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Tuesday, 17 December, 2024
होमदेशUP के कन्नौज में इत्र कारोबारियों को बढ़ावा देने की SP के दौर की योजना क्यों पड़ गई ठंडी

UP के कन्नौज में इत्र कारोबारियों को बढ़ावा देने की SP के दौर की योजना क्यों पड़ गई ठंडी

अंतर्राष्ट्रीय इत्र म्यूज़ियम और पार्क (जिसे अब इत्र पार्क कहते हैं) की परिकल्पना कन्नौज और फ्रांस की इत्र राजधानी ग्रासे के बीच तकनीकी विशेषज्ञता के आदान-प्रदान के रूप में की गई थी.

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कन्नौज: ‘राजनीति करने वालों का कोई नुक़सान नहीं होता. सिर्फ लोग कुचले जाते हैं.’ ये दुख ज़ाहिर कर रहा था भारत की इत्र राजधानी के रूप में प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश के कन्नौज में बड़ा बाज़ार स्थित अपने महकते शोरूम में बैठा एक इत्र निर्माता.

यहां की हवा में जामदानी गुलाब, वेटिवर और संदल की ख़ुशबू भरी है, जो उन दुकानों में और तेज़ हो जाती है जहां इत्र विक्रेता अतर या इत्र से भरी छोटी छोटी बोतलें बेंचते हैं- जो तेल पर आधारित वनस्पति सुगंध होती है, जिसे बहुत पुरानी डेग-भपका तकनीक से बनाया जाता है.

फिर भी, भविष्य के लिए किया गया एक वादा- छह साल पहले यूपी की पूर्व समाजवादी पार्टी सरकार द्वारा प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय इत्र म्यूज़ियम और पार्क (जिसे अब इत्र पार्क कहते हैं), ऐसा लगता है कि अब धुएं में ही उड़ गया है.

बड़ा बाज़ार से क़रीब 20 किलोमीटर दूर, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर वो परियोजना स्थल मौजूद है, जिसकी परिकल्पना कन्नौज और फ्रांस की इत्र राजधानी ग्रासे के बीच, तकनीकी विशेषज्ञता के आदान-प्रदान के रूप में की गई थी.

अपेक्षा ये की गई कि उसके परिणामस्वरूप यूपी का शहर एक बड़े अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से रूबरू होगा और उसके ब्राण्ड को बढ़ावा मिलेगा, जिसके इत्र का पश्चिम एशिया में एक मामूली बाज़ार है, और जिसे यूरोपियन इत्र निर्माता अपनी सूंघने वाली वस्तुओं में इस्तेमाल करते हैं.

लेकिन, अप्रैल 2016 के बाद से, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने परियोजना की आधारशिला रखी, इसकी चारदीवारी के अंदर मिट्टी और मलबे के ढेर ही दिखाई पड़ते हैं, जो परियोजना की वेबसाइट पर परिकल्पित ऑर्किड जैसी अत्याधुनिक इमारत से बिल्कुल विपरीत नज़ारा पेश करती है.

कन्नौज के बहुत से व्यापारी और निर्माता परियोजना की उपेक्षित स्थिति के लिए, मार्च 2017 से सत्ता में बैठी राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार के ‘उत्साह की कमी’ को ज़िम्मेवार मानते हैं. उनकी ये भी शिकायत है कि हालांकि पिछले कुछ महीनों में कथित रूप से इसपर काम शुरू हुआ है, लेकिन परियोजना के दायरे को काफी कम कर दिया गया है.

मई में विधान सभा में यूपी बजट पर चर्चा के दौरान अखिलेश ने, जो अब नेता प्रतिपक्ष हैं, आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार कन्नोज के इत्र उद्योग के लिए धन आवंटित नहीं कर रही है, जो पारंपरिक उद्यमों की हौसला अफज़ाई के लिए राज्य की ‘एक जनपद–एक उत्पाद‘ (ODOP) पहल के अंतर्गत आता है.

उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि आपको इत्र पसंद न हो, लेकिन ख़ुशबू हर किसी को अच्छी लगती है’. उन्होंने कहा कि जहां इत्र पार्क धूल फांक रहा है, वहीं एक गोबर गैस प्लांट के लिए बजट आवंटित किया गया है.

लेकिन दिप्रिंट से बात करते हुए, बीजेपी नेता और कन्नौज सांसद सुब्रत पाठक ने कहा कि इत्र पार्क केवल अखिलेश शासन में की गई ‘विशुद्ध राजनीति’ का प्रतिनिधित्व करता है और योगी सरकार उसे अमलीजामा पहना रही है.

