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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशएनवी रमना—भारत के चीफ जस्टिस जिन्हें अदालत में वकीलों का चीखना-चिल्लाना कतई पसंद नहीं रहा

एनवी रमना—भारत के चीफ जस्टिस जिन्हें अदालत में वकीलों का चीखना-चिल्लाना कतई पसंद नहीं रहा

रमना के चीफ जस्टिस पद पर रहने दौरान जहां न्यायिक नियुक्तियों में वृद्धि हुई, वहीं देशद्रोह कानून निलंबित करने समेत कई अहम न्यायिक दखल सामने आए. हालांकि, उनके कार्यकाल में संविधान पीठ के किसी मामले की सुनवाई नहीं हुई.

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नई दिल्ली: देश के निवर्तमान चीफ जस्टिस एन.वी. रमना ने अपने रिटायरमेंट से एक दिन पहले गुरुवार को वकीलों को कुछ अलग ही तरह की सलाह दी. उन्होंने कहा, ‘कृपया चीखने-चिल्लाने का सहारा न लें. चिल्लाना आपके स्वास्थ्य को नुकसान ही पहुंचाता है और केस में इससे कुछ खास बदलता नहीं है. हम दक्षिण भारतीय जज चिल्लाना पसंद नहीं करते हैं, ऐसा लगता है कि जब कोई मामला कमजोर होता है तो इसका सहारा लिया जाता है.’

जस्टिस रमना ने जब 24 अप्रैल 2021 को सुप्रीम कोर्ट की बागडोर संभाली, तो कई चुनौतियां उनका इंतजार कर रही थीं. कोविड ने सुप्रीम कोर्ट में फिजिकल हियरिंग रोक दी थी, उनके पूर्ववर्ती चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाले कोलेजियम में आम सहमति के अभाव ने न्यायिक नियुक्तियों को भी लगभग ठप कर दिया था, खासकर शीर्ष अदालत में भरे जाने वाले पदों पर. यही नहीं कानून के महत्वपूर्ण सवालों से जुड़े कई केस महीनों से बिना सुनवाई के ही लंबित थे.

शांत और शालीन स्वभाव वाले सीजेआई ने धीरे-धीरे कई मुद्दे सुलझाए, जिनमें अधिकतर प्रशासनिक पहलू से जुड़े थे, जिसमें 2016 के बाद से रिक्तियों को निम्नतम स्तर पर लाना शामिल है. न्यायिक मोर्चे पर भी, उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामले उठाए, जिसमें राज्यों से अपने कार्यों का कानूनी औचित्य बताने को कहा गया.

हालांकि, जस्टिस रमना ने अपने 16 महीने लंबे कार्यकाल के दौरान संवैधानिक पीठ के किसी मामले की सुनवाई नहीं की. संविधान पीठ के समक्ष 492 मामले लंबित हैं जिन पर सुनवाई बाकी है. इनमें से 41 मामले मुख्य हैं, जिनमें फैसला आने पर इनसे जुड़े ज्यादातर मामलों का निपटारा भी हो जाएगा.

इसके अलावा, पिछले साल अप्रैल में उनके पद संभालने के बाद से लंबित केस 4,000 से अधिक बढ़े हैं, जबकि पहले से लंबित केस 67,000 से अधिक थे. मौजूदा समय में कम से कम 71,400 मामले ऐसे हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का इंतजार किया जा रहा है. इसके लिए जस्टिस रमना ने कोविड लॉकडाउन और पाबंदियों को जिम्मेदार ठहराया है.

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की तरफ से आयोजित एक समारोह में सीजेआई ने इस बात पर अफसोस जताया कि उनके 16 महीने के कार्यकाल के दौरान अदालत केवल 55 दिनों तक ही फिजकिल हियरिंग में सक्षम हो पाई. जस्टिस रमना ने कहा, ‘लोगों का हमसे बहुत ज्यादा उम्मीदें रखना स्वाभाविक है, लेकिन प्रकृति की ताकत के आगे हम सब बेबस थे.’

अब जबकि आज शुक्रवार को जस्टिस रमना रिटायर होने वाले हैं, सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले कई अधिवक्ता उनकी खासी सराहना कर रहे हैं. सीजेआई रमना के उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस उदय उमेश ललित 27 अगस्त को शपथ लेने वाले हैं.

सुप्रीम कोर्ट में वकील पल्लवी प्रताप के मुताबिक, जस्टिस रमना हाल के समय के ‘सबसे प्रेरणादायक’ मुख्य न्यायाधीश हैं.

उन्होंने कहा, ‘चीफ जस्टिस ने लॉकडाउन के बाद सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए चरणबद्ध तरीके से फिजिकल हियरिंग की व्यवस्था की, बार के कनिष्ठ सदस्यों को खुद अपने स्तर पर मामलों में बहस के लिए प्रोत्साहित किया, और नए मामलों के लिए एक ई-फाइलिंग प्रणाली को बढ़ावा दिया.’

