नई दिल्ली: कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) नेता अरुण साव को अपना नया राज्य प्रमुख नियुक्त किया है.
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने मंगलवार को एक प्रेस बयान में बताया कि पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा ने साव को तत्काल प्रभाव से इस पद पर नियुक्त किया है. बिलासपुर से सांसद साव ने प्रमुख आदिवासी नेता विष्णुदेव साय की जगह ली है.
राजनीतिक गलियारों में ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि साहू समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सांसद को यह जिम्मेदारी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुकाबले की भाजपा की रणनीति के तहत दी गई है. गौरतलब है कि बघेल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लिए एक प्रमुख ओबीसी चेहरा हैं.
भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि साव की नियुक्ति के जरिये पार्टी न केवल बघेल का दबदबा घटाना चाहती है बल्कि क्षेत्रीय नेतृत्व को तरजीह के कांग्रेस के नैरेटिव का मुकाबला भी करना चाहती है. इसके अलावा यह कदम चुनावी तैयारियों को लेकर कार्यकर्ताओं के बीच नए जोश के संचार के उद्देश्य से भी उठाया गया है.
यह कदम रणनीति में एक और बदलाव का संकेत भी है. अब तक, भाजपा ने आदिवासियों के बीच अपना आधार बढ़ाने में पूरी ताकत झोंक दी थी जो कि नंदकुमार साय, राम सेवक पैकरा, विक्रम उसेंडी, शिव प्रताप सिंह और विष्णुदेव साय जैसे आदिवासी पृष्ठभूमि वाले नेताओं को राज्य इकाई प्रमुख बनाए जाने से साफ नजर आता है.
पार्टी राज्य इकाई में बदलाव के लिए भी कमर कस रही है—उसने जुलाई में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की जिम्मेदारी अजय जामवाल को सौंपी थी जो पूर्वोत्तर के क्षेत्रीय महासचिव (संगठन) थे.
राज्य भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘2018 में रमन सिंह के नेतृत्व में हार का मुंह देखने वाली भाजपा ने कई उपचुनाव भी हारे हैं. पार्टी अपने दिग्गज नेता साय को बदलने के विकल्प तलाश रही थी, जिनका यह तीसरा कार्यकाल था. छत्तीसगढ़ इकाई में नई ऊर्जा के संचार की आवश्यकता थी…निकट भविष्य में और अधिक परिवर्तन होने की उम्मीद है. पार्टी नेता विपक्ष (धर्मलाल कौशिक) को भी बदल सकती है, जो बिलासपुर के रहने वाले हैं और ओबीसी समुदाय से भी आते हैं.’
53 वर्षीय साव ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1990 में की थी, जब वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े थे. इसके बाद वे भाजपा की युवा इकाई भारतीय जनता युवा मोर्चा के सदस्य बने, और इसमें विभिन्न पदों पर कार्य किया. पेशे से वकील साव बिलासपुर से पहली बार लोकसभा सांसद बने हैं.
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ओबीसी फैक्टर
2000 में मध्य प्रदेश से पृथक करके बनाए छत्तीसगढ़ में ओबीसी के साथ-साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी भी काफी ज्यादा है. छत्तीसगढ़ की आबादी में जहां आदिवासियों की हिस्सेदारी करीब 34 फीसदी है, वहीं ओबीसी 45 फीसदी हैं.
भाजपा के एक अन्य नेता ने कहा, ‘ओबीसी नेता के तौर पर बघेल के ऊंचे कद ने ही उन्हें कांग्रेस की शीर्ष पसंद बनाया था. चार साल सत्ता में रहने के बावजूद उनकी लोकप्रियता घटी नहीं है. हमें उनसे मुकाबले (आउट करने) की जरूरत है. यही कारण है कि एक ओबीसी चेहरे को राज्य इकाई का नेतृत्व संभालने का मौका दिया गया है.’
दुर्ग से भाजपा सांसद विजय बघेल ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी ने एक नया ओबीसी चेहरा चुनकर ‘शानदार तरीके से जातीय समीकरण साधने वाला कदम’ उठाया है. उन्होंने कहा, ‘(विष्णुदेव) साय एक अनुभवी चेहरा थे, लेकिन पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले सही संदेश भेजने की कोशिश की है.’
वहीं, साय की तरफ से दावा किया गया कि उन्होंने कुछ महीनों पहले ही पार्टी आलाकमान को बता दिया था कि अगर उन्हें ऐसा लगता है कि उनकी जगह किसी और को लाया जाना चाहिए तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारा लक्ष्य 2023 में जीत हासिल करना है.’
एक तीसरे भाजपा नेता ने नड्डा की तरफ से राज्य इकाई में बदलाव का कारण और अधिक स्पष्ट तरीके से समझाया. उन्होंने कहा, ‘छत्तीसगढ़ इकाई के साथ एक समस्या है कि यह भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ ज्यादा आक्रामक नहीं है. बघेल हमसे ज्यादा इनोवेटिव हैं. और यह (राज्य इकाई) सरकार के खिलाफ बयानबाजी में विफल रही है. पार्टी राज्य में पूरे संगठन को बदलने को लेकर गंभीर है.’
2018 में हार के बाद भाजपा ने ओबीसी चेहरे धर्मलाल कौशिक को नेता विपक्ष बनाया ताकि राज्य में जाति समीकरण साधने के साथ-साथ इस समुदाय का भरोसा भी हासिल किया जा सके. हालांकि, ऊपर उद्धृत पार्टी नेता ने दावा किया कि कौशिक न तो लोगों से संबंधित मुद्दे उठाने में प्रभावशाली साबित हुए और न ही छत्तीसगढ़ विधानसभा के सत्र चलने के दौरान कांग्रेस पर हमलावर ही नजर आए.
भाजपा नेता ने आगे कहा कि जैसे आदिवासी नेता साय को साव के लिए रास्ता छोड़ना पड़ा है, पार्टी जल्द ही कौशिक को भी बदल सकती है.
कांग्रेस खेमे की तरफ से मुख्यमंत्री बघेल विश्व आदिवासी दिवस पर साय को हटाए जाने को लेकर भाजपा पर निशाना साधने में कतई नहीं चूके. उन्होंने कहा, ‘विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी लोगों के प्रति भाजपा की मानसिकता उजागर हो गई है…इसने उस राज्य में एक आदिवासी अध्यक्ष को हटा दिया जहां जनजातीय आबादी कम से कम 32 प्रतिशत है. उन्हें राज्य में अपने आदिवासी पार्टी अध्यक्ष को हटाते समय इस तथ्य को ध्यान रखना चाहिए था.’
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