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सोमवार, 30 जून, 2025
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रेडक्लिफ रेखा के 75 वर्ष: आजादी के दो दिन बाद हुई थी प्रकाशित, बड़े पैमाने पर हुआ था पलायन

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(कुणाल दत्त)

नयी दिल्ली, 17 अगस्त (भाषा) आज से ठीक 75 साल पहले देश को ब्रिटिश शासन से आजादी मिलने के दो दिन बाद ही उपमहाद्वीप को बांटने वाली एक सीमा रेखा ‘रेडक्लिफ लाइन’ प्रकाशित हुई थी जिसके जरिये भारत और नव-सृजित पाकिस्तान के बीच सरहद का भौगोलिक सीमांकन किया गया था।

रेडक्लिफ रेखा 17 अगस्त, 1947 को प्रकाशित हुई थी। ब्रिटिश वकील सर सिरिल रेडक्लिफ ने दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण किया था। विभाजन के साथ ही हिंसा और सांप्रदायिक हिंसा फैल गई थी और बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन हुआ था। सीमा के दोनों ओर पंजाब और बंगाल के बड़े प्रांतों में भौगोलिक बदलाव हुआ था।

पश्चिमी पंजाब पश्चिमी पाकिस्तान का हिस्सा बन गया जबकि पूर्वी पंजाब भारत को दे दिया गया और बंगाल के विभाजन के बाद कई पूर्वी हिस्सों को पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया गया।

यह सिर्फ एक क्षेत्रीय विभाजन नहीं था। विभाजन के जरिये रेलवे, संस्थानों और पुस्तकालयों का विभाजन भी हुआ। विभाजन के समय हिंसा और अराजकता की घटनाएं भी सामने आई।

हिंसा में मारे गये लोगों के शवों से लदी रेलगाड़ियां सीमा के निकट स्टेशनों पर पहुंचने लगी थी। बड़ी संख्या में लोग अपने घर और सामान को छोड़कर सीमा के आर-पार जाने लगे। कई लोग भूखे मर रहे थे और कई अपनी ‘नई मातृभूमि’ जाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।

मानव त्रासदी और तबाही इतनी भयावह थी कि ऐसा कहा जाता है, रेडक्लिफ ने अपने कागजात जला दिए और अपने इस काम के लिए भुगतान स्वीकार नहीं किया।

कवि डब्ल्यू. एच. ऑडेन ने 1966 में ‘विभाजन’ शीर्षक से एक कविता लिखी, जिसमें उनके काम को आलोचना के रूप में दिखाया गया है।

रेडक्लिफ ने संयुक्त आयोग का नेतृत्व किया, जिसे भारत की स्वतंत्रता से कुछ समय पहले भारतीय उपमहाद्वीप के पंजाब और बंगाल क्षेत्रों को भारत और मुस्लिम-बहुल पाकिस्तान के बीच विभाजित करने की सिफारिश करने के लिए स्थापित किया गया था।

ब्रिटिश भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा नियुक्त आयोग में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चार सदस्य और मुस्लिम लीग के चार सदस्य शामिल थे और इसकी अध्यक्षता रेडक्लिफ ने की थी।

अमेरिका में रहने वाले तरुणजीत सिंह बुटालिया, जिनके पूर्वज एक गांव के थे, जो अब पश्चिमी पंजाब, पाकिस्तान में पड़ता है, ने बचपन से ही अपने बड़ों से विभाजन की कहानियां सुनी हैं।

उन्होंने ओहियो से ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘विभाजन से पहले और बाद में हिंसा हुई और इसने लोगों के घरों, सपनों, उम्मीदों को तोड़ दिया। हमारे पुश्तैनी घर को सितंबर 1947 में पड़ोस के गांव की भीड़ ने आग लगा दी थी। लेकिन, कुछ स्थानीय मुसलमानों ने हमारे परिवार के सदस्यों के घर और जीवन को बचाया। लेकिन, स्थिति को बिगड़ता देख मेरे दादा-दादी और परिवार के अन्य सदस्य भारत के लिए रवाना हो गए। मैंने उन कहानियों को कई बार सुना है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मेरी मां का जन्म लाहौर में हुआ था और वह वहां अपने बचपन के दिनों को भी याद करती हैं। बंटवारे ने क्षेत्रों को बांट दिया, लेकिन हमें पहले अपने दिलों में बनी ‘सीमा’ को मिटाना होगा क्योंकि नफरत से हमारा कोई फायदा नहीं होने वाला है।’’

ओहियो राज्य विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले सिंह ने कहा, ‘‘मेरा जन्म 1965 में चंडीगढ़ में हुआ था, जब मेरे पिता सेना में थे, पाकिस्तान के खिलाफ लड़ रहे थे… रेडक्लिफ रेखा को बने 75 साल पूरे होने पर, मैंने पंजाबी में एक कविता लिखी है।’’

भाषा

देवेंद्र माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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