मुंबई: महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के साथ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा गठबंधन किये जाने के दो महीने से भी कम समय में, दोनों सहयोगियों के बीच आपसी तल्खी के संकेत स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे हैं. हालांकि, फ़िलहाल के लिए, दोनों पक्षों के नेतागण इन मतभेदों को ज्यादा तवज्जों नहीं दे रहे हैं.
सबसे पहले तो मतभेद इसी बात से स्पष्ट हो गए थे कि राज्य मंत्रिमंडल (कैबिनेट), जिसमें पहले सिर्फ मुख्यमंत्री और उनके उप-मुख्यमंत्री होते थे, के गठन में 40 दिन लग गए थे और फिर विभागों को आवंटित करने के लिए और पांच दिन लगे थे. मंत्रालयों और विभागों के आवंटन ने शिंदे खेमे के कुछ मंत्रियों को परेशान कर दिया है, जिनमें से अधिकांश अपनी ‘पदावनति’ को लेकर नाराज हैं.
अब नवनियुक्त भाजपा महाराष्ट्र अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले द्वारा दिए गए कुछ बयान एक नई पैदा हुई दरार की वजह के रूप में सामने आये हैं
पिछले हफ्ते अमरावती जिले में बहुचर्चित विधायक रवि राणा के संगठन ‘युवा स्वाभिमान पार्टी’ द्वारा आयोजित ‘दही हांडी’ कार्यक्रम में बावनकुले ने कहा था कि अमरावती से अगला सांसद और जिले के बडनेरा विधानसभा सीट से अगला विधायक भाजपा के चुनाव चिह्न पर निर्वाचित होगा. यह बयान शिवसेना के वरिष्ठ नेता और अमरावती के पूर्व सांसद आनंदराव अडसुल, जो शिंदे गुट के सदस्य हैं, को चुभ गया.
पिछले हफ्ते, बुलढाणा में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ एक अन्य कार्यक्रम में, बावनकुले ने घोषणा की कि बुलढाणा का अगला सांसद भाजपा से होगा, और उनका यह कहना एक तरह से बुलढाणा के शिवसेना सांसद प्रतापराव जाधव, जो शिंदे गुट में शामिल होने वाले पार्टी के 12 सांसदों में से एक हैं, के लिए एक स्पष्ट झिड़की की तरह था.
इसके बाद, बावनकुले ने अकोला में एक बार फिर से विवादास्पद बयान देते हुए कहा कि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ‘राज्य को विकास के पथ पर ले जाने के लिए जरुरी दूरदृष्टि और नेतृत्व क्षमता के गुणों वाले एकमात्र व्यक्ति हैं. उन्होंने कहा कि फडणवीस ही शिवसेना-भाजपा गठबंधन का प्रतिनिधित्व करने वाले अगले मुख्यमंत्री होंगे.
शिवसेना के तीन वरिष्ठ नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि (बावनकुले की) इस टिप्पणी ने शिंदे खेमे में बेचैनी पैदा कर दी और कुछ नेताओं ने इसे मुख्यमंत्री के सामने भी उठाया, जिन्होंने बाद में फडणवीस को उनकी नाराजगी के बारे में अवगत कराया. हालांकि, दोनों पक्षों के नेताओं ने इस मुद्दे को यह कहते हुए ख़ास तवज्जो नहीं दी कि बावनकुले केवल पार्टी के कैडर को लामबंद करने की कोशिश कर रहे थे.
वहीँ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने दिप्रिंट के फोन कॉल्स और टेक्स्ट मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया.
जून के महीने में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को शिंदे खेमे की तरफ से बगावत का सामना करना पड़ा और यह बगावत उसी महीने की 29 तारीख को तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस्तीफा देने के साथ समाप्त हो गयी थी. उसके अगले ही दिन बागी हुए शिवसेना समूह और भाजपा ने अपनी संयुक्त सरकार बनाई.
हालांकि, नई सरकार को शिंदे और फडणवीस के अलावा और मंत्रियों को शामिल कर एक कैबिनेट बनाने में 40 दिनों का समय लगा, क्योंकि दोनों पक्षों ने कैबिनेट के गठन और विभागों के बंटवारे पर बातचीत करने में काफी समय लिया, और साथ ही, वे इस बात के प्रति भी सावधान थे कि सुप्रीम कोर्ट ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना द्वारा उनके प्रतिद्वंद्वी खेमे के खिलाफ दायर की गई अयोग्यता याचिकाओं पर क्या निर्णय देता है. इस सप्ताह शीर्ष अदालत ने इस मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया, जो 25 अगस्त को इस पर पहली सुनवाई करेगी.
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‘भाजपा को शिवसेना का इस्तेमाल करके उसे फेंकने की अनुमति नहीं देंगे’
इस बीच शिंदे खेमे के अडसुल ने कहा कि, ‘बावनकुले राज्य भाजपा अध्यक्ष के रूप में नए हो सकते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी पार्टी आज शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के कारण ही सत्ता में है. हम भाजपा को शिवसेना का इस्तेमाल करके उसे फेंकने की अनुमति नहीं देंगे.’
