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Friday, 11 October, 2024
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कशीदाकारी से राष्ट्रमंडल पदक तक , अचिंता ने लिखी संघर्ष से सफलता की नयी कहानी

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बर्मिंघम, एक अगस्त ( भाषा ) रविवार की रात तक पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के देउलपुर गांव को कोई जानता भी नहीं था लेकिन 12000 की आबादी वाले इस गांव का नाम आज सभी की जुबां पर है और इसका श्रेय राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतने वाले भारोत्तोलक अचिंता शिउली को जाता है ।

अचिंता ने 313 किलो वजन उठाकर अपने गांव का नाम खेलों के मानचित्र पर ला दिया है । इस गांव को जरी के काम के लिये जाना जाता है और अचिंता ने भी पेट पालने के लिये धागे और सुई के इस हुनर को सीखा ।

राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद उन्होंने पीटीआई से बातचीत में कहा ,‘‘ हमारे गांव को जरी के काम के लिये जाना जाता है । मैं, मेरी मां और भाई भी ठेकेदारों के लिये कढाई का काम करते थे। काम सुबह साढे छह बजे शुरू होता था और देर शाम तक जारी रहता था ।’’

उनके पिता जगत ट्रॉली रिक्शा चलाते थे और एक समय चार लोगों के परिवार में अकेले कमाने वाले थे । अचिंता जब 11 वर्ष के थे तब उनके पिता का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया ।

उन्होंने कहा ,‘ हमारे लिये तो मानो सब कुछ रूक गया । हमने कभी इसकी कल्पना नहीं की थी और हम इसके लिये तैयार नहीं थे । हमें जरी का काम करना पड़ा । मेरी मां ने भी वह काम किया ।’’

बचपन में पतंग पकड़ते पकड़ते उसकी रूचि भारोत्तोलन में पैदा हो गई । उन्होंने कहा ,‘‘ मुझे पतंगबाजी पसंद है और हर साल मकर संक्रांति पर मैं पतंग उड़ाता और पतंग कटने पर उन्हें दोस्तों के साथ लूटने दौड़ता था । एक बार पतंग पकड़ने की कोशिश में ही मैं व्यामागर ( जिम का देसी रूप) पहुंच गया जहां मेरा बड़ा भाई वर्जिश कर रहा था । दादा के कोच को मेरी कलाई का काम बहुत पसंद आया और उन्होंने मुझे अगले दिन बुलाया ।’’

अचिंता के भाई आलोक को लगा कि उनसे ज्यादा प्रतिभा उनके भाई में है तो उन्होंने अपना शौक कुर्बान कर दिया ।

अचिंता ने कहा ,‘‘ पहले मैं दादा के साथ अभ्यास के लिये जाता था लेकिन मेरे भाई ने अपना कैरियर मेरे लिये छोड़ दिया । वह हर महीने पॉकेट मनी के तौर पर 600 . 700 रूपये देता था ताकि हमारा अभ्यास जारी रहे ।’’

अचिंता ने 2015 में जूनियर स्तर पर पदक जीता जिसके बाद उनकी तकदीर बदल गई । वह सैन्य खेल संस्थान से जुड़े और उसी साल उन्हें भारतीय शिविर में शामिल किया गया । फिर 2015 में राष्ट्रमंडल युवा चैम्पियनशिप और 2018 में एशियाई युवा चैम्पियनशिप भी जीती ।

भाषा

मोना सुधीर

सुधीर

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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