नई दिल्ली: ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑ मेडिकल साइंसिज के डॉक्टरों के पैनल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता को दिया गया इलाज ‘उचित मेडिकल प्रेक्टिस के अनुसार था और उनकी देखभाल में कोई गलती नहीं’ पाई गई है. इस रिपोर्ट से अपोलो अस्पताल को क्लीन चिट मिल गई है जहां जयललिता भर्ती थीं.
जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के साथ, अरुमुघस्वामी आयोग की मदद करन के लिए एम्स पैनल का गठन किया गया था. पैनल ने पाया कि सभी फाइनल जांच और जयललिता के स्वास्थ्य का टाइमलाइन पूरी तरह से देखा गया था. समिति ने अपोलो के इलाज और देखभाल से भी सहमति जताई है.
बता दें कि, दिसंबर 2016 में जयललिता के निधन के बाद उनकी मृत्यु के कारण और उनके अस्पताल में भर्ती होने के दौरान की जाने वाली चिकित्सा प्रक्रियाओं पर पूरी तरह से राजनीति शुरू हो गई थी. तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम ने उनकी मृत्यु की जांच का अनुरोध किया था जिसके कारण अरुमुघस्वामी आयोग का गठन किया था.
अरुमुघस्वामी आयोग ने नवंबर 2017 में जयललिता के करीबी सहयोगियों, इलाज करने वाले डॉक्टरों, तमिलनाडु के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री विजयभाकर, तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव राधाकृष्णन, तमिलनाडु के तत्कालीन वित्त मंत्री और अन्नाद्रमुक के वरिष्ठ नेता ओ. पन्नीरसेल्वम से सुनवाई करने बाद अपनी जांच शुरू की थी.
जयललिता के संबंध में 157 से अधिक गवाह अरुमुघस्वामी आयोग के समक्ष पेश हुए और अपनी बात रखी.
इस बीच, 2019 में, अपोलो अस्पताल ने पूर्व जयललिता को दिए गए मेडिकल इलाज से संबंधित जांच पैनल की कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगाने की मांग करते हुए मद्रास हाई कोर्ट का रुख किया था.
इसके बाद अपोलो ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी जहां उसने एम्स को अरुमुघस्वामी आयोग को जयललिता को दिए गए मेडिकल इलाज को समझने में सहायता करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड स्थापित करने का आदेश दिया था.
मेडिकल रिकॉर्ड के आधार पर, श्वसन संक्रमण के साथ बैक्टीरिमिया और सेप्टिक शॉक का इलाज किया गया था.
दिल का दौरा पड़ने के भी सबूत मिले हैं. अस्पताल में भर्ती होने के समय उन्हें अनियंत्रित डायबिटिज थी जिसका इलाज किया गया था.
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