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Sunday, 3 November, 2024
होमदेशMP में बाढ़ से UP में सूखे तक- मानसून में ये अभी तक का सबसे जबर्दस्त उतार-चढ़ाव है, लेकिन विशेषज्ञ हैरान नहीं हैं

MP में बाढ़ से UP में सूखे तक- मानसून में ये अभी तक का सबसे जबर्दस्त उतार-चढ़ाव है, लेकिन विशेषज्ञ हैरान नहीं हैं

IMD डेटा से पता चलता है कि पूर्वी और उत्तरपूर्वी भारत में, 1 जून और 10 अगस्त के बीच बारिशों में 18% की कमी रही है. लेकिन मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों में क्रमश: 24% और 28% की अधिकता देखी गई.

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चार महीने के दक्षिण पश्चिमी मानसून के आख़िरी महीने के ख़त्म होने के साथ, इस सीजन में भारत में बारिशों में व्यापक विविधताएं देखी गई हैं- 1991 के बाद कथित रूप से सबसे खराब- हालांकि कुल मिलाकर देश में बारिशों के स्तर ‘सामान्य’ दिखाई पड़ते हैं.

पिछले हफ्ते ही राजस्थान के कुछ हिस्से, केरल, मध्य प्रदेश तथा ओडिशा भारी बारिश और बाढ़ के पानी में डूबे हुए थे. इस बीच उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार में बारिश की कमी रही है और वहां सूखे जैसे हालात देखे गए हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा सीज़न के बारिशों के पैटर्न ने ‘गंगा के मैदानों और शेष भारत के बीच, लिखित इतिहास में मानसून का अब तक का सबसे ख़राब भौगोलिक तिरछापन पैदा कर दिया.’

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जून और 10 अगस्त के बीच पूर्वी और उत्तर पूर्वी भारत में, बारिशों में 18% की कमी रही, जबकि मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों में क्रमश: 24% और 28% की अधिकता देखी गई.

चित्रण : दिप्रिंट

कृषि मंत्रालय के जुलाई आंकड़ों से पता चला कि अनियमित बारिशों के कारण इस साल धान की रोपाई में 13 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. उत्तर प्रदेश में दिप्रिंट की एक ज़मीनी रिपोर्ट से पता चला था कि पानी की कमी की वजह से बारिश की सिंचाई वाले धान के खेतों में घास और खरपतवार उग आई थी.

सितंबर में समाप्त होने वाले मानसून के दूसरे हिस्से के लिए अपने पूर्वानुमान में, आईएमडी ने भविष्यवाणी की थी कि देश में बारिशें सामान्य से लेकर सामान्य से अधिक तक रहेंगी, और 422.8 के दीर्घ-कालिक औसत (एलपीए) में, वर्षण 94 से 106 प्रतिशत के बीच में रहेगा.

एलपीए किसी क्षेत्र विशेष में दीर्घ काल में एक दिए औसत अंतराल में दर्ज बारिशें होती हैं. उस क्षेत्र में किसी विशेष महीने या सीज़न के लिए बारिशों की मात्रा की भविष्यवाणी के लिए, ये एक बेंचमार्क का काम करता है.

आईएमडी ने कहा कि आने वाले कुछ हफ्तों में गंगा के मैदानों और उत्तर पूर्व में बारिशों की संभावनाएं बढ़ सकती हैं, लेकिन वो इतनी नहीं होंगी कि कमी की भरपाई कर सकें.

आईएमडी में मौसम विज्ञान महानिदेशक एम महापात्रा ने कहा, ‘सीज़न के अंत की ओर संभावना है कि यूपी और बिहार जैसे सूबों में सामान्य बारिशें होंगी. लेकिन उससे कमी की भरपाई नहीं होगी.’


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व्यापक विविधताएं असामान्य नहीं

मौसम विज्ञानियों का कहना था कि साल दर साल या एक सीज़न के भीतर ही, विस्तृत स्थानिक-अस्थायी विविधताओं का अनुभव होना, कोई असामान्य बात नहीं है.

