नई दिल्ली: क्या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को सीबीआई के उस ऑपरेशन का नेतृत्व करना चाहिए था जिसके ज़रिए एक विदेशी नागरिक का प्रत्यर्पण कराया गया. रक्षा सौदे में घोटाले के इस केस में, जिसका रक्षा क्षेत्र से ज़्यादा राजनीतिक महत्व है.
और अगर अजीत डोभाल ने लक्षमण रेखा पार की और इस ऑपरेशन का नेतृत्व किया तो सीबाआई ने उनके योगदान को स्वीकार करके क्या संदेश दिया. तब जबकि एक वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी ने कुछ हफ़्ते पहले ही सीबीआई में चल रहे झगड़े के बीच डोभाल पर ‘सीबीआई की जांच को प्रभावित’ करने का आरोप लगाया था.
कई सवाल उठ खड़े हुए हैं क्योंकि यूएई से ब्रिटिश नागरिक क्रिश्चियन मिशेल के प्रत्यर्पण में आश्चर्यजनक तरीके से सीबीआई ने डोभाल की भूमिका को स्वीकार किया. मिशेल पर 3600 करोड़ के अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में घूस देने का आरोप है.
इस केस की राजनीतिक अहमियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने, जो डोभाल के बॉस हैं चौबीस घंटे से भी कम समय में मिशेल के प्रत्यर्पण को राजस्थान में अपनी प्रचार खत्म होने से पहले की आख़िरी रैली में सोनिया गांधी पर हमला करने के लिए जोर शोर से उठाया क्योंकि उनका नाम अगस्ता डील के साथ जोड़ा जाता रहा है.
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति राजनीतिक होती है तो नियम कहता है कि ऐसे में उन्हे सीबीआई के किसी भी काम में या जांच में या ऑपरेशन में दखल नहीं देना चाहिए क्योंकि सीबीआई एक स्वतंत्र संस्था है.
सीबीआई का ये स्वीकर करना कि डोभाल उनके ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे थे सीबीआई पर राजनीतिक दबाव और प्रभाव को और रेखांकित करता है. ये वही आरोप है जो बार- बार सीबीआई को लेकर दिया जाता हैं.
दिप्रिंट को सूत्रों ने बताया कि सीबीआई के बयान में डोभाल का नाम अंतरिम निदेशक नागेश्वर राव की मंज़ूरी के बिना नहीं शामिल किया गया होगा. ये वो अधिकारी है जिन पर फंड के गलत इस्तेमाल का और जांच को प्रभावित करने का आरोप हैं.
नागेश्वर राव की नियुक्ति के बाद एम के स्टालिन ने आरोप लगाया था कि राव को राफेल घोटाले की जांच को दबाने के लिए लाया गया जिसके ज़रिए विपक्ष, खास तौर पर कांग्रेस, सरकार को घेर रही है.
सीबीआई के बयान ने एम के सिन्हा द्वारा लगाए गए आरोपों को बल दे दिया है.
सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट में एक अप्लिकेशन दी थी नरेन्द्र मोदी सरकार के कई वरिष्ठ अधिकारियों पर सीबीआई के काम मे दखल देने के लिए खासतौर पर डोभाल और सीवीसी के वी चौधरी पर गंभीर आरोप लगाए थे.
डोभाल पर खास तौर पर मोइन कुरैशी को घूस केस में फंसे एक बिचौलिए के पक्ष में दखलअंदाज़ी करने का आरोप लगा था. ये वो केस है जिसमे सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और उप-निदेशक राकेश अस्थाना दोनों को छुट्टी पर भेज दिया गया था और नागेश्वर राव को जांच पूरी होने तक अंतरिम निदेशक बना दिया गया था.
‘दोभाल शुरू से शामिल थे’
दिप्रिंट के सीबीआई सूत्रों ने बताया कि अजीत डोभाल ने मिशेल के प्रत्यर्पण के ऑपरेशन को मार्च 2017 से सिर्फ सुप्रवाइज़ ही नहीं किया बल्कि उन्होने खुद यूएई के राजनयिकों के साथ इस ऑपरेशन की सफलता के लिए कॉर्डिनेट किया. सूत्र ने दिप्रिंट को बताया की वे पूरे ऑपरेशन में शुरू से शामिल थे ‘एक पार्टी के तौर पर नहीं एक गाइड की तरह.’
उन्होंने कहा, ‘हम न केवल उनके पास चर्चा के लिए गए पर उनसे सुझाव भी लिए और हमने केस पर इतना काम किया कि वो इतना मज़बूत हो जाए कि उनका प्रत्यर्पण हो सकें.’
उन्होंने साथ ही कहा ‘ ये बहुत ही चैलेंजिंग केस था क्योंकि जेम्स ब्रिटिश नागरिक है और यूएई में तीसरे देश का नागरिक है. ये तो मामले के हमारे पास इतने पुख्ता सबूत थे कि इसपर हमें राजनयिक समर्थन प्राप्त हुआ.’
सूत्रों के मुताबिक एनएसए से मदद ली जाती है खास तौर पर विदेश में जब किसी तरह की मदद की ज़रूरत होती है. क्योंकि उनके दूसरे देशों के एनएसए के साथ संबंध होते हैं मगर वो ज़्यादातर एक अदृष्य ताकत की तरह काम करते हैं.
अगर वो किसी केस को सुपरवाइज़ भी करते हैं तो सार्वजनिक तौर पर इसकी चर्चा नहीं होती.
डोभाल ने अपने समकक्ष से ‘कई मौकों पर बात की और मीटिंग भी कराई ज़रूरी कार्रवाई में भी उन्होंने मदद की.’
‘पहले भी प्रत्यर्पण के मामलों में या उन मामलों में जो अभी भी चल रहे हैं, एनएसए से सलाह ली जाती है हालांकि वो ऑपरेशन की प्रक्रिया के बारे में नही जानते.’
विपक्ष ने मुद्दा बना दिया है
विपक्ष ने सीबीआई के बयान के बाद सरकार पर सीबीआई के काम में दखल देने का आरोप लगाया हैं.
कांग्रेस प्रवक्ता अजॉय कुमार ने कहा ‘बीजेपी संस्थाओं में विश्वास नहीं रखती. सरकार सीबीआई के अंदरूनी मामलों में दखल दे रही हैं. सीबीआई को स्वतंत्र संस्था के तौर पर काम करने देना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘प्रत्यर्पण पूरी दुनिया में होता है, उसके नियम हैं सिस्टम है, हमारी सरकार अबु सलेम को भारत लाई थी लेकिन हमने उसका मुद्दा नहीं बनाया. ये नॉर्मल बात हैं.’
‘अजीत डोभाल का सुरक्षा सलाहकार का प्रत्यर्पण में क्या रोल है. दरअसल नागेश्वर राव ने साबित कर दिया कि अगर डोभाल उन्हें कूदने को कहेंगे तो वो पूछेंगे कितना ऊंचा कूदूं.’ कुमार का इशारा नागेश्वर राव पर था.
हालांकि कांग्रेस मोदी सरकार और सीबीआई को घेरने के लिए इसे मुद्दा बनाना चाहेगी लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि डोभाल का मिशेल के प्रत्यर्पण से जुड़ना सीबीआई पर लग रहे आरोपों को और बल देगा और सीबीआई की राजनितिक निपक्षता पर सवाल खड़ा करेगा.
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