शायद वह साल 2013 की एक सुबह थी. उस दिन बिहार के तमाम हिंदी-अंग्रेज़ी अखबारों के लाखों पाठकों का, एक सांवली रंगत के चेहरे से सामना हुआ. तमाम अखबारों का पहला पृष्ठ ‘सन ऑफ मल्लाह- मुकेश साहनी’ के चमचमाते चेहरे से पटा था. एक ऐसा नाम जिसे बिहार के लोगों ने पहले कभी नहीं सुना था. वह पैसे की ताकत थी, जिसने एक अंजान से शख्स को बिहारियों के मानस पटल पर धमाकेदार एंट्री कराई थी. इस विज्ञापन में साहनी के बारे में बहुत विस्तार से नहीं बताया गया था. लिहाजा पाठकों की उत्सुकता अभी अधूरी ही थी कि कुछ ही महीनों में साहनी ने दूसरा विज्ञापनी विस्फोट कर दिया.
फिर अखबारों के मेन पेज पर सन ‘ऑफ मल्लाह छा गया’. इस बार के विज्ञापन में मुकेश साहनी का मोबाइल नंबर भी दर्ज था. इस नंबर पर कितने और किस-किस आम आदमी ने संपर्क किया, इसका डिटेल तो नहीं पता, लेकिन इतना तो तय है कि मीडिया प्रबंधकों, सोशल मीडिया कम्पेनरों और स्थानीय न्यूज़ वेबसाइटों को मालिकों ने घंटियां बजानी शुरू कर दीं. ज़ाहिर है मुकेश साहनी चाहते भी यही थे कि वह खबरों की सुर्खियों में आ जायें. इसी क्रम में सोशल मीडिया प्रोफेशनलों की मुकेश डील पक्की हो गयी. फिर क्या था, एक अंजान सा शख्स रातोंरात फेसबुक पर छाता चला गया. उधर जिन अखबारों ने लाखों रुपये के विज्ञापन मुकेश से लिए थे, उन्होंने भी अपनी खबरों में उन्हें स्पेस देना शुरू कर दिया.
मुकेश साहनी के अचानक मीडिया में इस धमाकेदार अवतरण से जो सबसे महत्वपूर्ण सवाल लोगों के मस्तिष्क में जन्मा, वह था कि यह बंदा करता क्या है? इतने पैसे इसके पास आये कहां से?
मुकेश से जुड़े इन दो सवालों का जवाब जिन लोगों के पास था वे कोई और नहीं बल्कि वे सोशल मीडिया प्रोफेशनल थे जिन्होंने उनके फेसबुक अकाउंट अपडेट कर रहे थे. उन प्रोफेशनल्स के अनुसार, मूल रूप से बिहार के दरभंगा के मुकेश मुंबई में रहते हैं और फिल्मों की शूटिंग का स्टेज सजाने का व्यापार करते हैं. भारी कमाई करते हैं और अब राजनीति में पहचान बनाने में लगे हैं.
मुकेश के बारे में दैनिक भास्कर ने लिखा है कि मुकेश, बिहार में दरभंगा ज़िले के सुपौल बाज़ार के मूल निवासी हैं. 19 साल की उम्र में वे घर से भागकर मुंबई गए थे. हालांकि, कुछ समय के लिए वे लौट आए, पर उन्हें गांव रास न आया. वे फिर मुंबई चले गए. शुरुआत में उन्होंने एक कॉस्मेटिक स्टोर में सेल्समैन की नौकरी की. यहीं मुकेश के दिमाग में फिल्मों, सीरियल्स और शोज के सेट्स बनाने के बिज़नेस का ख्याल आया.
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उनके लिए सबसे बड़ा मौका तब आया जब, नितिन देसाई ने उन्हें शाहरुख खान स्टारर ‘देवदास‘ का सेट बनाने के लिए आमंत्रित किया. इस धंधे में शुरुआती सफलताएं मिलने के बाद उन्होंने ‘मुकेश सिनेवर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड’ नाम की कंपनी बनाई. इन्होंने इस सफल कारोबार से महज कुछ ही समय में खूब पैसा कमाया.
अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए मुकेश बिहार लौटे और फिर पैसे के बल पर अपनी शिनाख्त गढ़नी शुरू कर दी. फिर क्या था सैकड़ों मोटरसाइकिलों का काफिला मुकेश के पीछे चलता हुआ देखा जाने लगा. हर पखवारे प्रदर्शन का दौर शुरू हो चुका था.