जहां सरकारी अधिकारियों और स्थानीय निवासियों का कहना था कि पार्क का काम बरसों से ‘ठप’ पड़ा था, वहीं पाठक का दावा था कि परियोजना का पहला चरण साल के अंत तक पूरा कर लिए जाने की उम्मीद है.

फिलहाल, परियोजना के बजट को कथित रूप से मूल योजना के अनुमानित 257 करोड़ रुपए से घटाकर 100 करोड़ कर दिया गया है और उसके लिए आवंटित ज़मीन भी 100 एकड़ से घटाकर आधी कर दी गई है, जिससे परेशानी में घिरे कन्नौज के इत्र उद्योग में काफी निराशा फैल गई है.

दबाव में है प्राचीन उद्योग

कन्नौज मुग़लों के आगमन से पहले ही ख़ुशबू के कारोबार में था, जिनके आने के बाद इसकी मांग बढ़ी और ये आज भी प्राकृतिक सुगंध, तेल, सुगंध, अगरबत्तियां, और दूसरे सुगंध उत्पादों का एक प्रमुख निर्माण केंद्र है.

स्थानीय इत्र उद्योग की उत्पत्ति के बारे में पूछे जाने पर कन्नौज की इत्र और परफ्यूमर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष पवन त्रिवेदी ने, ऋग्वेद से महा मृत्युंजय मंत्र की पंक्तियों का हवाला दिया, जिनमें भगवान शिव का वर्णन करने के लिए ‘सुगंधिम’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है.

उनके अनुसार ये एक संकेत है कि इत्र वैदिक काल में भी मौजूद था.

एसोसिएशन के अनुसार फिलहाल शहर और उसके आसपास क़रीब 350 निर्माण इकाइयां हैं, जिनमें कम से कम 500,000 लोगों को रोज़गार मिला हुआ है और यहां क़रीब 200 करोड़ रपए का सालाना कारोबार होता है.

कन्नौज में हाइड्रो-डिस्टिलेशन के माध्यम से आवश्यक तेलों के निष्कर्षण के लिए तैयार किया जा रहा है पिंक गुलाब | मनीषा मंडल/ दिप्रिंट

लेकिन, अब पिछले कई वर्षों से ये उद्योग गिरावट के दौर से गुज़र रहा है, जिसमें कच्चे माल माल की बढ़ती क़ीमतों और घटती मांग से मुनाफे पर चोट पड़ रही है.

कमज़ोर होते इस उद्योग का कायाकल्प ही अखिलेश सरकार के एक इत्र पार्क के प्रस्ताव के पीछे मूल कारण था.

त्रिवेदी ने दिप्रिंट को बताया कि विकास की इस संभावना ने निर्माताओं की उम्मीदें जगा दी थीं, कि वो विश्व मानचित्र पर अपनी एक ख़ास जगह बना पाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘शहर के निर्माताओं के लिए कन्नौज के इत्र अनोखे और मौलिक हैं, लेकिन हमारे पास मार्केटिंग, ब्रांडिंग और सरकार की ओर से सहायता की कमी है. अगर हम अपने आपको अच्छे से बेंच पाते, और हम ज़्यादा तरक़्क़ी कर सकते थे.’

इत्र पार्क की महत्वाकांक्षी शुरूआत

अंतर्राष्ट्रीय इत्र म्यूज़ियम और पार्क की परिकल्पना सबसे पहले 2015 में की गई थी, जब अखिलेश और उनकी पत्नी डिंपल यादव जो उस समय कन्नौज से सांसद थीं, एक समझौते की रूपरेखा तैयार करने के लिए ग्रासे के दौरे पर गए.

शुरुआती दस्तावेज़ों से पता चलता है कि पहले इस परियोजना को 400 एकड़ ज़मीन पर विकसित करने की योजना थी, जिसे उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीएसआईडीसी) के तत्वावधान में पूरा किया जाना था.

इसमें से 300 एकड़ उस जगह पर मौजूद ‘ग्राम सभा’ की ज़मीन से आने थे, जबकि बाक़ी 100 एकड़ ज़मीन का ‘इंतज़ाम’ किसानों से अधिग्रहण के ज़रिए किया जाना था.

