्मा पर 2012 में ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया. इन दस्तावेज़ों में वायुसेना की ख़रीद योजनाओं से जुड़ी फाइलें, और रक्षा ख़रीद परिषद की एक बैठक के मिनट्स शामिल थे.

उसके खिलाफ केस एमओडी की औपचारिक शिकायत के बाद दर्ज किया गया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वर्मा के अलग हो चुके अमेरिका-स्थित बिज़नेस पार्टनर द्वारा साझी किए गए दस्तावेज़ गोपनीय थे, और उन्हें अपने पास रखना ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट का उल्लंघन था. ये मुक़दमा भी अभी चल रहा है.

लेकिन वर्मा अपनी बात पर क़ायम है कि वो कभी किसी रक्षा सौदे से जुड़ा नहीं रहा. उसने कहा, ‘मेरा कभी रक्षा सौदों से कोई लेना-देना नहीं रहा. हमारे पास संचार परियोजनाएं थीं और वो बीएसएनएल के साथ थीं. हमने एमओडी के साथ कोई समझौता नहीं किया था, हम सिर्फ बीएसएनएल को उपकरण सप्लाई करते थे, और उसी के साथ कारोबार करते थे’.

ये आरोप लगाते हुए कि उनके खिलाफ दर्ज सारे मामले राजनीतिक प्रतिशोध का नतीजा थे, वर्मा ने कहा, ‘हमारे ऊपर तमाम तरह के झूठे आरोप लगाए गए, जिनमें से सभी में हम बरी होकर रिहा हो गए और कुल मिलाकर जो तीनों मामले लंबित हैं, उनमें गवाह आगे आए हैं और मुझे किसी ग़लत काम का ज़िम्मेवार नहीं ठहराया गया है.’

उसने आगे कहा, ‘ओएसए केस में, मुझ पर कुछ साबित नहीं हुआ है और दस्तावेज़ों के बारे में सभी गवाहों ने कहा है कि वो दस्तावेज़ गोपनीय नहीं हैं. गवाहों के बयानों में बात मौजूद है.’


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तिहाड़ जेल का कार्यकाल

एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि 2006 से 2008, और फिर 2012 से 2016 के बीच तिहाड़ जेल के अपने कार्यकाल के दौरान वर्मा के पास ‘सब कुछ था, बाहर के खाने से लेकर महंगे कपड़ों तक.’

सूत्र ने आगे कहा, ‘एक बार छापेमारी के दौरान, जेल अधिकारियों ने बहुत सारे ब्राण्डेड कपड़े बरामद किए थे. बल्कि एक बार तो एक जेल अधिकारी को वर्मा के सेल के अंदर होने जा रही तलाशी के बारे में पता चल गया और उसने वर्मा को सतर्क कर दिया, जिससे ज़ब्ती पर असर पड़ा था.’

वर्मा ने इस बात से इनकार किया कि उसके साथ कोई विशेष बर्ताव हुआ था और उसने कहा कि इस मामले की जांच में पता चला था कि उसने कोई नियम नहीं तोड़े थे. ‘अमेरिका में मेरे पूर्व अटॉर्नी सी एडमण्स एलन ने पीएम मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर ये आरोप लगाए थे, और इनकी जांच हुई थी. लेकिन जांच में पाया गया कि तिहाड़ में किसी सुविधा का दुरुपयोग नहीं हुआ था’.

वर्मा ने कहा, ‘मेरे पास कभी बाहर से खाना नहीं आया, सिवाय मेडिकल डायट के जो तिहाड़ के डॉक्टरों ने बताई थी’. उसने आगे कहा कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की अनुमति से, उसके लिए तिहाड़ में अलग से ‘बिना मिर्च’ का खाना पकाया जाता था.

उसने कहा, ‘मैं ध्यान लगाने के लिए विपश्यना वॉर्ड में था और वहां की पॉलिसी के मुताबिक़, वो ऐसा भोजन परोसते हैं जिसमें मिर्च मसाले, प्याज़ और अदरक, कॉफी या चाय नहीं होती.’

लेकिन वर्मा ने स्वीकार किया कि वो जेल के अंदर ब्राण्डेड कपड़े पहनता था. ‘अगर आप पूछेंगे कि मैं अच्छे कपड़े पहनता था या नहीं, तो हां मैं पहनता था. मैं तिहाड़ में था तो इसका ये मतलब नहीं था, कि मुझे मैले या फटे पुराने कपड़े कपड़े पहनने थे, और शेव नहीं करना था. जेल नियमों के अनुसार विचाराधीन क़ैदी अपना ख़याल ख़ुद रख सकते हैं और उन्हें अपना सामान्य हुलिया बदलने की इजाज़त नहीं होती.’

