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Sunday, 17 November, 2024
होमदेशजनगणना न 2021 में हुई, न 2022 में होगी- सरकार ने ‘इसे रोक दिया है और अभी कोई समयसीमा तय नहीं’

जनगणना न 2021 में हुई, न 2022 में होगी- सरकार ने ‘इसे रोक दिया है और अभी कोई समयसीमा तय नहीं’

पिछली जनगणना 2011 में हुई थी और उसके बाद 2021 में जनगणना होनी थी लेकिन कोविड के कारण इसे टालना पड़ा. सरकार ने संसद को दी जानकारी में बताया कि जनगणना संबंधी गतिविधियां ‘अगले आदेश तक स्थगित की जा चुकी हैं.’

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार के सूत्रों ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया कि जनगणना—जो पिछले साल होनी थी लेकिन कोविड महामारी के कारण टाल दी गई थी—को इस साल भी रोक दिया गया है. साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि ‘अभी तक यह तय नहीं किया गया है कि जनगणना कब कराई जा सकती है.

सूत्रों के मुताबिक, जनगणना से पहले कई आवश्यक प्रक्रियाओं के लिए समयसीमा के विस्तार—जिसमें प्रशासनिक सीमाओं को फ्रीज करना और घरों की सूची बनाना आदि शामिल है—का मतलब है कि इस साल जनगणना की कोई संभावना नहीं है.

गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने भी मंगलवार को संसद को बताया कि कोविड महामारी के कारण जनगणना से जुड़ी गतिविधियों को ‘अगले आदेश तक स्थगित कर दिया गया है.’

तृणमूल कांग्रेस नेता शिशिर कुमार अधिकारी की तरफ से जनगणना अधिकारी के पदों को लेकर पिछले साल मांग संबंधी आदेश के बाद से हुई भर्ती के बाबत पूछे गए एक सवाल के जवाब में राय ने कहा, ‘2020 और 2021 में कुल 372 पद भरे गए हैं. कर्मचारी चयन आयोग और संघ लोक सेवा आयोग को 1,736 पदों को भरने के लिए कहा गया है.

भारत में हर 10 साल में जनगणना होती है. आखिरी बार जनगणना फरवरी-मार्च 2011 में हुई थी और फिर अगली जनगणना मार्च 2021 में हो जानी थी. लेकिन 2021 में कोविड महामारी के कारण यह समयसीमा पूरी नहीं की जा सकी, महामारी संबंधी अधिकांश प्रतिबंध हटने के बावजूद प्रक्रिया में देरी हुई.

इस बीच, विशेषज्ञों को चिंता है कि जनगणना में देरी से सरकार की तरफ से संसाधनों के आवंटन पर भी असर पड़ सकता है.


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समयसीमा का विस्तार

गृह मंत्रालय (एमएचए) के एक अधिकारी के मुताबिक, भारत के महापंजीयक (आरजीआई) कार्यालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जून में भेजे एक पत्र में प्रशासनिक सीमाएं फ्रीज करने की समयसीमा 31 दिसंबर, 2022 तक बढ़ा दी है.

1990 के जनगणना नियमों में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि जिलों, तहसीलों और कस्बों की प्रशासनिक सीमाओं को जनगणना की तारीख से एक वर्ष पहले से ज्यादा फ्रीज नहीं किया जा सकता. फ्रीज किए जाने के बाद राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आरजीआई को अधिसूचित जिलों, गांवों, पुलिस स्टेशनों और तहसीलों की संख्या में किसी भी तरह के बदलाव के बारे में पूरा ब्यौरा देना होता है.

नियम 8 (iv) कहता है, ‘जनगणना आयुक्त द्वारा सूचित की जाने वाली तारीख से जिलों, तहसीलों, कस्बों आदि की प्रशासनिक सीमाओं को फ्रीज कर दिया जाएगा जो समयसीमा जनगणना संदर्भ तिथि से यह प्रक्रिया पूरी होने के बीच एक वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए.’

यद्यपि जहां आरजीआई राज्यों को जनगणना के लिए एक साल से अधिक समय पहले अपनी सीमाएं फ्रीज करने को नहीं कह सकता है, लेकिन नियमों में इसका उल्लेख नहीं है कि सीमाओं को फ्रीज करने और जनगणना शुरू होने के बीच न्यूनतम कितने समय की आवश्यकता है. सूत्रों के मुताबिक, हालांकि, आमतौर पर यह काम प्रक्रिया से ज्यादा से ज्यादा तीन महीने पहले किया जाता है.

