नई दिल्ली: देश भर से सड़क दुर्घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए एक आपातकालीन नंबर, सड़क सुरक्षा में सुधार के मकसद से राज्यों को इनोवेशन लाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रतियोगिता और संस्थागत सुधारों को आगे बढ़ाने वाले राज्यों को आर्थिक मदद- ये कुछ समाधान हैं जिन्हें मोदी सरकार 2028 तक भारतीय सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए बहुपक्षीय एजेंसियों के सहयोग से शुरू कर रही है.
सड़क परिवहन मंत्रालय ने दिप्रिंट को बताया कि ये समाधान सड़क सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सरकार द्वारा चलाए जाने वाले 100 करोड़ डॉलर के प्रोग्राम का हिस्सा हैं, जिसे केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (ADB) के समर्थन से भारत भर के 14 राज्यों में लागू किया जाएगा.
विश्व बैंक के प्रमुख परिवहन विशेषज्ञ अर्नब बंद्योपाध्याय ने बताया कि भारत में होने वाली कुल सड़क दुर्घटनाओं और मौतों के 85 फीसदी मामले इन्हीं 14 राज्यों से हैं. इनमें आंध्र प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं.
बंद्योपाध्याय ने कहा, ‘इन राज्यों में जून 2028 तक सड़क दुर्घटनाओं और मौतों को 30 फीसदी तक कम करने का विचार है.’
उन्होंने बताया “यह एक अनूठा कार्यक्रम है क्योंकि यह पहली बार है जब सड़क सुरक्षा योजना पूरी तरह से इंसेंटिव बेस्ड है … अगर कोई राज्य लक्ष्य तक पहुंच जाता है तो उन राज्यों के बीच धन वितरित किया जाता है।”
सात राज्यों में प्रोग्राम का समर्थन करने के लिए विश्व बैंक ने 27 जून को 250 मिलियन डॉलर फंड की मंजूरी दी. वहीं एडीबी बाकि सात राज्यों में इसे लागू करने के लिए 250 मिलियन डॉलर की मदद करेगा. सड़क परिवहन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बाकि 50 प्रतिशत राशि भारत सरकार की ओर से आएगी.
दिप्रिंट ने ईमेल के जरिए एडीबी से संपर्क किया था. लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
सुरक्षा के लिहाज से भारत की सड़कों का रिकॉर्ड दुनिया में सबसे खराब है. विश्व बैंक की 2021 की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में दुनिया के 1 प्रतिशत वाहनों की हिस्सेदारी हैं. लेकिन होने वाली सड़क मौतों के लगभग 11 प्रतिशत मामले भारत से आते हैं. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सड़क हादसों में औसतन हर चार मिनट में एक भारतीय की मौत होती है.
2017 विश्व बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक अगर भारत अपने यहां होने वाली सड़क दुर्घटनाओं और मौतों को आधा कर देता है तो संभावित रूप से अपने सकल घरेलू उत्पाद में प्रति व्यक्ति 14 प्रतिशत जोड़ सकता है.
कैसे काम करेगा ये प्रोग्राम
बंद्योपाध्याय के अनुसार इस योजना के पांच आधार स्तंभ हैं. पहला- सड़क सुरक्षा का बुनियादी ढांचा विकसित करना. इस पर अधिकतम राशि खर्च की जाएगी. इसके तहत क्रैश आइडेंटिफिकेशन सिस्टम के साथ-साथ ब्लैक स्पॉट में भी सुधार किया जाएगा.
दूसरा आधार स्तंभ ड्राइवर और उसकी गाड़ी की सुरक्षा है. इसके तहत दो प्रमुख स्वचालित चालक लाइसेंसिंग, और स्वचालित वाहन निरीक्षण प्रणाली शुरू की जाएगी. तीसरे स्तंभ में ज्यादातर ऑटोमेशन के जरिए अमल की प्रक्रिया में सुधार लाना शामिल है, और चौथा इमरजेंसी रिस्पांस सिस्टम को मजबूत बनाना है.
संस्थागत जवाबदेही के लिए पांचवां स्तंभ पेश किया गया है. यह एक कोऑर्डिनेटिड मैनेजमेंट को बढ़ावा देने, गैर-सरकारी संस्थाओं और लोगों के लिए सड़क सुरक्षा प्रबंधन में भाग लेने के लिए जगह बनाने और डेटा सिस्टम और साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप को मजबूत करने में मदद करेगा.