परियोजना का एक बेहद ज़रूरी हिस्सा था, उन्नत खिंचाव और निचोड़ के लिए थतिया रोड पर दो गांवों में एक इत्र ‘मैन्युफेक्चरिंग ज़ोन’, और अन्य चीज़ों के अलावा एक म्यूज़ियम और ऑडिटोरियम.

कन्नौज-ग्रासे समझौते के तहत ये भी ऐलान किया गया, कि छात्रों के समूहों को एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए फ्रांसीसी शहर भेजा जाएगा.

कन्नौज में एक दुकान पर इत्र की बोतलें | शिखा सलारिया/ दिप्रिंट

लेकिन, यूपीएसआईडीसी के रीजनल मैनेजर राकेश झा, जो परियोजना की निगरानी कर रहे थे, ने कहा कि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में आई अड़चनों ने इन महत्वाकांक्षाओं को थोड़ा संयमित कर दिया और प्रोजेक्ट के लिए एक ताज़ा योजना बनाई गई, जिसमें कुल 100 एकड़ ज़मीन कवर की जानी थी. उन्होंने कहा, ‘इसमें 31 एकड़ ज़मीन पहले चरण के कार्य के लिए चिन्हित की गई.’

भूमि अधिग्रहण मुद्दों के अलावा, परियोजना की राह में एक क़ानूनी अड़चन तब आ गई, जब यूपीएसआईडीसी ने उस कंपनी को बदलने का फैसला किया, जिसे उसने परियोजना को कार्यान्वित करने के लिए हायर किया था.

आख़िरकार अप्रैल 2016 में, विधान सभा चुनावों से एक साल पहले अखिलेश यादव ने कन्नौज की तिरवा तहसील में अंतर्राष्ट्रीय इत्र म्यूज़ियम और पार्क की आधारशिला रखी. परियोजना का पहला चरण, भले नाम के लिए सही, चिन्हित की गई 31 एकड़ में से 28 एकड़ में शुरू किया गया, जिसे दो साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया.


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‘परियोजना 4.5 साल तक रुकी रही’

मार्च 2017 में, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार सत्ता में आ गई.

आदित्यनाथ सरकार परियोजना को आगे बढ़ाना चाहती थी, लेकिन उसने कथित रूप से भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पूरा न होने, परियोजना की व्यावहारिकता के बारे में स्पष्टता न होने, और परियोजना के नाम में इत्र शब्द को शामिल किए जाने जैसे मुद्दों का बहाना किया.

स्थानीय निवासियों का कहना है कि उसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले तक परियोजना का काम रुका रहा.

त्रिवेदी ने कहा, ‘अप्रैल 2016 में घोषणा होने के बाद, साढ़े चार साल तक काम रुका रहा. छह महीने पहले ही चारदीवारी का काम शुरू हुआ, जब विधानसभा चुनावों में कुछ ही समय बचा था.’

कन्नौज में अंतर्राष्ट्रीय इत्र संग्रहालय और पार्क की साइट, जिसे छह साल पहले सपा सरकार के दौरान प्रस्तावित किया गया था | शिखा सलारिया/ दिप्रिंट

उन्होंने दावा किया कि केंद्र सरकार ने इस परियोजना को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखाया है और इसका असर परियोजना में निवेशकों की दिलचस्पी पर नज़र आ रहा है.

उन्होंने कहा, ‘आप सवाल उठाने लगते हैं कि कितने (निर्माता) आएंगे, कोई आएगा भी कि नहीं? बहुत स्वाभाविक है कि निवेशकों का उत्साह भी कम हो जाएगा.’

एक और इत्र निर्माता ने कहा, ‘परियोजना बुनियादी रूप से इसलिए कष्ट में है, क्योंकि मौजूदा शासन की इसमें दिलचस्पी नहीं है. चूंकि परियोजना का आकार घटा दिया गया है, इसलिए निर्माता भी इसे लेकर दुविधा में हैं. परियोजना पिछले चार साल से अटकी हुई है…इससे संकेत मिलता है कि सरकार क्या सोच रही है.’

भारी कटौती

सरकारी अधिकारी स्वीकार करते हैं कि कुछ समय से काम रुका हुआ था, लेकिन अब वो चल रहा है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, कन्नौज के ज़िला मजिस्ट्रेट आरके मिश्रा ने कहा कि काम शुरू हो गया है और ‘मैन्युफेक्चरिंग ज़ोन बनाने के लिए और अधिक ज़मीन अधिग्रहण की योजना बनाई जा रही है.’

