नई दिल्ली: दिसंबर 2021 में लेफ्टिनेंट कमांडर विवेक चौधरी (रिटायर्ड) पहले ऐसे कॉमर्शियल पायलट बने थे, जो भारतीय नौसेना में पूर्व पनडुब्बी चालक रह चुके हैं. पानी के बाद हवा में उनके इस कारनामे ने उन्हें एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में जगह दिलाई है.
बुधवार को पूर्व नौसेना अधिकारी को ‘ग्रैंडमास्टर’ के खिताब से नवाजा गया. उन्हें नौसेना स्टाफ के प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने उनकी उपलब्धि के लिए सम्मानित किया. वह दुनिया के पहले ऐसे पनडुब्बी चालक हैं जिन्होंने कॉमर्शियल पायलट बनने का तमगा हासिल किया है.
Grateful to the CNS for felicitated me at his office by handing over #asiabookofrecords for becoming the First Submariner turn Pilot on @ATRaircraft – titled as "The First Flying Dolphin"
This appreciation from the IN means alot@indiannavy @IndiannavyMedia @SumitDefence pic.twitter.com/5JqEr0cUjn
— Vivek Chaudhary (@CdrVivek) August 3, 2022
चौधरी ने दिप्रिंट से कहा, ‘यह डॉल्फिन अब आसमान में उड़ रही है.’
भारतीय नौसेना में पनडुब्बी को अक्सर डॉल्फिन के तौर पर जाना जाता है.
दिल्ली में जन्मे और पले-बढ़े चौधरी, मौजूदा समय में रिलायंस रिटेल लिमिटेड में संचालन केंद्र और सिस्टम ऑटोमेशन विभाग के प्रमुख हैं और मुंबई में रहते हैं. उन्होंने राजधानी से अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई की और फिर मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के लिए हरियाणा चले गए. ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने शॉर्ट सर्विस कमीशन की परीक्षा दी और 2007 में भारतीय नौसेना में भर्ती हो गए.
2007 से 2009 से तक वह नौसेना की एक्जिक्यूटिव ब्रांच से जुड़े रहे. और फिर 2009 में पनडुब्बी चालक बन गए.
पानी के भीतर रहना कैसा होता है? उन्होंने दिप्रिंट के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए बताया, ‘पनडुब्बी में रहते हुए आप 10-15 दिनों के लिए जहाज के संकरे रास्तों और दीवारों में लगी मशीनों की कर्कश आवाजों के बीच जीवन गुजरते हैं. औसतन, एक पनडुब्बी एक जहाज की तुलना में 75 प्रतिशत संकरी होती है. समुद्र तल से ऊपर के जीवन के साथ संपर्क न के बराबर होता है.’
किस वजह से उन्होंने पायलट बनने का फैसला किया? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, यह बचपन का सपना था, लेकिन आर्थिक दिक्कतों के चलते में इसे पूरा नहीं कर पाया था.
चौधरी ने कहा, ‘नौसेना ने मुझे देश की सेवा करने का मौका दिया और सेवा के बाद इस जुनून को आगे बढ़ाने का मौका दिया.’
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रसियन किलो-क्लास पनडुब्बियों में सेवाएं दीं
नौसेना की एक्जिक्यूटिव ब्रांच के साथ दो साल जुड़े रहने के बाद चौधरी ने पनडुब्बी की तरफ जाने का विकल्प चुना.
चौधरी ने बताया, ‘इसके लिए हमने विशाखापत्तनम में आठ महीने तक कठोर और गहन प्रशिक्षण लिया. वहां 350 मीटर पानी के भीतर सेवा करने और जिंदा बने रहने के लिए तकनीकी और गैर-तकनीकी कौशल सिखाया गया था.’
चौधरी ने 2010 से 2016 तक तीन रूसी किलो क्लास सबमरीन में काम किया: पहले एक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी आईएनएस सिंधुघोष पर, फिर आईएनएस सिंधुशास्त्र, और आखिर में आईएनएस सिंधुकीर्ति पर अपनी सेवाएं दीं.
उन्होंने कहा कि औसतन पनडुब्बी का सफर 5 से 10 दिनों तक चलता है. लेकिन कोई खिड़की न होने और बाहर की दुनिया से पूरी तरह से कट जाने के कारण काफी मुश्किलें आती हैं. यह बोर्ड भी गर्म होता है, साथ ही तापमान 45-50 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है.
उनके अनुसार, समुद्र में डूबे होने के बावजूद यहां पानी काफी दुर्लभ संसाधन है. पानी बचाने के लिए अधिकारी और नाविक नहाते तक नहीं हैं.
वह कहते हैं, ‘आईएनएस सिंधुशास्त्र का सफर सबसे लंबा और सबसे चुनौतीपूर्ण रहा. मुंबई से विशाखापट्टनम की दूरी तय करते हुए हम 45 दिनों तक पानी के नीचे रहे थे.’
रिटायरमेंट, आईआईएम-ए और पायलट बनना
2017 में सेवानिवृत्त होने के बाद चौधरी ने भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद (IIM-A) से बिजनेस मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री की और फिर गुरुग्राम में फोर्टिस हेल्थकेयर में काम करने लगे.
इसी समय उन्होंने अपने बचपन के सपने को पूरा करने का फैसला किया.
चौधरी बताते हैं, ‘जब मैंने फोर्टिस में काम करना शुरू किया, तो भी आसमान में उड़ने की मेरी इच्छा बनी रही थी. इसलिए मैंने फोर्टिस में काम करते हुए वीकेंड्स पर फ्लाइंग क्लासेज लेने का फैसला किया.’
2018 से 2020 तक चौधरी सप्ताह में पांच दिन रोजाना 9 से 5 फोर्टिस गुरुग्राम जाते और फिर वीकेंड पर फ्लाइंग क्लासेज लेने के लिए लगभग 300 किमी की यात्रा कर चंडीगढ़ पहुंचते.
सितंबर 2020 में उनकी मेहनत का फल मिला. उन्हें नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) की तरफ से ATRs उड़ाने के लिए एक कॉमर्शियल लाइसेंस मिल गया था. ATR एक फ्रांसीसी-इतालवी विमान निर्माता है जो टर्बोप्रॉप इंजन के साथ विमान बनाता है. चौधरी को ATR 600 विमान उड़ाने में विशेषज्ञता हासिल है.
चौधरी बताते हैं ‘अपने बचपन के सपने को पूरा कर लेना ही मेरे लिए एक बड़ी उपलब्धि है. उड़ने वाली पहली डॉल्फिन बन जाने ने इसे और भी खास बना दिया.’
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