नई दिल्ली: भारतीय किसान संघ (बीकेएस) चाहता है कि किसानों को गारंटी शुदा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) या लाभकारी दाम दिए जाएं, और अनियंत्रित रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई जाए, ये कहना है आरएसएस से संबद्ध संस्था के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का.
बीकेएस के संगठन सचिव दिनेश कुलकर्णी ने कहा कि उनके संगठन का एक प्रतिनिधि एमएसपी कमेटी में है, जो इसी हफ्ते गठित की गई है, और ‘पैनल के समक्ष हमारे सुझाव रखेगी’.
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारी मांग है कि एक ऐसी व्यवस्था बने जिसमें सुनिश्चित किए जाए, कि किसानों को लाभकारी दाम और (एमएसपी पर) एक गारंटी मिले’.
दिप्रिंट से बात करते हुए, बीकेएस ने कहा कि वो एक ऐसी व्यवस्था चाहती है, जिसमें सुनिश्चित हो कि किसानों को सरकारी सुविधाएं और प्रोत्साहन प्राप्त हों.
भारतीय किसान यूनियन ने, जिसे कृषि क़ानूनों को लेकर आशंकाएं थीं जिन्हें एक साल चले किसान आंदोलन के बाद 2021 में वापस ले लिया गया था, एमएसपी कमेटी बनाने के सरकार के फैसले की सराहना की.
सरकार की एमएसपी कमेटी के सदस्यों में- जो एमएसपी से जुड़े विषयों पर चर्चा के लिए गठित की गई है, जिसकी गारंटी आंदोलनकारी किसानों की एक प्रमुख मांग थी- बीकेएस के प्रमोद कुमार चौधरी भी शामिल हैं.
कुलकर्णी ने आगे कहा, ‘हमें ख़ुशी है सरकार ने एक कमेटी गठित की है, और उसमें सभी हितधारकों को शामिल किया है. उसमें किसान संगठनों, वैज्ञानिकों, शोधकर्त्ताओं, नौकरशाहों तथा अन्य फील्ड एक्सपर्ट्स के नुमाइंदे शामिल हैं’.
दिप्रिंट से बात करते हुए चौधरी ने उत्तरपूर्व में कृषि को बढ़ावा देने के बीकेएस के प्रयासों के बारे में बात की, और फरवरी में संगठन की ओर से एक प्रस्ताव पारित किए जाने का उल्लेख किया.
उन्होंने आगे कहा, ‘हमने देखा है कि पूरे पूर्वोत्तर राज्यों में खेती का बुनियादी ढांचा कितना पर्याप्त है. कुछ इलाक़ों में तो उनके पास बाज़ार अथवा मंडियों जैसी बुनियादी चीज़ें भी नहीं हैं. हमने एक प्रस्ताव पास किया है कि हम पूरे पूर्वोत्तर प्रांतों में कृषि इनफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने का प्रयास करेंगे’.
खेती के ‘देसी’ तरीक़े को बढ़ावा
बीकेएस अब ‘खेती के बहुत से देसी तरीक़ों’ को बढ़ावा देने पर विचार कर रही है.
ये कहते हुए कि ‘विदेशी लॉबियां’ इस विचार को आगे बढ़ाने का प्रयास करती हैं, कि भारतीय किसानों को कारगर खेती के बहुत से तरीक़े दूसरे देशों ने सिखाए थे, चौधरी ने कहा, ‘हमारे पूर्वजों को सब कुछ मालूम था, वो मौसम तक का अनुमान लगा सकते थे. ये सही नहीं है कि विदेशियों ख़ासकर अंग्रेज़ों ने ही हमें सिखाया है. भारत में हमारे पास सारा ज्ञान था’.
उन्होंने आगे कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई सरकारी दस्तावेज़ों में कृषि मज़दूरों का अकुशल श्रमिक के तौर पर उल्लेख किया गया है. खेती उनका कौशल है, वो अकुशल कैसे हो सकते हैं?’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमें ये भी लगता है कि सरकार को रासायनिक कीटनाशकों के निरंतर और अनियंत्रित इस्तेमाल पर रोक लगानी चाहिए. हम जानते हैं कि इस दिशा में लॉबियां काम करती हैं, लेकिन हमारे किसान ऊर्वरकों और कीटनाशकों के बग़ैर ही फायदे में रहेंगे’.
बीकेएस के एक दूसरे वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, कि कृषि क़ानून बनाते और उन्हें लागू करते समय सरकार ने एकतरफा फैसले लिए, लेकिन उसने एक अच्छा काम किया है कि एमएसपी कमेटी के लिए ‘इस बार सभी हितधारकों को अपना प्रतिनिधि भेजने के लिए आमंत्रित किया है’.
बीकेएस और संघ से संबद्ध एक और संस्था भारतीय कृषि-आर्थिक अनुसंधान केंद्र (बीएईआरसी), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के साथ मिलकर इसी सप्ताह भारतीय कृषि पर एक सम्मेलन और कार्यशाला का आयोजन करने जा रही है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें-नेशनल हेराल्ड मामले में ED के सामने पेश होंगी सोनिया गांधी, कांग्रेस ने किया विरोध प्रदर्शन