लेकिन, परियोजना के दायरे को काफी कम कर दिया गया है. 100 एकड़ की बजाय इसे 50 एकड़ में बनाया जाएगा. इसके अलावा, यूपीएसआईडीसी से मिली जानकारी के अनुसार, उसमें केवल 38 औद्योगिक इकाइयों को समायोजित किया जा सकेगा, जबकि 90-100 निर्माता वहां आने में दिलचस्पी रखते हैं. परियोजना का मौजूदा बजट भी घटाकर 100 करोड़ कर दिया गया है.

और जानकारी देते हुए अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट (वित्त-राजस्व) गजेंद्र कुमार ने कहा कि फिलहाल 31 एकड़ ज़मीन उपलब्ध है, जिसमें से 28 एकड़ पर काम शुरू हो चुका है. कुमार ने बताया, ‘इसके बाद, और 29 एकड़ भूमि अधिग्रहित की जाएगी. ये परियोजना कुल 59 एकड़ क्षेत्र में फैली होगी’.

त्रिवेदी के अनुसार, ये कटौती अपने साथ भारी निराशा लेकर आई है.

उन्होंने कहा, ‘जब परियोजना के लिए पहली बार आवेदन मांगे गए, तो क़रीब 80-90 निर्माताओं ने वहां अपनी यूनिटें स्थापित करने की इच्छा ज़ाहिर की. लेकिन अब सरकार सिर्फ 50 एकड़ से कुछ अधिक पर काम कर रही है, जिसमें से वो केवल 38 औद्योगिक इकाइयां उन निर्माताओं को पेश कर रहे हैं, जो पार्क में अपनी यूनिट्स स्थापित करना चाहते हैं.’

एक और बड़े इत्र निर्माता की भी यही शिकायत थी: ‘सरकार ने पुराने प्रस्ताव को बदल दिया, और एक नया प्रस्ताव लेकर आई जिसके तहत निर्माताओं को आवंटित किए जाने वाले औद्योगिक प्लॉट्स की संख्या में भारी कमी कर दी गई.’

लेकिन, प्रमुख सचिव एमएसएमई नवनीत सहगल ने दिप्रिंट से कहा, कि सरकार सभी इच्छुक निर्माताओं को प्लॉट्स आवंटित करने का प्रयास करेगी.

कन्नौजी में एक पुरानी परफ्यूमरी। शिखा सलारिया/ दिप्रिंट

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भूमि पट्टा शुल्क बहुत ‘ज़्यादा’

कन्नौज के इत्र व्यापारी इस बात से भी ख़फा हैं कि उन्हें 6,000 रुपए प्रति मीटर (1 एकड़ में 4,000 मीटर से कुछ अधिक होते हैं) की दर पर भूखंड दिए जा रहे हैं, और उनका कहना है कि ये उनके लिए ‘बहुत ज़्यादा’ है.

इत्र निर्माताओं का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में उनकी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (एमएसएमई) के साथ कई बैठकें हो चुकी हैं.

त्रिवेदी ने कहा, ‘2018 में हमारी पूर्व मुख्य सचिव अनूप चंद्र पाण्डेय के साथ बैठक हुई थी और क़रीब तीन साल पहले हम सीएम से भी मिले थे. लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ, और हमारी समस्याएं अभी तक जस की तस हैं.’

कुछ निर्माताओं के अनुसार, यूपी को पड़ोसी उत्तराखंड में बन रहे अरोमा पार्क से कुछ सीख लेनी चाहिए.

बड़ा बाज़ार के एक और इत्र व्यापारी ने पूछा, ‘उत्तराखंड के काशीपुर में इच्छुक सुगंधित उद्योगों को अरोमा पार्क परियोजना में 2,500 रुपए प्रति मीटर की दर से औद्योगिक प्लॉट मिल रहे हैं. अगर वो इतने वाजिब दाम पर दे सकते हैं, तो यूपी सरकार क्यों नहीं दे सकती?’

त्रिवेदी ने कहा कि उनकी एसोसिएशन ने सरकार को सुझाव दिया था, कि कार्यान्वयन एजेंसी यूपीएसआईडीसी की एक टीम को काशीपुर भेजा जाना चाहिए, ताकि वो समझ सके कि वो सस्ती दरों पर ज़मीन कैसे दे रहे हैं.

