नई दिल्ली : राजस्थान में मुख्यमंत्री कौन होगा ये गुत्थी अब दिल्ली में सुलझेगी. पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पार्टी के युवा चेहरे सचिन पायलट के बीच राहुल को चुनाव करना है.
दोनों नेताओं के समर्थकों का भारी जमावड़ा कल दिन भर राज्य कांग्रेस दफ्तर पर रहा. गुरुवार को दिल्ली में भी यही नजारे देखने को मिल रहे हैं. कांग्रेस दफ्तर के बाहर सचिन पायलट के समर्थकों ने नारेबाजी की. समर्थकों को नियंत्रण में रखना अपने आप में एक चुनौती बन गई थी. पर दिन भर की माथापच्ची के बाद भी दोनों पक्ष अपनी दावेदारी पर अटल दिखे.
कांग्रेस ने राजस्थान में 199 में से 99 सीटें जीती हैं और इसलिये नेतृत्व का निर्णय और भी पेंचीदा हो गया है. हालांकि 6 सीट जीतने वाली बसपा ने पार्टी को समर्थन की घोषणा कर दी है. अगर पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल गया होता तो फिर ये निर्णय आसान होता. पार्टी का फैसला केवल मुख्यमंत्री चुनने का नहीं पर एक ऐसे नेता का चुनाव है जो 2019 में पार्टी की मदद कर सके. यानी ज़मीनी पकड़, जाति समीकरण में फिट बैठने वाला और दम खम से पार्टी की जड़ को मज़बूती करने वाला हो ऐसे सभी गुण नेता में चाहिए.
अब राहुल युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने की बात करते रहे हैं. ऐसे में राजेश पायलट के पुत्र सचिन पायलट की उम्मीदवारी दमदार हो सकती है. उनके समर्थक अपना दम खम दिखा भी रहे हैं. और पायलट ने जमकर चुनाव प्रचार में मेहनत भी की थी. पर वे गुज्जर समुदाय से आते हैं और उनका मुख्यमंत्री बनना राज्य के शक्तिशाली जाट समुदाय को पसंद नहीं आएगा.
वहीं दो बार मुख्यमंत्री रह चुके गहलोत की संगठन में पैठ है और समर्थकों को साथ लेकर चलने का ज्यादा अनुभव है. पार्टी को 2019 का लक्ष्य दिख रहा है. इसलिए उसे गहलोत की दावेदारी दमदार लग रही है. गहलोत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में एक है और कांग्रेस के कोर ग्रुप में उनके चाहने वाले ज्यादा हैं.
पर पायलट जनवरी 2014 में कांग्रेस राज्य इकाई के अध्यक्ष बने थे और उन्होंने पार्टी के 2014 के लोकसभा चुनावों में शून्य के आंकडे से निकाला और पार्टी में नई जान फूंकी. 2009 में कांग्रेस ने 20 लोकसभा सीटें जीती थीं, जो 2014 तक शून्य पर पहुंच गई थी.
पार्टी के राज्य पर्यवेक्षक राहुल गांधी के घर पर बैठक कर रहे हैं. माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी भी बैठक में शामिल होंगी.