सूत्रों ने कहा कि चूंकि अब दिसंबर से पहले सीमाओं को फ्रीज नहीं किया जाएगा, इसलिए इस साल जनगणना की कोई संभावना नहीं है. इसके अलावा, जनगणना से पहले मकान सूचीकरण की प्रक्रिया पूरी की जानी है, जिसकी समय सीमा पहले 30 जून निर्धारित की गई थी, लेकिन वह भी बढ़ा दी गई है. नई समयसीमा के बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है.

‘देरी से संसाधन आवंटन पर गंभीर असर होगा’

विशेषज्ञों का मानना है कि 2021 में प्रस्तावित जनगणना समय पर नहीं कराने से केंद्र की तरफ से राज्यों को फंड ट्रांसफर पर असर पड़ेगा जो कि अब तक 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार किया गया है.

देश में आखिरी बार यानी 2011 की जनगणना नवंबर 2017 में गठित 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर कराई गई थी. लेकिन यह डेटा अब 10 साल से अधिक पुराना हो चुका है, और आयोग की सिफारिशें केवल 2025-26 तक ही मान्य हैं.

एनसीएईआर-नेशनल डेटा इनोवेशन सेंटर, दिल्ली में प्रोफेसर और निदेशक सोनाल्डी देसाई ने कहा, ‘यदि आपके पास जनसंख्या के सटीक आंकड़े नहीं हैं तो आप केंद्र की तरफ से राज्यों को फंड ट्रांसफर और कई अन्य प्रकार के आवंटनों के बारे में सही अनुमान नहीं लगा पाएंगे.

उन्होंने आगे कहा, ‘उदाहरण के तौर पर हम कहते हैं कि 13 प्रतिशत आबादी गरीब है और आपको विभिन्न कार्यक्रमों के लिए X राशि मिलनी चाहिए. आप जानते हैं कि 13 फीसदी लोग गरीब हैं, लेकिन आप 13 फीसदी का आधार नहीं जानते. तब आप अभी भी अपने पुराने आंकड़े उपयोग करेंगे, जबकि पूरे देश में प्रजनन क्षमता में गिरावट आई है और जनसंख्या वृद्धि दर परिवर्तनशील रही है. ऐसे में आप सटीक अनुमान कैसे लगा पाएंगे.’

पूर्व केंद्रीय गृह सचिव जी.के. पिल्लई ने भी कहा कि जनगणना में देरी के परिणामस्वरूप ‘बहुत सारा डेटा पुराना पड़ चुका है, और निश्चित तौर पर इसका प्रभाव पड़ेगा.’

पिल्लई ने स्पष्ट किया कि वित्त आयोग ने जनगणना के आंकड़ों के आधार पर धन आवंटित किया है, और यदि इसमें और देरी हुई तो आयोग आवंटन करते समय फिर से 2011 की जनगणना को ध्यान में रखेगा, जिससे राज्यों को नुकसान हो सकता है.

उन्होंने कहा, ‘वह डेटा पुराना है और अगर इसे ध्यान में रखा गया तो राज्यों को नुकसान होगा. समिति कुछ अनुमान लगा सकती है, उदाहरण के तौर पर जनसंख्या में तीन प्रतिशत की वृद्धि के आधार पर, लेकिन यह सब अनुमानित ही होगा.’

इस बीच, देसाई ने कर्मचारियों के मुद्दों को जनगणना में देरी के लिए एक कारण बताया.

यद्यपि देसाई के मुताबिक, घरों की सूची बनाने की कवायद—जिसे जनगणना प्रक्रिया में एक प्रारंभिक कदम माना जाता है—को अब तक शुरू कर दिया जाना चाहिए था, लेकिन सरकार को कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा, ‘अगर आप अभी जनगणना करते हैं, तो समस्या हो जाएगी. और मुझे नहीं लगता कि हममें से किसी ने ऐसा न करने के कारण के बारे में सोचा है. लेकिन हमारी जनगणना आखिर करता कौन है? इसमें मुख्य रूप से स्कूली शिक्षकों को लगाया जाता है. और कोविड-19 के बाद शिक्षक स्कूल ही मुश्किल से आ पा रहे हैं. तो, क्या हम उन्हें इंस्ट्रक्शन मोड से बाहर निकालकर इस प्रक्रिया में लगाना चाहते हैं? इसलिए मुझे लगता है यह एक बड़ा मुद्दा है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मान लीजिए कि हम आगे बढ़ते हैं और जनगणना करते हैं, तो चुनौती क्या होगी? मैं अभी कोविड को एक बड़ी चुनौती के रूप में नहीं देख रही हूं, लेकिन मैं कर्मचारियों की उपलब्धता को एक बड़ी चुनौती के रूप में देखती हूं. इस समय हम शिक्षकों को शिक्षा प्रदान करने के काम से हटा नहीं सकते हैं, खासकर कोविड के बाद की स्थितियों को देखते हुए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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