नयी दिल्ली, 17 अगस्त (भाषा) देवास मल्टीमीडिया ने इसरो की वाणिज्यिक इकाई एंट्रिक्स की अमेरिका में रखे 1,45,000 डॉलर नकद जब्त कर लिए हैं। कंपनी ने उपग्रह से संबंधित सौदा रद्द होने के मामले में अदालत से अपने पक्ष में फैसला आने के बाद 1.2 अरब डॉलर की क्षतिपूर्ति के तहत यह कदम उठाया है।
देवास शेयरधारकों के अधिवक्ता और गिब्सन, डन एंड क्रचर में भागीदार मैथ्यू डी मैकग्रिल ने कहा कि वर्जीनिया के पूर्वी जिला अदालत से पक्ष में फैसला आने के बाद देवास मल्टीमीडिया अमेरिका इंक ने 1.1 करोड़ नकद जब्त कर लिए हैं।
उपग्रह क्षेत्र की कंपनी 2011 में देश में वायरलेस ब्रॉडबैंड विकसित करने से संबंधित अनुबंध रद्द होने के बाद से भारत सरकार के साथ कानूनी लड़ाई लड़ रही है।
मामले में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 1.2 अरब डॉलर के भुगतान का आदेश दिया था। लेकिन सरकार ने भुगतान करने से इनकार कर दिया। उसका आरोप था कि 2005 के अनुबंध में धोखाधड़ी हुई थी।
अमेरिकी निवेश समूह कोलंबिया कैपिटल और टेलीकॉम वेंचर्स के साथ-साथ डॉयचे टेलीकॉम जैसे देवास के शेयरधारक आदेश के बाद से धन की वसूली के लिये विदेशों में भारतीय की संपत्ति पर नजरें टिकाए हुए थे। उन्हें लगता था कि कंपनी का यह पैसा भारत के ऊपर बकाया है।
मैकगिल ने कहा, ‘‘एंट्रिक्स की संपत्ति को जब्त किया जाना एक स्पष्ट संदेश देता है। नरेंद्र मोदी सरकार की उग्र रणनीति, फर्जी धोखाधड़ी के दावों, इंटरपोल प्रक्रिया का दुरुपयोग और विश्वनाथन को दबाने की कार्रवाई के बावजूद देवास के शेयरधारक भारत सरकार से जो राशि लेनी है, उसकी वसूली से पीछे हटने वाले नहीं हैं।’’
संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई ऐसे समय हुई है, जब भारत सरकार देवास के सह-संस्थापक रामचंद्रन विश्वनाथन की गिराफ्तारी और अभियोजन चलाने पर जोर दे रही है।
उल्लेखनीय है कि देवास के शेयरधारकों को इससे पहले पेरिस में भारतीय संपत्तियों को जब्त करने के लिये फ्रांस की एक अदालत का आदेश मिला था और कनाडा में ‘इंडिया फंड्स’ द्वारा बनाये गये कोष पर आंशिक अधिकार मिला था।
अमेरिकी अदालत ने 14 सितंबर, 2015 के अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण के आदेश की पुष्टि की। मॉरीशस के निवेशकों को 11.1 करोड़ डॉलर की क्षतिपूर्ति का आदेश दिया गया। वहीं एक अन्य विदेशी निवेशक डॉयचे टेलीकॉम को 10.1 करोड़ डॉलर की क्षतिपूर्ति का आदेश दिया गया।
इस बारे में वित्त मंत्रालय को ई-मेल भेजकर प्रतिक्रिया मांगी गयी लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया।
भाषा
रमण अजय
अजय
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