नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी की तरफ से पंजाब पुलिस में किए जा रहे फेरबदलों का नतीजा यह रहा है कि इस सीमावर्ती राज्य को 10 महीने में अपना पांचवां पुलिस प्रमुख मिला है और कोर पुलिसिंग वाले प्रमुख पदों पर पूरी तरह से नया नेतृत्व आ गया है.
पूर्ववर्ती कांग्रेस शासनकाल में तीन पुलिस प्रमुखों को हटाया गया था, आप सरकार ने एक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को हटाया और उनकी जगह एक नया अधिकारी तैनात किया.
1992 बैच के अधिकारी और कार्यवाहक पुलिस प्रमुख गौरव यादव आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के बैचमेट हैं और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के प्रमुख सचिव थे, उसी बैच के तीन अन्य अधिकारियों को भी डीजीपी रैंक पर पदोन्नत किया गया है. अब खुफिया, कानून और व्यवस्था और सुरक्षा जैसे प्रमुख पदों पर तैनात अधिकारी अब क्रमशः भारतीय पुलिस सेवा (आईपीसी) के 1997, 1993 और 1994 बैच से हैं.
हालांकि, ऐसे समय में जब पंजाब कानून-व्यवस्था के मामले में बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है, चाहे लुधियाना में ग्रेनेड विस्फोट हो या गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या, इन घटनाओं के परिणामस्वरूप कोई भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एक बार में लगातार तीन-चार महीने एक पद पर नहीं रहा है.
यह फेरबदल सिर्फ सीनियर रैंक तक ही सीमित नहीं है.
मार्च के बाद, जब आप सरकार ने सत्ता संभाली थी, से अब तर पुलिस उपाधीक्षकों और पुलिस अधीक्षकों के साथ-साथ थाना प्रभारी स्तर पर 400 से अधिक अधिकारियों का एक बड़ा फेरबदल किया गया है. इसी तरह की कवायद पिछले साल सितंबर में कांग्रेस नेता चरणजीत सिंह चन्नी के सत्ता संभालने के बाद हुई थी.
यद्यपि आप ने फेरबदल को एक नियमित प्रक्रिया का हिस्सा बताते हुए खास तरजीह नहीं दी है, प्रशासनिक बदलावों पर पूर्व पुलिस प्रमुखों का कहना है कि पंजाब जैसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील सीमावर्ती राज्य के लिए बार-बार फेरबदल ‘आत्मघाती’ साबित होते हैं.
अमरिंदर सिंह से मुख्यमंत्री पद की कमान चन्नी के हाथों में आने के बाद तत्कालीन डीजीपी दिनकर गुप्ता छुट्टी पर चले गए थे और 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी इकबाल प्रीत सिंह सहोता को सितंबर में पंजाब के डीजीपी के पद पर नियुक्त किया गया था.
सहोता केवल दो महीने के लिए पद पर रहे और दिसंबर में उन्हें ‘उनके पद से हटा दिया गया.’
सहोता के बाद 1986 बैच के अधिकारी एस. चट्टोपाध्याय को एक महीने से भी कम समय के लिए लाया गया. तत्कालीन कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू के करीबी माने जाने वाले चट्टोपाध्याय को चन्नी सरकार ने इस साल जनवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फिरोजपुर यात्रा के दौरान कथित ‘सुरक्षा चूक’ की घटना के बाद हटा दिया था.
इसके बाद 1987 बैच के वी.के. भावरा ने पंजाब के डीजीपी के रूप में पदभार संभाला. छह माह का भी समय नहीं बीता था कि भावरा को पंजाब पुलिस मुख्यालय पर रॉकेट चालित ग्रेनेड (आरपीजी) हमले और मई में सिद्धू मूसेवाला की हत्या को लेकर कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उन्होंने जून में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति की मांग की और छुट्टी पर चले गए.
फिर गौरव यादव को कार्यवाहक पुलिस प्रमुख के तौर पर लाया गया. संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को उनकी नियुक्ति की पुष्टि करनी है.
