नई दिल्ली: भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के सूत्रों का कहना है कि आयोग को झारखंड के मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता हेमंत सोरेन के खिलाफ ‘पद के दुरुपयोग’ का मामला जारी रखने के लिए पर्याप्त सबूत मिले हैं.
दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, चुनाव आयोग ने सोरेन से जुड़े खनन पट्टा मामले में अपनी राय गुरुवार को राज्य के राज्यपाल रमेश बैस को भेज दी है. बैस अब बतौर विधायक सोरेन की अयोग्यता के सवाल पर फैसला करेंगे.
चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक, यह राय सोरेन, झारखंड के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह और अन्य के लिखित हलफनामों पर विचार करने के बाद बनी है.
झारखंड से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे ने मीडिया से कहा, ‘हमारी बात सही निकली, क्योंकि चुनाव आयोग ने खनन पट्टे के मामले में मुख्यमंत्री को अयोग्य घोषित करने की सिफारिश की है. हम इस केस में अंत तक लड़ेंगे.’
राज्यपाल बैस गुरुवार दोपहर को ही दिल्ली से रांची पहुंचे हैं और उम्मीद की जा रही है कि वे विधानसभा से सोरेन की अयोग्यता की सिफारिश करने से पहले कानूनी सलाह लेंगे.
माना जा रहा है कि इस तरह के किसी कदम से झारखंड में सत्तासीन झामुमो, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का गठबंधन के लिए एक बड़ा राजनीतिक संकट उत्पन्न हो जाएगा. मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए सरकार और भाजपा दोनों ने अगले कदम की तैयारियां शुरू कर दी हैं.
झारखंड के मुख्यमंत्री के लिए मुश्किलें फरवरी में उस समय शुरू हुईं, जब पूर्व सीएम और भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुबर दास ने सोरेन पर आरोप लगाया कि उन्होंने पिछले साल मई में रांची के अंगारा ब्लॉक में 0.88 एकड़ में फैली पत्थर की खदान के लिए खनन पट्टा एक ऐसी कंपनी को आवंटित किया जो खुद उनकी है. फिर जून 2021 में ग्राम सभा से इसे क्लियर करा लिया गया. सोरेन की कंपनी को सितंबर में परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी मिली.
इस सारे विवाद के बीच सोरेन के नेतृत्व वाले दो मंत्रालय भी प्रासंगिक हैं—उनके पास वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के साथ ही खान और भूविज्ञान मंत्रालय भी है.
फरवरी में राज्यपाल को सौंपी गई एक याचिका में भाजपा ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9ए के प्रावधानों के आधार पर सोरेन की अयोग्यता की मांग की थी. सीएम को विधानसभा के अयोग्य घोषित करने को लेकर काफी हो-हल्ला मचने पर राज्यपाल ने इस मुद्दे पर चुनाव आयोग की कानूनी राय मांगी.
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9ए कहती है कि ऐसे किसी भी व्यक्ति को सदन की सदस्यता (लोकसभा या राज्य विधायिका) के अयोग्य करार दिया जाएगा जो सरकार में रहते हुए अपने पद का दुरुपयोग करता है, मसलन वह अपने कारोबार या बिजनेस को लाभ पहुंचाने के लिए संबंधित सरकार के साथ सामानों की आपूर्ति या फिर किसी सरकारी कार्य के निष्पादन के लिए किसी तरह का कोई अनुबंध करता है.
यह भी पढ़ें: निर्मला सीतारमण की अहमियत- एकमात्र बीजेपी मंत्री जो मीडिया का सामना करती हैं
आगे का रास्ता
रघुबर दास के आरोपों के अगले ही दिन 11 फरवरी को सोरेन ने लीज सरेंडर कर दी. हालांकि, दास ने अप्रैल में झारखंड के सीएम के खिलाफ नए आरोप लगाए, और दावा किया कि सोरेन ने रांची के औद्योगिक क्लस्टर में अपनी पत्नी को 11 एकड़ जमीन आवंटित की थी. सोरेन के पास राज्य के उद्योग विभाग का प्रभार भी है.
बैस की तरफ से मामला चुनाव आयोग को भेजे जाने के बाद आयोग ने 8 अप्रैल को मुख्य सचिव सुखदेव सिंह से पट्टे से संबंधित प्रासंगिक और ‘प्रामाणिक’ दस्तावेज मांगे, जो झारखंड सरकार की ओर उपलब्ध कराए गए.
इसके बाद, चुनाव आयोग ने सोरेन से भी इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा.
इस बीच, झामुमो सूत्रों ने बताया है कि आयोग की तरफ से गुरुवार को अपनी राय राज्यपाल को भेजे जाने के बाद पार्टी ने अपने सभी विधायकों को रांची बुलाया है ताकि बतौर विधायक सोरेन के अयोग्य घोषित होने की स्थिति में पार्टी के रुख पर चर्चा की जा सके.
सूत्रों के मुताबिक पार्टी सरकार का नया मुखिया चुन सकती है और बहुत संभावना है कि सोरेन अपनी पत्नी कल्पना को इस पद पर बैठाने की कोशिश करेंगे.
इस बीच, दुबे ने कहा है, ‘मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद जो संवैधानिक संकट उत्पन्न होगा, उसमें आगे क्या करना है, यह हम तय करेंगे.’
पार्टी सूत्रों ने कहा कि भाजपा राज्य में प्रमुख विपक्षी दल है और उसने संकट की स्थिति में रणनीति बनाने के लिए नेताओं की बैठक बुलाई है.
भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘पहले तो हम यह देखेंगे कि हेमंत सोरेन का क्या होता है. कई मुद्दे दांव पर हैं, लेकिन अगर वह अपनी पत्नी को राज्य का नेतृत्व करने के लिए चुनते हैं, तो यह एक स्थिर सरकार नहीं होगी.’
वहीं, दुबे ने कहा कि अगर हेमंत सोरेन की सरकार गिरती है तो पार्टी राज्य में नए सिरे से चुनाव कराएगी.
उन्होंने कहा, ‘यह एक भ्रष्ट सरकार है जो अपने ही भ्रष्टाचार के कारण गिर रही है.’
झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने मई में दिप्रिंट से कहा था, ‘अगर वह अयोग्य घोषित हो भी जाते हैं तो किसी और को मुख्यमंत्री बनाने का कोई सवाल ही नहीं उठता है. संविधान कहता है कि बिना विधायक पद के भी कोई छह महीने के लिए मंत्री बना रह सकता है, और यह फिर यह पद बरकरार रखने के लिए उसे सदन के लिए निर्वाचित होना होगा. पश्चिम बंगाल में भी यही हुआ है.’
उन्होंने यह भी कहा था कि सोरेन अपनी अयोग्यता की सिफारिश करने वाले चुनाव आयोग के किसी भी फैसले को झारखंड हाई कोर्ट में चुनौती देंगे.
झारखंड सरकार और सीएम ने झारखंड हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की थी. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में इस केस में झामुमो नेता के खिलाफ जांच के लिए एक जनहित याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली थी.
सुप्रीम कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में सोरेन के खिलाफ हाई कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: लिकर-गेट, शराब राज, ऑपरेशन लूटस- टीवी न्यूज का असली मजा तो मौजूदा रेड राज में है