उसने आगे कहा, ‘मेरे सभी कपड़े और बिस्तर जेल नियमों के अनुसार लाए गए थे. हम वो सारी चीज़ें अगले दरवाज़े से ला रहे थे. अब अगर मैं जेल जा रहा हूं तो इसका मतलब ये नहीं है कि मैं एक कंबल ओढ़ना शुरू कर दूं और अपने दांत ब्रश न करूं.’


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ओलियालिया

ओलियालिया की वेबसाइट के अनुसार, उसकी निवेश टीम ‘एफएमसीजी के मुख्य उपभोक्ता क्षेत्रों, इनफ्रास्ट्रक्चर तथा मीडिया, संगीत व मनोरंजन, वित्तीय सेवाओं, परिवहन और हवाई अड्डों’ पर फोकस करती है.

ओलियालिया को मालदीव में एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने के लिए भी आमंत्रित किया गया था- बाद में मालदीव मीडिया ने ख़ुलासा किया, कि कंपनी को शॉर्टलिस्ट किया गया था, लेकिन कोई क़रार साइन नहीं किया गया था.

वर्मा ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम हमेशा से बिज़नेस में रहे हैं और अब हमारी विशिष्टता एफएमसीजी है. हमारा ब्राण्ड लुधियाना से है जिसे हमने कुछ साल पहले ख़रीदा था. उस ब्राण्ड से हमने भारत और विदेशों में कई उत्पाद लॉन्च किए हैं, जिनमें पान मसाला, तंबाकू, फ्रोज़न खाद्य पदार्थ, बियर और सिग्रेट्स शामिल हैं. हम जल्द ही कोला लॉन्च करने जा रहे हैं. हमारे पास बाल्टिक देशों में इस ब्राण्ड के कई उत्पाद हैं, और मालदीव में हम एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा विकसित कर रहे हैं.’

उसने आगे समझाया कि ब्राण्ड ‘आंशिक रूप से 2011 में ख़रीदा गया था’, लेकिन 2012 में उसकी और उसकी पत्नी की गिरफ्तारी से सब कुछ ‘थम गया था’. ‘सितंबर 2016 में हम बाहर आए और 2017 में हमने साथ मिलकर ये कारोबार शुरू किए, जो अब बहुत अच्छे से बढ़ रहे हैं, और हमें उम्मीद है कि इसका और अधिक विस्तार करके, हम इसे नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगे.’


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‘क्या भारत में अमीर होना कोई अपराध है?’

वर्मा ने पूछा, ‘मैं एक व्यवसायी हूं, एक उद्योगपति हूं, और हम चीज़ों का उत्पादन कर रहे हैं, इसलिए अगर हम अमीर हैं तो क्या ये पाप है? इतनी छानबीन क्यों? दौलत मेरे लिए कोई नई चीज़ नहीं है. मैं इसी में पला बढ़ा हूं. क्या भारत में अमीर होना कोई अपराध है?’

लेकिन, पुलिस सूत्रों का कहना है कि उनकी जांच में सामने आया है, कि भारत में कोई बैंक खाता न होने के बावजूद वर्मा अपने फार्महाउस का भारी किराया, और शानो शौकत भरी ज़िंदगी का ख़र्च वहन करता रहा- ऐसा दावा जिसे वर्मा ने ‘निराधार’ बताया.

वर्मा ने आगे स्पष्ट किया कि 1984 के दंगा मामले में एक गवाह के रूप में उसकी भूमिका को देखते हुए, कथित धमकियों से बचाने के लिए 2017 में कोर्ट ने उसे पुलिस सुरक्षा दिला दी थी.

वर्मा ने कहा कि लोग अकसर उसकी दौलत और लाइफस्टाइल पर सवाल उठाते हैं, और उन्हें लगता है कि उसने ‘अवैध रूप से’ ‘रक्षा सौदों से’ पैसा बनाया है. उसने दावा किया कि ऐसे विचार ‘पूरी तरह झूठ’ हैं, क्योंकि वो एक ‘फलता-फूलता एफएमसीजी और इनफ्रा बिज़नेस’ चला रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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