वहीं, सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य अधिवक्ता नमित सक्सेना ने कहा कि हालांकि वह जस्टिस रमना के कार्यकाल के दौरान न्यायिक नियुक्तियों में आई तेजी और मौजूदा सीजेआई के ‘उत्कृष्ट भाषणों और व्याख्यानों’ से काफी प्रभावित हैं, लेकिन कई महत्वपूर्ण मामलों का निरंतर लंबित रहना निराशाजनक है.

सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऐश्वर्या सिन्हा ने भी इसी तरह की राय जताई. सिन्हा ने कहा, ‘सीजेआई के रूप में उनका कार्यकाल खट्टे-मीठे अनुभव वाला माना जाएगा, जिसमें एक तरफ न्याय प्रशासन में सुधार के अथक प्रयास हुए लेकिन राष्ट्रीय महत्व के कई महत्वपूर्ण मामले अनिर्णीत ही रह गए.’

सक्सेना ने कहा, ‘जस्टिस रमना के कार्यकाल के दौरान उनके सार्वजनिक भाषणों और वास्तविक स्तर पर शीर्ष अदालत की जस्टिस डिलीवरी के दौरान की गई अभिव्यक्तियों के बीच काफी अंतर था.’

आइये, यहां एक नजर डालते हैं उन चुनींदा उपलब्धियों—और कुछ कमियों—पर जिनके लिए बतौर सीजेआई जस्टिस रमना के कार्यकाल को याद रखा जाएगा.


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न्यायिक नियुक्तियां बढ़ीं

जस्टिस रमना के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ उच्च न्यायालयों में भी बड़े पैमाने पर न्यायिक नियुक्तियां हुईं, जिससे रिक्तियां 2016 के बाद से अपने निम्नतम स्तर पर आ गईं.

उनके नेतृत्व में कोलेजियम ने हाई कोर्टों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए 250 से अधिक सिफारिशें कीं. इसने उन नामों को भी दोहराया जो पहले सरकार की तरफ से लौटाए जा चुके थे और इनमें से कुछ की नियुक्तियों को अंततः मंजूरी भी मिल गई.

नौ महीने की अवधि के दौरान सुप्रीम कोर्ट में भी नई नियुक्तियां की गईं. जस्टिस रमना के पदभार संभालने के चार महीने बाद अगस्त 2021 में नौ न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई, जबकि अन्य दो ने इस साल मई में शपथ ली.

पहले नियुक्त नौ न्यायाधीशों में तीन महिलाएं शामिल हैं, जिनमें एक अनुसूचित जाति और दूसरी अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित हैं. तीन महिला न्यायाधीशों में से एक जस्टिस बी.वी. नागरत्ना 2024 में पहली महिला सीजेआई बनने जा रही हैं.

नियुक्तियों में आई यह तेजी जस्टिस रमना के करियर में सफलता का एक पड़ाव है, खासकर यह देखते हुए कि उनके पूर्ववर्ती जस्टिस एस.ए. बोबडे अपने 17 महीने के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक भी नियुक्ति कराने में असमर्थ रहे थे.

जस्टिस रमना के कार्यकाल के दौरान सरकार ने भी सबसे अधिक नियुक्तियों पर मुहर लगाई, जब 266 न्यायाधीशों को हाई कोर्टों में नियुक्त किया गया, जबकि जस्टिस बोबडे के समय यह आंकड़ा 104 और जस्टिस रंजन गोगोई के 13 महीनों के कार्यकाल के दौरान 107 रहा था.

कानून और न्याय मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, ‘1 जुलाई तक हाई कोर्टों में न्यायाधीशों के 1,108 स्वीकृत पद संख्या के मुकाबले केवल 381 रिक्तियां हैं. इस साल जनवरी और फरवरी में ये रिक्तियां 411 थीं, जबकि मार्च में यह आंकड़ा 387 और अप्रैल में 391 रहा.’

प्रशासनिक कार्यों की सराहना, और एक शिकायत

प्रशासनिक मामलों से जुड़े जिन फैसलों ने जस्टिस रमना को बार के लिए सराहनीय बना दिया, उनमें सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) को अपने आधिकारिक कार्यक्रमों के लिए शीर्ष कोर्ट के सभागार के उपयोग की अनुमति देना शामिल था. इसके पात्र अधिवक्ताओं को नए कक्ष आवंटन की भी सराहना की गई.

जस्टिस रमना ने प्रशासनिक स्तर पर अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता लाने के लिए भी कुछ अनूठी पहल कीं. उन्होंने संबंधित अधिकारियों को शीर्ष कोर्ट के अंतरिम आदेश, स्थगन आदेश, जमानत आदेश आदि भेजने के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म ‘फास्ट एंड सिक्योर्ड ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स’, या फास्टर को अमल में लाने में अपनी नजर रखी.

इसके अलावा, सीजेआई ने न्यायिक मामलों की हाइब्रिड सुनवाई की अनुमति दी और अदालती कार्यवाही में भाग लेने के लिए मीडिया तक विशेष ऑनलाइन पहुंच की अनुमति दी.

