नई दिल्ली: हरीश चंद्र गुप्ता एक बेहद अलग किस्म के आईएएस अधिकारी हैं, जो केंद्र सरकार में सचिव के तौर पर रिटायर हुए हैं, और तबसे भ्रष्टाचार के 11 हाई-प्रोफाइल मामलों में दोषी करार दिए जा चुके हैं और सेवानिवृत्ति के 14 साल बाद जेल जाने की आशंकाओं का सामना कर रहे हैं.
इसके साथ, पूर्व कोयला सचिव एच.सी. गुप्ता एक और मायने में दुर्लभ अधिकारी हैं और कारण एकदम असामान्य है, क्योंकि हर शीर्ष आईएएस अधिकारी जो उन्हें जानता है, भले ही उसने उनके साथ काम किया हो या नहीं, उनकी ‘ईमानदारी’ की पुष्टि कर रहा है और उनकी नजरों में वह कुछ भी गलत करने वाले आखिरी अधिकारी होंगे. यह बात आईएएस अधिकारी खुले तौर पर ऑन रिकॉर्ड कह रहे हैं. जबकि सामान्यत: सेवारत या सेवानिवृत्त नौकरशाह ऐसा न करने के लिए ख्यात होते हैं.
वे उनकी बुद्धिमत्ता, उनकी सादगी और इससे भी महत्वपूर्ण बात, सार्वजनिक जीवन में उनकी ईमानदारी के कायल हैं. आईएएस में एक जूनियर को याद है कि उसने गुप्ता को कैसे साधारण कपड़ों में, सामान्य-सी सैंडल पहने और कंधे पर झोला लटकाए अपनी पत्नी के साथ राजधानी के मिडिलक्लास हब सरोजिनी नगर बाजार में सड़क किनारे खड़े होकर गोलगप्पे खाते देखा था.
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सेवानिवृत्त कोयला सचिव अनिल स्वरूप, जिन्होंने मंत्रालय में गुप्ता की जगह ली थी, ने 74 वर्षीय पूर्व अफसर के भाग्य को ‘शेक्सपियरिन ट्रेजडी’ बताया है.
दिल्ली की एक विशेष सीबीआई कोर्ट ने इस सोमवार को गुप्ता को महाराष्ट्र में एक कोयला ब्लॉक के आवंटन में अनियमितताओं से जुड़े केस में तीन साल जेल की सजा सुनाई. कोयला मंत्रालय में उनके तत्कालीन सहयोगी, पूर्व संयुक्त सचिव के.एस. क्रोफा को भी इस मामले में दो साल की सजा सुनाई गई है.
दिसंबर 2005 और नवंबर 2008 के बीच कोयला सचिव रहे गुप्ता यूपीए सरकार के दौरान कोयला ब्लॉकों के आवंटन में कथित अनियमितताओं के 12 मामलों में आरोपी हैं. अभियोजन पक्ष अब तक 12 में से 11 मामलों में आरोपियों को दोषी साबित कर चुका है.
2019 में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी गुप्ता को एक मामले में बरी कर दिया गया था, जबकि कुछ अन्य मामलों में उनकी अपील दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष लंबित है.
वह फिलहाल जमानत पर बाहर हैं, उन्हें सीबीआई कोर्ट की तरफ से ‘आपराधिक साजिश’ और ‘धोखाधड़ी’ का दोषी ठहराया गया है.
अदालत ने कहा कि कोयला सचिव के नाते वह जिस स्क्रीनिंग कमेटी का नेतृत्व करते थे, उसने बिना किसी ठोस पड़ताल के निजी कंपनियों को 40 कोयला ब्लॉक आवंटित किए थे, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2014 में 200 से अधिक कोयला ब्लॉक के आवंटन रद्द कर दिए थे, जिन्हें उसने पहले ‘अवैध’ माना था.
आरोपों और बाद में दोषी करार दिए जाने के बावजूद आईएएस सेवा में गुप्ता के सहयोगियों का मानना है कि उनकी ‘सत्यनिष्ठा में कोई खामी नहीं’ निकाली जा सकती. यह स्थिति तभी से ही जबसे वह आरोपों के घेरे में आए हैं और उन्होंने खुद को गलत तरीके से ‘फंसाया गया’ बताया है.
विवाद का एक प्रमुख बिंदु यह है कि गुप्ता को जिन प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया, उनमें से एक भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धारा 13(1)(डी)(iii) भी है, जो किसी लोक सेवक के आपराधिक कदाचार से संबंधित है. ये प्रावधान 2018 में इस तरह की आलोचना के बाद संशोधित किया गया था कि तथ्यात्मक तौर पर गलत काम किसी अधिकारी को फंसाने के लिए पर्याप्त है, चाहे आपराधिक इरादे का सबूत हो या नहीं.
