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Friday, 22 November, 2024
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बीजेपी नेताओं में क्यों मची है हनुमान की जाति बताने की होड़?

योगी आदित्यनाथ ने हनुमान की जाति बताने की जो शुरुआत की, वह अब जंगल में आग की तरह फैल गई है. हर दिन कोई नेता हनुमान की नई जाति बता रहा है.

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यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 27 नवंबर 2018 को जब पहली बार हनुमान की जाति बताई तो उनका मकसद साफ था. वे अलवर ग्रामीण (सुरक्षित) विधानसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवार रामकिशन के लिए प्रचार करने आए थे और अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट पर ये घोषणा कर दी कि हनुमान दलित थे. उनका इशारा था कि हनुमान के भक्त हो या दलित हैं तो बीजेपी को वोट कीजिए.

बहरहाल इस विधानसभा सीट के मतदाताओं ने योगी की बात नहीं मानी और बीजेपी यहां 26,000 से ज्यादा वोटों से हार गई.

अलवर ग्रामीण की हार संघ और मठ पोषित संतों की ऐसे मुद्दे पर पहली हार नहीं है. तत्कालीन कानून मंत्री बाबा साहेब आंबेडकर के द्वारा प्रस्तावित हिंदू कोड बिल में हिन्दू महिलाओं को बराबरी का दर्ज़ा दिये जाने का विरोध करते हुए प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने 1951 में फूलपुर में जवाहर लाल नेहरू के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था. उन्हें रामराज्य परिषद, हिंदू महासभा से लेकर करपात्री महाराज का समर्थन हासिल था. उन्हें ग़लतफ़हमी थी कि वो दुर्वासा या परशुराम के वंशज हैं. लेकिन फूलपुर की जनता ने नेहरू के लिए वही काम किया जो जनकपुर में धनुष-यज्ञ के वक़्त लक्ष्मण ने राम के लिए किया था. बक़ौल तुलसीदास, तब लक्ष्मण ने परशुराम से कहा था, ‘पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू, चहत उड़ावन फूँकि पहारू. इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं, जे तरजनी देखि मरि जाहीं.’

फूलपूर में नेहरू के 2.33 लाख और ब्रह्मचारी को 56 हजार वोट मिले.

बहरहाल बीजेपी अलवर ग्रामीण सीट और राजस्थान का चुनाव तो हार गई, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने एक ऐसी बहस छेड़ दी जो अब थमती नहीं दिखती. हनुमान की जाति, धर्म, पेशा, नस्लीय पहचान जैसे तमाम रहस्यों को लेकर एक से एक ख़ुलासे होने लगे. इसी दौरान पता चला कि हनुमान जी कोई ब्रह्मचारी नहीं थे. उन्होंने सम्पूर्ण वैदिक रीति से सुवर्चना नामक नारी से विवाह रचाया था.

अब तक हनुमान जी की पहचान को लेकर एक से एक दावे हो चुके हैं, लेकिन किसी हिन्दू की धार्मिक आस्था को ठेस नहीं पहुँची. जिन ‘हिन्दू शूरवीरों’ का ख़ून पद्मावती और बाजीराव मस्तानी के साथ फिल्मी परदे हुई ‘छेड़खानी’ या किसी नृत्य से खौल जाया करता है, जिसे मक़बूल फ़िदा हुसैन की पेंटिग्स उद्वेलित कर दिया करती हैं, जिसे थियेटरों में चल रहे नाटक या ख़ास तरह की पुस्तकें इतना आहत कर दिया करती थीं, वो इसे लेकर मरने-मारने पर आमादा हो जाया करते हैं, वही हिन्दू जमात, हनुमान जी को लेकर विराट हृदय और उदार मन का प्रदर्शन कर रहे हैं. अभी तक किसी ने ये नहीं कहा है कि हनुमान की जाति बताने वालों से सड़कों पर निबट लेगें. किसी ने ऐसे लोगों की जुबान पर लगाम लगाने की बात भी नहीं की है.

