नई दिल्ली: भारत के नए उपराष्ट्रपति के चुनाव और बढ़ती कीमतों को लेकर गली-गली में होने वाली राजनीति ने इस हफ्ते उर्दू के अखबारों में पहले पन्ने पर जगह बनाई थी. लेकिन फिर बिहार की सत्ता में उठा-पटक दिन की सबसे महत्वपूर्ण खबर बन गई. ये खबर पहले पन्ने और संपादकीय दोनों जगहों में सुर्खियों में बनी रही.
संपादकीय पेजों में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार के इस्तीफे और बाद में फिर से सीएम बन जाने की तुलना कुछ महीने पहले महाराष्ट्र में हुई घटना से की गई. लिखा गया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हमेशा दूसरों के साथ जो किया, कुमार ने वैसा ही उनके साथ कर दिया.
इसके अलावा बेंगलुरु में चामराजपेट ईदगाह पर चल रहे विवाद, भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपुर शर्मा के खिलाफ एफआईआर, गाजा में इजरायली सेना और फिलिस्तीनी आतंकवादियों के बीच भड़की हिंसा की खबरें उर्दू अखबारों के पहले पन्ने बनी रहीं.
दिप्रिंट आपके लिए उर्दू प्रेस से साप्ताहिक राउंडअप लेकर आया है.
बिहार पावर प्ले
बिहार की राजनीति में मची उथल-पुथल सप्ताह के बीच में पहले पन्नों पर हावी हो गई. मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) सुप्रीमो नीतीश कुमार एक बार फिर अपने कार्यकाल के बीच पाला बदलते हुए अपने पुराने गठबंधन सहयोगियों के साथ हो चले थे.
जल्द ही इस तरह की घटना के होने के आसार की ओर इशारा करते हुए, सियासत ने अपने 9 अगस्त के पहले पन्ने पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता शिवानंद तिवारी के एक बयान को छापा था. तिवारी ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि यह देखते हुए कि भाजपा और जद (यू) के बीच दूरियां बढ़ रही हैं, जद (यू)-राजद गठबंधन की संभावनाओं के लिए जगह बन सकती है.
नीतीश ने भाजपा के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया और उसी दिन सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. 10 अगस्त को एक बार फिर से शपथ लेने से पहले वह राजद, कांग्रेस और वाम दलों सहित अन्य गठबंधन सरकार के मुखिया बन गए थे.
10 अगस्त को अपने संपादकीय में सहारा ने लिखा कि जद (यू), राजद, कांग्रेस और वामपंथी दल गठबंधन की सोशल इंजीनियरिंग के कारण 2024 और 2025 दोनों चुनावों में भाजपा के लिए चुनौती पेश कर सकते हैं. संपादकीय में कहा गया, सच तो यह है कि झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के साथ-साथ बिहार भी अब भाजपा के हाथ में नहीं है और इन सभी राज्यों से लोकसभा की 117 सीटें हैं.
11 अगस्त को इंकलाब ने नीतीश की सीएम की कुर्सी पर वापसी को लेकर सात-कॉलम की लीड स्टोरी प्रकाशित की. इसमें राजद नेता व उनके डिप्टी तेजस्वी यादव और साथ ही दोनों नेताओं के गले लगाने वाली तस्वीरें भी थीं. अखबार में जद (यू) के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग होने के ठीक एक दिन बाद नई सरकार के गठन के बारे में लिखा था.
नई बिहार सरकार की खबरों की सुर्खियां सियासत और रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा दोनों अखबारों के पहले पन्नों पर छाई रहीं. दोनों समाचार पत्रों ने रेखांकित किया कि यह कुमार का आठवां कार्यकाल है.
11 अगस्त को ‘नीतीश कुमार की नई छलांग’ शीर्षक से एक संपादकीय में इंकलाब ने लिखा कि एनडीए से बाहर निकलकर और अपने पूर्व सहयोगियों के साथ फिर से जुड़कर, नीतीश ने न केवल सीएम की कुर्सी पर अपनी पकड़ मजबूत की है, बल्कि अपने सहयोगियों को एक नया जीवन भी दिया है. वो अब 2024 का लोकसभा चुनाव और 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ने की योजना बना सकते हैं.