यद्यपि आरोपपत्र इस धारा में संशोधन से पहले तैयार किया गया था, लेकिन कुछ आईएएस अधिकारियों का सवाल है कि गुप्ता को इस पुराने ‘सख्त’ कानून के तहत दंडित क्यों किया जा रहा है.
‘सरकार को पता है कि वह एकदम ईमानदार हैं’
गुप्ता यूपी कैडर के 1971 बैच के अधिकारी हैं. 1995 में मायावती के मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद उनके करियर में राज्य के गृह सचिव के तौर पर पदभार संभालने की उपलब्धि जुड़ी.
गुप्ता के साथ काम कर चुके यूपी-कैडर के 1982-बैच के एक सेवानिवृत्त अधिकारी याद करते हैं कि गुप्ता अपनी ईमानदारी के लिए ख्यात थे.
रिटायर अधिकारी ने बताया, ‘सीएम को एक ऐसे अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार की तमाम शिकायतें मिली थीं, जो बहुत शक्तिशाली थे. और अन्य अधिकारी उनके मामले में हाथ डालने या फाइल पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी देने से बचते थे. तब सीएम ने गुप्ता को बुलाया, जो अपनी निष्पक्षता और ईमानदारी के लिए ख्यात थे. गुप्ता ने संबंधित अधिकारी की फाइल देखने के बाद सीएम को बताया कि शिकायतें सही हैं. इसके बाद अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की गई और उन्हें हटा दिया गया.’
गणित और भौतिकी में पोस्ट ग्रेजुएट गुप्ता को उनके बैचमेट्स ‘काफी बुद्धिमान’ बताते हैं.
उनके बैचमेट पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी बताते हैं कि गुप्ता एक मेधावी छात्र और अपने बैच के टॉपर थे. कुरैशी ने कहा, उन्होंने तीन मुख्य विषयों में 600/600 अंक हासिल किए थे. वह एक अच्छे खिलाड़ी भी थे.’
दिप्रिंट ने जिन सिविल सेवकों से बात की उन सभी ने उनकी सत्यनिष्ठा के अलावा उनकी सादगी और संयमी जीवनशैली की पुष्टि की.
यूपी-कैडर के 1982 बैच के एक अधिकारी को याद है कि भारत सरकार में सचिव रहने के दौरान भी गुप्ता को दिल्ली के हलचल भरे सरोजिनी नगर बाजार में गोलगप्पे खाने जैसा आनंद उठाते देखा जा सकता था. अधिकारी ने कहा, ‘मैं उनकी सादगी का कायल हो गया था. आमतौर पर राजधानी में सचिव स्तर के अधिकारियों को इस तरह नहीं देखा जाता है.’
कुरैशी ने भी गुप्ता की ‘साधु जैसी सादगी’ की सराहना की.
उन्होंने कहा, ‘मैं वास्तव में नहीं जानता कि ईमानदार अधिकारियों के पास बचाव के क्या रास्ते हैं. सरकार जानती है कि वह ईमानदार हैं और उन्होंने कोई आर्थिक लाभ नहीं उठाया है…क्या उसने उनके बचाव में आगे नहीं आना चाहिए?’
कुरैशी ने कहा कि भ्रष्ट अधिकारियों के आराम से छूट जाने के कई उदाहरण सामने हैं.
उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर भ्रष्ट अधिकारी अपना काम संभलकर करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि सिस्टम का फायदा कैसे उठाना है. यूपी आईएएस एसोसिएशन राज्य के सबसे भ्रष्ट अधिकारियों की सूची के साथ सामने आया. उनका कुछ नहीं हुआ, लेकिन यहां एक अधिकारी है जिसने जीवन में गलत तरीके से एक पैसा भी नहीं कमाया और उसे जेल की सजा सुनाई गई है.’
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‘पुराने कठोर कानून के तहत सजा दी गई’
सेवानिवृत्त कोयला सचिव अनिल स्वरूप का कहना है कि गुप्ता को ‘पुराने कठोर कानून के तहत सजा’ दी गई है. गुप्ता का केस उन मामलों में से एक था, जिसके बाद सरकार हरकत में आई और उसने भ्रष्टाचार रोकथाम कानून की धारा 13(1)डी(iii) में संशोधन किया गया.
यह धारा किसी लोकसेवक को आपराधिक मामले में जवाबदेह बनाती है, अगर वो ‘लोकसेवक के पद पर रहने के दौरान, किसी सार्वजनिक हित के बिना किसी भी व्यक्ति के लिए कोई मूल्यवान सामान या आर्थिक लाभ प्राप्त करता है.’
