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Sunday, 17 November, 2024
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सरकार ने 2022-23 सत्र के लिए गन्ने का एफआरपी 15 रुपये बढ़ाकर 305 रुपये प्रति क्विंटल किया

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नयी दिल्ली, तीन अगस्त (भाषा) सरकार ने बुधवार को अक्टूबर से शुरू होने वाले विपणन वर्ष 2022-23 के लिए गन्ना उत्पादकों को चीनी मिलों द्वारा दिये जाने वाले न्यूनतम मूल्य को 15 रुपये बढ़ाकर 305 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। सूत्रों ने यह जानकारी दी है।

इस निर्णय से लगभग पांच करोड़ गन्ना किसानों और उनके आश्रितों के साथ-साथ चीनी मिलों और संबंधित सहायक गतिविधियों में कार्यरत लगभग पांच लाख श्रमिकों को लाभ होगा।

एक सरकारी बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने चीनी विपणन वर्ष 2022-23 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) को ‘‘10.25 प्रतिशत की मूल प्राप्ति दर के लिए 305 रुपये प्रति क्विंटल करने को मंजूरी दे दी है।’’

विपणन वर्ष 2022-23 के लिए गन्ने की उत्पादन लागत 162 रुपये प्रति क्विंटल है।

सूत्रों ने कहा कि गन्ने से 10.25 प्रतिशत से अधिक की वसूली में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की वृद्धि के लिए 3.05 रुपये प्रति क्विंटल का प्रीमियम प्रदान किए जाने की संभावना है, जबकि वसूली में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की कमी के लिए एफआरपी में 3.05 रुपये प्रति क्विंटल की कमी की जायेगी।

उन्होंने कहा, हालांकि, चीनी मिलों के मामले में, जहां वसूली दर 9.5 प्रतिशत से कम की है, वहां कोई कटौती नहीं होगी। उन्होंने कहा कि ऐसे किसानों को वर्ष 2022-23 में गन्ने के लिए 282.125 रुपये प्रति क्विंटल मिलने की संभावना है, जबकि मौजूदा चीनी सत्र 2021-22 में यह राशि 275.50 रुपये प्रति क्विंटल की है।

बयान में कहा गया, ‘‘चीनी सत्र 2022-23 के लिए गन्ने के उत्पादन की ए टू + एफएल लागत (यानी वास्तविक भुगतान लागत के साथ पारिवारिक श्रम का अनुमानित मूल्य को जोड़ते हुए) 162 रुपये प्रति क्विंटल है।’’

चीनी की 10.25 प्रतिशत की प्राप्ति दर पर 305 रुपये प्रति क्विंटल की एफआरपी उत्पादन लागत से 88.3 प्रतिशत अधिक है, जिससे किसानों को उनकी लागत पर 50 प्रतिशत से अधिक की वापसी देने का वादा सुनिश्चित होता है। चीनी सत्र 2022-23 के लिए एफआरपी मौजूदा चीनी सत्र 2021-22 की तुलना में 2.6 प्रतिशत अधिक है।

बयान में कहा गया है, ‘‘केंद्र सरकार की सक्रिय नीतियों के कारण गन्ने की खेती और चीनी उद्योग ने पिछले आठ वर्षों में एक लंबा सफर तय किया है और अब आत्मनिर्भरता के स्तर पर पहुंच गया है।’’

सरकार ने कहा है कि उसने पिछले आठ साल में एफआरपी में 34 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की है। इसने चीनी की एक्स-मिल कीमतों में गिरावट और गन्ना बकाया बढ़ने से रोकने के लिए चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) की अवधारणा को भी पेश किया है। फिलहाल एमएसपी 31 रुपये प्रति किलो है।

खाद्य मंत्रालय ने कहा, ‘‘चीनी के निर्यात को सुविधाजनक बनाने, बफर स्टॉक बनाए रखने, एथनॉल उत्पादन क्षमता बढ़ाने और किसानों की बकाया राशि के निपटान के लिए चीनी मिलों को 18,000 करोड़ रुपये से अधिक की वित्तीय सहायता दी गई है।’’

एथनॉल के उत्पादन के लिए अधिशेष चीनी का उपयोग करने से चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ और वे अब गन्ना बकाया जल्दी चुकाने में सक्षम हैं।

हाल में, भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने कहा था कि भारत का चीनी उत्पादन अक्टूबर से शुरू होने वाले विपणन वर्ष 2022-23 में एथनॉल निर्माण के लिए गन्ने का इस्तेमाल करने के कारण घटकर 355 लाख टन रह सकता है।

इस्मा के अनुसार, वर्ष 2022-23 में चीनी का उत्पादन 355 लाख टन होने का अनुमान है, जबकि सितंबर को समाप्त होने वाले मौजूदा विपणन वर्ष में यह उत्पादन 360 लाख टन था।

एथनॉल के लिए गन्ने के इस्तेमाल की मात्रा को अलग करने से पहले वर्ष 2022-23 में शुद्ध चीनी उत्पादन अधिक यानी 399.97 लाख टन होने का अनुमान है, जो मौजूदा विपणन वर्ष 2021-22 में 394 लाख टन था।

मौजूदा वर्ष 2021-22 में, 1,15,196 करोड़ रुपये के गन्ना बकाया में से, एक अगस्त तक किसानों को लगभग 1,05,322 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।

सरकार ने कहा कि भारत ने चालू चीनी विपणन वर्ष में चीनी उत्पादन में ब्राजील को पीछे छोड़ दिया है। वर्ष 2017-18, वर्ष 2018-19, वर्ष 2019-20 और वर्ष 2020-21 के पिछले चार सत्रों में क्रमशः लगभग छह लाख टन, 38 लाख टन, 59.60 लाख टन और 70 लाख टन चीनी का निर्यात किया गया है।

बयान में कहा गया है, ‘‘मौजूदा चीनी सत्र 2021-22 में एक अगस्त, 2022 तक लगभग 100 लाख टन चीनी का निर्यात किया गया है और निर्यात 112 लाख टन तक पहुंचने की संभावना है।’’

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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