हनुमान की अब तक निम्नलिखित पहचान बीजेपी और उससे जुड़े नेता बता चुके हैं –

  • उत्तर प्रदेश के खेल और युवा कल्याण मंत्री तथा पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान ने हनुमान जी में पेशेवर खिलाड़ी और वो भी पहलवान की छवि देखी.
  • उत्तर प्रदेश के ही धार्मिक कार्य मंत्रीलक्ष्मी नारायण चौधरी को हनुमान जी में जाटों की विशेषताएँ नज़र आयी.
  • बीजेपी सांसद उदित राज ने विज्ञान का दामन थामा और उनके मुताबिक़ हनुमान थे ही नहीं.
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नन्द कुमार साय ने हनुमान जी के आदिवासी होने का दावा किया.
  • सांसद गोपाल नारायण सिंह ने कहा कि हनुमान तो बंदर थे और बंदर पशु होता है, जिसका दर्जा दलित से भी नीचे होता है. वो तो राम ने उन्हें भगवान बना दिया, यही क्या कम है.
  • बीजेपी सांसद हरिओम पांडे ने हनुमान जी को ब्राह्मण बताया.
  • शंकराचार्य रूपानन्द सरस्वती ने भी हनुमान जी को ब्राह्मण बताया.
  • सांसद कीर्ति झा आज़ाद ने हनुमान जी को चीनी मूल वाला बताया.
  • बीजेपी विधायक बुक्कल नवाब ने हनुमान जी को मुसलमान करार दिया.
  • जैन धर्म गुरु आचार्य निर्भय सागर महाराज ने हनुमान जी कोजैन बताया है.
  • केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्य पाल सिंह ने हनुमान को आर्य बताया.
  • बाबा रामदेव ने हनुमान को क्षत्रिय बताया.

इस बीच, हनुमान जी की मदद के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने ‘कड़ा’ बयान दिया है. उन्होंने कहा कि ‘हनुमान जी सबके हैं. उन्हें धर्म और जाति में बाँटना ठीक नहीं. वो तो सर्वत्र हैं और सभी के हैं.’ लेकिन राजनाथ को ये भी तो बताना चाहिए कि हनुमान जी को जाति-धर्म में बाँटने वाले लोग यदि ठीक काम नहीं कर रहे हैं तो उन्होंने इसकी ‘कड़ी निन्दा और भर्त्सना’ क्यों नहीं की?

समझना मुश्किल है कि बीजेपी के नेता ये सब जानबूझ कर रहे हैं, या फिर उनका दिमाग खराब हो गया है. एक व्याख्या ये हो सकती है कि योगी ने जब हनुमान को दलित बताया तो दलित संगठनों ने कई हनुमान मंदिरों पर दावा ठोक दिया और कुछ स्थानों पर तो हनुमान मंदिरों पर कब्जा करके पुजारी भी बन गए. भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर ने भी हनुमान मंदिरों पर कब्जा करने का आह्वान कर दिया.

क्या बीजेपी इस स्थिति से बचना चाहती है, जहां दलितों का हनुमान मंदिरों और वहां आनी वाली दक्षिणा पर कब्जा हो जाए?

कहना मुश्किल है.

लगता है कि हिंदू धर्म का जितना अहित बीजेपी के ये नेता कर रहे हैं, उसकी इतिहास में और कोई तुलना नहीं है.

दूसरी ओर, आप चाहें तो इस बात को लेकर भी अपना सिर धुन सकते हैं कि हनुमान से जुड़ा सारा प्रसंग या राहुल गाँधी के कुल-गोत्र से जुड़ी सारी लफ़्फ़ाज़ी फ़िज़ूल है, बेमतलब की बात है. ये सब राजनीति के असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश है. लेकिन ज़रा ये भी तो सोचिए कि ऐसी सिरफ़िरी बातों से गोदी-मीडिया को कितनी ख़ुराक़ मिलती है? यदि ऐसे बेतुके मुद्दे नहीं होते तो मीडिया को मोदी सरकार का हिसाब करना पड़ता और बताना होता कि 2014 में किए गए बीजेपी के वादों का क्या हुआ

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