एक स्वतंत्र सत्यापन एजेंसी (आईवीए) को इस बात की जांच करने के लिए साथ जोड़ा जाएगा कि क्या राज्यों ने वह हासिल किया है जिसका वह दावा कर रहे हैं. साथ ही उस स्तर तक पहुंचने के लिए जो खर्च किया है वो कार्यक्रम के तहत निर्धारित कुछ मानकों का अनुपालन करता है या नहीं- इसकी भी जांच की जाएगी.
बंद्योपाध्याय ने बताया कि प्रोग्राम का प्राथमिक उद्देश्य न केवल दुर्घटनाओं और मौतों को कम करना है, बल्कि सड़क सुरक्षा और शासन ढांचे को मजबूत करना भी है. राज्यों को हर साल के लिए लक्ष्य दिए जाएंगे और उन्हें प्राप्त करने के लिए इंसेंटिव दिया जाएगा.
पूरे देश के लिए एक आपातकालीन नंबर
बंद्योपाध्याय ने कहा कि यूनिफाइड इमरजेंसी नंबर शुरू में 14 राज्यों में शुरू किया जाएगा, लेकिन बाद में इसे देश के बाकी हिस्सों में चालू कर दिया जाएगा.
मौजूदा समय में, पूरे देश के लिए एक पुलिस या फायर हेल्पलाइन नंबर तो है लेकिन भारत में सड़क दुर्घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए ऐसा एक भी नंबर नहीं है. अलग-अलग राज्य अलग-अलग नंबरों का इस्तेमाल करते हैं. बंद्योपाध्याय ने यह भी पुष्टि की कि 2026 तक 14 राज्यों में एक आपातकालीन नंबर शुरू कर दिया जाएगा.
प्रोग्राम के तहत दुर्घटना के बाद के हस्तक्षेप को भी मजबूत किया जाएगा. इसमें एम्बुलेंस की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ उन राज्यों पर ध्यान देना भी शामिल होगा जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रति लाख जनसंख्या पर एम्बुलेंस की संख्या के न्यूनतम मानकों का पालन नहीं करते हैं.
दूसरे, 14 राज्यों में कॉल सेंटर के अंतर्गत और एंबुलेंस चलाई जाएंगी.
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बंदोपाध्याय ने कहा, ‘वे जीपीएस से लैस होंगी और कॉल सेंटर के जरिए उन्हें मैनेज किया जाएगा. इसलिए यह काफी अति महत्वाकांक्षी लक्ष्य है. जिन राज्यों में इनकी (आदर्श जीपीएस से सुसज्जित एम्बुलेंस) संख्या 25 से 30 प्रतिशत पर हैं, उन्हें इसे 75-80 प्रतिशत तक ले जाना होगा .’
एक ‘चैलेंज फंड’
राज्य अगर विश्व बैंक और एडीबी द्वारा सुरक्षा और सड़क के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए आवंटित 50 करोड़ डॉलर का इस्तेमाल करने या लक्ष्य को पूरा करने में असमर्थ हैं, तो पैसा एक संग्रह या ‘चैलेंज फंड’ में चला जाएगा.
बंदोपाध्याय बताते हैं, ‘हर राज्य सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल हो जाएगा, ऐसा होना मुश्किल है. खासकर कमजोर राज्यों के मामले में. ऐसे में यह पैसा वास्तव में एक जगह संग्रह किया जाएगा है जिसे कार्यक्रम इनोवेशन के लिए एक चैलेंज फंड के तौर पर चलाया जाएगा’.
यह प्रतियोगिता हर तिमाही में आयोजित की जाएगी, जहां राज्यों द्वारा लागू किए गए सर्वोत्तम कामों को बाकि राज्यों के साथ साझा किया जाएगा. विचार यह है कि जो राज्य अच्छा प्रदर्शन करते हैं, वे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों या अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें.
बंद्योपाध्याय ने कहा कि चैलेंज फंड की रूपरेखा अगले छह महीनों में तय की जाएगी.
उन्होंने कहा: ‘हमारी उम्मीद है कि कुल फंड में से लगभग 10-15 प्रतिशत राशि इनोवेशन और सर्वोत्तम कार्यों को पुरस्कृत करने में खर्च की जाएगी.’
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