नयी दिल्ली, 23 जुलाई (भाषा) भारतीय राष्ट्रीय सहकारिता संघ (एनसीयूआई) ने मांग की है कि केंद्र को बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम 2002 में प्रस्तावित संशोधनों पर फिर से विचार करना चाहिए क्योंकि इसके कुछ प्रावधान ‘‘लोकतांत्रिक और सहकारी समितियों के स्वायत्त सिद्धांतों के खिलाफ हैं।’’
सहकारिता मंत्रालय ने इस अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव रखा है ताकि इसे 97वें संवैधानिक संशोधन के अनुरूप बनाया जा सके और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में बहु-राज्य सहकारी समितियों के योगदान को बढ़ाने के उद्देश्य से सुधार किए जा सकें।
मंत्रालय ने बहु-राज्य सहकारी समितियों में चुनाव, शासन, भर्ती, पारदर्शिता और दक्षता से संबंधित मसौदा संशोधनों पर विभिन्न अंशधारकों से राय मांगी हैं।
इस मसौदे पर अपने सदस्यों के साथ विस्तृत चर्चा के बाद एनसीयूआई ने मंत्रालय को दिए गए सुझाव में कहा है कि सरकार को संशोधन के मसौदे के कुछ प्रतिबंधात्मक प्रावधानों पर फिर से विचार करना चाहिए ताकि सहकारी समितियों के लोकतांत्रिक विकास में बाधा न आए।
इसके मुताबिक, विभिन्न सहकारी संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों ने मसौदा संशोधनों के कुछ प्रावधानों को ‘सहकारी सिद्धांतों के साथ तालमेल नहीं बैठने वाला’ पाया है। इसमें कहा गया है कि मसौदा संशोधन सहकारी समितियों के लोकतांत्रिक और स्वायत्त सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है।
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