उसी दिन अपने संपादकीय में सियासत ने चर्चा की कि ‘बिहार महाराष्ट्र क्यों नहीं बना.’ अखबार ने तर्क दिया कि राजद की तरह – जिसने राज्य विधानसभा में अधिक विधायक होने के बावजूद नीतीश को सीएम बने रहने के लिए चुना – राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एकता के व्यापक हित में अपने व्यक्तिगत राजनीतिक हितों को अलग रखना चाहिए.
उसी दिन सहारा के संपादकीय में नीतीश के सहयोगियों को बदलने के फैसले को 2024 के संसदीय और 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा के लिए ‘झटका’ बताया. संपादकीय में कहा गया है कि हालांकि भाजपा अब कुमार पर गठबंधन से बाहर निकलकर लोगों के जनादेश को ‘धोखा’ देने का आरोप लगा रही है, लेकिन महाराष्ट्र में उसने उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने के लिए भी तो ऐसा ही किया था.
संपादकीय में कहा गया है कि भले ही कुमार का इस्तीफा और बाद में शपथ ग्रहण ने राजनीतिक नैतिकता की परीक्षा पास नहीं की हो, लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें भाजपा ने ही रास्ता दिखाया था.
12 अगस्त को इंकलाब ने अपने फ्रंट पेज पर लिखा कि बिहार में कैबिनेट का विस्तार 15 अगस्त के बाद किया जाएगा.
यह भी पढ़ें : सीतारमण की बीमारी एक ‘बहाना’- उर्दू प्रेस ने कहा सदन में महंगाई और GST पर बहस को रोक रही है सरकार
कांग्रेस का विरोध
महंगाई और माल व सेवा कर के मुद्दों पर कांग्रेस पार्टी के विरोध को उर्दू मीडिया ने प्रमुखता से अपनी खबरों में जगह दी. 6 अगस्त को सियासत ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के नेतृत्व में एक विरोध प्रदर्शन को कवर करते हुए अपने पहले पन्ने पर आठ कॉलम इसी खबर के लिए रखे थे. प्रियंका और राहुल गांधी के सड़क पर बैठने की तस्वीरों वाली रिपोर्ट में इस बात को प्रमुखता से उछाला कि कैसे पुलिस ने भाई-बहनों को लगभग छह घंटे तक हिरासत में रखा था.
उसी दिन इंकलाब और सहारा में भी इस विरोध को पेज-वन कवरेज मिला था. विरोध की खबरों के साथ-साथ सहारा ने राहुल गांधी के हवाले से कहा कि आठ साल में 70 साल की कमाई बर्बाद कर दी गई.
उसी दिन अपने संपादकीय में, सियासत ने लिखा कि बढ़ती कीमतें एक सच्चाई है. और केंद्र सरकार को इस पर काबू पाने के लिए कदम उठाने की जरूरत है. संपादकीय में कहा गया है कि महंगाई की हकीकत से कभी किसी सरकार ने आंखें नहीं मूंदीं.
नुपुर शर्मा, बेंगलुरु ईदगाह, और नविका कुमार
11 अगस्त को सहारा, सियासत और इंकलाब ने पूर्व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के खिलाफ पैगंबर मुहम्मद पर उनकी विवादास्पद टिप्पणी और मामले को दिल्ली पुलिस को ट्रांसफर करने के लिए सभी एफआईआर को क्लब करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खबर को पहले पन्ने पर छापा था. अखबारों ने इस घटनाक्रम को शर्मा के लिए राहत भरा बताया.
उसी दिन रोज़नामा ने अपने पहले पन्ने पर जानकारी दी कि बेंगलुरु के चामराजपेट ईदगाह मैदान पर विवाद फिर से शुरू हो गया है. यह कर्नाटक राज्य बोर्ड फॉर औकाफ (जिसे वक्फ बोर्ड भी कहा जाता है) और बेंगलुरु के नगर निकाय, बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) के बीच दशकों पुराना विवाद है.