हालांकि, बार को जस्टिस रमना के कार्यकाल के दौरान एक समस्या अनसुलझी रहने को लेकर शिकायत है, और वह मामलों को सूचीबद्ध करने के तरीके से जुड़ी है. वकीलों को अक्सर शिकायत रहती है कि अदालत की तरफ से उनकी लिस्टिंग का आदेश होने के बावजूद मामलों को हटा दिया जाता है. इसे लेकर खासी नाराजगी रही, जिसकी वजह से अधिवक्ताओं को हर सुबह जस्टिस रमना की अदालत के सामने लाइन लगाने को बाध्य होना पड़ता था.

दिप्रिंट से बात करने वाले अधिवक्ताओं ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अगले सीजेआई बनने जा रहे जस्टिस यू.यू. ललित—जिन्हें सुप्रीम कोर्ट बार से बेंच में पदोन्नत किया गया है—मामलों को सूचीबद्ध करने की प्रणाली में सुधार के लिए बहुप्रतीक्षित बदलाव लाएंगे.


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प्रमुख न्यायिक हस्तक्षेप

जस्टिस रमना के कार्यकाल के दौरान कुछ महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप भी सामने आए. बतौर सीजेआई पदभार संभालने के कुछ ही महीनों के भीतर जस्टिस रमना ने पेगासस स्पाइवेयर मामले से जुड़ी याचिकाओं के एक बैच को सुना. अक्टूबर, 2021 में उनके नेतृत्व वाली एक पीठ ने आरोपों की जांच के लिए एक पैनल बनाया और मामले में जांच कराई. पीठ ने केंद्र सरकार के इनकार पर प्रतिकूल टिप्पणी करते हुए कहा कि वह स्पष्ट तौर बताए कि उसने स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं.

हालांकि, इस मामले को आखिरकार इस गुरुवार को सुना गया जब सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने समिति की रिपोर्ट को खुली अदालत में पढ़ा और फिर बिना कोई आदेश दिए ही इसकी सुनवाई चार सप्ताह टाल दी गई.

रमना की पीठ ने लखीमपुर खीरी मामले में भी कड़ा रुख अपनाया, जिसमें केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा पर वाहन से कुचलकर आठ लोगों की जान ले लेने का आरोप था. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश—जिसमें आशीष मिश्रा को जमानत दी गई थी—को चुनौती देने से इनकार किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह जमानत रद्द कर दी.

फिर, इस साल मई में रमना की पीठ ने ब्रिटिशकालीन राजद्रोह कानून (भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए) के तहत आपराधिक परीक्षण और अदालती कार्यवाही को निलंबित कर दिया, जबकि भारत संघ को दंडात्मक प्रावधान पर पुनर्विचार करने की अनुमति दी. यह आदेश इस धारा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिया गया और केंद्र सरकार की तरफ से इसे स्वीकार करते हुए इस पर ‘पुनर्विचार’ की जरूरत बताई गई.

रमना ने ट्रिब्यूनल में रिक्तियों से जुड़े मसले पर भी कड़ा रुख अपनाया. उन्होंने ट्रिब्यूनल में फास्ट-ट्रैक नियुक्तियों के प्रति गंभीर न होने को लेकर कई मौकों पर केंद्र सरकार की खिंचाई की.

अधिवक्ता पल्लवी प्रताप के मुताबिक, घरेलू श्रम में किसी महिला के योगदान को दफ्तर जाने वाले किसी पुरुष के कामकाज के बराबर ही घोषित करने वाले जस्टिस रमना के फैसले को अभूतपूर्व फैसले के तौर पर याद रखा जाएगा.

संवैधानिक मामले अनसुने रहे

हालांकि, उनके आलोचक संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और चुनावी बांड की वैधता को चुनौती दिए जाने जैसे कई महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों को सूचीबद्ध न किए जाने पर सवाल उठा रहे हैं. ये केस उनके पूर्ववर्तियों के समय भी लंबित रहे हैं.

सिन्हा ने कहा कि सीजेआई इस अहम पद पर रहने के बावजूद महत्वपूर्ण मामलों को निपटाने में विफल रहे. उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी संख्या में संविधान पीठ के समक्ष लंबित महत्वपूर्ण मामलों पर चुप्पी साध रखी है, जो कि दूरगामी नतीजों वाले साबित हो सकते हैं. लेकिन, ऐसे महत्वपूर्ण मामलों पर अब तक कोई फैसला नहीं आया है.’

हिजाब मामले में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने दिप्रिंट को बताया कि कई बार उल्लेख करने के बावजूद इस मामले को कभी सूचीबद्ध नहीं किया गया.

सिन्हा ने कहा कि इन मुद्दों के बावजूद महीनों बंद रही अदालतों में नियमित कामकाज फिर शुरू कराने और व्यवस्था को पटरी पर लाने के जस्टिस रमना के प्रयास ‘सराहनीय’ थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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