दि वैदर चैनल इंडिया के डिप्टी न्यूज़ एडिटर दीक्षित नेविल पिंटो ने कहा, ‘हाल के वर्षों में हम ये प्रवृत्ति देख रहे हैं, जिसमें कुल मिलाकर मानसून सामान्य दिखता है, लेकिन स्थानिक-अस्थायी अंतर या परिवर्तनशीलता काफी अधिक होती है. जलवायु इसके एक प्रमुख कारकों में से है, लेकिन वार्षिक परिवर्तनों का संबंध वैश्विक हवा और समुद्र की सतह के तापमान के पैटर्न से ज़्यादा होता है.’

‘प्रशांत के ऊपर ला नीना बेस स्टेट के निरंतर प्रचलन के नतीजे में, इस मानसून में सामान्य से अधिक बारिशें हो रही हैं. इसी फैक्टर के नतीजे में भारत के मध्य, पूर्वी, और उत्तर पूर्वी हिस्सों में भी अधिक बारिशें देखी जा सकती हैं.’

एक वैश्विक मौसम घटना ला नीना, जो दो लगातार दो वर्षों से देखी जा रही है, दक्षिण अमेरिकी के उष्णकटिबंधीय पश्चिमी तट के साथ सतही समुद्र के पानी को ठंडा कर देती है. इसके नतीजे में पश्चिमी प्रशांत के ऊपर हवा का दबाव कम हो जाता है, जिससे बारिशें ज़्यादा होती हैं. ला नीना के तीसरे साल भी जारी रहने की संभावना है, जो एक दुर्लभ मौसमी घटना होगी.

पिंटो ने कहा, ‘अगस्त में बंगाल की खाड़ी से कम दवाब की मज़बूत प्रणालियों ने, मानसून के ट्रफ (कम दबाव क्षेत्र) को उसकी सामान्य स्थिति के दक्षिण में रखा. यही कारण है कि ज़्यादातर हिस्सों में मानसून सक्रिय और सशक्त रहा. लेकिन ट्रफ के पूर्वी साइड की बार बार दक्षिण की ओर गति ने, उत्तर प्रदेश को विस्तारित बारिशों से वंचित कर दिया है.’

महापात्रा ने इन बदलावों का कारण आंतरिक परिवर्तनशीलता या प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनों को बताया, जो मौसम प्रणालियों में आते हैं, जिनमें समुद्र की सतह के तापमान और हवाओं के बीच, एक जटिल परस्पर क्रिया शामिल होती है.

उन्होंने कहा, ‘एक बड़े पैमाने पर मानसून सामान्य रूप से आगे बढ़ रहा है, और ला नीना ने हमें अच्छी बारिशें दी हैं. इस साल, यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, और झारखंड को छोड़कर, बाक़ी लगभग सभी प्रांतों में सामान्य या उससे अधिक बारिशें रही हैं. ये मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी के ऊपर कम दवाब प्रणालियों के वजह से है.’

दक्षिण पश्चिमी मानसून की वापसी में- जो आमतौर पर मध्य-सितंबर में शुरू होती है- देरी होने की संभावना है और अक्तूबर तक बारिशों का पूर्वानुमान लगाया गया है.

बारिशों की भविष्यवाणी मुश्किल हो जाएगी

इस साल के तिरछे मानसून से पहले, भारत एक रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी की लहर से जूझ रहा था. वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की थी कि मानव जनित जलवायु परिवर्तन की वजह से, ऐसी गर्मी की लहर की संभावना 30 गुना ज़्यादा हो सकती थी.

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक स्वायत्त संस्था, भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के मानसून विशेषज्ञ आर कृष्णन का कहना था कि मॉनसून की आंतरिक परिवर्तनशीलता में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देख पाना, एक ऐसी चुनौती है जो समय के साथ कठिन होती जाएगी.

उन्होंने समझाया कि मानसून की कुछ घटनाओं को जलवायु परिवर्तन से जोड़ना मुश्किल है, क्योंकि उसमें जटिल वायुमंडलीय पारस्परिक क्रिया शामिल होती है.

कृष्णन ने, जो आईआईटीएम के जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र के कार्यकारी निदेशक भी हैं, कहा, ‘निकट भविष्य (10-25 वर्ष) में बारिशों का पूर्वानुमान चुनौतीपूर्ण हो जाएगा, जिसमें आंतरिक परिवर्तनशीलता का दबदबा रहेगा. निकट भविष्य की अवधि के बाद के वर्षों में, हम मानसून पैटर्न्स पर ग्रीनहाउस गैसेज़ के प्रभाव को देख पाएंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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