यह धारा लगातार आलोचना के घेरे में रही है क्योंकि लचर शब्दावली की वजह से, ‘सार्वजनिक हित’ की उचित परिभाषा के अभाव में इसके तहत आपराधिक मंशा साबित करने के लिए किसी भी साक्ष्य की जरूरत नहीं थी.
स्वरूप ने कहा कि वरिष्ठ लोक सेवकों और आईएएस एसोसिएशनों के दबाव को देखते हुए सरकार ने 2018 में धारा 13(1)(डी) समेत इस कानून में बदलाव किया.
संशोधन में ये प्रावधान शामिल था कि किसी लोकसेवक को आपराधिक कदाचार का जिम्मेदार तभी माना जा जाएगा, अगर वह ‘अपने कार्यकाल के दौरान जानबूझकर स्वयं गैरकानूनी तरीके से संपत्ति अर्जित करता है’ या ‘अगर उसने उसके अधिकार में दी गई किसी संपत्ति या लोकसेवक के तौर पर उसके नियंत्रण में रही किसी परिसंपत्ति का बेईमानी से या धोखाधड़ी से गलत तरीके से या अपने खुद के लिए इस्तेमाल किया हो अथवा किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा करने की अनुमति दी हो.’
रिटायर्ड कोयला सचिव ने कहा, ‘अफसरों की एसोसिएशनों के अनुरोध की वजह से सरकार ने कानून में ऐसे बदलाव किए. लिहाजा यह ऐसा कुछ नहीं था कि सरकार ने कुछ अपनी ओर से किया हो.’
स्वरूप ने हालांकि इसे ‘शेक्सपियरिन ट्रेजेडी’ करार दिया, क्योंकि संशोधन कानून के बावजूद ‘गुप्ता को लगातार पुराने कठोर कानून के तहत दंडित किया जा रहा है.’
उन्होंने कहा कि इसके लिए जो तर्क दिया जा रहा है, उसकी हाईकोर्ट द्वारा समीक्षा किए जाने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘मेरी समझ से, तमाम मामलों में हाईकोर्ट ने यह मत बनाया है कि अगर कोई कानून संशोधित हो गया है तो किसी आरोपी को पुराने प्रावधानों के तहत दोषी कैसे ठहराया जा सकता है? मान लीजिए कि हत्या के लिए मौत की सजा है और अगर अब कानून में बदलाव के बाद इसके लिए आजीवन कारावास का प्रावधान होता है—तो क्या किसी पुराने केस में व्यक्ति को फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा? लेकिन ये सारे वो सवाल हैं, जिन पर हाईकोर्ट को निर्णय करना है.’
कई पूर्व और सेवारत आईएएस अफसरों का कहना है कि गुप्ता के साथ जो कुछ घटित हो रहा है, वो सभी सेवारत सिविल सेवकों के मनोबल को गिराने वाला है.
गुप्ता के बैचमेट रहे पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने कहा, ‘उनके साथ जो कुछ घट रहा है, वो पूरी तरह न्याय के साथ खिलवाड़ है. सरकार के सचिव के तौर पर आप बहुत की समितियों की अगुवाई करते हैं और किसी भी प्रस्ताव की जांच उनके अधीन तमाम अफसर करते हैं. उन्हें किसी ऐसी चीज के लिए जिम्मेदार ठहराना पूरी तरह समझ से परे हैं, जहां उन्हें अंतिम निर्णय़ लेने का अधिकार भी नहीं था.’
उन्हें 2019 में जिस मामले में बरी कर दिया गया था, उसके बारे में गुप्ता का कहना था कि कोल ब्लॉक आवंटन का फैसला स्क्रीनिंग कमेटी ने आम सहमति से लिया था और यह उनका अकेले का फैसला नहीं था. कोर्ट ने अंतत: फैसले में कहा कि गुप्ता की कोई ‘दुर्भावनापूर्ण मंशा’ साबित नहीं की जा सकी है.
जवाबदेही का सवाल
स्वरूप ने कहा कि अगर तर्क के आधार पर गुप्ता को जवाबदेह ठहराया जाता है तो तत्कालीन प्रधानमंत्री समेत स्क्रीनिंग कमेटी के अन्य सदस्यों को भी समान रूप से जवाबदेह होना चाहिए.
स्वरूप ने कहा, ‘तत्कालीन पीएम की उन सभी सूचनाओं तक पहुंच थी, जो हरीश गुप्ता के पास थीं. इस हिसाब से दोनों समान रूप से उत्तरदायी हैं. मेरा निजी विचार है कि दोनों जिम्मेदार नहीं हैं. लेकिन अगर आप हरीश गुप्ता को जिम्मेदार ठहराते हैं तो पीएम भी उतने ही जवाबदेह हैं.’ अन्य अधिकारी भी इस राय से सहमत दिखे.