इसके बारे में पूछे जाने पर, यूपीएसआईडीसी कानपुर के रीजनल मैनेजर मयंक मंगल का कहना था, कि यूपी की उत्तराखंड से तुलना करना संभव नहीं है, क्योंकि वो एक ‘पहाड़ी प्रदेश’ है.

ऊंची दरों और निर्माताओं द्वारा सब्सिडी मांगे जाने के बारे में पूछने पर, एमएसएमई प्रमुख सचिव नवनीत सहगल ने कहा, कि वो ऐसा करने का ‘प्रयास’ कर रहे हैं.

‘राजनीति है ज़िम्मेवार’

नाम न बताने की शर्त पर कन्नौज के बहुत से इत्र निर्माता अपनी एक सबसे बड़ी चिंता का हवाला देते हैं, राजनीति का असर.

ये शहर, जो 2019 तक दो बार अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल का लोकसभा चुनाव क्षेत्र रहा था, समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता था. इत्र निर्माताओं का कहना है कि धारणा उनके खिलाफ गई है.

यहां बहुत से लोग अपने उस डर की बात करते हैं कि ये उद्योग जीएसटी और आयकर अधिकारों के रडार पर रहता है.

पिछले साल दिसंबर में, नक़द नोटों की मोटी गड्डियों की तस्वीरें वायरल हो गईं, जो कथित तौर पर 150 करोड़ रुपए से अधिक की थीं, और जिन्हें त्रिमूर्ति फ्रेंगरेंस के कानपुर स्थित मालिक पीयूष जैन के घर से बरामद किया गया था.

उसके बाद एक राजनीतिक गंध फैल गई- जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार की उस गंध पर टिप्पणी की, जिसे एसपी ने पूरे राज्य में छिड़क दिया था, वहीं अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि जैन को बीजेपी की सरपरस्ती हासिल थी.

इस बीच, अटकलें थीं कि ‘ग़लत’ जैन को पकड़ लिया गया था, क्योंकि इसी नाम के एक दूसरे बड़े इत्र व्यापारी ने उससे पिछले महीने, ‘समाजवादी इत्र’ के नाम से अपना इत्र लॉन्च किया था. कुछ दिन बाद वो व्यापारी- समाजवादी पार्टी एमएलसी पुष्पराज जैन- भी आयकर के जाल में आ गया. उसकी संपत्तियों पर छापेमारी के बाद उस पर आयकर चोरी का आरोप लगाया गया.

नाम न बताने की शर्त पर एक इत्र व्यापारी ने कहा, ‘ये एक चिंताजनक रुझान बन गया है. अगर हम कोई मुद्दा उठाते हैं तो हमें एसपी-समर्थक बता दिया जाता है, और कौन जाने कि उसके बाद क्या हो सकता है?’

यहां पर दूसरों की तरह वो भी इत्र पार्क परियोजना की मौजूदा स्थिति के लिए ‘राजनीति’ को ही ज़िम्मेदार ठहराता है

उस इत्र व्यापारी ने कहा, ‘ये परियोजना एसपी सरकार के दौरान शुरू हुई थी, लेकिन ऐसा लगता है कि मौजूदा सरकार इसे उसी उत्साह के साथ आगे बढ़ाने में रूचि नहीं रखती, और उसने इसका आकार और बजट दोनों घटा दिए हैं.’

एसपी का भी यही कहना है कि बजट सत्र में परियोजना की अनदेखी की गई. एसपी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने दिप्रिंट से कहा, ‘चूंकि इसे पूर्व सीएम एक एसपी प्रमुख अखिलेश यादव ने शुरू किया था, और चूंकि कन्नौज पहले समाजवादियों का गढ़ रहा है, इसलिए उन्होंने परियोजना के लिए कोई बजट आवंटित नहीं किया है. इत्र पार्क से न सिर्फ निर्माताओं बल्कि किसानों को भी फायदा होगा जो फूल उगाते हैं.’

लेकिन, कन्नौज सांसद सुब्रत पाठक ने कहा कि परियोजना पटरी पर है, और पहला चरण साल के भीतर पूरा हो जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘पूरी परियोजना में यहां पर एक प्रशिक्षण केंद्र भी बनना है, लेकिन उसके अलावा एक बड़ा मुद्दा उत्पादों की बिक्री का है, जिसके लिए हम सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र (एफएफडीसी) की रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहे हैं. अगली बैठक में इस मुद्दे को उठाया जाएगा, और हम उस रिपोर्ट को राज्य सरकार को आगे भेज देंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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