मुज़फ्फरपुर, दरभंगा और पटना की सड़कों पर किराये की मोटरसाइकिलें और उन मोटरसाइकिलों पर बेरोज़गार युवाओं का जत्था उमड़ने लगा. लेकिन इतना तो तय था कि मुकेश की राजनीतिक दृष्टि अभी तक स्पष्ट नहीं हो सकी थी, सिवा इसके कि वह मल्लाहों की जातीय चेतना को जगायें.
इसी क्रम में वह मल्लाह (निषाद) जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग पर प्रदर्शन करने लगे. बिहार कैबिनेट ने इसी के बाद निषाद समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करने संबंधी प्रस्ताव पारित किया और केंद्र के पास भेज दिया. इस पर मुकेश ने नीतीश कुमार को समर्थन देने की घोषणा कर दी. लेकिन उन्हें लग चुका था कि अनुसूचित जाति वाली मांग तो केंद्र सरकार से पूरी होगी, क्योंकि बिहार सरकार ने इससे जुड़ा प्रस्ताव केंद्र के पाले में डाल दिया था. सो उन्होंने अपनी राजनीतिक वफादारी बदली और भाजपा से नज़दीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं.
उधर 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश और लालू के एक साथ होने से घबराई भाजपा को हर तिनके में सहारा दिखने लगा. इसका फायदा मुकेश ने उठाया और अपने पैसे के दम पर हेलीकॉप्टर लिए अमित शाह तक पहुंच गये. अमित शाह भी मुकेश को अपने साथ चुनाव प्रचार में घुमाने लगे. पर 2015 के चुनाव प्रचार ने अमित शाह को यह एहसास करा दिया कि मुकेश के हेलीकाप्टर की चमक से मल्लाहों का वोट खीचा नहीं जा सका. लिहाजा भाजपा ने मुकेश को भाव देना बंद कर दिया.
इससे बौखलाये मुकेश ने बीते नवंबर में पटना के गांधी मैदान में एक रैली की और अपनी पार्टी के गठन का ऐलान कर दिया. पार्टी का नाम रखा वीआईपी यानी विकासशील इंसान पार्टी. पटना की इस रैली के दौरान मुकेश साहनी ने कहा, ‘जब प्रदेश में तीन प्रतिशत आबादी वाले लोग मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो सकते हैं, तो हम 14 प्रतिशत की आबादी वाले क्यों नहीं?’
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इस बीच घटनाक्रम फिर बदला. उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए छोड़ने के कारण फिर भाजपा दबाव में आ चुकी थी. सो उसने जदयू, एलजेपी के बीच सीटों का बंटवारा करते समय मुकेश के लिए एक सीट छोड़ने का इंतज़ाम कर दिया. पर रातों-रात राजद नेता तेजस्वी यादव ने सन ऑफ मल्लाह पर अपनी बंसी डाल दी और आज वह एनडीए के बजाए महागठबंधन का हिस्सा हो चुके हैं.
महागठबंधन में शामिल होने पर मुकेश साहनी कहते हैं– ‘हमने आरक्षण के लिए सड़कों पर लाठियां खाईं. हमारे साथ निषाद विकास संघ के दर्जनों पदाधिकारी अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे. साथ ही आरक्षण की मांग को लेकर हमने बिहार में दर्जनों विशाल जनसभा तथा सैकड़ों अन्य जनसभाएं की. मगर वर्तमान सरकार ने बिहार में निषाद समाज के साथ छल किया. इससे बिहार के निषाद समाज में भयंकर आक्रोश व्याप्त है. इसी कारण विकासशील इंसान पार्टी आगामी चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा बनने जा रही है. गठबंधन में रहकर हम निषाद समाज के आरक्षण सहित हक़-अधिकार की लड़ाई को पटना से दिल्ली तक लड़ेंगे.’
जबकि तेजस्वी यादव ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा- ‘निषाद समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली विकासशील इंसान पार्टी ने सामाजिक न्याय के पुरोधा लालू प्रसाद के नेतृत्व में महागठबंधन में शामिल होने का निर्णय लिया. हम सभी मिलकर आदरणीय लालू जी के सामाजिक न्याय एवं धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत की राजनीति को आगे बढ़ाएंगे.’
तेजस्वी को यह मालूम है कि 2015 के चुनाव में मुकेश का कोई प्रभाव भाजपा के काम नहीं आया, लेकिन उन्हें इतना ज़रूर पता है कि जिन मुकेश को अमित शाह अपने साथ हेलीकाप्टर पर घुमाते थे, उन्हें तोड़ कर अपने पाले में कर लेने से भाजपा पर मनोवैज्ञानिक दबाव तो बनाया ही जा सकता है.
(लेखक नौकरशाही डॉट कॉम के संपादक हैं)
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