कुरैशी के मुताबिक, ‘यह स्पष्ट था कि गुप्ता का खुद लाभ उठाने का कोई इरादा नहीं था.
उन्होंने कहा, ‘चिव स्तर के अधिकारी के लिए यह संभव नहीं कि वो दस्तावेज के हर शब्द को पूरे ध्यान से पढ़ पाए…ज्यादा से ज्यादा लापरवाही का आरोप लग सकता है. लेकिन आप 74 साल के पूर्व नौकरशाह को इस तरह प्रताड़ित नहीं कर सकते. यह न्याय का उपहास है.’
भारी उद्योग मामलों के पूर्व सचिव राजन कटोच कहते हैं, हो सकता है गुप्ता ने कोल ब्लाक आवंटन के लिए सिफारिशें की हों लेकिन आखिरी निर्णय़ तो सरकार को लेना था.
कटोच ने कहा, ‘कोल ब्लाक आवंटन का अंतिम निर्णय अकेले उनके स्तर पर नहीं किया गया, लेकिन फिर भी उनको भ्रष्टाचार रोकथाम कानून की धारा 13(1)(डी) के तहत दोषी ठहराया गया. यह मजाक ही है कि कानून की उस धारा में बदलाव कर दिया गया, लेकिन इस मामले में उसे लागू नहीं किया गया है.’
एकजुटता का अनोखा उदाहरण
दिप्रिंट ने जिन नौकरशाहों से बात की, उनका कहना है कि सामान्यत: यह नहीं देखा जाता कि सेवारत और सेवानिवृत्त आईएएस अफसर किसी अन्य सिविल सेवक के लिए आगे आए हों. लेकिन गुप्ता की ईमानदारी ने आईएएस बिरादरी को उनके साथ खड़े होने के लिए प्रेरित किया है.
वर्ष 2016 में आईएएस एसोसिएशन ने गुप्ता की वित्तीय और कानूनी सहायता के लिए चंदा इकट्ठा किया, जब उन्होंने नई दिल्ली में सीबीआई कोर्ट को बताया था कि वो दोष स्वीकार कर जेल चले जाएंगे क्योंकि उनके पास पेंशन के पैसों से किसी वकील का खर्च वहन कर पाना मुमकिन नहीं है.
यूपी कैडर के एक अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि गुप्ता ने अपने सहयोगियों से किसी भी तरह की वित्तीय मदद लेने को इंकार कर दिया था, लेकिन कानून सहायता लेना स्वीकार किया.
कुरैशी ने बताया, ‘बैच और कैडर से ऊपर उठकर तमाम अफसर किसी भी तरह गुप्ता की मदद के लिए आगे आए. कई सेवारत और सेवानिवृत्त अफसरों ने गुप्ता के सम्मान और प्रतिष्ठा पर मुहर लगाते हुए उनके पक्ष में लेख लिखे.’
आईएएस अफसर क्रोफा के लिए भी वित्तीय और कानूनी मदद का इंतजाम कर रहे हैं.
‘बलि का बकरा’
कई सिविल सेवकों की राय है कि कोलगेट- जो नाम कोल ब्लाक आवंटन के मामलों को दिया गया- मामले ने अलग रास्ता अख्तियार किया होता, अगर पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) विनोद राय ने 2012 की प्रेस कान्फ्रेंस में इन आरोपों का सार्वजनिक तौर पर खुलासा नहीं किया होता.
कैग रिपोर्ट में वर्ष 2004 से 2009 के बीच यूपीए शासनकाल के दौरान कथित अवैध कोल ब्लॉक आवंटन का ब्योरा दिया गया था. शुरुआती तौर पर कैग ने सरकार को 10.7 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया था, लेकिन बाद में इसे संशोधित करके 1.86 लाख करोड़ रुपये कर दिया.
स्वरूप का दावा है, इस रिपोर्ट को मीडिया के सामने दिखाकर राय ने न केवल गुप्ता बल्कि इस सेवा को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है.
उन्होंने कहा, ‘अगर इसे निष्पक्ष ढंग से देखा जाता तो मामला एकदम अलग ही होता. राय ने एक तरह से विषाक्त माहौल बनाकर सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया, जिसमें हर कोई एकदम अंधा होकर उस दुष्प्रचार के झांसे में आ गया और पूरा मौहाल विद्वेषपूर्ण हो गया.’
कटोच ने भी कहा कि उनकी राय में गुप्ता को ‘बलि का बकरा’ बनाया गया है. उन्होंने कहा, ‘यह दुखद है क्योंकि अपने पूरे करियर में ईमानदारी के लिए जाने गए अधिकारी के प्रति सार्वजनिक धारणा इस तरह की बना दी गई, फिर चाहे अदालत का अंतिम फैसला कुछ भी क्यों न हो.’
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