नई दिल्ली: भारत और अन्य कम आय वाले देशों में युवा महिलाएं अपने समय का एक बड़ा हिस्सा घरेलू काम करने में बिताती हैं जिसका उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता है. आगे चलकर यह इन देशों में लिंग वेतन अंतर का कारण बनता है. ईस्ट एंग्लिया (यूईए) यूनिवर्सिटी, बर्मिंघम और ब्रुनेल के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन से यह बात सामने निकलकर आई है.
पिछले हफ्ते फेमिनिस्ट इकोनॉमिक्स पत्रिका में प्रकाशित पीर रिव्यू अध्ययन से यह भी पता चलता है कि बचपन के दौरान किए गए घरेलू काम आगे चलकर कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावित करते हैं.
अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने यंग लाइव्स प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में एकत्र किए गए आंकड़ों की जांच की – भारत, इथियोपिया, पेरू और वियतनाम के गरीबी में जीवन बिता रहे 12,000 बच्चों के जीवन पर एक लोंगिट्युडिनल कोहॉर्ट स्टडी की गई थी.
भारत में प्रोजेक्ट के लिए डेटा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से एकत्र किए गए.
शोधकर्ताओं ने पाया कि 22 साल की उम्र तक महिलाएं ऐसे कामों में लगी रहती हैं जिनके लिए उन्हें पैसे मिलने की संभावना न के बराबर होती है. कम व मध्यम आय वाले देशों में पुरुषों की तुलना में वो काफी कम पैसा कमा पाती है. अध्ययन के मुताबिक, यह असमानता आंशिक रूप से बच्चों के रूप में युवा महिलाओं के कंधों पर घरेलू जिम्मेदारियों के बड़े हिस्से का कारण है.
अध्ययन में कहा गया है, ‘हर उम्र में लड़के, लड़कियों की तुलना में घर की देखभाल और घरेलू कामों में कम समय बिताते हैं लेकिन बाहर के कामों में अधिक समय देते हैं: 19 साल की उम्र में महिलाओं ने एक दिन में 3.66 घंटे और पुरुषों ने औसतन 1.34 घंटे घर के काम में और परिवार की देखभाल में बिताए. पुरुषों ने महिलाओं (0.94 घंटे) की तुलना में बाहर के कामों में अधिक समय (1.83 घंटे) बिताया, लेकिन यह अवैतनिक घरेलू काम में समग्र असमानता की भरपाई नहीं करता है.’
शोधकर्ताओं में शामिल यूईए के एक एसोसिएट प्रोफेसर निकोलस वासिलाकोस ने कहा कि भुगतान किए गए काम में लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए एक नीति में महिलाओं द्वारा किए गए अवैतनिक काम को ध्यान में रखा जाना चाहिए.
उन्होंने एक बयान में कहा, ‘ जेंडर ट्रजेक्टरी से पता चलता है कि घरेलू कामों में असमान भागीदारी कम उम्र में शुरू हो जाती है और ये असमानता समय के साथ बढ़ती चली जाती है.’
अध्ययन के साथ जुड़ी रहीं बर्मिंघम बिजनेस स्कूल की प्रोफेसर फियोना कारमाइकल ने कहा: ‘लंबे समय तक बिना भुगतान के घरेलू काम में जुड़े रहने से लड़कियों की पढ़ाई पर असर पड़ता है. वे उसके लिए ज्यादा समय नहीं निकाल पाती है. इसलिए आगे भविष्य में उनके लिए रोजगार के अवसर सीमित हो जाते हैं.’
वह बताती हैं, ‘यह इस बात की पुष्टि करता है कि महिलाओं के कंधों पर घरेलू काम का बोझ बचपन से शुरू हो जाता है.’
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पैसा कम, जोखिम ज्यादा9/+
टीम ने 8 से 22 साल की उम्र के बच्चों पर अध्ययन करते हुए उनके जीवन के किसी भी क्षेत्र में किसी भी भुगतान कार्य में उनकी भागीदारी का विश्लेषण किया, जिसमें रोजगार का प्रकार और मजदूरी शामिल है.
अध्ययन में पाया गया कि 22 साल की उम्र में, भारत, इथियोपिया, पेरू और वियतनाम में महिलाएं पहले से ही रोजगार भागीदारी में लिंग अंतर का सामना कर रही थीं. यहां 85.72 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में महज 70.64 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत थीं.
इसके अलावा, इन देशों में महिलाओं का औसत प्रति घंटा वेतन 1.46 डॉलर है, जो पुरुषों के वेतन 1.77 डॉलर की तुलना में काफी कम पाया गया.
अध्ययन से ये भी पता चलता हैं कि युवा महिलाओं के मामले में, बचपन में घरेलू कामों में ज्यादा समय बिताने की वजह से पुरुषों की तुलना में उनके रोजगार के अवसरों पर खासा असर डाला है.
पुरुषों के विपरीत, इन देशों में महिलाओं के लिए अपनी जरूरत और पसंद के हिसाब से रोजगार के अवसर काफी कम थे. देखा जाए तो उनके सामने अच्छे वेतन और बेहतर नौकरियों के विकल्प ज्यादा नहीं थे.
अध्ययन के निष्कर्ष पिछले रिसर्च को जोड़ते हुए सामने आए हैं जिसमें बताया गया था कि लड़कियों को शुरुआती जीवन के अनुभवों के लिए कम पैसा मिलता है, या अधिक जोखिम होता हैं – और इससे लिंग असमानताएं बढ़ती हैं.
परिवारों, स्कूलों या अन्य संस्थानों द्वारा लिए गए निर्णय और ये सामाजिक संरचना में महिलाओं की स्थिति के परिणामस्वरूप कम पैसे या अधिक जोखिम और साथ कैसे जुड़े हुए हैं, यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसके लिए और अधिक शोध की जरूरत है.
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