किसी कार्यवाहक डीजीपी को अधिकतम छह महीने के लिए नियुक्त किया जा सकता है. इस अवधि के भीतर सरकार यूपीएससी को आईपीएस अधिकारियों की एक सूची भेजती है, जो उनमें से तीन उम्मीदवारों का सुझाव देती है, जिनमें से किसी एक को पुलिस प्रमुख बनाया जाता है.
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‘अनिश्चितता पुलिस की सबसे बड़ी दुश्मन’
पंजाब के एक पूर्व डीजीपी ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि ‘अनिश्चितता’ पुलिसिंग की सबसे बड़ी दुश्मन है.
पूर्व डीजीपी ने कहा, ‘हर सरकार चाहती है कि उनके अपने आदमी सत्ता में हों. ये सभी सत्ता संभालने के बाद फेरबदल करते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि ऐसी अनिश्चितता पंजाब जैसे राज्य के लिए आत्मघाती है, जो कई चुनौतियों का सामना कर रहा है—चाहे वो गैंगस्टर हों, हथियार, ड्रोन, ड्रग्स या आतंकवाद की समस्या.’
उन्होंने कहा, ‘ऐसी स्थिति में जब लोग देख रहे हैं कि कानून-व्यवस्था बिगड़ रही है, कट्टरपंथी तत्वों का हौसला बढ़ता है. ऐसे में बेहद जरूरी है कि एक व्यापक नजरिये वाला एक पुलिस प्रमुख हो. अगर पुलिस प्रमुख बदलते रहे, वरिष्ठ स्तर के अधिकारी—एडीजीपी या यहां तक कि एसपी और डीएसपी—तक एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते रहें तो काम कौन करेगा?’
अधिकारी ने कहा कि इस तरह की ‘म्यूजिकल चेयर खतरनाक है.’ उन्होंने कहा, ‘इस स्थिति में राजनेताओं का समर्थन और एक मजबूत पुलिस नेतृत्व की आवश्यकता है. यदि आप नतीजों का अंदाजा लगाए बिना पंजाब के साथ किसी तरह का खिलवाड़ करते हैं तो आपको लेकर हैरान ही हुआ जा सकता है.’
पंजाब के पूर्व पुलिस प्रमुख एस.एस. विर्क ने कहा कि एक डीजीपी को पुलिस बल का नेतृत्व करना होता है और इसे ‘कमजोर’ स्थिति में नहीं देखा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘अभी हम जो देख रहे हैं वह राजनीतिक पुलिस का उदाहरण है न कि पेशेवर पुलिस का. यदि वरिष्ठ अधिकारियों को इसी तरह हटाया जाने लगेगा तो पूरा सिस्टम ही ध्वस्त हो जाएगा. संगरूर उपचुनाव में आप की हार के लिए वी.के भावरा कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं? यह पुलिस बल को क्या संदेश देगा?’
विर्क ने कहा, ‘उस हार का कारण सिद्धू मूसेवाला की हत्या और बिगड़ती कानून-व्यवस्था थी.’
उन्होंने कहा, ‘जब आप ने मूसेवाला की सुरक्षा में कटौती की थी, तो इसे वीआईपी संस्कृति खत्म करने वाले एक सकारात्मक कदम के तौर पर प्रचारित किया गया. और जब वह मारा गया, तो दोष पुलिस पर मढ़ दिया गया. क्यों?’
उन्होंने कहा कि संगरूर की हार के लिए भावरा को जिम्मेदार ठहराना ‘आप के अपरिपक्व रवैये’ को दर्शाता है.
विर्क ने कहा, ‘आप राजनीतिक पराजय के लिए डीजी को दोषी नहीं ठहरा सकते. पूरा पुलिस बल डीजी की ओर देखता है और अगर वही कुर्सी इतनी कमजोर और राजनीतिक नेताओं के दबाव में दिखती है, तो फिर फोर्स उसकी क्यों सुनेगी?’
