मोदी कुछ करेगा, ऐसा माना जाता है. कोई नहीं जानता कि क्या हो सकता है.
नरेंद्र मोदी की चुनावी किस्मत कमज़ोर पड़ रही है और 2017 के मध्य से राष्ट्रीय राजनीतिक विमर्श पर उनकी पकड़ ढीली होती जा रही है. गुजरात हाथ से निकलते-निकलते बचा, गोरखपुर में 27 वर्षों में पहली बार पराजय का मुंह देखना पड़ा. अजमेर गंवाना पड़ा, बेलारी हाथ से गया, मध्य प्रदेश में हार, राजस्थान में हार, छत्तीसगढ़ में बुरी तरह पराजित होना पड़ा.
अब जबकि लोगों ने मोदी को हारते देख लिया, एजेंडा तय करने की उनकी काबिलियत ख़त्म होते देख लिया, अमित शाह की चाणक्य की छवि को चकनाचूर होते देखा, लोगों को लगा: मोदी कुछ तो करेगा.
यह उम्मीद चौंकाने, विरोधियों को संभलने का मौक़ा दिए बिना चाल चलने, और इसको लेकर भारी प्रचार अभियान चलाने के नरेंद्र मोदी के पिछले रिकॉर्ड के कारण है. जब तक लोग मोदी के एक दांव से उबर पाएं, वह अगला दांव चलकर उन्हें भौंचक्का कर देते थे.
अफ़ग़ानिस्तान यात्रा के दौरान 2015 में मोदी ने पाकिस्तान को फटकार लगाई. फिर, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से मुलाक़ात के लिए अचानक लाहौर में रुकने का फैसला कर लिया. पाकिस्तान से हुए एक आतंकवादी हमले के बाद मोदी ने पड़ोसी से युद्ध नहीं करने की बात की. इसके कुछ ही दिनों बाद सेना ने नियंत्रण रेखा के उस पार जाकर कार्रवाई करने की जानकारी दी. एक और मौक़े पर, नवंबर महीने की एक शाम मोदी ने अचानक टीवी पर राष्ट्र को संबोधित करने का फैसला किया. सबको लगा कि वह युद्ध का ऐलान करने वाले हैं, पर उन्होंने प्रचलन में मौजूद 86 फीसदी भारतीय करेंसी की नोटबंदी की घोषणा की.
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लोगों को चौंकाना मोदी सरकार की सनक है. यह पूर्वाभासी नहीं दिखना चाहती. भाजपा को कवर करने वाली एक रिपोर्टर ने मुझे बताया कि उन्हें अपने सूत्रों से पहले से पता था कि सत्यपाल मलिक जम्मू कश्मीर के अगले राज्यपाल बनाए जाने वाले हैं. पर उन्होंने इस बारे में नहीं लिखा क्योंकि ‘यह सरकार कई बार सिर्फ यह कहने के लिए अपने फैसले बदल देती है कि देखो मीडिया में ग़लत ख़बर आ रही थी.’
इसलिए आश्चर्य नहीं कि हम लगातार मोदी से अनपेक्षित फैसले करने की उम्मीद करते रहते हैं. अप्रत्याशित अपने आप में एक प्रत्याशा बन चुकी है.
अनुमान लगाने का खेल
हमें यकीन नहीं होता कि मोदी बस यूं ही चलते जा सकते हैं. निश्चय ही, उनके पास चौंकाने के कई साधन होंगे? हम इस बारे में अनुमान तो लगा ही सकते हैं. युद्ध? दंगे? कश्मीर में तनाव बढ़ना? नोटबंदी का एक और दौर? सार्वभौमिक बुनियादी आय या जनधन खातों में कुछ पैसे डालने का कदम? आयकर ख़त्म करना? सुप्रीम कोर्ट को नज़रअंदाज़ कर अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर का निर्माण?
यदि हमने अनुमान लगा लिया, तो फिर वह वो काम नहीं करेंगे. आप को किसी बात की अपेक्षा है, फिर तो वह अप्रत्याशित हुई ही नहीं.
