मोदी सरकार की एक विशेषता यह है कि वह विभिन्न कार्यक्रमों के लिए बड़े महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय करने को तैयार रहती है और उन्हें हासिल करने के लिए पूरा ज़ोर भी लगाती है. यह महत्वाकांक्षा नीति आयोग द्वारा जारी किए गए दस्तावेज़ ‘स्ट्रेटेजी फॉर न्यू इंडिया@75’ में भी झलकती है.
परिभाषिक दृष्टि से देखें तो चार साल से भी कम समय में (2022 की स्वतंत्रता दिवस तक) ‘न्यू इंडिया’ यानी नया भारत के निर्माण की उम्मीद पर संदेह ही किया जाएगा. फिर भी, ब्योरों की जांच की जा सकती है. सबसे मुश्किल लगने वाला लक्ष्य 2022-23 में जीडीपी की वृद्धिदर को 9-10 प्रतिशत पर लाने का है. इसे हासिल करने के लिए कई छोटे-छोटे लक्ष्य तय किए गए हैं. सवाल है कि ये असलियत से कितने करीब हैं. यह जानने के लिए जरा निम्नलिखित आंकड़े पर गौर करें (टिप्पणियां कोष्ठक में हैं)-
मैनुफक्चरिंग की वृद्धिदर 7.7 प्रतिशत से बढ़ाकर दोगुनी की जाए.
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खनन क्षेत्र की वृद्धिदर 2017-18 में 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 14 प्रतिशत की जाए, यानी 2018-23 के बीच औसत वृद्धिदर 8.5 प्रतिशत रहे. सभी खेतों को सिंचाई की सुविधा मिले.
प्रति वर्ष 1 अरब यात्राओं की सुविधा देने के लिए हवाईअड्डों की क्षमता पांच गुना बढ़ाई जाए. शिक्षा पर सरकारी खर्च को दोगुना बढ़ाकर जीडीपी के 6 प्रतिशत के बराबर किया जाए. (यह एक बासी मज़ाक ही है)
कुल मजदूरों में कुशल मजदूरों का अनुपात मौजूदा 5.4 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत किया जाए. (यानी हर साल 1 करोड़ कुशल मजदूर तैयार किए जाएं).
टैक्स-जीडीपी अनुपात कई वर्षों से 16-17 प्रतिशत रहा है, इसे 22 प्रतिशत पर लाया जाए.
सार्वजनिक निवेश को जीडीपी के 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत किया जाए. (तब, जबकि किसान कर्ज़माफी बढ़ती जा रही है?) अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के आगमन में भारत की हिस्सेदारी 1.18 प्रतिशत से बढ़ाकर 3 प्रतिशत की जाए. लेकिन (विरोधाभास के साथ), विदेशी पर्यटकों की संख्या 88 लाख से बढ़ाकर केवल 120 लाख की जाए.
राष्ट्रीय हाईवे की लंबाई फिलहाल 122,000 किमी है, जिसे 2022-23 तक 200,000 किमी की जाए. (यानी 64 प्रतिशत की वृद्धि की जाए, जिसका अर्थ है कि प्रतिदिन 60 किमी हाईवे बनाया जाए, राज्यों के हाईवे और दूसरी सड़कें तो अलग से बनाई ही जाएं).
सड़क हादसों में 2020 तक 50 फीसदी की कमी लाई जाए, जबकि रेल हादसों में मौतों को शून्य पर लाया जाए. ब्रॉडगेज रेल पटरी का 100 प्रतिशत विद्युतीकरण किया जाए, जो कि 2016-17 में 40 प्रतिशत है.
रिसर्च और डेवलपमेंट पर खर्च जीडीपी का 0.7 प्रतिशत है, जिसे 2 प्रतिशत किया जाए. खनन के लिए परीक्षण का भूगर्भीय क्षेत्र (ओजीपी) 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया जाए.
बड़े बन्दरगाहों पर टर्न अराउंड टाइम 3.44 दिन (2016-17) घटाकर वैश्विक स्तर 1-2 दिन पर लाया जाए. निर्यातों के लिए बार्डर कंपलायन्स टाइम 24 घंटा और आयात के लिए 48 घंटा किया जाए.
प्रदेश, ज़िला, ग्राम पंचायत स्तर तक सभी सरकारी सेवाएं 2022-23 तक डिजिटल हों ताकि डिजिटल को लेकर भेदभाव खत्म हो. इन लक्ष्यों के अलावा हर सेक्टर के लिए व्यापक नीतिगत उपाय बताए गये हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि ये ‘आर्थिक सर्वे’ रिपोर्टों की तरह महज सुझाव हैं या घोषित लक्ष्य हैं.
कुछ नीतिगत उपाय ये हैं-
केवल औपचारिक रूप में जो अर्थव्यवस्था है उसे दुरुस्त किया जाए.
जो केंद्रीय पब्लिक सेक्टर उपक्रम (सीपीएसई) स्ट्रेटेजिक किस्म के नहीं हैं उनसे हाथ खींचें. ऐसे बड़े उपक्रमों के शेयर बेचकर ऐसी कंपनियां बनाएं जिन पर किसी एक प्रमोटर (सरकार समेत?) का नियंत्रण न हो.
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राज्यों में बिजली वितरण का निजीकरण किया जाए.
भारतीय उद्योगों को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए बिजली शुल्क को तर्कसंगत किया जाए. (तो क्या उद्योगों से वसूले गए ऊंचे बिजली शुल्क से कृषि और घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को सब्सिडी नहीं दी जाएगी?)
रेलवे शुल्कों की भी समीक्षा की जाए ताकि सवारी और माल भाड़े को तर्कसंगत रेलवे माल भाड़ा सड़क परिवहन से प्रतिस्पर्धी हो. (प्रतिस्पर्धा और तर्कसंगतता में टकराव है)
कुछ साल पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को मकिनसे ने ऐसे ही महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्रस्तुत किए थे. उनका छोटा सा सवाल यही था कि ‘यह सब कैसे होगा?’ एक कहावत भी है- अगर ख्वाहिशों के पंख होते तो भिखमंगे घोड़ों की सवारी कर रहे होते.
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