वह मैदान जो ईद-अल-फितर और ईद-अल-अधा के इस्लामी त्योहारों पर नमाज के लिए एक ईदगाह है, उसके लिए हिंदू संगठन इसे खेल के मैदान के रूप में बनाए रखने और वक्फ बोर्ड को नहीं सौंपने की मांग कर रहे हैं.
हालांकि बीबीएमपी ने जून में इस 2.1 एकड़ जमीन पर अपना दावा छोड़ दिया था. लेकिन उसने वक्फ बोर्ड को नहीं बल्कि कर्नाटक के राजस्व विभाग को भूमि का डिफ़ॉल्ट मालिक घोषित किया था.
अखबार ने लिखा है कि यह विवाद राज्य में तीन सांप्रदायिक हत्याओं को लेकर चल रहे विवाद के बीच फिर से उठ खड़ा हुआ है.
9 अगस्त को सहारा और इंकलाब ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर टाइम्स नाउ की एंकर नविका कुमार को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की है. कुमार की एंकरिंग वाले एक टीवी कार्यक्रम में बहस के दौरान यह टिप्पणी की गई थी.
न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने दिल्ली, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर को अगले आदेश तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने के लिए कहा और इन राज्यों के पुलिस विभागों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया.
जगदीप धनखड़ बने उप राष्ट्रपति
भारत के नए उपराष्ट्रपति के रूप में पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ का चुनाव सहारा और सियासत दोनों के पहले पन्नों पर छाया हुआ था. 7 अगस्त को सियासत ने लिखा की कि वह 528 मतों के साथ उप राष्ट्रपति पद के लिए चुन लिए गए हैं.
धनखड़ के खिलाफ विपक्ष ने मार्गरेट अल्वा को खड़ा किया था. उन्हें 182 वोट मिले थे.
12 अगस्त को तीनों अखबारों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा धनखड़ को पद की शपथ दिलाए जाने की तस्वीरों को फ्रंट-पेज पर जगह दी थी.
गाजा-इजरायल भड़क उठे
गाजा में इजरायली सेना और फिलिस्तीनी उग्रवादी समूहों के बीच की लड़ाई की खबरों को, 8 अगस्त को सहारा और इंकलाब दोनों ने पहले पन्ने पर छापा. अखबारों ने बताया कि खालिद मंसूर – एक आतंकवादी समूह ‘फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद मूवमेंट’ का एक सीनियर कमांडर – एक इजरायली हवाई हमले में मारा गया.
रिपोर्टों में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने बढ़ते तनाव को लेकर एक बैठक बुलाई है. रिपोर्टों के अनुसार, फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले शुक्रवार से इजरायल के हमलों में छह बच्चों सहित 32 लोगों के मारे जाने और 215 को घायल होने की सूचना दी है.
इंकलाब ने इजरायल की कार्रवाई को बर्बर बताया और हवाई हमले में मारे गए लोगों को – मंसूर सहित – शहीद कहा.
8 अगस्त को सियासत के संपादकीय में लिखा गया कि इज़राइल ने अपनी ‘अमानवीय आक्रामकता’ को जारी रखा हुआ है. फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर कब्जा करने और लगातार विस्तार करने के बावजूद किसी एक या अन्य बहानों से उस पर निरंतर हमला कर रहा है.
संपादकीय में कहा गया है कि ये ‘हमले’ – जो ‘समय-समय पर’ किए जाते हैं – पूरे मध्य पूर्व की वातावरण को खराब कर देते हैं.
संपादकीय में लिखा गया, फिलिस्तीनी पीड़ित हैं- उनके जीवन और घरों को इस तरह के “अमानवीय आक्रमण” से ध्वस्त किया जा रहा है- और दुनिया मूकदर्शक बनी हुई है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें : ‘ED छापे मार सकती है लेकिन मामलों का बचाव नहीं कर सकती’- उर्दू प्रेस की इस हफ्ते की सुर्खियां