संस्कृत, जिसे अकसर सभी भाषाओं की मां कहा जाता है, पिछले कुछ वर्षों से एक ज़ोरदार बहस का विषय रही है. इसे थोपने पर उठी लड़ाई से लेकर, स्कूलों में इसे अनिवार्य किए जाने के प्रस्ताव पर राजनीतिक घमासान तक, ज़्यादातर भारतीय सूबे इस प्राचीन भाषा को लेकर बंटे हुए हैं. लेकिन गुजरात में संस्कृत अपनी जगह को फिर से खोज रही है, जहां ऐसे छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो न केवल शैक्षणिक उद्देश्यों बल्कि साहित्य और संस्कृति को समझने के लिए भी इस भाषा को सीखना चाहते हैं. इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि राज्य में पहला संस्कृत साहित्य समारोह आयोजित होने जा रहा है.
‘अहं संस्कृतं वदामि, त्वं? (‘मैं संस्कृत बोलता हूं, क्या आप भी?’) संदेश के साथ, गुजरात के विभिन्न हिस्सों से विद्वान, कवि, छात्र और कलाकार 27 अगस्त को अहमदाबाद में एकत्र होंगे. समारोह के तीन आयोजकों में से एक, एकलव्य संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ मिहिर उपाध्याय कहते हैं, ‘हम लोगों को अवगत कराना चाहते हैं कि सभी आयु वर्गों और समुदायों के संस्कृत सीखने के लिए संसाधन उपलब्ध हैं. ये एक ऐसा मंच है जिस पर हम संस्कृत के बारे उत्सुक लोगों को, इसकी संभावनाओं और सुंदरता से परिचित करा सकते हैं.’
दो-दिवसीय आयोजन का उद्देश्य, जिसमें वेदों, साहित्य और अन्य विषयों पर चर्चा की जाएगी, संस्कृत को और अधिक सुगम और प्रासंगिक बनाना है. नडियाद-स्थित ब्रह्मर्षि संस्कृत महाविद्यालय के प्रिंसिपल डॉ अमृत भोगाइता ने कहा कि इस तरह का समारोह दुनिया के साथ जुड़ने की ओर एक क़दम है. मैंने अपने जीवन के 44 वर्ष संस्कृत सीखने और पढ़ाने को समर्पित किए हैं. हालांकि अब ज़्यादा संख्या में छात्र इस भाषा को सीखने के लिए आ रहे हैं, लेकिन ज़रूरी ये है कि इसे दुनिया के सामने एक सरल तरीक़े से पेश किया जाए.’
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संस्कृत सीखने का तकनीकी तरीक़ा
हाल ही में गुजरात में बहुत लोग संस्कृत की ओर आकर्षित हुए हैं. कुछ इसे भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने के लिए पढ़ना चाहते हैं, तो कुछ इसके ज़रिए साहित्य को गहराई से समझना चाहते हैं और कुछ ऐसे हैं जो इसे एक शौक के तौर पर अपनाते हैं. 33 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट जानवी वधेर का मानना है कि लोग संस्कृत को धर्म के साथ जोड़कर देखते हैं, लेकिन इसके बहुत सारे ग्रंथ ऐसे नहीं हैं.
वो कहती हैं, ‘संस्कृत बहुत विशाल है, इसके अंदर बहुत सारी परतें हैं और एक तरह से ये बहुत सी भाषाओं को सीखने की एक खिड़की है. मैंने इस भाषा को छह साल पहले सीखना शुरू किया था, और अभी तक रुकी नहीं हूं.’ समारोह में जानवी संस्कृत सीखने के लिए उपलब्ध तकनीकी संसाधनों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगी. ‘भाषा के लोकप्रियता हासिल करने के बावजूद, संस्कृत के लिए अध्यापक तलाशना मुश्किल होता है, लेकिन बहुत से संसाधन ऑनलाइन उपलब्ध हैं. पुरानी पांडुलिपियों, संस्कृत ग्रंथों, और साहित्य को डिजिटाइज़ करने के लिए अब बहुत काम किया जा रहा है. आज ऑप्टिकल कैरेक्टर रीडिंग एप्स, और स्पेशल ऑनलाइन कीबोर्ड्स भी उपलब्ध हैं.’
अब फिल्मों में संस्कृत
साहित्य समारोह में बोलचाल के शब्दों और थिएटर पर भी फोकस किया जाएगा.
अहमदाबाद की सीईपीटी यूनिवर्सिटी में एक विज़िटिंग इंस्ट्रक्टर नेहा कृष्ण कुमार कहती हैं, ‘ये सिर्फ भाषा सीखने की बात नहीं है, बात ये है कि आप इसे किस तरह सीखते हैं और आप इसमें कितना धाराप्रवाह संवाद कर सकते हैं. भाषा संचार के लिए होती है. हमारे पास दो नाटक हैं, एक कालिदास के मेघदूतम पर और दूसरा आदि शंकराचार्य के जीवन पर. मेघदूतम में उन लोगों के लिए गुजराती अनुवाद होगा, जो संस्कृत नहीं समझते. ये संस्कृत को अधिक आकर्षक बनाने का एक प्रयास है.’
इस अंतर्निहित संदेश के साथ दो-दिवसीय समारोह में बच्चों के लिए अलग सत्र होंगे और मनोरंजन उद्योग में संस्कृत के प्रभाव पर भी चर्चा की जाएगी.
शोधकर्ता और लेखक नंदिनी रावल कहती हैं, ‘संस्कृत एक लंबे समय से फिल्मों और संगीत को प्रभावित करती आ रही है, लेकिन ये रूढ़िवादी धारणा अब टूट रही है, इसे अब धर्म के चश्मे से आगे भी देखा जा रहा है. बाहुबली और आरआरआर जैसी फिल्मों में संस्कृत गीतों को फिर से बनाया गया है, जो काफी लोकप्रिय हो गए हैं. ब्रह्मास्त्र जैसी फिल्मों और असुर जैसे ओटीटी शोज़ में संस्कृत से प्रेरणा ली गई है, और वो शब्दावलियों से भरे हैं.’ कला, तकनीक और फिल्मों के माध्यम से, संस्कृत में एक नए जीवन का संचार हो रहा है. और ज़ोर शोर से बहस चल रही बहस के बीच, राज्य में बहुत से लोग इस प्राचीन भाषा की ओर आकर्षित हुए हैं.
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