मोदी के चौंकाऊ काम विपक्ष के सारे आकलनों को झुठला देते हैं. उनके कारण विशेषज्ञों की स्थिति मूढ़मति वाली हो जाती है. उनके औचक फैसले पत्रकारों को बदहवास कर छोड़ते हैं, कुछ समझा जा सके इसके लिए किसी विशेषज्ञ की राय जानने की कोशिश करते हुए वे गूगल के चक्कर काट रहे होते हैं. और, मेरे जैसे संपादकीय आलेख लिखने वाले अंधेरे में हाथ-पैर मार रहे होते हैं. इस तरह मोदी को भारत का ‘सरप्राइज मिनिस्टर’ भी कहा जा सकता है.
समस्या ये है कि शायद मोदी की झोली में अब और अचंभे नहीं बचे हों, उस फिल्म की तरह जिसमें इंटरवल से पहले तो काफी उतार-चढ़ाव होते हैं, पर दूसरे भाग में कहानी सपाट हो जाती है.
जब नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2016 में नोटबंदी की घोषणा की, उन्होंने उसका परिणाम देखने के लिए जनता से मात्र 50 दिनों की मोहलत मांगी. पर नववर्ष के समय तक उनके पास इस बारे में कहने को ज़्यादा कुछ नहीं था. उनके द्वारा घोषित ‘फायदे’ नाममात्र के दिखे.
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उन्होंने कोशिश तो की है. मोदी ने 50 करोड़ भारतीयों के लिए एक मुफ्त स्वास्थ्य बीमा ‘आयुष्मान भारत’ की घोषणा की. पर ऐसे कदमों के ज़रिए देश के पिछड़े इलाक़ों में स्वास्थ्य ढांचा स्थापित करने में वर्षों का समय लगेगा. हाल के विधानसभा चुनावों में आयुष्मान भारत या उनकी अन्य किसी योजना की चर्चा नहीं हुई.
मज़बूत गढ़ रहे राज्यों में 11 दिसंबर को मिली हार के बाद, रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार किसानों की कर्ज़माफ़ी की एक बड़ी योजना पर काम कर रही है. पर, अब जबकि बात बाहर निकल चुकी है, क्या हम इसकी उम्मीद कर सकते हैं?
जब क्रिसमस पर सांता नहीं आए
चकित करने वाले नीतिगत फैसलों के अभाव में, मोदी के अचम्भे अब लोगों का ध्यान बंटाने और विपक्ष की किरकिरी कराने के लिए होते हैं. जब विधानसभा चुनावों में वोटिंग हो गई और बिल्कुल तय लगने लगा कि भाजपा का प्रदर्शन ख़राब रहेगा, सरकार ने रॉबर्ट वाड्रा के सहयोगियों पर टैक्स संबंधी छापे डलवाने का काम किया. जब रिज़र्व बैंक नोटबंदी के नुकसानदेह प्रभावों वाले अपने आकलन को जारी करने वाला था, सरकार ने माओवादियों से मिलीभगत के हास्यास्पद आरोपों में पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करा दिया.
इन कदमों में से कोई भी मोदी की गिरती लोकप्रियता को थाम नहीं पा रहा. नोटबंदी की नाकामी और जीएसटी के लिए हुई आलोचनाओं ने ख़तरे उठाने की उनकी क्षमता को बुरी तरह कम कर दिया है. चौंकाऊ कार्यों में ख़तरे निहित होते हैं. यदि दांव उल्टा पड़ गया तो?
खुद मोदी ने ही उनसे अप्रत्याशित कदमों की उम्मीद करने के लिए हमें तैयार किया है. अचंभों के लिए तैयार करने के बाद कोई चौंकाऊ काम नहीं करने पर लोग ठगा हुआ महसूस करेंगे. जैसे क्रिसमस में सांता क्लॉज़ नहीं आए. यदि मोदी के पास चौंकाने का कोई साधन नहीं बचा हो, तो शायद अब चौंकाने की बारी मतदाताओं की है.
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