अमरावती के सांसद ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा ढाई साल से सत्ता से बाहर थी. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे तो (एमवीए के हिस्से के रूप में) सरकार में थे. न तो भाजपा ने शिवसेना को खरीदा है और न ही शिवसेना ने किसी पार्टी के सामने आत्मसमर्पण किया है. बावनकुले को यह याद रखना चाहिए और ऐसे बयान देने से बचना चाहिए जो गठबंधन को प्रभावित कर सकते हैं.’
अडसुल ने बताया कि शिवसेना-भाजपा गठबंधन के तहत अमरावती परंपरागत रूप से शिवसेना की सीट रही है,क्योंकि वह खुद दो बार यहां से सांसद रह चुके हैं, जबकि प्रतापराव जाधव बुलढाणा से तीन बार सांसद रह चुके हैं.
साल 1999 से 2019 तक, लोकसभा में अमरावती का प्रतिनिधित्व शिवसेना द्वारा ही किया गया था जिसके बाद नवनीत राणा ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इसे अडसुल से छीन लिया था. अपने राजनैतिक उत्थान के बाद, नवनीत और उनके पति ने अपनी निष्ठा भाजपा के पक्ष में कर दी थी.
1999 से ही शिवसेना द्वारा बुलढाणा का भी प्रतिनिधित्व किया गया है.
अडसुल ने कहा, ‘बावनकुले एक वरिष्ठ नेता हैं जो एक पार्टी के एक प्रमुख पद पर हैं और उन्हें अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगनी चाहिए. हम शिवसेना का इस्तेमाल कर उसे फेंकने अनुमति नहीं देंगे.’
हालांकि जाधव की इस बारे में प्रतिक्रिया अधिक नपी तुली थी. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने मुख्यमंत्री से बात की और जो कुछ भी हमने महसूस कि उस बारे में उप-मुख्यमंत्री को भी बताया, और अब कोई समस्या नहीं है. बावनकुले इस तरह के बयान देकर अपने कैडर का मनोबल बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे.’
जाधव ने कहा, ‘पहले भी, (2019 से पहले) जब शिवसेना और भाजपा गठबंधन में थे, तो भाजपा ‘शतप्रतिशत भाजपा’ की तर्ज पर प्रचार करती थी, और शिवसेना भी हर जगह खुद को मजबूत करने के लिए काम कर रही थी. लेकिन, आखिरकार, उप-मुख्यमंत्री फडणवीस ने स्वयं कहा है कि सभी सांसद और विधायक जो वर्तमान शिवसेना-भाजपा गठबंधन में शामिल हुए हैं, उन्हें न केवल फिर से नामांकन प्राप्त होगा, बल्कि हमारे पुन: चुनाव जीतने की दिशा में भी काम किया जाएगा.’
जाधव ने कहा कि वर्तमान गठबंधन के भीतर जमीनी स्तर पर समन्वय एमवीए की तुलना में काफी बेहतर है ‘जब शिवसेना को अपने दशकों पुराने प्रतिद्वंद्वियों के साथ बैठना पड़ता था.’
छोटे-मोटे मतभेद की संभावना ‘किसी भी गठबंधन में रहती ही हैं’
शिंदे खेमे के एक वरिष्ठ विधायक ने कहा कि बावनकुले की टिप्पणी को लेकर चल रहे विवाद को अब सुलझा लिया गया है.
उन्होंने कहा, ‘भाजपा के नेतागण भी स्वीकार करते हैं कि उन्होंने नए भाजपा महाराष्ट्र अध्यक्ष के रूप में पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अपने उत्साह के तहत कुछ ज्यादा ही बातें कर ली थी. हम भी इसे खूब समझते हैं; इसलिए, हम इसे कोई मुद्दा नहीं बना रहे हैं. यही तो राजनीति है.’
इसी तरह भाजपा विधायक अतुल भाटखलकर ने भी दिप्रिंट को बताया कि दोनों पक्षों के बीच ‘कोई मसला नहीं’ है. उन्होंने कहा, ‘हमारी पार्टी अध्यक्ष ने जो भी बयान दिए हैं उन्हें इस गठबंधन के संबंध में नहीं देखा जाना चाहिए. वह पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बैठक में बात कर रहे थे और जाहिर है, कोई भी नया नेता ‘कार्यकर्ताओं’ को यही सब बताएगा.’
भाजपा और शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के बीच महाराष्ट्र विधान परिषद की उन 12 सीटों को आपस में बांटने को लेकर भी रस्साकशी चल रही जिन्हें राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा नामित किया जाना है.
ऊपर उद्धृत शिवसेना विधायक ने कहा, ‘भाजपा खुद आठ सीटें रखना चाहती है और हमें सीटें चार देना चाहती है. उनके पास हमसे ज्यादा विधायक हैं. लेकिन, हमें मजबूत बनाना उनके फायदे में है क्योंकि यह हमें असली शिवसेना (ठाकरे गुट की जगह) के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा.’
इस मुद्दे पर भाटखलकर का कहना है कि सीटों के लिए यह कथित ‘जोड़-तोड़’ एक ‘मीडिया द्वारा खड़ा किया गया विवाद है. उन्होंने दावा किया कि, ‘मंत्रिमंडल की मंजूरी और नामों की सिफारिश के बाद राज्यपाल सही फैसला करेंगे.’
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