विर्क ने कहा कि अगर आप का यही रवैया है, ‘वह भी पंजाब में तो यह काम नहीं करेगा और सरकार के नेतृत्व को लेकर भी सवाल खड़े होंगे.’
हालांकि, पंजाब में आप के मुख्य प्रवक्ता मलविंदर सिंह कंग ने कहा कि सरकार की प्राथमिकता मजबूत नेतृत्व लाना है और यही वजह है कि फेरबदल किया गया.
उन्होंने कहा, ‘जो भी सरकार सत्ता में आती है, फेरबदल करती है. इसके ज्यादा कुछ निहितार्थ नहीं निकाले जाने चाहिए. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पंजाब पिछले कुछ महीनों से राजनीतिक रूप से अस्थिर था, लेकिन अब सत्ता में स्थिर सरकार के साथ सब कुछ ठीक होना चाहिए. हमारी प्राथमिकता पंजाब को बेहतरीन अफसर देना है.’
कंग ने कहा कि सरकार यह मानती है कि कानून और व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रण में लाने की जरूरत है, लेकिन यह ‘रातोंरात’ नहीं हो सकता.
उन्होंने कहा, ‘हम जानते हैं कि समस्याएं हैं, और हम काम कर रहे हैं. रातों-रात कुछ नहीं बदलता. अलग गैंगस्टर टास्क फोर्स बनाने से लेकर संगठित अपराध के खिलाफ कार्रवाई करने तक, जो पहले की सरकारों के समय में नदारत था, (यह सब) अब हो रहा है.’
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नया नेतृत्व 1990 के दशक वाला—एक पीढ़ीगत बदलाव
कार्यवाहक डीजीपी गौरव यादव ने पंजाब पुलिस का नेतृत्व संभालने में कई वरिष्ठ अधिकारियों को सुपरसीड किया है.
वरिष्ठ अधिकारियों में दिनकर गुप्ता (1987 बैच) राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के प्रमुख के तौर पर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए, प्रबोध कुमार (1988) को खुफिया प्रमुख के तौर पर हटा दिया गया और विशेष डीजीपी (पंजाब राज्य मानवाधिकार आयोग), चंडीगढ़ के रूप में तैनात किया गया, और संजीव कालरा (1989) को विशेष डीजीपी, होमगार्ड के पद पर तैनात किया गया.
पराग जैन (1989) भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं और कैबिनेट सचिवालय में अतिरिक्त सचिव के तौर पर तैनात हैं, जबकि भावरा (1987) भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
मौजूदा समय में यादव के अलावा प्रमुख पदों पर तैनात अधिकारी हैं—पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) जतिंदर सिंह औलख (1997), जो खुफिया प्रमुख बनाए गए हैं और आईजीपी पद के साथ अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) का काम देखेंगे. ईश्वर सिंह (1993) को एडीजी कानून और व्यवस्था, और सुधांशु एस. श्रीवास्तव (1994) को एडीजीपी सुरक्षा के तौर पर तैनात किया गया है.
1992 बैच के तीन अधिकारियों—शरद सत्य चौहान, हरप्रीत सिंह सिद्धू और कुलदीप सिंह को डीजीपी रैंक पर पदोन्नत किया गया है.
चौहान को जहां पंजाब पुलिस हाउसिंग कॉरपोरेशन का चेयरपर्सन-कम-एमडी बनाया गया है, वहीं सिद्धू को स्पेशल डीजीपी (जेल) के साथ स्पेशल डीजीपी (एसटीएफ) का और कुलदीप सिंह को स्पेशल डीजीपी (इंटरनल विजिलेंस सेल) का प्रभार दिया गया है.
कंग ने कहा कि आप की प्राथमिकता साफ-सुथरी छवि वाले अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर रखना है. उन्होंने कहा, ‘हमारा प्रयास महत्वपूर्ण पदों पर साफ-सुथरे रिकॉर्ड वाले अधिकारियों को तैनात करना है और हमने यही किया है. और इसने अच्छे नतीजे भी देने शुरू कर दिए हैं.’
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