नई दिल्ली: छात्राओं के स्कूल छोड़ने की दर में पिछले चार सालों में तेज गिरावट देखी गई है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि यह गिरावट सबसे तेजी से माध्यमिक स्तर की 11 से 14 की आयु वर्ष की छात्राओं के बीच नजर आई है.
सरकार की तरफ से संसद में 2017-18 से 2020-21 के बीच के जो अलग-अलग आंकड़े साझा किए गए हैं उनसे पता चलता है कि इन वर्षों में कम लड़कियों ने स्कूल छोड़ा.
शिक्षा राज्य मंत्री (एमओएस) अन्नपूर्णा देवी की तरफ से इस साल अप्रैल में और पिछले बुधवार को संसद में साझा किए गए आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि माध्यमिक स्तर (कक्षा 9-10) पर लड़कियों के ड्रॉपआउट रेट में कमी आई है. ये आंकड़ा 2017-18 में 18.4 फीसदी छात्राओं के ड्रॉपआउट से करीब पांच फीसदी घटकर 2020-21 में 13.7 प्रतिशत हो गया.
इसी तरह की गिरावट—हालांकि यह इतनी ज्यादा नहीं है—प्राथमिक (कक्षा 1 से 5) और उच्च प्राथमिक (कक्षा 6 से 8) स्तर पर छात्राओं के स्कूल छोड़ने की दर में भी देखी गई है. छात्राओं का ड्रॉपआउट रेट 2017-18 में 3.3 प्रतिशत से घटकर 2020-21 में 0.7 प्रतिशत हो गया. वहीं, उच्च प्राथमिक स्तर पर लड़कियों के ड्रॉपआउट रेट में गिरावट 2017-18 में 5.6 प्रतिशत की तुलना में घटकर 2020-21 में 2.6 प्रतिशत हो गई.
आंकड़े उच्च माध्यमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने के ट्रेंड के बारे में कुछ नहीं कहते हैं.
दिलचस्प बात यह है कि माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट में गिरावट सबसे तेज रही है जबकि अमूमन सबसे ज्यादा ड्रॉपआउट इस स्तर पर देखने को मिलता रहा है.
विभिन्न रिपोर्ट बताती हैं कि इस उम्र में लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट सबसे ज्यादा होने के प्रमुख कारणों में अक्सर जल्दी शादी और घर के कामों के बोझ का हवाला दिया जाता है. हालांकि, माध्यमिक स्कूल में लड़कियों के पढ़ाई को बीच में छोड़ने की दर 2017-18 की तुलना में 2020-21 में करीब पांच प्रतिशत घटी है.
अन्नपूर्णा देवी ने छात्राओं के स्कूल ड्रॉपआउट रेट में कमी श्रेय शिक्षा मंत्रालय के समग्र शिक्षा अभियान—बच्चों के लिए समग्र शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने वाली एक स्कूली शिक्षा योजना—को दिया है.
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लड़कियों के ड्रॉपआउट रेट में कैसे आई कमी
एमओएस की तरफ से ये दोनों डेटा स्कूली छात्राओं के बीच ड्रॉपआउट रेट और उसमें कमी लाने के सरकारी प्रयासों पर पूछे गए सवालों के जवाब में साझा किए गए थे.
मंत्री ने बुधवार को अपने जवाब में कहा, ‘समग्र शिक्षा के तहत लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सुविधाएं दी जा रही हैं. इनमें आसपास स्कूल खोलना, कक्षा 8 तक लड़कियों को मुफ्त यूनिफॉर्म और पाठ्य-पुस्तकें मुहैया कराना, सभी स्कूलों में अलग टॉयलेट का प्रावधान, कक्षा 6 से 8 तक की लड़कियों को आत्मरक्षा प्रशिक्षण दिलाना आदि के अलावा सीडब्ल्यूएसएन (चिल्ड्रेन विद स्पेशल नीड्स) वाली लड़कियों को कक्षा 1 से कक्षा 12 तक पढ़ाई के लिए वजीफा देना शामिल है.’
उन्होंने कहा कि लाइफ स्किल, सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन और माध्यमिक शिक्षा को व्यवसाय परक बनाने आदि के जरिए समान अवसर मुहैया कराने पर केंद्रित राज्य परियोजनाओं ने भी लक्ष्य हासिल करने में मदद की है.
उन्होंने आगे कहा कि शैक्षणिक तौर पर पिछड़े ब्लॉकों—जहां ग्रामीण महिला साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम है—में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (केजीबीवी) खोलने से भी स्कूलों में लड़कियों के स्कूल न छोड़ने की स्थिति में सुधार आया है.
केजीबीवी आवासीय विद्यालय हैं जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और गरीबी रेखा से नीचे वाले समूहों की लड़कियों के लिए कक्षा 6 से 8 तक शिक्षा प्रदान करते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में कुल 4,986 केजीबीवी हैं, जहां 6.69 लाख लड़कियां पढ़ती हैं.
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